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X. आठवी आज्ञा: चोरी ना करना
निर्गमन २०:१५
तू चोरी न करना|
१०.१ -- संपति किसकी है?
आरंभ में परमेश्वर ने स्वर्ग और पृथ्वी और उसमे सब कुछ बनाया था| सभी घटक, पेड़ पौधे, जानवर और हम अकेले उनके हैं| हम स्वयं परमेश्वर के हैं| हम संयोगवश नहीं परंतु परमेश्वर के अनुग्रह द्वारा बनाये गए थे, उनके विचार और शक्तियां प्रत्येक प्राणी में स्पष्ट रूप से दिखाई दिए थे| परमेश्वर इस सृष्टि के मालिक हैं| सभी वस्तुएं, यहां तक कि सोना और चांदी भी केवल उनकी वस्तुएं हैं| उन्होंने विश्वासपूर्वक हमें जो भी सौंपा है हम उसके केवल प्रबन्धक हैं| जो भी उन्होंने हमें दिया है हम उसके प्रति उत्तरदायी हैं| हमारा समय, स्वास्थ्य, शक्ति, धन, संपत्ति हमारे नहीं परंतु केवल उनके हैं क्या तुम इस बात से सहमत हो?
एक सौ वर्षों, नास्तिक सिद्धांत, जो आत्मा के राज्य को नकारते है, सामने आये हैं| वे केवल किसी वस्तु के होने को प्रमाणित करते हैं जो स्वयं अपने आप विकसित होती है| परमेश्वर उनकी सोच से परे है| इसलिए साम्यवादी दावा करते है कि इस दुनिया पर परमेश्वर का नहीं, लोगों का अधिकार है| शासनिक दल लोगो की सारी धन सम्पति को अपने नियंत्रण में ले लेते हैं और उस दल के साथ ईमानदारी का अर्थ है कि इस धन संपत्ति में उनका भी हिस्सा है| लेकिन व्यक्तिगत रूप से लोग इस सामूहिक दार्शनिकता (दर्शन शास्त्र) से कम आश्वस्त थे, अतः जितना काम उन्हें करना चाहिए उससे कम करते हैं, और जितना संभव हो सके उतना देश के धन और संपति को लुटते थे| इसीलिए चीन और अन्य समाजवादी देश, सामाजिक नहीं, निजी व्यवसाय करने में प्रगति शील हैं| थोड़े से आर्थिक उत्पादन ने उजागर किया कि किसी भी प्रकार के सामाजिक सामूहिक पद्धति के लिए मनुष्य की रचना नहीं की गई थी| आरंभ से हमें एक पूर्ण जिम्मेदार जीवन की धारणा के साथ रचा गया है| मनुष्य स्वयं प्रेरित होना चाहिए उसे किसी ने कुछ करने के लिए विवश नहीं करना चाहिए| जब पुनर्निर्माण (रुस) विकसित हुआ साम्यवादी प्रणाली टूट कर चूर चूर हो गेयी थी|
पश्चिम में, पूंजीवाद का अर्थ है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने समय और धन का अकेला मालिक है| लोकतान्त्रिक समाज प्रणाली, अमिर लोगो के बड़े केक में से जो वे स्वयं ही आपस में बाँट लेते हैं के कुछ टुकड़े गरीब लोगों के लिए सुरक्षित करने का प्रयास करती है अर्थात अमिर लोगो के धन में से गरीबों को कुछ देने का प्रयत्न करती है| ओह इन लाखों लोगों ने परमेश्वर के सामने अपने उत्तरदायित्व को समझा और प्रायश्चित किया! तब वे गरीबों को जान सके और उन निम्न स्तर के लोगो के बारे में और उनकी आवशकताओं के बारे में सोच पाए होंगे|
