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रोमियो – प्रभु हमारी धार्मिकता है|
पवित्र शास्त्र में लिखित रोमियों के नाम पौलुस प्रेरित की पत्री पर आधारित पाठ्यक्रम
भाग 3 का अनुपूरक - रोम में कलीसिया के नेताओं को पौलुस के चरित्र पर विशेष राय (रोमियो 15:14 – 16:27)

8. पत्री के अन्तिम भाग के रूप में पौलुस की आराधनाविधि (रोमियो 16:25-27)


रोमियो 16:25-27
25 अब जो तुम को मेरे सुसमाचार अर्थात यीशु मसीह के विषय के प्रचार के अनुसार स्थिर कर सकता है, उस भेद के प्रकाश के अनुसार जो सनातन से छिपा रहा। 26 परन्‍तु अब प्रगट होकर सनातन परमेश्वर की आज्ञा से भविष्य द्वक्ताओं की पुस्‍तकोंके द्वारा सब जातियों को बताया गया है, कि वे विश्वास से आज्ञा मानने वाले हो जाएं। 27 उसी अद्वैत बुद्धिमान परमेश्वर की यीशु मसीह के द्वारा युगा नु युग महिमा होती रहे। आमीन।।

पौलुस ने विधिवतपूर्वक रोम की अपनी पत्री को परमेश्वर हमारे प्रभु यीशु मसीह के पिता की आराधना करते हुए समाप्त किया था| जिन्हें पौलुस सभी शिक्षाप्रद शक्तियों के फव्वारे के रूप में मानते हैं, और केवल उनको ही इस के उपयुक्त मानते है जो अनंत शक्ति दे सकते है, जिन्होंने कलीसियाओं को, अपनी आत्मा की शक्ति में स्थापित किया और उन्हें सुरक्षित रखा|

पौलुस ने अपनी इस पत्री को अपने संकेत के साथ जो इसकी शुरुआत में दिया था, समाप्त किया था (रोमियो 1:16) पौलुस के सुसमाचार में इस का आभास हुआ था कि यह उन लोगों को जो अपने अपराधों में मार चुके है जीवन देता है| यहाँ केवल चार सुसमाचार ही नहीं है क्रमशः मति, मरकुस, लुका और यूहन्ना, परन्तु प्रत्येक शुभ समाचार, और पौलुस के प्रचार में यीशु के उद्धार की घोषणा, एक वास्तविक सुसमाचार है| अन्य जातियों के उपदेशक ने लिखा था कि दमिश्क के निकट प्रभु यीशु का दर्शन, क्रूस पर चढाये गये जीवित प्रभु का दर्शन, और आप के द्वारा यह जान लेना कि यह सच्चे, वादे के अनुसार आने वाले मसीह थे, इस पत्री को लिखने के सैद्धांतिक उद्देश्य थे| अपने सुसमाचार में, पौलुस ने इस रहस्य को प्रत्येक उस व्यक्ति को उजागर किया है जो सुनना चाहता है, जो कि उस समय तक गुप्त रखा गया था, परन्तु अब यह पुराने नियम के उपदेशों के शास्त्रों द्वारा जाना जा चुका था और प्रकट हो गया था, जैसा कि अनंत पवित्र परमेश्वर द्वारा आदेश दिया गया था|

इस रहस्य की विषय सामग्री यह है कि परमेश्वर अस्वच्छ लोगों को चाहते है, और राज्यों को, नये नियम के अनुसार विश्वास की आज्ञाकारिता को सिखने के लिए बुलाते हैं| अतः परमेश्वर यीशु के क्षतिपूर्ति बलिदान के कारण सभी लोगों के अपराधों को एक मुफ्त अनुग्रह के रूप में क्षमा करना चाहते हैं| इसलिए जो कोई भी इस बुलावे को सुनता है, और परमेश्वर के उपहार को स्वीकारता है, सुरक्षित है| वह जो आज्ञा का पालन नहीं करता अपने आप को नाश करता है|

पौलुस परमेश्वर की, जो एक अकेले बुद्धिमान हैं, की आराधना करते थे| आपने विनम्रतापूर्वक एवं शुक्रगुजारी के साथ साक्षी दी थी कि सारी महिमा और आदर परमेश्वर के हैं, और यह मानवीय आराधना यीशु के कार्य, मृत्यु और पुनरुत्थान के पवित्रता के आधार पर संभव हो पाया था, यीशु जो उनके पिता और पवित्र आत्मा के साथ हमेशा राज्य करते है| आखरी शब्द “आमीन” जिसके साथ पौलुस ने रोम की पत्री को समाप्त किया था, संकेत करता है कि यही निश्चित सत्य है जो कि निश्चित रूप से पूरा होगा|

प्रार्थना: ओ पिता हम आपका धन्यवाद करते हैं आपके पुत्र यीशु के नाम में, क्योंकि आपने पौलुस को चुना, और उनको आपका उद्धार अन्यजातियों की कलीसियाओं में लाने के लिए अपनी सेवा में दुःख उठाने और मर जाने के लिए बुलाया| हमारी मदद कीजिये कि हम अपनी आत्मा में स्वार्थी ना बने, परंतु आपकी पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन के अंतर्गत उन सभी लोगों के लिए जो सत्य को जानना चाहते है पूर्ण उद्धार लाए|

प्रश्न:

100. वह क्या रहस्य है, जिसे परमेश्वर ने अन्यजातियों के उपदेशक पौलुस को प्रकटित किया था?

