Home -- Hindi -- John - 001 (Introduction)
परिचय
मसीह ने अपने चेलों को अपनी गवाही देने के लिये बुलाया। आप ने अपने जीवन की कहानी स्वयं नही लिखी और ना ही किसी कलीसिया को पत्र भेजा। आप के व्यक्तित्व ने आप के अनुयाइयों को प्रभावित किया। जिनकी पवित्र आत्मा ने अगवाई की ताकी वे अपने प्रभु यीशु मसीह की महीमा करें। उन्होने आपके प्यार, विनम्रता, म्रुत्यु और पुनरुत्थान (मुर्दों मे से जी उठने) में आपके स्वर्गीय पिता के एकमात्र पुत्र, जो अनुग्रह और सच्चाई से भरा हुआ था, की महीमा देखी। जहां मत्ती, मरकुस और लूका जैसे सुसमाचार के लेखकों ने यीशु के वचनों, कार्यों और आने वाले स्वर्गीय राज्य का वर्णन किया है, वहां यूहन्ना ने यीशु के भीतरी व्यक्तित्व और आपके पवित्र प्रेम का वर्णन किया है। इसी कारण यूहन्ना रचित सुसमाचार को मुख्य सुसमाचार कहा गया है जो पवित्र शास्त्र की सभी पुस्तकों का ताज कहलाता है।
इस सुसमाचार का लेखक कौन है?
दूसरी शताब्दी की कलीसिया के सम्मानिय सदस्य इस बात से सहमत हुए की, यूहन्ना ही, जो यीशु के चेले थे, इस अनोखी किताब के लेखक हैं। उपदेशक यूहन्ना ने अपनी इस किताब में कई प्रेरितों के नाम लिखें हैं परन्तु उन्होंने अपना और अपने भाई याकूब का नाम कहीं भी नहीं लिखा क्यौंकी वे अपने आप को इस योग्य नहीं समझते थे कि उनका नाम उनके प्रभु और मुक्तीदाता के साथ लिखा जाये। फ्रांस के लीओन नगर के बिशप आइरेनियस ने साफ़ साफ़ लिखा है कि प्रभु के चेले, यूहन्ना ने ही जो आखरी प्रभु भोज के समय आप की छाती पर झूके थे, इस सुसमाचर को लिखा है। उस समय जब राजा त्राजान का राज्य था (98 - 117 ए डी), यह बिशप अनातोलिया के इफीसस नगर में सेवा कर रहे थे।
कुछ आलोचकों का कहना है कि इस सुसमाचार के लेखक, यूहन्ना, वह चेले नहीं हैं जो यीशु के साथ थे परन्तु इसे इफीसस की कलीसिया के एक व्रद्ध ने लिखा जो प्रेरित यूहन्ना के चेले थे और यह सुसमाचार बाद में लिख गया था। यह आलोचक सपने देखते थे और सत्त्य की आत्मा को नहीं जानते थे जो कभी झूठ नहीं बोलती क्योंकी प्रेरित यूहन्ना ने यह सुसमाचर प्रथम पुरूष में लिखा जैसा के उनके लेख से स्पष्ट है: “और हम ने उस की महीमा देखी”। इस सुसमाचार के लेखक उन लोगों में से एक थे जो यीशू मसीह के जीवन, म्रत्यु और पुनरुत्थान के आंखों देखे गवाह थे। और वे यूहन्ना के मित्र थे जिन्होंने इस सुसमाचार के अंत में यह शब्द जोडे : “यह वही चेला है, जो इन बातों की गवाही देता है और जिसने इन बातों को लिखा और हम जानते हैं कि उसकी गवाही सच्ची है”(यूहन्ना का सुसमाचार 21:24)। उन्होंने यूहन्ना की उन विषेशताओं को स्पष्ट किया जो उन्हें दूसरे प्रेरितों से अलग करती हैं जैसे की यीशु उनसे प्रेम करते थे और प्रथम प्रभू भोज के समय उन्हें अपनी छाती पर झुकने दिया और यूहन्ना ही एक मात्र व्यक्ती थे जिन्होंने यीशु को आपके पकडवाने वाले के बारे में इन शबदों में पूछने का साहस किया: “ हे प्रभू, वह कौन है (जो आप को पकडवायेगा)? (यूहन्ना का सुसमाचार 13:25)।