वास्तव में साम्यवाद और पूंजीवाद के एक समान उद्देश्य हैं| दोनों सारी सम्पति और शक्ति पर नियंत्रण करना चाहते हैं| धन पर नियंत्रण प्राप्त करने के उनके तरीके केवल अलग हैं| समाजवादी देशों में सम्पति की जब्ती, चोरी के समान ही है| लोकिन पूंजीवादी देशों में गरीबों का शोषण, आधुनिक माध्यमों के उपयोंग की सहायता द्वारा एक चतुर प्रकार का विश्वासघात है|
यद्यपि एक ईसाई व्यक्ति ने इस बात को स्वीकार करना चाहिए कि सभी धन सम्पति सृष्टिकर्ता की है| हम उसके मालिक या स्वतंत्र स्वामी नहीं, परंतु केवल नम्र प्रबंधक हैं| हमारा कुछ भी नहीं है| जो हमें प्राप्त हुआ है वह और कुछ नहीं, परमेश्वर की आशीषे हैं, और हमें इस बात का लेखा-जोखा देना होगा कि हम ने अपना धन, समय या प्रयत्न का उपयोग कैसे किया| सावधान रहो तुम क्या करते हो और क्या तुम खर्च करते हो|
१०.२ -- परमेश्वर से प्रेम और धन के प्रति लालच
यीशु ने हमें चेतावनी दी है, “कोई भी एक साथ दो स्वामियों का सेवक नहीं हो सकता क्योंकि वह एक से घृणा करेगा और दुसरे से प्रेम| या एक के प्रति समर्पित रहेगा और दुसरे का तिरस्कार करेगा| तुम धन और परमेश्वर दोनों की एक साथ सेवा नहीं कर सकते|” (मत्ती ६:२४) एक ईसाई व्यक्ति अपने धन को परमेश्वर की सेवामे हाजिर किये बिना, ऐसा व्यवहार नहीं कर सकता कि वह अपने स्वयं के धन का मालिक है अर्थात वह एक चोर है जिसने अपने मालिक का धन चुराया है| यही कारण है कि धन का जो व्यवहार हम करते है वह पूरी तरह से बदल जाता है जब हम ईसाई बनते हैं| अमिर ईसाईयों ने अपनी योजनाएं नहीं बनानी चाहिए और अपने लिए ही नहीं जीना चाहिए, परन्तु वास्तव में उन्होंने परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए कि उन्हें इस बात का ज्ञान प्राप्त हो कि परमेश्वर ने जो धन उन्हें विश्वासपूर्वक सौंपा है वह उसका क्या करें|
वह देश जो विकसित हो रहे है, जिनके पास छोटे उद्योग हैं, को पहले आध्यात्मिक आत्मज्ञान की आवश्यकता है| त्रयी परमेश्वर में विश्वास, जिम्मेदारी, कर्मठता, और बलिदानी अभिवृत्ति पर जोर देता है| केवल यीशु के साथ सबंध लोगों को भ्रष्ट बनने से या केवल अपने परवारों के लिए कार्य करने की मानसिकता से रोक सकता है, तब उन्हें अन्य लोगों की आवश्यकताएं दिखती व महसूस होती हैं| यदि उनके व्यवहार में परिवर्तन नहीं आता है, आलस्य, चोरी की भावना और आंतक उजागर होगा| इस जगत के लिए मसीह केवल एक आशा है|
बाईबल स्पष्ट रूप से कहती है, ‘चोरी ना करना’ इसके परिणामस्वरुप निजी धन सम्पत्ति की घोषणा करती है| अतः हमें किसी की अमीरी से ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए, क्योंकि उसके धन के साथ उसकी अंनत जिम्मेदारी बढती है| यीशु ने इस आज्ञा को इस प्रकार समझया है जब उन्होंने कहा था, “हाँ, मै तुमसे कहता हूँ कि किसी धनवान व्यक्ति के स्वर्ग के राज्य में प्रवेश पाने से एक ऊंट का सुई के नकुए से निकल जाना आसान है|” (मत्ती १९:२४)| अमिर व्यक्ति के धन को उनसे चुराना न्यायोचित नहीं है, हालांकि क्योंकि वह जो चोरी करता है, स्वयं परमेश्वर के न्याय को सहन करता है|
