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रोमियो – प्रभु हमारी धार्मिकता है|
पवित्र शास्त्र में लिखित रोमियों के नाम पौलुस प्रेरित की पत्री पर आधारित पाठ्यक्रम
भाग 1: परमेश्वर की धार्मिकता सभी पापियों को दण्ड देती है और मसीह में विश्वासियों का न्याय करती है और पापों से मुक्त करती है। (रोमियों 1:18-8:39)
द - परमेश्वर की शक्ति हमें अपराध कि शक्ति से छुडाती है| (रोमियो 6:1 - 8:27)

5. यीशु के बिना मनुष्य अपराधों के सामने हमेशा असफल है| (रोमियो 7:14-25)


रोमियो 7:14-25
14 क्‍योंकि हम जानते हैं कि व्यवस्था तो आत्मिक है, परन्‍तु मैं शरीरिक और पाप के हाथ बिका हुआ हूँ । 15 और जो मैं करता हूँ, उस को नहीं जानता, क्‍योंकि जो मैं चाहता हूँ, वह नहीं किया करता, परन्‍तु जिस से मुझे घृणा आती है, वही करता हूँ । 16 और यदि, जो मैं नहीं चाहता वही करता हूँ, तो मैं मान लेता हूँ, कि व्यवस्था भली है। 17 तो ऐसी दशा में उसका करनेवाला मैं नहीं, बरन पाप है, जो मुझ में बसा हुआ है। 18 क्‍योंकि मैं जानता हूँ, कि मुझ में अर्यात्‍ मेरे शरीर में कोई अच्‍छी वस्‍तु वास नहीं करती, इच्‍छा तो मुझ में है, परन्‍तु भले काम मुझ से बन नहीं पड़ते। 19 क्‍योंकि जिस अच्‍छे काम की मैं इच्‍छा करता हूँ, वह तो नहीं करता, परन्‍तु जिस बुराई की इच्‍छा नहीं करता वही किया करता हूँ । 20 परन्‍तु यदि मैं वही करता हूँ, जिस की इच्‍छा नहीं करता, तो उसका करनेवाला मैं न रहा, परन्‍तु पाप जो मुझ में बसा हुआ है। 21 सो मैं यह व्यवस्था पाता हूँ, कि जब भलाई करने की इच्‍छा करता हूँ, तो बुराई मेरे पास आती है। 22 क्‍योंकि मैं भीतरी मनुष्यत्‍व से तो परमेश्वर की व्यवस्था से बहुत प्रसन्न रहता हूँ । 23 परन्‍तु मुझे अपने अंगो में दूसरे प्रकार की व्यवस्था दिखाई पड़ती है, जो मेरी बुद्धि की व्यवस्था से लड़ती है, और मुझे पाप की व्यवस्था के बन्‍धन में डालती है जो मेरे अंगोंमें है। 24 मैं कैसा अभागा मनुष्य हूँ! मुझे इस मृत्यु की देह से कौन छुड़ाएगा 25 मैं अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ: निदान मैं आप बुद्धि से तो परमेश्वर की व्यवस्था का, परन्‍तु शरीर से पाप की व्यवस्था का सेवन करता हूँ।।

पौलुस दर्शाते हैं कैसे प्रकृतिक मनुष्य मसीह के बिना कानून के भयानक अनुभव के साथ रहता है| आपने इस कथन को दर्शन शास्त्र की कल्पनाओं, या विचारधाराओं द्वारा, जो कि आत्मसिध्दी का शिखर है, को स्पष्ट नहीं किया, परन्तु आपने एक उतेजनापूर्वक व्यक्तिगत अपराध स्वीकारोक्ति द्वारा प्राकृतिक मानव को प्रकट किया है| पवित्र आत्मा ने आपके उपदेशीय अन्तःकरण को इतना अधिक कोमल किया था कि वे परमेश्वर की इच्छा से थोड़ी सी भी दूरी को एक जानलेवा घटना समझते थे|