जब यीशू ने यूहन्ना को अपने पीछे आने के लिये बुलाया तब वे जवान थे। वे यीशू के बारह चेलों में उमर में सब से छोटे थे। मछली पकडना उनका व्यवसाय था। उनके पिता का नाम ज़ब्दी था और माता का नाम सलोमी था। वे अपने परिवार के साथ ताइबेरियस झील के किनारे, बैत हस्दा में रहा करते थे। वे पतरस, अन्द्रियास, अपने भाई याकूब, फिलिप्पुस और नतनएल के साथ मिल कर यर्दन खाडी में बपतिस्मा देनेवाले यूहन्ना से मिलने गये, जो लोगों को पश्चताप करने को कह रहे थे। जो लोग जल्दी जल्दी उनकी तरफ़ जा रहे थे उनमें जब्दी के बेटे यूहन्ना भी थे। उन्हों ने बपतिस्मा देने वाले यूहन्ना से पापों की क्षमा और उनके हाथों यर्दन नदी में बपतिस्मा लेने के लिये आग्रह किया। हो सकता है कि यूहन्ना और महा याजक, अन्नास के परिवार में आपस में रिश्ता था और वे एक दूसरे को पहचानते थे इसलिये उन्हें महल के अन्दर जाने का अधिकार था। इस तरह से वे महायाजक के परिवार के बहुत निकट थे। इसी लिये यूहन्ना ने अपनी किताब में ऐसी बातों का वर्णन किया है जिनका दूसरे चेलों ने नहीं किया। जैसे बपतिस्मा देने वाले यूहन्ना ने यीशू के बारे में कहा कि देखो परमेश्वर का मेमना जो जगत के पापों का बोझ उठा ले जाता है। इस तरह पवित्र आत्मा की अगवाई के कारण यूहन्ना एक ऐसे चेले बने जिन्हों ने दूसरे सब चेलों से अपने प्रभु परमेश्वर यीशू के प्रेम को सब से ज्यादा समझा.
यूहन्ना और दूसरे तीन प्रेरितों का आपस में रिश्ता
जब यूहन्ना ने अपना सुसमाचार लिखा, उस से पहले मत्ती, मरकुस और लुका के सुसमाचार लिखे जा चुके थे और कलीसिया इन्हें कुछ समय से जानती थी. इन तीनों प्रेरितों ने अपनी किताबें एक मूल इब्रानी किताब के अनुसार लिखी जिसमें प्रेरितों ने मत्ती के हाथों यीशु के वचन जमा किये थे, ताकि वह वचन खो न जायें, खास करके उस समय जब बहुत साल बीत चुके थे और तब भी प्रभु लौट कर नहीं आये थे. हो सकता है कि यीशु के काम और उनके जीवन के घटनाएँ किसी अलग किताब में लिखे गये थे. इन प्रचारकों ने उन वचनों की मूल रूप में नकल करने में निष्ठा से काम लिया. लूका जो वैध्य थे, दूसरे साधनों पर निर्भर रहे क्योंकि वह यीशु की माँ मरियम और दूसरे अलग अलग आँखों देखे गवाहों से मिले थे.
ऊपर लिखे हुए दूसरे साधनों के सिवा यूहन्ना खुद एक महत्वपूर्ण साधन थे. वे उन समाचारों और वचनों को दुबारा लिखना नहीं चाहते थे जिसे कलीसिया जानती थी.परन्तु वे उनमें और भी बातें जोड़ना चाहते थे.जहाँ पहले तीन सुसमाचारों में यीशु ने गलील के विभाग में किये हुए काम लिखे गये हैं, जिनमें यीशु के इस कार्यकाल में यरूशलेम की एक मात्र यात्रा बताई गई है, जब वहां उनकी मृत्यु हुई. लेकिन चौथे सुसमाचार में यीशु की गलील की सेवा के कार्यकाल में, उस से पहले और उसके बाद में आपने यरूशलेम में किये गये कामों का वर्णन किया गया है. यूहन्ना हमें गवाही देते हैं कि वे अपने देश कि राजधानी में तीन बार उपस्थित हुए जहाँ उनके राष्ट्र के लोगों ने बार बार उनका विरोध किया. यह विरोध यहां तक बढ़ गया के उन्हों ने यीशु को क्रूस के मृत्यु दंड के लिए रोमियों के सुपुर्द कर दिया. इसलिए यूहन्ना की महत्वता यह है कि उन्हों ने येरूशलेम शहर में यहूदियों के बीच में यीशु की सेवा का उदारता से वर्णन किया है.यह वही शहर है जो पुराने नियम की संस्कृति का केंद्र था.