हम हमारे ह्रदय की गहराई में यह अनुभव करते हैं कि हमने ऐसी कुछ वस्तु नहीं लेना चाहिए जो हमारी नहीं है| हमारा अंतर्मन बहुत भावुक है और हमें सचेत करता है कि छोटी या बड़ी कोई भी वस्तु चोरी नहीं करना| हमें स्वयं अपना ध्यानपूर्वक परिक्षण करना चाहिए और देखना चाहिए कि हमारे पास ऐसा कुछ तो नहीं है जो हमारा नहीं है| परमेश्वर निश्चित रूप से तुम्हारी यह जानने में सहायता करेंगे कि क्या तुम्हारा है और क्या किसी और का है यदि तुम उनसे, जो तुम्हारा नहीं है, यह याद कराने में मदद मांगने के लिए प्रार्थना करते हो| हमें यीशु से यह भी प्रार्थना करनी होगी कि हमें हिम्मत दे ताकि हम जो हमारा नहीं है वह तुरंत वापस कर सकें| हमें परमेश्वर से और उस वस्तु के मालिक से क्षमादान देने के लिए प्रार्थना करने की आवश्यकता है| चुराई हुई वस्तुएं हमारे अंतर्मन पर असर करेंगी और यीशु के साथ हमारे संबधों का विनाश करेंगी| अफ्रीका में एक सुसमाचार प्रचारक सभा में, लोगों को प्रोत्साहित किया गया था वह सभी वस्तुएं लौटने के लिए जो जो उन्होंने चुराई थी| इस बात पर कुछ पुलिसवाले ने जो वहां उपस्थित थे, व्यंग्यपूर्वक एक दुसरे को देखा था और हँसे थे क्योंकि वे जानते थे कि उनमे से प्रत्येक ने चोरी की थी| ऐसी बातें हर स्थान पर होती है और यह परमेश्वर का एक विशेष अनुग्रह है जब हम हमारे पाप को जानते है, उसके लिए दुःख का अनुभव करते हैं, उससे घृणा करते है, गंभीरता पूर्वक स्वीकार व प्रायश्चित करते हैं और चुराई हुई वस्तु वापस, लौटाते है| हमेशा यीशु की ओर आ जाओ और वह, तुममे जो भी टूट फुट हुई है को दुरुस्त करने में तुम्हारी मदद करंगे| जो भी वस्तु तुम्हारी नहीं है उसे तुरंत वापस लौटा दो|
१०.३ -- आधुनिक चोरी
हमें अपने आप से प्रश्न करना चाहिए, “आज-कल चोरी क्या है?” यह केवल ऐसा नहीं है कि जो वस्तु हमारी नहीं हम उसे उठा कर ले जाएँ परंतु गबन, कामचोरी और कार्य अवधि में व्यर्थ समय व्यतीत करना भी है| प्रत्येक प्रकार का छल चोरी है| दोषपूर्ण वस्तुओं को सस्ता या महंगा बेचना उपभोक्ता के साथ धोखा है| कभी कभी बिक्री की वस्तु का गुण उसके मूल्य के अनुपात में नही होता है| कर-प्रशासन को गलत जानकारी भी चोरी है| यह सर्वविदित है कि कार्यो में आर्थिक व्यापार में धोखा देने के बहुत से मार्ग हैं| यदि तुम पवित्र परमेश्वर की उपस्थिति में नहीं जीते हो तुम गबन के खतरे में बने रहोगे और उनके और उनके लोगों के विरुद्ध पाप करते रहोगे|