पौलुस कहते हैं, “मैं शारीरिक हूँ, जहाँ तक मैं अपनी क्षमताओं को देखता हूँ| प्रत्येक मनुष्य शारीरिक है, क्योंकि वह परमेश्वर की महिमा की छबी जो पहले से ही उसे दी गई थी, को खो चुका है| सभी ने अपराध किया है और उन पर परमेश्वर की महिमा नहीं है| वे सभी साथ में भ्रष्ट बन गए हैं और कानून की आत्मा उन्हें उनके घमंडी स्वार्थीपन के कारण उनके अन्त:करण में दण्ड देती है| संतों ने विशेषरूप से परमेश्वर के वचन को पाने की आशा को खो दिया है, क्योंकि वे इस कथन को सुन चुके है” तुम पवित्र बने रहोगे, क्योंकि मैं पवित्र हूँ”, या वे मसीह के आदेश द्वारा टूट चुके हैं: “तुम परिपूर्ण बने रहोगे, वैसे जैसे तुम्हारे पिता स्वर्ग में परिपूर्ण हैं|” पौलुस मनोवैज्ञानिक तकलीफों के साथ स्वीकार करते हैं कि प्राकृतिक मनुष्य परमेश्वर की इच्छा को अपने बलबूते पर पूरी करने में असमर्थ है| मानवीय शक्ति की असमर्थता को स्वीकार पर पाना कितना विस्मयकारी है|

इसके स्थान पर यह है कि, प्रत्येक मनुष्य में कुछ अच्छा करने और शुध्दता एवं पवित्रता से रहने की एक महान इच्छा है| यहाँ तक कि निम्नतम प्रकार के लोगों में भी यह इच्छा है| इसलिए हमें केवल अपराध और उसकी शक्ति के बारे में ही नहीं कहना चाहिए, नाही हमें अन्य लोगों के साथ अहंकारी बनना चाहिए, परन्तु सभी लोगों के दिमागों में परमेश्वर के कानून के शेषभाग के बारे में जानना आवश्यक है, तब से अब तक कोई ऐसा बुरा मनुष्य नहीं है जो कि अच्छा करना नहीं चाहता है| यह बड़ी ही दुखदायक बात है कि वह जो इस लालसा की दिशा में कुछ करना चाहता है लगातार असफल होता है, और उसकी सदभावना के विरोध में कार्य करता है| यह मनुष्य के बारे में एक अजीब सी बात है| वह स्वयं अपना शत्रु है| वह अपनी सदभावना के साथ विश्वासघात, और उसके अन्तःकरण की आवाज को अनसुना करता है| अपराध हममें हमारे दिमाग से अधिक बलवान है, और परमेश्वर का कानून मनुष्यों पर राज करता है, न कि उसके अच्छे उद्देश्य पर|

हम क्यों नहीं शुध्दता, और परमेश्वर के प्रेम में लगातार रह सकते हैं? क्योंकि अपराध परमेश्वर के बगैर रहने वाले मनुष्य को वश में करता है| जो कोई अपराध करता है, अपराध का एक दास है| विश्वासियों में भी बुरा करने की संभावना पाई जाती है यदि वे मसीह द्वारा सुरक्षित न रखे गये हो| हमारे पास, हमारे शरीरों में परमेश्वर की इच्छा को लेकर चलने की शक्ति नहीं है| मनुष्य के दिवालियापन की महान स्वीकृति इस निर्णय के साथ हमेशा लगी हुई हैं| पौलुस स्वयं इस सच को स्वीकार करते हैं जब उन्होंने कहा, “मैं जानता हूँ कि मुझमे (मेरे शरीर में ) कुछ भी अच्छा निवास नही करता क्योंकि जो अच्छा मैं करना चाहता हूँ, मैं नहीं करता, परन्तु बुरा जो मैं नहीं करना चाहता, मैं उसी का अभ्यास करता हूँ”| क्या तुम पौलुस के साथ इस तथ्य को स्वीकारते हो, और अपने आप को अपराधियों में शामिल करते हो? क्या तुम, अनंत न्यायाधीश के अनुग्रह को तुम्हारा दूषित आत्म सौंपोगे?