चौथे सुसमाचारक ने यीशु के किये हुए आश्चर्यकर्मों को ज्यादा महत्वता नहीं दी बल्की उन में से सिर्फ छे का वर्णन किया है.आखिर इस से यूहन्ना क्या स्पष्ट करना चाहते थे? यूहन्ना ने यीशु के वचनों को एक ऐसे व्यक्ति की शैली में स्पष्ट किया है जो कहता है कि, “मैं हूँ “ और इस तरह उन्हों ने यीशु के व्यक्तित्व को स्पष्ट किया है. पहले तीन सुसमाचारकों ने यीशु के कामों और उनके जीवन पर ज्यादा ध्यान दिया है परन्तु यूहन्ना ने हमारी आँखों के सामने यीशु का उनकी महीमा के साथ नक्शा बनाने का प्रयत्न किया है. लेकिन सिर्फ यूहन्ना को ही ऐसे वचन जो यीशु ने अपने बारे में कहे थे, कैसे मिले जो दूसरे सुसमाचारकों के पास नहीं पाये जाते? सच पूछो तो पहले पिन्तेकुस्त के बाद पवित्र आत्मा ने इन वचनों की यूहन्ना को याद दिलाई थी.क्योंके यूहन्ना ने कई बार मान लिया था कि यीशु के चेलों को उनके कहे गये वचनों की सच्चाई उनके पुनरुत्थान और चेलों पर पवित्र आत्मा के उतरने तक समझ में ना आई.इस तरह यूहन्ना को यीशु के उन वचनों का अर्थ बाद में समझ में आया जो उन्हों ने अपने बारे में कहे थे और जिन में “मैं हूँ” यह मुहाविरा था.यह वचन इस अनोखे सुसमाचार की विषेश पेहचान है.
यूहन्ना, यीशु के उन वचनों का भी वर्णन करते हैं जिन में विषमता दिखाई देती है, जैसे ज्योति और अन्धकार, आत्मा और शरीर, सच्चाई और झूट , जीवन और मृत्यु, पृथ्वी कि बातें और आसमानी बातें.इस तरह के विषमता वाले वचन दूसरे सुसमाचारों में मुश्किल से पाये जातें हैं.लेकिन कई सालों के बाद जब यूहन्ना यूनानी प्रभाव वाले विभाग में रहते थे तब पवित्र आत्मा ने उन्हें प्रभु के कहे हुए वचन याद दिलाये. पवित्र आत्मा ने सुसमाचारक यूहन्ना को बताया की यीशु सिर्फ सामी इब्रानी भाषा ही में नहीं बोलते थे बल्की दूसरी जातियों के लिए यूनानी शब्दों का भी प्रयोग करते थे.
यूहन्ना के सुसमाचार के उद्देश्य क्या हैं?
युहन्ना यीशु को साहित्यि़क दार्शनिक कल्पनाशील आत्मिक तौर पर नहीं बताना चाहते थे परन्तु उन्होंने दूसरे सुसमाचारकों से बढ़कर आपकी कमज़ोरियों और उस प्यास को जो उन्हें क्रूस पर लगी थी, अधिक ज़ोर दिया. यूहन्ना ने यह भी साफ बताया की यीशु सिर्फ यहूदियों के ही नहीं परन्तु सारी दुनिया के लोगों के मुक्तिदाता हैं क्योंकि आप परमेश्वर के मेम्ना हैं जो दुनिया के लोगों के पापों का बोझ उठा ले जाते हैं.उन्हों ने हमें यह भी बताया की परमेश्वर ने सारी दुनिया को कितना प्यार किया.
