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यूहन्ना रचित सुसमाचार – ज्योती अंध्कार में चमकती है।
पवित्र शास्त्र में लिखे हुए यूहन्ना के सुसमाचार पर आधारित पाठ्यक्रम
तीसरा भाग - प्रेरितों के दल में ज्योती चमकती है (यूहन्ना 11:55 - 17:26)
इ - यीशु की मध्यस्थयी प्रार्थना (यूहन्ना 17:1-26)

4. यीशु कलीसिया की एकता के लिये प्रार्थना करते हैं (यूहन्ना 17:20-26)


यूहन्ना 17:24
“24 हे पिता, मैं चाहता हूँ कि जिन्हें तू ने मुझे दिया है, जहाँ मैं हूँ वहाँ वे भी मेरे साथ हों, कि वे मेरी उस महिमा को देखें जो तू ने मुझे दी है, क्योंकि तू ने जगत की उत्पत्ती से पहले मुझ से प्रेम रखा |”

महा याजक के रूप में की हुई अपनी प्रार्थना में यीशु ने छ बार परमेश्वर को “पिता” के नाम से सम्बोधित किया और एक बार “सत्य परमेश्वर” कहा | इस अनोखे नाम के द्वारा आप ने परमेश्वर के लिये स्वय: अपना विश्वास और अपनी तीव्र इच्छा प्रगट की | यधपि आप का और परमेश्वर का एक ही तत्व है, फिर भी आप ने हमारे उद्धार के लिये अपने आप को खाली कर दिया और विनम्र बने | आप को प्रसिद्धी या संपत्ति बटोरने की इच्छा न थी | तेरह बार आप ने “तू ने मुझे दिया” इस मुहावरे का प्रयोग किया | पुत्र ने मानव जाती, आप के अनुयायियों, आप के कामों और अधिकार को परमेश्वर की ओर से मिले हुए उपहार समझा, जैसे वे पहले से आप के अपने न थे | आप इन वस्तुओं से खाली थे फिर भी आप अपने पिता की भव्यता और सम्मान के अधीन रहे | इस विनम्रता से निरंतर सामंजस्य सुनिश्चित हो गई जिस के कारण पुत्र ने पिता के विचार और उद्देश पूर्णत: पूरे किये |

इस संपूर्ण आधीनता के कारण आप अपनी प्रार्थना में बगैर इच्छा के “मैं चाहता हूँ,” कह सके | इस लिये परमेश्वर के पुत्र ने क्या इच्छा प्रगट की ? यह की आप के सब अनुयायी जहाँ भी हों, आप के साथ हों, जहाँ आप होंगे | इस लिये पौलुस गवाही देते हैं कि वह मसीह के साथ क्रूस पर चढ़ाये गये और आप के साथ गाड़े गये ताकि आप के साथ जिलाये जाने में भाग लें और स्वर्गिय ठिकानों में आप के साथ बिठाया कि वह अपना उस कृपा से जो मसीह यीशु में हम पर है, आने वाले समयों में अपने अनुग्रह का असीमधन दिखाये (रोमियों 6:1-11; इफिसियों 2:4-7)

हमारी मसीह के साथ एकता आप की पीड़ा और प्रेम में सहभागी होने से भी बढ़ कर है जिस में आप की महिमा का भी समावेश है | आप चाहते हैं कि हम आप की महिमा देखें और हमेशा आप की संगती में रहें | प्रेरितों को हमारी आशा के इस उद्देश की कल्पना थी | जब हम आप को देखेंगे तो हमारी अनन्त प्रसन्नता का वर्णन नहीं किया जा सकेगा | हम भी आप के स्वरूप में बदल कर आप की महिमा प्रगट करेंगे क्योंकि जो पवित्र आत्मा हम को दिया गया है उस के द्वारा परमेश्वर का प्रेम हमारे दिलों में डाला गया है (रोमियों 5:5; 8:29) | आप ने अपनी महिमा अर्पण की क्योंकि आप अपने विनम्र मनुष्त्व में भी महिमामंडित थे | प्रेरितों ने आप की उपस्थिति में जान लिया था कि आप की महिमा आप और पिता के बीच में दुनिया की उत्पत्ती से पहले से पाये जाने वाले न डगमगाने वाले प्रेम से शुरू हुई | पवित्र त्रिय में यह अस्तित्व हमारे व्यक्तित्व और धन दे कर मुक्ति पाने का स्त्रोत है |

