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यूहन्ना रचित सुसमाचार – ज्योती अंध्कार में चमकती है।
पवित्र शास्त्र में लिखे हुए यूहन्ना के सुसमाचार पर आधारित पाठ्यक्रम
दूसरा भाग – दिव्य ज्योती चमकती है (यूहन्ना 5:1–11:54)
क - यीशु की यरूशलेम में अन्तिम यात्रा (यूहन्ना 7:1 - 11:54) अन्धकार का ज्योती से अलग होना
1. झोपड़ियों के पर्व के समय पर यीशु का वचन (यूहन्ना 7:1 – 8:59)

ड) यीशु जगत की ज्योती (यूहन्ना 8:12-29)


यूहन्ना 8:25-27
“25 उन्होंने उससे कहा, “तू कौन है ?’ यीशु ने उनसे कहा, ‘वही हूँ जो प्रारम्भ से तुम से कहता आया हूँ | 26 तुम्हारे विषय में मुझे बहुत कुछ कहना और निर्णय करना है; परन्तु मेरा भेजने वाला सच्चा है, और जो मैं ने उससे सुना है वही जगत से कहता हूँ |’ 27 वे यह न समझे कि हम से पिता के विषय में कहता है |”

यीशु का अपनी दिव्यता पर आग्रहपूर्वक कायम रहने पर भी यहूदी यह पूछते रहे कि “आप कौन हैं? इस विषय में हमें कोई ऐसा संकेत दीजिये और इस स्तिथी को ऐसे स्पष्ट कीजिये जिसे हम समझ सकें |” तथापि आपने उनके पूछने से पहले ही उन्हें साफ शब्दों में अपने बारे में सब कुछ बता दिया था |

यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “मैं पहले से ही सत्य परमेश्वर हूँ, फिर भी तुम मेरा वचन ना समझ पाये | मेरी आत्मा ने तुम्हारे दिलों में पैर रखने की भी जगह नहीं पाई | मेरे नाम और आत्मगुण का अनावरण तुम्हारे किसी काम का नहीं है | मैं परमेश्वर का अवतारित वचन हूँ परन्तु ना तुम मुझे सुनते हो और ना समझते हो, क्योंकी तुम इस नीचे की दुनिया से हो, परमेश्वर की तरफ से नहीं हो | इस लिये तुम मेरी आत्मा को अनुमति ही नहीं देते ताकी वो तुम में एकाग्रता उत्पन्न करे | मेरे बार बार तुम से कहने पर भी कुछ लाभ ना हुआ क्योंकी तुम्हारे दिल कठोर हैं | इस लिये मेरा वचन तुम्हारा न्याय करेगा | फिर भी मैं तुम से प्रेम करता हूँ और अपने आप को तुम पर प्रगट करता हूँ | तुम में से केवल एक या दो मेरी महानता को जानने लगें क्योंकी मैं तुम्हारा उद्धार और नवीकरण करना चाहता हूँ | परमेश्वर झूट नहीं बोलता | वो सत्य है जैसे मैं सत्य हूँ | परन्तु वह सत्य तुम्हें नाश कर देगा क्योंकी तुम आत्मा को अपने दिल में उतरने से रोकते हो |” फिर भी यहूदी इस अनावरण के छिपे हुए अर्थ को समझ नहीं पाये, न ही पिता के साथ आपकी एकता का महत्व देख पाये | उन्होंने आप का वचन सुना परन्तु कुछ भी समझ ना पाये क्योंकी वे आप पर विश्वास ही नहीं करते थे | आप पर साधारण विश्वास करने से हमारे मन पर आप की सभी सच्चाईयां प्रगट हो जाती हैं |

यूहन्ना 8:28-29
“28 तब यीशु ने कहा, ‘जब तुम मनुष्य के पुत्र को ऊँचे पर चाढ़ाओगे, तो जानोगे कि मैं वही हूँ, मैं अपने आप से कुछ नहीं करता परन्तु जैसे मेरे पिता ने मुझे सिखाया वैसे ही ये बातें कहता हूँ | 29 मेरा भेजने वाला मेरे साथ है, उसने मुझे अकेला नहीं छोड़ा क्योंकि मैं सर्वदा वही काम करता हूँ जिस से वह प्रसन्न होता है |”