हमारी बताई हुई यह बातें इस सुसमाचार के विषेश सन्देश की गहराई तक पहुचने के लिए विधी और गवाही हैं. वह सन्देश यह है की यीशु ख्रिस्त परमेश्वर के बेटे हैं. आप के इस धर्ती पर के जीवन में आपका अनंत जीवन, आपकी मानवता में आपकी दिव्यता और आपकी कमजोरी मेंन आपका अधिकार दिखाई देता है. इस तरह यीशु में परमेश्वर लोगों के बीच में था,
यूहन्ना के बताये हुवे स्पष्टीकरण का अर्थ यीशु को दार्शनिक और रहस्यवादी के तौर पर जानना नहीं है.परन्तु प्रभु को पवित्र आत्मा द्वारा भक्तिभाव विश्वास के आधार पर जानना है. इस तरह यूहन्ना के सुसमाचार अंत इन सुप्रसिद्ध शब्दों से होता है: “परन्तु यह इसलिए लिखे गये हैं की तुम विश्वास करो की यीशु ही परमेश्वर का पुत्र, मसीह है और विश्वास कर के उसके नाम से जीवन पाओ.” (यूहन्ना 20: 31)-यूहन्ना के सुसमाचार का मुख्य उद्देश यीशु की दिव्यता पर विश्वास लाना है.यह विश्वास हम में दिव्य, पवित्र और अनंत जीवन उत्पन्न करता है.
यूहन्ना का सुसमाचार किस के लिए लिखा गया?
मसीह के विषय में सच्ची घोषणाओं से भरपूर यह किताब अविश्वासियीं को सुसमाचार सुनाने के लिए नहीं परन्तु इसे कलीसिया की मजबूती और उसे आत्मिकता में विकसित बनाने के लिए लिखी गई.पौलुस ने अनातोलिया में कई कलीसियाएं शुरू की थीं और जब वे रोम में कैद कर लिए गये थे तब पतरस ने जाकर इन भूली बसरी कलीसियाओं को उत्साहित किया. बहुत कर के रोम में नीरो के राज्य के समय जब पतरस और पौलुस की मृत्यु हो चुकी थी तब यूहन्ना ने उनकी जगह ली और इफीसिस में रहने लगे जो उस समय मसीहियों का केन्द्र था. वे एशिया मायनर में बिखरी हुई कई कलीसियाओं के चरवाहे बने . जो कोई उन के पत्रों को और उनके प्रकाशित वाक्य के दूसरे और तीसरे अध्याय को पढता है वो इस प्रेरित की परेशानियों और उद्देशों को समझ सकता है. जिस ने हमें यीशु मसीह में अवतारित हुए परमेश्वर के प्रेम का अर्थ समझाया. उन्हों ने दार्शनिक विश्वासियों से टक्कर ली जो भेड़ियों के रूप में यीशु के गल्ले में घुस आये थे और उनकी भेड़ों को अपने खोखले विचारों, कठिन नियमों और अपवित्र स्वतंत्रता से दूषित किया था क्योंकी उन्हों ने सच्चाई में व्यर्थ विचार मिलाये थे.
बपतिस्मा देने वाले यूहन्ना के चेले भी अनातोलिया में रहते थे. वो पश्चताप करने के लिए बुलाने वाले का मुक्तिदाता, यीशु से ज़्यादा आदर करते थे. वो आज तक यह सोच कर की वादा किये हुये मसीह अभी तक नहीं आये, उन का इनत्ज़ार कर रहे थे. यीशु के व्यक्तित्व की चर्चा करते हुए यूहन्ना ने इन सब विविध विचारों का विरोध किया.उन्हों ने अपनी आवाज़ ऊँची कर के इन विरोध करने वाली आत्माओं के विरुद्ध गवाही दी थी: “और हम ने उसकी महिमा देखी वो महिमा जो पिता के एक्लोते बेटे में पूरी सच्चाई और अनुग्रह से भरी थी.”
