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यूहन्ना रचित सुसमाचार – ज्योती अंध्कार में चमकती है।
पवित्र शास्त्र में लिखे हुए यूहन्ना के सुसमाचार पर आधारित पाठ्यक्रम
पहला भाग – दिव्य ज्योति चमकती है (यूहन्ना 1:1 - 4:54)
ब - मसीह अपने चेलों को पश्चताप के घेरे से निकाल कर शादी की खुशी में ले जाते हैं (यूहन्ना 1:19 - 2:12)

3. पहले छे चेले (यूहन्ना 1:35-51)


यूहन्ना 1:47-51
“47 यीशु ने नतनएल को अपनी तरफ आते देख कर उसके विषय में कहा, देखो यह सचमुच इस्राएली है | इस में कपट नहीं है | 48 नतनएल ने उस से कहा , तू मुझे कहां से जानता है ? यीशु ने उस को उत्तर दिया; इस से पहले की फिलिप्पुस ने तुझे बुलाया, जब तू अंजीर के पेड़ के तले था , तब मैं ने तुझे देखा था | 49 नतनएल ने उसको उत्तर दिया की हे रब्बी, तू परमेश्वर का पुत्र है; तू इस्राएल का महाराजा है | 50 यीशु ने उस को उत्तर दिया; मैं ने जो तुझ से कहा कि मैं ने तुझे अंजीर के पेड़ के तले देखा, क्या तू इसी लिए विश्वास करता है ? तू इस से बड़े बड़े काम देखेगा | 51 फिर उस से कहा मैं तुम से सच सच कहता हूं की तुम स्वर्ग को खुला हुआ और परमेश्वर के स्वर्गदूतों को ऊपर जाते और मनुष्य के पुत्र के ऊपर उतरते देखोगे |”

नतनएल को यह जान कर आश्चर्य हुआ की यीशु ने उनके अन्त:करण में झांक कर देखा है | नतनएल पुराने नियम के स्थर के विश्वासी थे क्योंकी उन्हों ने बपतिस्मा देने वाले यूहन्ना के आगे अपने पापों को स्वीकार किया था और परमेश्वर के राज्य को बड़ी ज़िन्दादिली से प्राप्त करना चाहते थे | यह आत्मतुष्टी नहीं थी परन्तु उन लोगों का दृष्टिकोण था जिनके दिल उनके पापों के कारण टूट चुके थे और वे परमेश्वर से आग्रह कर रहे थे की वो उनके मुक्तिदाता, मसीह को भेजे |

यीशु ने यह प्रार्थना सुनी और प्रार्थना करने वाले को कुछ दूर एक पेड़ की छाया में घुटनों के बल देखा | यह शक्ती जो मनुष्य के छिपे हुए सत्य को सिद्ध करती है, एक दिव्य आतंरिक ज्ञान है | मसीह ने उन्हें अस्विकार नहीं किया परन्तु पुराने नियम के अनुसार उनका वर्णन एक उचित, आदर्श विश्वासी की तरह किया जो मसीह के आगमन की राह देख रहा था |

मसीह की प्रशंसा ने नतनएल के सब संदेह दूर किये | उन्हों ने यीशु के आगे आत्मसमर्पण किया और पवित्र शास्त्र में मसीह की दी हुई उपाधियों: “परमेश्वर के बेटे” और “इस्राएल के राजा” से आप का सत्कार किया | जब नतनएल ने यह शब्द कहे तब उनकी जान खतरे में पड़ी होगी क्योंकी व्यवस्था के विधवान और यहूदियों की अदालत के सदस्य नहीं मानते थे कि परमेश्वर का बेटा है | इस तरह का बयान धर्मद्रोही गिना जाता | अगर कोई व्यक्ती इस्राएल का राजा होने का दावा करता तो हेरोदेस राजा उस पर अत्याचार करता और रोमी अधिकारी उसे गिरिफ्तार कर लेते | इस प्रकार इस विश्वासी ने भविष्यवक्ताओं से किये गये वायदे की महत्वता पर अपनी पकड़ का प्रदर्शन किया | वो, मनुष्य से ज्यादा परमेश्वर से डरते थे और हर कीमत पर आपको पिता की उपाधी से निर्धारित करते हुए सम्मानित किया |

