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रोमियो – प्रभु हमारी धार्मिकता है|
पवित्र शास्त्र में लिखित रोमियों के नाम पौलुस प्रेरित की पत्री पर आधारित पाठ्यक्रम
भाग 1: परमेश्वर की धार्मिकता सभी पापियों को दण्ड देती है और मसीह में विश्वासियों का न्याय करती है और पापों से मुक्त करती है। (रोमियों 1:18-8:39)
द - परमेश्वर की शक्ति हमें अपराध कि शक्ति से छुडाती है| (रोमियो 6:1 - 8:27)

6. यीशु में, मनुष्य अपराध, मृत्यु, और दोष से छुडाया गया है| (रोमियो 8:1-11)


रोमियो 8:1
1 सो अब जो मसीह यीशु में हैं, उन पर दण्‍ड की आज्ञा नहीं: क्‍योंकि वे शरीर के अनुसार नहीं बरन आत्मा के अनुसार चलते हैं।

पाठ 5-7 में उपदेशक पौलुस हमारी शक्ति द्वारा हमारे बुरे व्यवहार से हमें बचाने की असमर्थता की पुष्टि करते है| आप हमें स्पष्ट करते हैं कि कानून हमारी मदद नहीं करता, परन्तु यह हममे अपराध करने की तीव्र इच्छा को उत्तेजित करता है, और अंत में हमें दोषी ठहराता है| मृत्यु की आत्मा हमारी हड्डियों में राज्य करती है, और अपराध हमारी सदभावना पर प्रभुत्व करता है| इन सारे सबूतों द्वारा, उपदेशक ने मनुष्य की स्वयं उसकी शक्ति द्वारा स्वयं को बचाने की सारी क्षमताओं की धज्जियाँ उडा दी थी, और उसकी एक शुद्ध, मानवीय शक्ति या नैतिक साधनों द्वारा ईमानदार जीवन की झूठी आशा को नष्ट कर दिया था|

इस निर्विवाद सबूत के बाद, उपदेशक हमें परमेश्वर के साथ रहने का केवल एक रास्ता जो आपने पाठ 8 में नई जिंदगी के सिध्दांत जैसे “यीशु में” उल्लेख किया है, द्वारा दर्शाते है|

वह मनुष्य, जो यीशु के साथ एकत्रित होता है, उद्दारकर्ता के विस्तृत भूभाग में प्रवेश करता है| वह अकेला, छोड़ा हुआ, कमजोर, या दोषी नहीं है, क्योंकि उसका परमेश्वर उसके साथ होता है, सुरक्षा करता है, और उसका ध्यान रखता है| परमेश्वर यह इसलिए नहीं करते कि स्वयं विश्वासी अच्छा इंसान है, परन्तु इस लिए कि उसने अपने आपको दयालु, रक्षक को सौंप दिया था, जिसने उसे न्यायसंगत और पापों से छुडाया था, प्रेम से सजाया था, और हमेशा उसे अपने पास रखा था| यीशु स्वयम उस विश्वासी में निवास करते है और उसे आत्मिक रूप से पूर्णता के लिए उसमे परिवर्तन और विकास करते हैं जिसे उपदेशक ने “यीशु के अस्तित्व में” कहा है| आप गिरजाघर में बने रहने के बारे में नहीं कहते, परन्तु हमें यीशु के साथ एकजुट रहने के और उनके प्रेम में अपने आप को डुबो देने के लिए विनती करते हैं|

हमारा विश्वास केवल सैध्दांतिक मत पर आधारित नहीं है, परन्तु इसने पवित्र आचरण में अस्तित्व ग्रहण किया था, क्योंकि यीशु हमारे घमंड को सूली पर मारने का कारण बने थे और हमें उनके पुनर्जीवन द्वारा एक नए जीवन में उठाया था| वह जो उनमे विश्वास करता है, अपने प्रभु का अनुसरण करता है, और उनसे एक स्वर्गीय शक्ति प्राप्त करता है| यह शब्द केवल दर्शन शास्त्र नहीं है, उन लाखों विश्वासियों का, जिनमे पवित्र आत्मा निवास करती है, अनुभव है| परमेश्वर स्वयं आते हैं, और उसमे जो, यीशु और उनके उद्धार को स्वीकार करता है, में निवास करते हैं|

पवित्र आत्मा, जैसे एक दैवीय एवं अनुपम वकील, शैतान की शिकायतों के विरोध में तुम्हारे भ्रमित अंतःकरण को राहत देती है| आप पवित्र परमेश्वर के नाम में इस बात की पुष्टि करते हैं कि तुम यीशु में धार्मिक बन गए हो तुम स्वर्गीय शक्ति प्राप्त कर चुके हो कि तुम इस भ्रष्ट जगत के लोगों के बीच में शुद्धता से रह पाने के योग्य बन गए हो| पवित्र आत्मा का निवास, मनुष्य की स्थिति में परिवर्तन करती है जैसे कि पौलुस ने पाठ 7 में उल्लेख किया है| वह प्राकृतिक, शारीरिक, और कमजोर नहीं रहता, परन्तु आत्मा की शक्ति में इस योग्य बन जाता है कि परमेश्वर की इच्छानुसार कार्य करे| अब जबकि आपने आत्मा की शक्ति में इस महान उद्धार का अनुभव किया था, पौलुस की हाल ही में स्वीकारोक्ति कि जो वह करना चाहते है, नहीं करते, परन्तु जिस बात से वह घृणा करते है, वह करते हैं, बदल चुकी है| परमेश्वर की जोइच्छा है, अब वह करते है, और उनका हृदय उनकी शक्ति में आनंदित है|

आत्मा तुम्हे इस बातका आश्वासन देता है कि पुनर्जीवित विजयी यीशु भी न्याय के समय तुम्हारे साथ होंगे| वह परमेश्वर के क्रोध की लपटों में तुम्हे अपनी बाहों में उठा लेंगे और एक मात्र पवित्र की किरणों से तुम्हारी रक्षा करेंगे; क्योंकि वहाँ किसी कोभी दोषित नहीं ठहराया जायेगा जो यीशु मसीह में है|

वह आज भी तुम्हे मदद करते है ईसाई जीवन में धैर्यवान प्रेम, आनंद दायी क्षमता और सच्चाई की शुद्धता में आगे बढ़ने के लिए, इसलिए नहीं यह सारे सद्गुण तुम ने स्वयं निर्मित किए है, परन्तु इस लिए कि तुम यीशु में रहते हो जैसे की द्राक्ष की शाखें द्राक्ष रस में रहती है| इसी लिए तुम्हारे प्रभु तुम से कह तें है; “मुझ में रहो और मै तुम में, ताकि तुम बहुतसे फल ला पाओ”| क्या महान हमारी आशा है!

प्रार्थना: ओ पवित्र परमेश्वर, हम आपकी आराधना करते है और खुशियाँ मनाते है, क्योंकि आपने हमें हमारे अहंकारीपन से छुडाया, हमारे अस्वच्छ आचरण से हमारी रक्षा की हमें हमारे सारे पापों से न्यायोचित किया और हमें हमारी अतिघृणा से शुद्ध किया| हम स्तुति करते है कि आप हमें अपने जीवन तक उठा कर लाए, और अपने प्रेम से हमें छुडाया, ताकि हम पवित्रता में चल पाए और आपकी अनंत मित्रता में आपके साथ रहे दुनिया के उन सभी लोगों के साथ जिन्हें बुलाया गया है|

प्रश्न:

44. पाठ 8 के पहले वाक्य का अर्थ क्या है?

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