यीशु जानते थे कि आप के शत्रु यहाँ तक के आप के चेले भी आपके विषय में सच्चाईयां ना जान सके क्योंकी पवित्र आत्मा अभी तक उंडेला नहीं गया था | परन्तु यीशु को विश्वास था कि आप को क्रूस पर चढ़ाये जाने से दुनिया के पाप मिट जायेंगे जब की आप का आस्मानी पिता के पास उठा लिये जाने से पवित्र आत्मा उंडेला जायेगा और उस समय यहूदियों और दूसरी जातियों पर आपके व्यक्तित्व का ज्ञान बिजली की तरह प्रभावित होगा | यीशु की दिव्यता पवित्र आत्मा के काम के बिना प्रगट नहीं हो सकती | तर्कशास्त्र के अनुसार वादविवाद करने से कोई लाभ नहीं होगा | केवल पुनरजन्म स्पष्ट विश्वास उत्पन्न करता है, ठीक उसी तरह जैसे मसीह की कुलीनता में ठोस विश्वास मनुष्य को दोबारह जन्म देता है |

मसीह ने यह नहीं कहा कि मैं स्वतंत्र और परिपूर्ण दिव्य व्यक्ती हूँ, परन्तु साथ ही साथ आपने यह घोषणा की कि आप की पिता के साथ एकता अत्यन्त महत्वपूर्ण है और आप अपने पिता के बिना कुछ भी नहीं कर सकते बल्की पिता आप में होकर काम करता है | आपने अपने आपको “परमेश्वर का प्रेरित” स्वीकार करके अपनी विनम्रता को प्रगट किया यदपि उसी वाक्य में आप ने अपने आप को “इतिहास का प्रभु” कह कर भी प्रगट किया है |

हमारा पिता सहज व्यक्ती नहीं है बल्की जैसा पवित्र आत्मा बताता है, साधारण व्यक्ती है | यूहन्ना के वर्णन किये हुए इन वैभवशाली शब्दों में यीशु ने त्रिय एकता की आश्चर्यजनक तेजस्वी सच्चाई को स्पष्ट किया है | फिर आपने कहा, “पिता हमेशा मेरे साथ रहा है और अब भी है, और मुझे एक पल के लिये भी नहीं छोड़ा | पुत्र ने भी अपने आस्मानी पिता को नहीं छोड़ा या उसके विरुध विद्रोह नहीं किया बल्की उसकी इच्छा के अनुसार आज्ञाकारी बना रहा | आप अपने पिता की इच्छा के अधीन आस्मान से आये और मनुष्य बने | आप का यह बयान कि, “मैं हमेशा वही करता हूँ जिस से मेरा पिता प्रसन्न होता है,” प्रशंसा के योग्य है | केवल पुत्र ही ऐसे शब्द कह सकता है जो हमेशा पवित्र आत्मा की परिपूर्णता में अपने पिता से सहमत रहता है | यीशु ने हमेशा व्यवस्था का पालन किया | इस से भी बढ़ कर यह कि आप स्वंय नये नियम की परिपूर्ण व्यवस्था हैं | फिर भी यहूदी आप को धर्मद्रोही कह कर व्यवस्था के विरोधी और लोगों को मार्ग से भटकाने वाले ठहराते थे | जब की केवल आप ही व्यवस्था का पालन करते रहे |

यीशु ने अपने विषय में जो घोषणायें की, क्या उनमें तुम्हें पवित्र आत्मा की आवाज़ सुनाई दी ? क्या तुम को आपकी महानता, नम्रता, स्वतंत्रता और आपका अपने पिता के समर्पण करने का अनुभव हुआ है ? इस तरह आप तुम को तुरन्त समर्पण और स्वतंत्रता से प्रेम की सहभागिता में आकर्षित करना चाहते हैं | आप अपनी उपस्थिती से तुम्हारा मुक्ती और सेवा के लिये मार्गदर्शन करेंगे | आप तुम्हारे अध्यापक होंगे और तुम आप के बगैर कुछ भी

नहीं कर सकोगे और हमेशा ऐसे काम करोगे जिन से यीशु प्रसन्न हों |

प्रार्थना: ऐ प्रभु यीशु, मैं अपनी ज़िद, छल और अपराध के कारण लज्जित हूँ | मेरे पापों को क्षमा कीजिये | मेरा पवित्रीकरण कीजिये ताकी मैं आपकी पवित्र आत्मा के निर्देशन पर चल; सकूँ | मेरे मार्गदर्शक और अध्यापक बन जाईये और मेरे दिल और दिमाग को अनन्त प्रेम के लिये खोल दीजिये |

प्रश्न:

61. यीशु ने पवित्र त्रिय मे अपनी प्रतिबद्धता की कैसे घोषणा की ?

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