किसी भी पहले चेले ने मसीह को ऐसे नाम नहीं दिये जैसे नतनएल ने दिये थे | आश्चर्य की बात यह है कि मसीह ने इनमें से किसी भी उपाधी को अस्वीकार नहीं किया बल्की आस्मान को खुला हुआ बता कर नतनएल की जानकारी को बढ़ाया | मसीह हमेशा दूतों से घिरे हुए रहते थे जो दिखाई नहीं देते थे | वे आस्मान पर जाकर मसीह के आश्चर्य कर्म पिताको देते और आशीषों से लबरेज़ हाथ लेकर वापस बेटे के पास आते थे | इस प्रकार याकूब का सपना पूरा हुआ क्योंकी मसीह में आशीष की परिपूर्णता पाई जाती है | जैसे पौलुस प्रेरित ने लिखा : “हमारे प्रभु यीशु मसीह के परमेश्वर और पिता का धन्यवाद हो, की उस ने हमें मसीह में स्वर्गीय स्थानों में सब प्रकार की आशीष दी है |” मसीह के जन्म और बपतिस्मे के बाद आस्मान खुला हुआ रखा गया है | इस से पहले परमेश्वर के क्रोध के कारण आस्मान के दरवाजे बन्द किये जा चुके थे और दूत अपने हाथों में तलवारें लिए उन दरवाज़ों पर पहरा दे रहे थे | जो दरवाजा परमेश्वर की तरफ ले जाता है अब मसीह में खुल चुका है |

यहां पहली बार यूहन्ना ने मसीह का विशेष मुहावरा इस्तेमाल किया है: “मैं तुम से सच सच कहता हूँ ...” अनुग्रह के इस दौर की हकीकत इतनी ऊँची है कि मनुष्य इसे समझ नहीं सकता | फिर भी मनुष्य को उसके नये विश्वास के दिव्य आधार के तौर पर इस की आव्यशक्ता है | इस लिये जब भी यीशु यह मुहावरा दुहराते हैं तब हमें रुक कर सोचना चाहिये की इस में आपका उद्देश क्या है क्योंकी मुहावरे के बाद कहे गये शब्द आत्मिक संदेश होते हैं जो हमारी समझ से बाहर होते हैं |

इस घोषणा के बाद, मसीह ने नतनएल की गवाही को सावधानी के तौर पर सुधारा ताकी उसे और नव निर्माणित कलीसिया को अत्याचार का सामना ना करना पडे | यीशु ने यह नहीं कहा की “मैं वायदा किया हुआ राजा, परमेश्वर का बेटा हूँ” बल्की अपने आप को “मनुष्य का बेटा” कहा | यीशु अकसर इस उपाधी को अपने लिये इस्तेमाल करते थे | आप का अवतरण आपका अनोखा विनाश था, आप हमारी तरह बने, यह एक बड़ा आश्चर्यकर्म है कि परमेश्वर का बेटा मनुष्य बना ताकी परमेश्वर का मेमना बन कर हमारी खातिर बलीदान हो |

साथ ही साथ “मनुष्य का पुत्र” यह उपाधी दानिएल की किताब में मौजूद एक राज़ की तरफ इशारा करती है | परमेश्वर ने अदालत “मनुष्य के पुत्र” को सौंप दी थी | नतनएल ने जान लिया था कि यीशु सिर्फ राजा या बेटे ही नहीं बल्की सारी दुनिया के न्यायाधीश भी हैं | आप मनुष्य की सूरत में दिव्य व्यक्ती थे | इस प्रकार यीशु ने निराश विश्वासी को सब से ऊँची चोटी पर पहुँचा दिया | यीशु देहाती शेत्र के नौजवान थे इस लिये ऐसे व्यक्ती पर ईमान लाना आसान बात नहीं थी | लेकिन चेलों ने ईमान के द्वारा और ऊपर आस्मान खुलने से आप में छिपी हुई महीमा को देखा |

प्रार्थना: हे परमेश्वर के बेटे और सारी दुनिया के न्यायाधीश, हम आप की अराधना करते हैं |हम आपके क्रोध के सिवा और किसी चीज़ के योग्य नहीं हैं, परन्तु हम आप के अनुग्रह और दया के द्वारा अपनी और अपने दोस्तों के लिये क्षमा कि प्रार्थना करते हैं | उन सब लोगों पर अपनी आशीष बरसाइये जो परमेश्वर को ढूंढते हैं ताकी वो आपको देखें, जानें और आप से प्रेम करें, आप पर विश्वास करे और ज्ञान और आशा में बढ़ते चले जायें |

प्रश्न:

23. “परमेश्वर के पुत्र” और “मनुष्य के पुत्र” इन दो उपाधियों में क्या संबंध है ?

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