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यूहन्ना रचित सुसमाचार – ज्योती अंध्कार में चमकती है।
पवित्र शास्त्र में लिखे हुए यूहन्ना के सुसमाचार पर आधारित पाठ्यक्रम
दूसरा भाग – दिव्य ज्योती चमकती है (यूहन्ना 5:1–11:54)
क - यीशु की यरूशलेम में अन्तिम यात्रा (यूहन्ना 7:1 - 11:54) अन्धकार का ज्योती से अलग होना
1. झोपड़ियों के पर्व के समय पर यीशु का वचन (यूहन्ना 7:1 – 8:59)

ड) यीशु जगत की ज्योती (यूहन्ना 8:12-29)


यूहन्ना 8:12
“यीशु ने फिर लोगों से कहा, ‘जगत की ज्योति मैं हूँ; जो मेरे पीछे हो लेगा वह अन्धकार में न चलेगा, परन्तु जीवन की ज्योति पाएगा |’”

यीशु जगत की ज्योती हैं | जो कोई आप के पास आता है उसका अनावरण हो जाता है, वह परख लिया जाता है, ज्ञानसंपन्न हो जाता है और वह स्वस्थ हो जाता है, ताकी मसीह में ज्योती बन जाए | यीशु के सिवाय और कोई ज्योती हमें प्रकाशित नहीं कर सकती ना ही हमारे भ्रष्ट दिलों को स्वस्थ कर सकती है | अगर सभी फिलोसफीयों और धर्मों को परखा जाये तो वो कमजोर दिखाई देंगे क्योंकी वो काल्पनिक उद्धार और स्वर्गों की प्रतिज्ञा करते हैं | सच तो यह है कि वो दुष्ट लोगों को अन्धेपन की गहराई में ले जाकर वहाँ बांध देते हैं | यीशु की ज्योती उज्वल सूरज की तरह होती है जो मनुष्य की आत्मा का नवीकरण करती है | परन्तु आत्मा का यह नवीकरण एक शर्त पर होता है | वह यह कि हम विश्वास करते हुए यीशु के पास आयें और अपने आप को नकार कर आपके अनुयायी बनें और इस तरह लगातार यीशु के पीछे चलते रहने से हम अन्धकार से ज्योती में बदल जाते हैं | हम आपकी ज्योती में अपनी मन्जिल तक पहुचने का रास्ता पाते हैं | यही पिता और पूत्र की महीमा है जो जीवन की उज्वलता में है |

यूहन्ना 8:13-16
“13 फरीसियों ने उससे कहा, ‘तू अपनी गवाही आप देता है, तेरी गवाही ठीक नहीं |’ 14 यीशु ने उनको उत्तर दिया, ‘भले ही मैं अपनी गवाही आप देता हूँ, फिर भी मेरी गवाही ठीक है, क्योंकि मैं जानता हूँ कि मैं कहाँ से आया हूँ और कहाँ को जाता हूँ ? परन्तु तुम नहीं जानते कि मैं कहाँ से आता हूँ या कहाँ को जाता हूँ | 15 तुम शरीर के अनुसार न्याय करते हो; मैं किसी का न्याय नहीं करता | 16 और यदि मैं न्याय करूँ भी, तो मेरा न्याय सच्चा है, क्योंकि मैं अकेला नहीं, परन्तु मैं हूँ, और पिता है जिस ने मुझे भेजा |”

यहूदी यीशु के वचन, “मैं हूँ” से अपमानित हुए | वो सोचते थे यीशु डींगबाज और घमंडी हैं जो अपने आप को दुनिया की ज्योती बताते हैं | उन्होंने आपकी गवाही को गलत और झूठी ठहराया जिसे बढ़ा चढ़ा के बताकर लोगों की जान को धोका दिया जा रहा था |

यीशु ने उत्तर दिया “मेरी स्वंय अपने बारे में दी हुई गवाही सच है क्योंकी मैं अपने आप को स्वंय अपने माप से नहीं बल्की परमेश्वर की सच्चाई से नापता हूँ जिसके साथ मैं हमेशा जुड़ा रहता हूँ | तुम नहीं जानते कि मैं पिता के पास से आया और उसके पास लौट कर जाऊंगा | मैं अपनी तरफ से कुछ नहीं कहता बल्की मेरा वचन परमेश्वर की सच्चाई से मेल खाता है | मेरा वचन सत्य है और शक्ती और आशीष से परिपूर्ण है |

तुम्हारी अपनी बातें ऊपरी हैं क्योंकी मनुष्य को केवल मूसा दिखाई देता है | तुम अपने आप को न्यायाधीश समझते हो और ठीकसे न्याय करने की और अपनी योग्यता पर विश्वास रखते हो परन्तु तुम भूल करते हो | तुम वस्तुओं के स्त्रोत को नहीं जानते, ना ही उनके आवेश और परिणाम को | इस का सबूत यह है कि तुम मुझे नहीं जानते | तुम मेरा न्याय केवल मेरी मानवता को देख कर करते हो परन्तु मैं हमेशा परमेश्वर में बना रहता हूँ | अगर तुम यह जान लो तो दुनिया के मूल तथ्य को भी जान सकोगे |

