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Home -- Hindi -- Romans - 018 (The Law, or the Conscience Condemns Man)
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रोमियो – प्रभु हमारी धार्मिकता है|
पवित्र शास्त्र में लिखित रोमियों के नाम पौलुस प्रेरित की पत्री पर आधारित पाठ्यक्रम
भाग 1: परमेश्वर की धार्मिकता सभी पापियों को दण्ड देती है और मसीह में विश्वासियों का न्याय करती है और पापों से मुक्त करती है। (रोमियों 1:18-8:39)
अ - सारा संसार शैतान के तले झुका है और परमेश्वर अपनी पूरी धार्मिकता में न्याय करेंगे (रोमियों 1:18-3:20)
2. परमेश्वर का क्रोध यहुदियों के विरोध में प्रकट हुआ (रोमियो 2:1 - 3:20)

ब) कानून, या अंतःकरण मनुष्यको दोष देता है (रोमियो 2:12-16)


रोमियो 2:12-16
12 इसलिए कि जिन्हों ने बिना व्यवस्था पाए पाप किया, वे बिना व्यवस्था के नाश भी होंगे, और जिन्हों ने व्यवस्था पाकर पाप किया, उन का दण्ड व्यवस्था के अनुसार होगा | 13 (क्योंकि परमेश्वर के यहा व्यवस्था के सुननेवाले धर्मी नहीं, पर व्यवस्था पर चलनेवाले धर्मी ठहराए जाएँगे | 14 फिर जब अन्यजाति लोग जिन के पास व्यवस्था नहीं, स्वभाव ही से व्यवस्था की बातों पर चलते हैं, तो व्यवस्था उन के पास न होने पर भी वे अपने लिए आप ही व्यवस्था है| 15 वे व्यवस्था की बाते अपने अपने ह्रदयों में लिखी हुई दिखाते हैं और उन के विवेक भी गवाही देते है, और उन की चिंताएं परस्पर दोष लगाती, या उन्हें निर्दोष ठहराती है|) 16 जिस दिन परमेश्वर मेरे सुसमाचार के अनुसार यीशु मसीह के द्वारा मनुष्यों की गुप्त बातों का न्याय करेगा|

रोम का गिरजाघर दो गुटों का मिश्रण था – यहूदियों में से निकले हुए ईसाई और यूनान और रोम के विश्वासी| पहले गुट को कसमों और कानून का ज्ञान था, और पुराने नियम के अनुसार उन्होंने अपनी परम्पराएं रखी हुई थी; जबकि अन्यजातियों के ईसाई अपने जीवन के लिए किसी दैवीय आदेश के बारे में नहीं जानते थे, बल्कि मसीह की आत्मा की शक्ति में चलते थे|

मूल यहूदियों में से निकले हुए ईसाइयों को पौलुस ने निश्चित रूप से बताया था कि परमेश्वर पुराने कानून, जोकि पवित्रता का प्रतिरूप है के अनुसार उन लोगों को दण्ड देंगे| परमेश्वर के वचन को सुनना ही तुमको बचा नहीं सकता आत्मिक विचार और लंबी प्रार्थनाएं ही पर्याप्त नहीं है क्यों कि परमेश्वर को तुम्हारे जीवन और तुम्हारे ह्रदय की आज्ञाकारिता चाहिए| वे चाहते हैं कि उनका वचन हममें प्रति मूर्ति हो जाये, और हमारा जीवन उनके वचन से पूरा बदल जाये| यहूदियों को प्रत्येक नियम भंग करने के लिए दण्डित किया जायेगा, जो भी उन्होंने कानून के विरोध में किया है क्योंकि सभी नियम भंग परमेश्वर से शत्रुता में गिने जाते हैं|

जब पौलुस ने यह सत्य लिखा था, आपने अपनी आत्मा में यहूदियों में से निकले हुए ईसाइयों के तर्क सुने थे “हमारे पास कानून नहीं है, और हम दस आयतों के बारे में नहीं जानते; तब परमेश्वर न्याय के दिन हमसे कैसे व्यवहार करेंगे? हम लोग न्याय से स्वतंत्र है|”