अंतःकरण का यह परिक्षण ज़मीन मालिको, व्यापार में बड़े साहबों और ऊंचे ओहदे पर आसीन अन्य व्यक्तियों पर भी लागू होता है जब वे अपने कर्मचारियों का लाभ उठाते हैं और बिना उचित मजदूरी के उनसे कड़ी मेहनत करवाते हैं| अत्यदिक ब्याज दर की मांग, बैंकों और अन्य व्यक्तियों के लिए चोरी है| लेकिन यह भी किसी ऐसे व्यक्ति के लिए एक पाप है कि किसी से धन उधार ले लेना जबकि कह स्वयं जानता है कि वह यह वापस नहीं दे सकता है| निजी और सार्वजानिक दोनों ओर चोरी करने के बहुत से मार्ग हैं, और सम्पति की ईर्ष्या द्वारा अपनी धर्मपरायणता और उद्धार को खो देने के खतरे में रहेंगे| पौलुस स्पष्ट रूप से कहते हैं, “लुटेरे, लालची, पियक्कड़, चुगलखोर और ठग परमेश्वर के राज्य के उत्तराधिकारी नहीं होंगे|”(१ कुरिन्थियों ६:१०)
हमारे आधुनिक समाज में चोरी के बहुत से रूप हैं| कुछ लोग कार्यस्थल पर जो फोन है उसका उपयोग व्यक्तिगत फोन करने के लिए करते हैं| कुछ लोग दुकान या बाजार में से कुछ वस्तुएं उठा लेते हैं और उसका मूल्य नहीं देते| कुछ कार खोलते हैं और दूर ले जाते हैं| कुछ लोग नशीली दवाएं मुफ्त में बांटते हैं और जब उपभोक्ता उसका आदि हो जाता है तब उसे उसकी लत को पूरा करने के लिए नशीली दवाओं की कीमत देने के लिए बाध्य करते हैं| वे नशाखोर को पैसों के लिए चोरी व अन्य अपराध करने के लिए मजबूर करते हैं| विदेशी कम्पूटर या बिना मूल्य चुकाए कंप्यूटर-कार्यक्रम की नक़ल चोरी का आधुनिक प्रकार है जो बहुत से लोगों के अन्तः करणों पर असर करता है|
यदि हम यीशु से एक नये ह्रदय को स्वीकार नहीं करते हैं हम स्वयं बहुत सारे प्रलोभनों को आमंत्रित करते हैं| हमें इस बारे में निश्चित होना चाहिए कि हमारे जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य धन कमाना नहीं है, अन्यथा हम भौतिक वादी बन जायेंगे और परमेश्वर के आनंद को खो देंगे| यह बात मत भूलो की ईर्ष्या और लालच ही सारी बुराईयों का कारण है| जो कोई भी धन के पीछे रहता है उसके जीवन का व्यवहार बदल जाता है| उसका ह्रदय कठोर हो जाता है, उसका प्रेम ठंडा हो जाता है, और जो कुछ भी वह करता है, धन की चाहत के लिए ही करता है| धन उसके जीवन का केंद्र बन जायेगा और परमेश्वर उसके जीवन का केंद्र और अधिक नहीं रह पाएंगे|
यीशु ने अमीरी के खतरों में गिरने के स्थान पर एक गरीब आदमी के रूप में जीवन जीने को प्राथमिकता दी थी| यहूदा जिसने हमारे प्रभु के साथ विश्वासघात किया था, एक खजांची था जो कि चोर था और जो अंत में स्वयं फासी पर चढ़ गया था|
पौलुस स्वयं अपने हाथों से लगनतापुर्वक कार्य करते थे| वह स्वयं को किसी और पर लादना नहीं चाहते थे| वह ना केवल स्वयं अपने लिए कमाते थे परन्तु अन्य लोगों की सहायता भी करते थे ताकि सुसमाचार का प्रचार कर सके|
१०.४ -- कार्य और बलिदान