पहेली – 4

प्रिय पाठको,
इस पुस्तिका में रोमियों को लिखी गयी पौलूस कि इस पत्री पर हमारे मत्त पढ़ने के बाद, आप लोग निम्न लिखित प्रश्नों के उत्तर दे सकने के योग्य हैं| यदि आप 90% प्रश्नों के उत्तर दे सके, हम इस श्रंखला के अगले भाग को आप को भेजेंगे, आपकी नसीहत के लिए | कृपया कर के अपना पूरा नाम और पता उत्तर पत्रिका पर साफ़ साफ़ लिखना न भूले|

81: क्या तुम अपने आपको पूर्णरूप से यीशु, तुम्हारे रक्षक को दे चुके हो, या अब तक तुम स्वार्थी हो और स्वयं अपने लिए जी रहे हो?
82: यीशु के अनुयायियों के लिए पवित्र जीवन जीने की अवस्थाएँ क्या हैं?
83: पूर्वोल्लिखित सेवाओं में से कौनसी एक सेवा तुम आज सबसे अधिक आवश्यक मानते हो?
84: परमेश्वर के प्रेम के किस प्रकार को तुम अमल में लाना अत्यधिक महत्वपूर्ण एवं अपनी मित्रता में आवश्यक मानते हो?
85: हम कैसे अपने शत्रुओं को बिना घृणा और प्रतिशोध के क्षमा करें?
86: प्रत्येक सरकार की सत्ता की सीमाएँ क्या है; और हमें मनुष्यों की अपेक्षा परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना चाहिए?
87: तुम अपने पड़ोसियों से अपने समान प्रेम करो”| पौलुस ने इस आयत का व्यवहारिक रूप से वर्णन कैसे किया था?
88: वह क्या सद्गुण है जो हमारी अगुवाई करने के लिए मसीह के शीघ्र आगमन का ज्ञान है?
89: हमें क्या सोचना या कहना चाहिए यदि मसीह के किसी अनुयायी की जीवन के कुछ द्वितीय श्रेणी के विषयों में एक अलग राय हो?
90: इस वचन का अर्थ क्या है: “परमेश्वर का राज्य खाना और पीना नहीं, परंतु पवित्र आत्मा में धार्मिकता, शांति और आनंद है|” (रोमियों 14:17)?
91: रोमियों के वचन 15:5-6 का अर्थ क्या है?
92: पौलुस, रोम की कलीसिया में आवश्यक मतभेदों के ऊपर कैसे विजय पाने की आशा रखते थे?
93: पौलुस ने अपनी पत्री में क्या लिखा था जिसे वे केवल एक भाग मानते थे?
94: उपदेशक पौलुस के याजकीय कार्यों का रहस्य क्या है?
96: रोम में कलीसिया के सदस्यों के नामों से हम क्या सीख सकते हैं?
97: सूची में उल्लेखित महा पुरषों के नामों से हमें क्या सीख मिलती है?
98: शैतान के प्रलोभनों का केन्द्र बिंदु क्या है?
99: वह कौन है जिसे पौलुस ने रोम को लिखी अपनी पत्री बोल बोल कर लिखाई थी?
100: वह क्या रहस्य है, जिसे परमेश्वर ने अन्यजातियों के उपदेशक पौलुस को प्रकटित किया था?

रोमियों की इस श्रंखला की सारी पुस्तिकाओं के पाठ्यक्रम को समाप्त कर के यदि आप हमें हर पुस्तिका के अंत में दिये गये प्रश्न के उत्तर भेजे, तब हम आप को एक

उच्च शिक्षा का प्रमाणपत्र
रोमियों को लिखी गई पौलुस की पत्री को समझने में

भविष्य में मसीह के लिए तुम्हारी सेवकाई के प्रोत्साहन के रूपमे| रोमियों को लिखीगई पौलुस की पत्री की परिक्षा हमारे साथ पूरी करने के लिए हम तुम्हे प्रोत्साहित करते है| ताकि तुम एक अनंत खजाने को प्राप्त कर सके| हम आप के उत्तर की प्रतिक्षा कर रहे हैं और आप के लिए प्रार्थना कर रहे हैं| हमारा पत्ता है:

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