ऐसा लगता है की इस सुसमाचार को स्वीकार करने वाले अधिक तर लोग गैर यहूदी थे जो मसीह पर विश्वास करते थे क्योंकी यूहन्ना ने इन के सामने यहूदियों के जीवन के बारे में बड़ी बारीकी से बताया जिसे यहूदी उन्हें बताना जरुरी नहीं समझते थे. इस के अतिरिक्त यूहन्ना अपने सुसमाचार में यीशु के कहे गये उन वचनों पर निर्भर न रहे जो उस समय आरामिक भाषा में लिखे गये थे क्योंकी उनका बाकी के सुसमचारकों की तरह यूनानी भाषा में भाषान्तर करना पड़ता. इस लिए उन्हों ने अपनी कलीसिया के जाने माने यूनानी वचनों का प्रयोग किया और उन्हें सुसमाचार की आत्मा से भर दिया और यीशु के वचनों का पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन के अनुसार शुद्ध यूनानी भाषा में सच्चाई के साथ प्रकट किया. इसी कारण उनके सुसमाचार में कलात्मक शब्दाडंबरपूर्ण के प्रभाव की जगह सादगी, गहराई और बड़ी वाकपटूता से काम लिया गया है. इस लिए इस पवित्र आत्मा ने इस सुसमाचार में हमें सच्चाई और सादगी का खज़ाना पेश किया है ताकी हर नवजवान इस का अनंत अर्थ आसानी से समझ सके.
यह अनोखा सुसमाचार कब लिखा गया था?
हम प्रभु यीशु को धन्यवाद कहते हैं की आपने बहुत साल पहले मिसर में पूरब के देशों के पुराने खंडरों की खोज करने वालों को ऐसी प्रेरणा दी की उन्हों ने 100 ए.डी. में पेपिरस का एक वरक ढूंड निकला जिस पर यूहन्ना के सुसमाचार के कुछ वचन बिलकुल साफ शब्दों में लिखे हुए थे. इस खोज के कारण एक लंबी बहस का अंत हो गया और जहरीली आलोचना की आग बुझ गई. इस ने यह स्पष्ट कर दिया की यूहन्ना का सुसमाचार 100 ए.डी. में केवल एशिया मायनर में ही नहीं परन्तु उत्तरी आफ्रिका के देशों में भी प्रचलित था. इस में भी कोई संदेह नहीं की यूहन्ना के सुसमाचार की रोम में भी जानकारी थी. यह सच्चाई हमारे विश्वास को और भी मजबूत करती है की प्रेरित यूहन्ना ने ही इस सुसमाचार को लिखा है जो पवित्र आत्मा से भरा हुआ है.
इस सुसमाचार में किन विषयों पर चर्चा की गई है?
आसमानी प्रेरित किताबों को विषय अनुसार क्रम्बंद्ध करना मनुष्य के लिए आसान बात नहीं है और खास करके यूहन्ना के सुसमाचार को अलग अलग विभागों में बाँटना और भी कठिण है. फिर भी हम इसे नीचे लिखे हुए संक्षेप में प्रस्तुत करने की सलाह देते हैं.
1. दिव्य प्रकाश का चमकना (यूहन्ना 1:1 - 4:54)
2.ज्योति अन्धकार में चमकती है और अन्धकार ने उसे ग्रहण (comprehend) नहीं किया (यूहन्ना 5:9 - 11:54)
3. रोशनी प्रेरितों के बीच में चमकती है (यूहन्ना 11:55 - 17:26)
4. रोशनी अन्धकार पर छा जाती है (यूहन्ना 18:1 - 21:25)
प्रचारक यूहन्ना ने अपने विचारों को कड़ियों की तरह आत्मिकता की जंजीर में एक दूसरे से जोड़ दिया है जिस में हर कड़ी एक या दो शब्दों या विचारों पर केंद्रित रहती है.यह कड़ियाँ एक दूसरे से बिलकुल अलग तो नहीं होतीं परन्तु उनका अर्थ एक दूसरे को प्रभावित करता है.
यूहन्ना के सभी इब्रानी विचार और उनका गहरा आत्मिक अंतद्रिष्टी और उत्साह यूनानी भाषा की सक्रियता के साथ एक अनोखा सामंजस्यपूर्ण मिलन है. पवित्र आत्मा आज भी हमें इस सुसमाचार के वचनों को स्पष्ट करता आ रहा है. यह हमारे लिए जानकारी और बुद्धिमानी का एक ऐसा स्रोत बन गया है जिस का कोई अंत नहीं है.जो कोई भी इस किताब का गहराई से अध्धयन करता है वह परमेश्वर के पुत्र के सामने अपना सर झुका कर धन्यवाद कहते हुए अपना जीवन उसे अर्पित करेगा और अनंत जीवन पाकर प्रभु की स्तुती करेगा.