बहुत से नए विश्वासियों को धन के प्रति अपने व्यवहार बदलना चाहिए और क्योंकि भीख मांगना या अन्य लोगों से सहायता की प्रतीक्षा करना सम्मानजनक बात नहीं है और ना ही निश्चित संतोषजनक आमदनी है| परमेश्वर की प्रार्थना में चौथी विनती है “हमारे दिनभर की रोटी आज हमें दे|” इसका अर्थ है कि हम हमारे स्वर्गीय पिता से विश्वासपूर्वक प्रार्थना करते है कि धन अर्जित करने का एक परिपूर्ण कार्य दे और उसे करने के लिए अच्छा स्वास्थ्य व सहनशीलता दे, भले ही उसे करने में हमारे सामने कितनी ही रुकावटें आये|
यदि हम सच्चाईपूर्वक परमेश्वर के मार्ग दर्शन के तले रहते हैं और कर्मठता पुर्वक कार्य करते हैं, हमें चोरी करने या अन्य लोगों पर निर्भर रहने की आवश्यकता ही नहीं है क्योंकि हम हमारे परिवारों को सहारा देने के लिए ही आशीषित नहीं होंगे, परंतु जरूरत मंद लोगों की सहायता भी कर सकते हैं, और इसी के साथ अपने प्रार्थनापूर्ण दानों के साथ परमेश्वर के कार्य में सहभागीदार भी बन पाएंगे| कुछ लेने की अपेक्षा कुछ देना अधिक आशीषित है (प्रेरित के कामों का वर्णन २०:३५, इफिसियों ४:२८, १ थिस्सलुनीकियों ४:११)|
एक बार यीशु एक अमिर जवान आदमी से मिले जो धार्मिक था और ईमानदारी पूर्वक दस आज्ञाओं का पालन करता था| प्रभुने उससे प्रेम किया था और उसको उसके गुप्त बन्धनों से मुक्त करना चाहते थे| तो उन्होंने उससे कहा था “यदि तू संपूर्ण बनना चाहता तो जा और जो कुछ तेरे पास है, उसे बेचकर धन गरीबों में बाँट दे ताकि स्वर्ग में तुझे धन मिल सके| फिर आ और मेरे पीछे हो ले!” (मत्ती १९:२१) वह जवान आदमी दुखी हो गया था, जब उसने यह सुना क्योंकि वह बहुत अमिर था| उसने यीशु को छोड़ दिया था| परमेश्वर के पुत्र की अपेक्षा धन उसके लिए अधिक महत्वपूर्ण था| समय समय पर हम लोगों ने अपने आपको परख लेना चाहिए कि यीशु का अनुकरण करना हमारी प्रथम प्राथमिकता है या हम हमारी धन संपत्ति या बैंक में हमारी धनराशी पर विश्वास करते हैं (मर्कुस १०:१९; लुका १८:१०)| यीशु धन में हमारे विश्वास से हमें मुक्त करना चाहते हैं| हमें उनके सामने झुकने की आवश्यकता है और त्याग हमें हमारे जीवन का मुख्य उदेश्य बनाना चाहिए| ठीक वैसे ही जैसे हमारे प्रभु ने अपने आप को बहुतों के लिए एक फिरौती के रूप में प्रदान किया था, हमें भी बहुत व्यवहारिक मार्गों द्वारा अन्य लोगो की आनंद पूर्वक मदद करनी चाहिए| परमेश्वर, धन में हमारे विश्वास से हमें छुड़ाना और उनमे हमारे विश्वास को मजबूत करना चाहते हैं|