उपदेशक प्रत्येक मनुष्य को अपराध का दास बुलाते है क्योंकि इसकी शक्ति कानून के एक प्रकार के रूप में विकसित होती थी जिसे आप कानून का अपराध कहते हैं| बुराई के प्रति हमारी बंधनवस्था एक कानून बन गयी, और यह बंधन हमारे लिए दुखदायी बन गया था क्योंकि हमारे दिमागों में हम अपने कर्तव्य जानते है, और उन्हें करना चाहते है, परन्तु कर नहीं सकते| यह कारण विलीन हो जाते हैं क्योंकि तुम स्वयं इस कैदखाने की सलाखों को जोर जोर से हिलाते हो परन्तु इससे बाहर नहीं आ सकते| हम सभी हमारे स्वार्थीपन के बंधन में है| यद्यपि, मसीह उसी समय तुम्हे बुलाते है, परमेश्वर की परिपूर्णता की अपेक्षा कुछ कम नहीं| क्या तुम प्रत्येक मनुष्य में उसकी मजबूरी को पहचानते हो? वह अच्छा करना चाहता है, परन्तु वह स्वयं यह नहीं कर सकता|

क्या कोई मदद नहीं है? दूषित आत्म की जानकारी की अन्तिम गहराई के बारे में पौलुस हमारा मार्गदर्शन करते हैं, यह ऐसा है कि उद्दार ऐसे स्त्रोंतो में नहीं पाया जाता जैसे तुम्हारी आत्मधार्मिकता, तुम्हारी ईमानदारी, तुम्हारी क्षमताएं या स्वयं कानून| क्या उपदेशक की गवाही तुम्हे तुम्हारे सतही विश्वास से मुक्त करती है और इंसानियत की सभी निराशाजनक चिंताओं से दूर कर देती है? शिक्षा देने वाले झूठे, और दार्शनिक मुर्ख हैं यदि उनके पास पवित्र आत्मा की बुद्धि की कमी है| वे अपनी हद को नहीं पहचानते| वह विश्वासी आशीषित है जो परमेश्वर की पवित्रता के सामने यह जानता है कि वह स्वयं में सच्चा नहीं है, अपराधों से भरा हुआ, और नाशवान है| वह मनुष्य आशीषित है जो अपने स्वयं दासत्व पर कानून के कठोर न्याय को पहचानता है, और मानवीय धार्मिकता के सभी रुझानो से स्वतंत्र हो गया है, और वह जो मनुष्यों की प्रतियोगिता पर विश्वास नहीं करता, परन्तु सिर्फ मसीह पर विश्वास करता है|

धन्यवाद प्रभु क्योंकि यीशु मसीह एक विजयी है जिनके बिना हम औरों के समान खोए हुए और आत्मविश्वासघाती है| उन्होंने हमें सच्चाई और एक नई शक्ति दी है| उनकी पवित्र आत्मा ने हमें जिंदगी, राहत और हमारे एकमात्र रक्षक में हमें एक निश्चित आशा दी है|

प्रार्थना: ओ पवित्र पिता, हम अपने पूरे हृदयों के साथ आपकी आराधना और महिमा करते है, क्योंकि आपने हमें निराशा में छोड़ नहीं दिया, बल्कि आपने हमारे लिए अपने पुत्र को भेजा, सभी के लिए एक रक्षक और उध्दारकर्ता, और जिनकी धार्मिकता द्वारा आपकी आत्मा हम तक आई| हम हमारे दिमाग उनके लिए खोलते है ताकि वे हमारे अपराधों की कैद को खोल पाए, और हमें हमारे राज्य और पूरी दुनियाके विश्वासियों के साथ पवित्र आचरण के लिए पवित्र बनाये|

प्रश्न:

43. पौलुस ने स्वयं अपने बारे में क्या स्वीकार किया था और इस स्वीकृति का हमारे लिए क्या अर्थ है?

क्‍योंकि मैं जानता हूँ, कि मुझ में (अर्थात मेरे शरीर में) कोई अच्‍छी वस्‍तु वास नहीं करती,
इच्‍छा तो मुझ में है,
परन्‍तु भले काम मुझ से बन नहीं पड़ते।
क्‍योंकि जिस अच्‍छे काम की मैं इच्‍छा करता हूँ, वह तो नहीं करता,
परन्‍तु जिस बुराई की इच्‍छा नहीं करता वही किया करता हूँ।

(रोमियो 7:18-19)

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