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यूहन्ना रचित सुसमाचार – ज्योती अंध्कार में चमकती है।
पवित्र शास्त्र में लिखे हुए यूहन्ना के सुसमाचार पर आधारित पाठ्यक्रम
पहला भाग – दिव्य ज्योति चमकती है (यूहन्ना 1:1 - 4:54)
ब - मसीह अपने चेलों को पश्चताप के घेरे से निकाल कर शादी की खुशी में ले जाते हैं (यूहन्ना 1:19 - 2:12)

1. यहुदियों के बड़े न्यायालय का प्रतिनिधी मंडल बपतिस्मा देने वाले यूहन्ना से प्रश्न पूछता है (यूहन्ना 1:19-28)


यूहन्ना 1:19-21
“19 यूहन्ना की गवाही यह है, कि जब यहूदियों ने येरूशलेम से याजकों और लेवीयों को उस से यह पूछने के लिये भेजा कि, तू कौन है ? 20 तो उसने यह मान लिया, और इन्कार नहीं किया परन्तु मान लिया कि मैं मसीह नहीं हूँ | 21 तब उन्हों ने उस से पूछा, तो फिर कौन है? क्या तू एलिय्याह है? उस ने कहा, मैं नहीं हूँ: तो क्या तू वह भविष्यद्-वक्ता है? उस ने उत्तर दिया, कि नहीं |”

यर्दन की घाटी में एक धार्मिक क्रान्ती शुरू हुई जिस का आकर्षण बपतिस्मा देने वाले यूहन्ना थे | हज़ारों लोग ऊँचे पहाड़ों और गहरी और गरम तंग घाटियों में से जंगल के रास्तों की परवाह ना करते हुए निकल पड़े | वो यर्दन की घाटी में यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के पास चले आये ताकी इस नये भविष्यवक्ता की पुकार सुनें और अपने पापों की क्षमा के लिये उन से बपतिस्मा लें | भीड़ अकसर अशिक्षित नहीं हुआ करती जैसा की मगरूर अकसर सोचते हैं | बल्की वो दिव्य मार्गदर्शन के इच्छुक और भूखे होते हैं | वो शक्ती और अधिकार रखने वाले लोगों को बहुत जल्दी पहचान लेते हैं | वो रीति रिवाज़ और नियम के बारे में सुनना नहीं चाहते बल्की परमेश्वर के सम्पर्क में आना चाहते हैं |

यहुदियों की सब से बड़ी धार्मिक अदालत के सदस्य इस धार्मिक क्रांति के जानकार थे | उन्हों ने यूहन्ना के पास याजकों का एक प्रतिनिधी मंडल ऐसे चुनौती भरे मददगारों के साथ भेजा जो जानवरों का बलिदान किया करते थे | इस प्रतिनिधी मंडल को बपतिस्मा देने वाले यूहन्ना से प्रश्न पूछने थे ताकी अगर वो धर्म द्रोही पाये जाते तो उन्हें वहीं खतम कर देते |

इस तरह यूहन्ना और धार्मिक अदालत के सदस्यों के बीच ये मुलाक़ात दिखाऊ और खतरनाक थी | प्रेरित यूहन्ना यरूशलेम से आने वाले इन आदमियों को यहूदी कहते हैं | इस नाम के द्वारा वो अपने सुसमाचार के एक रहस्य को स्पष्ट करते हैं | क्योंकी उन दिनों यहूदी व्यवस्था को सख्ती से मानते थे और उनके विचार उग्रवादी और असहनशील थे | और यह की यरूशलेम, मसीह की आत्मा का विरोधक केन्द्र बनने वाला था | पुराने नियम के सब लोग तो नहीं परन्तु याजकों का एक, दल खास कर फरीसी हर धार्मिक क्रांती का शत्रु था जो उनके इरादों और अधिकार से हट कर हुआ करती थी | इस कारण वो बपतिस्मा देने वाले यूहन्ना को अपने प्रश्न में फंसाना चाहते थे |

“तू कौन है ?” यह पहला प्रश्न था जो उन्होंने यूहन्ना से पूछा | उस समय वे एक बड़ी भीड़ से घिरे हुए थे जो अपने पापों से पश्चात्तापी होकर बड़े ध्यान से उनका संदेश सुन रही थी | “तुझे बोलने का अधिकार किस ने दिया? क्या तूने व्यवस्था और धर्मविज्ञान का अध्ययन किया है? क्या परमेश्वर ने तुझे इस बारे में कार्याधिकार दिया है या क्या तू अपने आप को मसीह समझता है?”