प्राचीन कलीसिया के सदस्य एक दुसरे से आद्यात्मिक भाईचारे में प्रेम करते थे जब वो उत्सुकता पूर्वक प्रभु यीशु मसीह के द्वितीय आगमन की प्रतीक्षा कर रहे थे| उन्होंने अपनी जमीन जायदाद बेच दी थी और उस आमदनी पर एक साथ रहते थे| वे स्वेच्छापूर्वक एक दुसरे की प्रेम से सेवा करते थे| साम्यवाद के समान नहीं, किसी को कुछ बाँट ने के लिए बाध्य नहीं किया जाता था| फिरभी प्राचीन ईसाई कलीसिया इस समाज व्यवस्था को अधिक समय तक बनाये नहीं रख पाए| बहुत से ईसाई गरीब हो गए थे जैसा कि उन्हें आशा थी और मसीह उतनी जल्दी नहीं आए| जब वहां सूखा पड़ा वे अत्यधीक पीड़ित थे| पौलुस तब आज के ग्रीक और तुर्की की कलीसियाओं से उल्लेखनीय धनराशी के दानों को एकत्र करके यरूशलेम की मूल कलीसिया में लाये थे|
पौलुस ने कार्य को सम्मान दिलाया और उसके अर्थ को बदल दिया जब उन्होंने कहा था, “तुम जो कुछ करो अपने समूचे मन से करो| मानों तुम उसे लोगों के लिए नहीं बल्कि प्रभु के लिए कर रहे हो|” (कुलुस्सियों ३”२३)| तब से, प्रत्येक सम्मानजनक कार्य परमेश्वर की आराधना के समान माना जाता है| तो यदि एक माँ अपने बच्चों की देखभाल करती है या यदि एक मजदुर सड़क साफ करता है या यदि एक याजक रविवार के दिन प्रचार करता है, तब प्रत्येक अच्छा कार्य परमेश्वर की प्रत्यक्ष सेवा है| हमें अपने आपको परखना व पूछना चाहिए, “हम किस की सेवा कर रहे हैं? क्या हम स्वयं अपनी, अपने परवारों की, कर्मचारियों की, राज्य की सेवा करते हैं या हम परमेश्वर के लिए जीते हैं?” प्रार्थना और कार्य एक साथ ईसाई जीवन का शरीर है|
१०.५ -- इस्लाम और संपत्ति
इस्लाम सृष्टिकर्ता द्वारा निर्मित प्रत्येक वस्तु पर उन्ही के स्वामित्व की घोषणा करता है| यह व्यकिगत स्वामित्व की स्वीकृति देता है जो परमेश्वर ने हमें विश्वासपूर्वक सौंपा है| जो नियमित रूप से प्रार्थना करता है और इस्लामिक कानून के अनुसार जीवन जीता है उसके लिए संपति परमेश्वर का एक उपहार है| पूर्वीय को सबसे पहले तो एकाकी, स्वतंत्र नहीं रहना है परंतु उसकी प्रजाति के एक सदस्य के समान रहना है| पीढ़ियों से संपत्ति, तेल के कुओं और पानी के झरनों पर प्रजाति का स्वामित्व व नियंत्रण था| परिवार एक ऐसा सुरक्षित आश्रय है जहाँ बुजुर्ग, बीमार, अपंग और अपराधी भी शरण पाते है| वर्तमान काल तक मध्य पूर्वीय स्थानों में सामाजिक सुरक्षा या जीवन बीमा की कोई अधिक आवश्यकता नहीं थी, परंतु आधुनिक तकनिकी के बढ़ने के साथ शहरों में मजदूर अकेले हो गए थे और सहायता संघटनों की आवश्यकता होने लगी|
मस्जिदों और ईस्लामिक प्रतिष्ठानों को धार्मिक करों (ज़कात) और भिक्षादान (सदका) द्वारा धन मिल जाता है| यह धन संपत्ति सरकार की देखरेख के बिना नियंत्रित व खर्च की जाती है क्योंकि यह धार्मिक विनियमनों के आधार पर प्रस्तावित की जाती है ऐसे जैसे वे मुस्लिम लोगों को स्वर्ग में जाने का मार्ग तैयार कर रहे हो| यदि पृथ्वी पर कोई एक मस्जिद निर्माण करता है, वह स्वर्ग में एक किला प्राप्त करने की आशा करेगा|