यूहन्ना 17:25
“25 हे धार्मिक पिता, संसार ने मुझे नहीं जाना, परन्तु मैं ने तुझे जाना; और इन्हों ने भी जाना कि तू ही ने मुझे भेजा है |”

यदि दुनिया न भी जानती हो तो भी परमेश्वर धार्मिक और सत्य है | तत्वत: वह पवित्र है और उस में अन्धकार नहीं है | जो व्यक्ति मसीह में उस के प्रेम का अनुभव करता है वह जानता है कि यह परमेश्वर का दोष नहीं कि लोग पुत्र पर विश्वास नहीं करते या उद्धार नहीं पाते |

परन्तु मसीह अपने पिता को अनन्त काल से जानते थे क्योंकि पुत्र ने अपने पिता को आमने सामने देखा है | उस का स्वभाव, गुण और नाम की पुत्र को जानकारी है | दिव्यता के गहरे दृष्टिकोण आप से छिपे हुए नहीं हैं |

उन सब लोगों को जो पुत्र को स्वीकार करते हैं, उन्हें परमेश्वर अपनी सन्तान होने का अधिकार देता है | यीशु ने उन पर पितृत्व का रहस्य प्रगट किया | जिन लोगों का नवनिर्माण हुआ है वह जानते हैं कि मसीह परमेश्वर के पास से आये; आप केवल भविष्यव्यक्ता या प्रेरित ही न थे बल्कि दिव्य व्यक्ति थे और सच में परमेश्वर की ओर से थे | दिव्यता की सब परिपूर्णता आप में देहधारी हो चुकी थी | पवित्र आत्मा यीशु की मानवता में आप की दिव्यता देखने में हमारे मन को उज्वलित करता है ताकि हम आप के साथ और पिता के साथ जिस ने आप को भेजा, एक हों | इस तरह से आप परमेश्वर और मनुष्य को जोड़ने वाली कड़ी हैं |

यूहन्ना 17:26
“26 मैं ने तेरा नाम उन को बताया और बताता रहूँगा कि जो प्रेम तुझ को मुझ से था वह उन में रहे, और मैं उन में रहूँ |”

संक्षेप में यह कह सकते हैं कि मसीह ने हमें पिता का नाम प्रगट करके सिखाया | इस का स्पष्ट प्रदर्शन क्रूस में है जहाँ पिता ने पुत्र को पवित्र बली के तौर पर बलिदान किया ताकि हम सन्तान होने के अधिकार में सहभागी हों | जब पवित्र आत्मा हम पर प्रगट हुआ, तब हम अपने दिलों की गहराई से चिल्लाये: “अब्बा, पिता |” प्रभु की प्रार्थना सभी प्रार्थनाओं का मुकुट है क्योंकि उस में पिता, उस के राज्य और इच्छा को महामंडित किया गया है |

हम अपने प्रभु यीशु के पिता को उस सीमा तक पहचानते हैं जितना प्रेम पिता और पुत्र में जारी रहता है और जो हम में उंडेला गया है | आप ने पिता से विनती की कि वह हम में प्रेम की परिपूर्णता निर्माण करे | केवल पिता ही नहीं जो हमारे पास आता है बल्कि यीशु भी स्वय: हम में वास करना चाहते हैं | इस लिये आपने अपनी प्रार्थना में विनती की कि दिव्यता की परिपूर्णता हम में उतर आये जैसे के प्रेरित ने अपनी पत्री में गवाही दी : “परमेश्वर प्रेम है और जो प्रेम में बना रहता है वह परमेश्वर में बना रहता है और परमेश्वर उस में (1 यूहन्ना 4:16) |

प्रश्न:

109. यीशु ने महा याजक के रूप में की हुई प्रार्थना का संक्षेप क्या है ?

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