यूहन्ना को इन प्रश्नों में छल दिखाई दिया और वो कुछ नहीं बोले | अगर वो कहते कि “मैं मसीह हूँ” तो वो उन्हें दंड देकर पथराव करते | और अगर वो कहते कि “मैं मसीह नहीं हूँ” तो लोग उन्हें कोई महत्त्व ना देते हुए छोड़ देते | अब्रहाम की सन्तान उन दिनों रोमी राज्य के अधीन रहने की लज्जा से परेशान थी | वो मुक्तिदाता के लिये तरस रहे थे जो उन्हें रोमियों के बंधन से मुक्ती दिलाता | बपतिस्मा देने वाले यूहन्ना ने खुले रूप से स्वीकार किया कि ना तो वो मसीह हैं और ना ही परमेश्वर के पुत्र हैं | उन्हों ने ऐसा कोई खिताब कबूल नहीं किया जो पवित्र आत्मा के निर्देशन के अनुसार ना था | वो अपनी सेवा बहुत ही विनम्रता और वफादारी से करना चाहते थे और परमेश्वर पर भरोसा रखे हुए थे कि समय आने पर वो उनके संदेश की पुष्टी करेंगे |

पहले प्रहार के बाद प्रतिनिधी मंडल ने उनसे पूछा “क्या तू एलिय्याह है?” यह नाम मलाकी 4: 5 में किये गये वायदे की तरफ इशारा करता है जहां लिखा है कि “मसीह के आने से पहले एलिय्याह की सूरत में एक भविष्यवक्ता दृष्टिगोचर होगा जिसने शत्रुओं पर आस्मान से आग बरसाई और परमेश्वर की आज्ञा से मुर्दा जिन्दा किया | हर कोई इस प्रसिद्ध व्यक्ती को अपने राष्ट्र का नेता मानता था | लेकिन यूहन्ना नम्र बने रहे | यधपि हकीकत में वो वही वादानुसार भविष्यवक्ता थे जिनकी मसीह ने खुद बाद में गवाही दी थी ( मत्ती 11:14)

फिर याजकों ने उन से पूछा क्या वो वही विशेष वचनदत्त भविष्यवक्ता हैं जिनके बारे में मूसा ने भविष्यवाणी की थी कि वो उन्ही की तरह एक नया और महान करार देंगे (व्यवस्थाविवरण 18: 15) | इस प्रश्न के ज़रिये वो ज़ानना चाहते थे की उन्हें किस ने भेजा कि वो भविष्यवक्ता की तरह बोलें | इस तरह उन्हों ने बार बार उन से पूछा कि वो कौन हैं और उनके पास क्या अधिकार है और क्या उनका संदेश उनका अपना है या वो उन पर प्रगट हुआ |

बपतिस्मा देने वाले यूहन्ना ने मूसा का चरित्र और दर्जा लेना अस्वीकार किया | वो किसी तरह का अधिकार पाये बिना परमेश्वर के साथ नया करार करना नहीं चाहते थे | और ना ही वो अपने लोगों को फ़ौजी विजय दिलाना चाहते थे | वो आज़माइश में ईमानदार रहे | और ना अहंकारी या घमंडी बने | इस तरह उन्होंने समझदारी से काम लिया और अपने शत्रुओं को उतने ही शब्दों में जवाब दिया जितनी आवशकता थी | यह जरूरी है कि हम भी अपनी जिंदगी में इन नियमों का प्रयोग करें |

प्रार्थना: प्रभु यीशु हम आप का धन्यवाद करते हैं कि आप ने यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले को हमारी दुनिया में भेजा, एक ऐसा व्यक्ती जिस ने कभी घमंड नहीं किया | हमारे इस अहंकार को क्षमा कीजिये जिस के कारण हम अपने आप को दूसरों से बड़े और महत्वपूर्ण समझते हैं | हमें बुद्धी प्रदान कीजिये ताकी हम समझ सकें कि हम अयोग्य सेवक हैं और यह की सिर्फ आप ही महान हैं|

प्रश्न:

15. यहुदियों के बड़े न्यायालय के प्रतिनिधी मंडल के पूछे हुए प्रश्नों का उद्देश क्या है?

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