जब इस्लाम ने युद्ध में नष्ट किये मूल्यवान वस्तुओं को मुस्लिम योद्धाओं में सबसे पहले बाँटना आरंभ किया था जोकि उन लोगो को जो प्रत्येक में एक आत्मा होती है में विश्वास करते थे, और जो इस्लाम को स्वीकार करने का मन नहीं, बना पाए थे, को जीतने का एक भरोसेमंद मार्ग था| मुहम्मद जानबूझकर इस तरीके को, शत्रुओं के साथ भी अपनाते थे, “इस्लाम के लिए उनके हृदयों का उपयोग करने के लायक बनाने के लिए”: यदि एक नास्तिक इस्लाम को स्वीकार नहीं करता, तो उसकी या तो हत्या कर दी जाती थी या उसको दास बनाया जाता था| कुरान के और ईस्लामिक कानून के अनुसार दास मुस्लिमों की संपत्ति थे, और विवाह योग्य दास लड़कियां उनके मालिकों की सेवा के लिए थी, और उनके अभिभावकों को इसके लिए सहमत होना पड़ता था| इस्लामिक दुनिया में दासों का व्यापार एक लंबे समय तक फलाफूला था| अमेरिका में दास व्यापार का अंत करने के लिए एक नागरिक युद्ध आरंभ हुआ था|
१०.६ -- शरिया में चोरों के लिए अन्यन्त कठोर दण्ड
चोरों को क्रूर दण्ड देना इस्लाम का कर्तव्य है: यदि चोर पहली बार एक निश्चित धन से अधिक चोरी करते हुए पकड़ा जाता है उसका दाहिना हाथ काट दिया जाता है और दूसरी बार उसका बायाँ पैर अलग कर दिया जाता है| इससे इस्लामिक देशों में कुछ सीमा तक चोरी की मात्रा कम हो गई थी| लेकिन कानून बनाये रखने के लिए भय ही एक मुख्य उद्देश्य होते हुए भी, ईरान, सूडान और अन्य इस्लामिक देशों में चोरी की वारदातें अब तक बहुधा होती रही है जहाँ कभी कभी हाथों और पैरों को सार्वजानिक रूप से काट दिया जाता है| खोमेनी ने एक आधिकारिक आदेश जारी किया था की चोर के हाथ भूल की दवा दिए बिना काट दिए जाएँ| सूडान में चार वर्षों के लिए इस्लामिक कानून रोक दिया गया था| उस समय एक संस्था को सौ हाथ कटे हुए लोग मिले जो कानून द्वारा अपंग बनाये गए थे| वे सरकार से उनका हर्जाना और पेशन की मांग कर रहे थे, क्योंकि उनके हाथ एक कानून के अंतर्गत काटे गए थे जोकि अब लागु नहीं था| इस दल में दो दर्जन लोग और शामिल हो गए थे जिनके बाएं पैर कट चुके थे क्योंकि उन्होंने दुबारा चोरी की थी| “सूडान अब” पत्रिका में ऐसे पुरुषों का एक चित्र था जो अपने अपने निर्दयतापुर्वक कटे हाथों को डंडे के समान पकडे हुए थे|
शरिया के अनुसार कठोर दण्ड चोरों के व्यवहारों को बदल या अच्छा नहीं बना सकते, परंतु वास्तव में वे उन्हें कार्य करने में अक्षम और हमेशा के लिए लोगों के सामने लज्जित दर्शाते हैं| इस बारे में सोचे, यदि दुनिया के सभी देशों में प्रत्येक उस व्यक्ति का जिसने कुछ बहुमूल्य चोरी की हो, का दाहिना हाथ कट गया होता, तो क्या हुआ होता| कितने लोग दो अच्छे हाथों वाले बचे हुए होते? शरिया आज के युग में लागु नहीं है|
१०.७ -- कैसे यीशु और उनके शिष्यों ने चोरी करने को निरुत्साहित किया था?