तब आपने सरलता से उन्हें उत्तर दिया था कि सभी मामलों में परमेश्वर की धार्मिकता अपरिवर्तनीय है, यहाँ तक कि यह उनको जो कानून की ओर ध्यान नहीं देते थे को दोषी ठहराती थी, वह जिन्होंने कभी आयतों और कसमों को नहीं सुना था, ना ही परमेश्वर के प्रेम और पवित्रता को जानते थे, क्योंकि परमेश्वर ने प्रत्येक मनुष्य में एक संवेदनशील, सतर्क, नियंत्रित चेतावनी देने वाला, निंदा करने वाला, धिधकारने वाला अन्त करण डाल दिया है| यह चेतावनी देने वाला कुछ समय के लिए शान्त रह सकता है जैसे यदि क्षणिक विराम के लिए दबा दिया गया हो| परन्तु निसंदेह यह तुम्हे नए प्रकार से तुम्हारी गलतियाँ दिखायगा| और तुम्हारे अन्दर एक संघर्ष शुरू हो सकता है| यह तुम्हारे परमेश्वर के प्रतिरूप का अवशेष हमेशा शान्त नहीं रह सकता| तुम्हारा अन्तःकरण तुम्हे दोष देता है| और तुम आराम नहीं पाओगे सिवाय परमेश्वर के अनुग्रह के| इसीलिए लोग उदास और डरे हुए दिखाई देते हैं, क्यों कि वे अपने ही अन्तःकरण से शत्रुता में रहते है, और अपने अपराध को स्वीकार नहीं करते, यद्यपि उनका अन्तःकरण उनको धिधकरता है| क्या तुम अपने अन्तःकरण के लिए एक नैतिक कानून का निर्माण तुम्हारे अन्दर करने के लिए अपने परमेश्वर का धन्यवाद करते हो? तुम्हारे अन्तःकरण को सुसमाचार का अभ्यास कराओ और परमेश्वर के प्रेम के रंग में इसे रंग दो कि यह तुम्हे और अधिक यथार्थता से सतर्क करे और परमेश्वर की दिशा के अनुसार तुम्हारा मार्गदर्शन करे, और तुम हर एक अच्छे कार्य के लिए शिक्षित एवं तैयार हो जाओ| तब तुम अन्तिम न्याय में नहीं गिरोगे, क्योंकि तुम तुम्हारे ह्रदय में परमेश्वर की आवाज के साथ एक स्वर में रहते हो|

परन्तु यदि तुम मसीह के शब्द के अर्थ को गहराई से नहीं समझते हो, और अपने आप को अपने अन्तःकरण की शिकायतों से स्वतंत्र नहीं करते हो, परन्तु तुम्हारी हठ में लगातार हो, और स्वयं ही स्वयं को उचित ठहराते हो, तो अन्तिम दिन तुम्हारा अन्तःकरण तुम्हारे विरोध में खड़ा होगा| यह परमेश्वर को उचित ठहरायेगा, और तुम्हे दोषी ठहरायेगा| तुम्हारे पास तुम्हारी भयभीतता का और कोई हल नहीं है सिवाय सुसमाचार में आश्रय के, जोकि तुम्हे दर्शाता है कि तुम्हारे रक्षक स्वयं ही तुम्हारे न्यायाधीश हैं| तो तुरंत मसीह के पास आ जाओ, और तुम्हारी इच्छा, तुम्हारी आत्मा के लिए आराम पाएगी|

क्या तुम जानते थे कि परमेश्वर का अन्तिम न्याय यीशु मसीह के हाथों में दिया जायेगा| क्या तुम जानते थे कि इस न्यायधीश का पूरा नाम केवल “यीशु” नहीं है बल्कि “मसीह” भी है? इन दोनों नामों के बीच में यह अंतर है कि “मसीह” उनका व्यक्तिगत नाम है जब कि “यीशु” उन के कार्यालय की व्याख्या है| केवल एक मसीह ही हैं जिनका अभिषेक हुआ है, जो परमेश्वर के उपहारों एवं विशेषताओं से भरपूर हैं, जिन के पास उच्चतम एवं पूर्ण प्रभुत्व है जिन को न्याय और मुक्ति के अधिकार दिएगए हैं|

इसलिए उपदेशक कह सके कि पौलुस ने जो सुसमाचार मसीह के बारे मे निर्मित किया था, के अनुसार परमेश्वर इस पूरी दुनिया को इसके पूरे रहस्यो के साथ दण्ड देंगे| हमारे लिए यह जानना आवश्यक है कि पौलुस के सुसमाचार ने क्या प्रकट किया गया था, न्याय के दिन के संबंध में, जैसा कि रोम को लिखी गई उन की पत्री में शामिल है|

प्रार्थना: ओ पवित्र परमेश्वर, आप मुझे मुझसे अधिक जानतें हैं| मेरे सारे कार्य आप के सामने उजागर हैं| मै अपने अपराध स्वीकार करता हूँ, और आप से प्रार्थना करता हूँ कि आप मेरे सामने मेरी सभी छिपी हुई गलतियाँ प्रकट करें कि मै उन्हें आप के पुत्र के उजाले में ला सकूँ, उस डरावने दिन के आने से पहले| मुझे क्षमा करना यदि मैंने कभी एक ही बार में अपने अंतर आत्मा की आवाज़ की अवज्ञा की थी, या यदि मै ने अपनी इच्छा से आप की आवाज़ को अनसुना किया हो| मुझे शक्ति और निश्चय दीजिए कि मै आपके प्रेम के आदेशों का पालन करूँ|

प्रश्न:

22. अन्तिम न्याय के दिन परमेश्वर अन्य जातियों से कैसे व्यव्हार करेंगे?

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