यीशु दुनिया के न्यायाधीश और साथ ही साथ अवतारित सत्य भी हैं | आप हमें दंड देने या नाश करने नहीं बल्की बचाने आये | आप ने कभी किसी दुखी, अपराधी या अछूत को नहीं ठुकराया बल्की हर किसी को बचाना चाहा और उन्हें अपने प्रेम में खींच लेना चाहा | किसी से घ्रणा मत करो परन्तु उसमें ऐसी झलक देखो जो यीशु उसमें उत्पन्न करना चाहते हैं |

यूहन्ना 8:17-18
“तुम्हारी व्यवस्था में भी लिखा है कि दो जनों की गवाही मिलकर ठीक होती है; 18 एक तो मैं आप अपनी गवाही देता हूँ, और दूसरा पिता मेरी गवाही देता है जिसने मुझे भेजा |’”

हमारी निर्बलता के कारण यीशु व्यवस्था की सीमा तक उतर आये परन्तु आपने उसका वर्णन तुम्हारी व्यवस्था कह कर किया यानी तुम्हारी रीती जिस की तुम पापियों को आवयश्कता है | इस नियम के अनुसार जिस व्यक्ती को सच्चाई साबित करनी होती थी उसे अपने दावे की सच्चाई विस्तार से बताने के लिये दो गवाह पेश करने पड़ते थे तब उसके अनुसार उसका न्याय किया जाता था (व्यवस्था विवरण 17:6; 19:15) | यीशु ने इस आवयश्कता का विरोध नहीं किया | यीशु ने अपने स्वीकार को पहली गवाही ठहराया और अपने पिता को उस गवाही को सत्य सिद्ध करने वाला ठहराया जो दोनों के बीच परिपूर्ण संगती प्रमाणित करती है | परमेश्वर की संगती के बिना पुत्र कुछ भी नहीं कर सकता | पवित्र त्रिय का यही रहस्य है | परमेश्वर यीशु की गवाही देता है जैसे यीशु परमेश्वर की गवाही देते हैं |

यूहन्ना 8:19-20
“19 उन्होंने उससे कहा, ‘तेरा पिता कहाँ है ?’ यीशु ने उत्तर दिया, ‘न तुम मुझे जानते हो, न मेरे पिता को, यदि मुझे जानते तो मेरे पिता को भी जानते |’ 20 ये बातें उसने मन्दिर में उपदेश देते हुए भण्डार घर में कहीं, और किसी ने उसे न पकड़ा, क्योंकि उसका समय अब तक नहीं आया था |”

यहूदियों ने यीशु को गलत समझा और वो जानना भी नहीं चाहते थे बल्की वे आप को स्पष्ट धर्मद्रोही के रूप में गिरिफ्तार करना चाहते थे | इस लिये उन्होंने आप से पूछा, “आप किस को पिता कह कर पुकारते हो ? युसुफ को मरे हुए काफी लंबा समय बीत चुका था और वो जानते थे कि यीशु किस मतलब से “मेरा पिता” कहते थे | परन्तु वे स्वंय आप के मुँह से सुनना चाहते थे कि परमेश्वर आप का पिता है |

यीशु ने उन्हें सीधा उत्तर नहीं दिया क्योंकी आप को जाने बगैर परमेश्वर का ज्ञान नहीं प्राप्त हो सकता | पुत्र पिता में है और पिता आप में है | जो पुत्र को ठुकराता है वह व्यक्ती सच में परमेश्वर को कैसे जान सकता है ? परन्तु जो कोई पुत्र पर विश्वास करता है और उससे प्रेम करता है, परमेश्वर अपने आप को उस पर प्रगट करता है क्योंकी जो पुत्र को देखता है वो पिता को भी देखता है |

ये शब्द मंदिर के उस कोने में कहे गये जहाँ चंदा जमा किया जाता था | इस में शक नहीं कि मंदिर के चारों तरफ सिपाही तैनात थे | इन सिपाहियों के होते हुए भी किसी ने यीशु को गिरिफ्तार करने का साहस नहीं किया | परमेश्वर का हाथ आपकी रक्षा कर रहा था | परमेश्वर का आप के विश्वासघात के लिये निश्चित किया हुआ समय अभी तक नहीं आया था | केवल तुम्हारा आस्मानी पिता ही तुम्हारे भविष्य का निर्णय कर सकता है |

प्रार्थना: हे मसीह, हम आप की प्रशंसा करते और आपसे प्रेम करते हैं | आप हमारा न्याय हमारी योग्यता के अनुसार नहीं करते बल्की हमारा उद्धार करते हैं | आप जगत की ज्योती हैं और उनको ज्योती प्रदान करते हैं जो आपके पास आते हैं | आपके प्रेम की किरण से हमें बदल दीजिये और हमारी कठोरता को कोमल किजीये ताकी हम आपको पहचान सकें |

प्रश्न:

59. यीशु की यह गवाही कि मैं जगत की ज्योती हूँ, किस तरह से आस्मानी पिता के विषय में हमारे ज्ञान का परिचय देती है?

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