यीशु ने चोरी न करने के लिए एक उत्तम मार्ग हमें उपलब्ध कराया है| उन्होंने चोरी के लिए राज्यों द्वारा दिए जाने वाले दण्डो का अंत नहीं किया था| इसके स्थान पर, उन्होंने अनंत दण्डो को स्वयं झेला ताकि वे प्रत्येक व्यक्ति जिसने चोरी की है, का प्रायश्चित कर सके| उनकी पीड़ा और बलिदान के लिए हमें इतने आभारी होना चाहिए कि हम किसी भी ऐसी वस्तु को जो हमारी न हो, हाथ न लगायें| सत्य की आत्मा ने हमें चोरी की आत्मा से मुक्त किया है| उन्होंने हमारे नवीनीकरण कियोगए हृदयों को परमेश्वर हमारे पिता में विश्वास करने की इतनी शक्ति दी है कि हम प्रभु की प्रार्थना में प्रार्थना करते हैं| हमने अपने आपको चिंताओं में डूबा देना नहीं चाहिए क्योंकि हम आश्वस्त है कि हमारे स्वर्गीय पिता हमारी परवाह करते हैं और कभी हमारे पास से नहीं जाते| तो निम्नलिखित वचन मसीह के अनुयायियों पर लागु होते हैं “जो चोरी करता आ रहा है, वह आगे चोरी न करे| बल्कि उसे काम करना चाहिए, स्वयं अपने हाथों से कोई उपयोगी काम| ताकि उसके पास, जिसे आवश्यकता है, उसके साथ बांटने को कुछ हो सके|” (इफिसियों ४:२८)|
यीशु ने अपने अनुयायियों के लिए एक नए ह्रदय का प्रबंध कर दिया था जिनके अर्थपूर्ण जीवन में धन और अधिकारों का स्थान नहीं है परंतु उनका जीवन आद्यात्मिक है जो प्रेम और कृतज्ञता से मुक्त किया है| वे हमें सिखाते हैं कि प्रत्येक अमिर व्यक्ति को गंभीर प्रलोभनों का सामना करना पड़ता है जो उस पर नियंत्रण करने का प्रयास करते हैं| तो हमें हमारे सभी खर्चों के बारे में फिर से सोचना चाहिए एवं एक एक पैसा जो हमने खर्च किया है का लेखा जोखा परमेश्वर और स्वयं अपने आपको देना चाहिए| जो कुछ भी उन्होंने हमें दिया है हम उसके प्रबंधक हैं|
एक ईसाई विश्वासी गरीब लोगो को प्रेम और करुणा के साथ देखता है और उनकी मदद करने की योजना बनाता है ताकि वे स्वयं अपने आप के लिए जिम्मेदार व्यक्ति के रूप में विकसित हो और लगनता एवं ईमानदारी पूर्वक कार्य करें| यह जरुरतमंद व्यक्ति स्वयं अपनी मदद कर सकें, हमें ऐसे कुछ सुझबुझ वाले मार्ग ढूंढने चाहिए, अन्यथा वे लोग कार्य करने में भी असमर्थ हो जाते है| कलीसिया के प्रत्येक सदस्य को इसमें हिस्सा लेने के लिए बुलाना चाहिए “क्योंकि वह जो जानता है कि कैसे अच्छा करना और पाप नहीं करना है|”
दण्ड के भय ने नहीं, परमेश्वर के लिए प्रेम के नियम ने प्रत्येक ईसाई व्यक्ति के जीवन में बाकि सभी नियमों को निरस्त कर दिया है| यह ईसा मसीह का क्रूस पर महान बलिदान है ना कि हमारे अच्छे कार्य जिनसे हमारे पाप सोख लिए गए| हमें यीशु का धन्यवाद करना चाहिए कि उन्होंने हमें सच्चाई पूर्वक, संतुष्टता पूर्वक और लगनता पूर्वक जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित किया| जमीन जायदाद या करों की मांग करने वाले लिखित कानून के स्थान पर, यीशु ने उन लोगो के जो उनके सिद्धांतों के अनुसार चलते है, के दिमागों और हृदयों में परिवर्तन कर दिया और जिसके कारण सभी युगो की संस्कृतियों में परिवर्तन होता है “तुम्हे मनुष्य के पुत्र जैसा ही होना चाहिए जो सेवा कराने नहीं, बल्कि सेवा करने और बहुतों के छुटकारे के लिए अपने प्राणों की फिरौती देने आया है|” (मत्ती २०:२८)