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पत्रक - वितरण के लिये लघु बायबलसंबंधी सन्देश

पत्रक 02 -- परमेश्वर मुझ अपराधी के प्रति दयावान बने रहे


एक अंधे शिक्षक जब कुछ परिवारों से मिलने उनके घरों को जाते, उनको ब्रेललिपि का उपयोग करके सुसमाचार के चुने हुए वचनों के शब्दों को अपनी उँगलियों से अलग अलग करके पढते थे| उनके सुननेवाले पढ़ने की उनकी इस दक्षता पर अचंभित थे| लोग अपनी आखों से इधर उधर चलती हुई उनकी उँगलियों को जो शब्दों को ढूंढती थी, का अनुसरण करते हुए उनके त्रुटिहीन भाषण को सुनते थे| इस अंधे शिक्षक ने, अपने देश के एक प्रमुख मंदिर से एक प्रभावशाली दृश्य को चुना और पढ़ा:

“मंदिर में दो व्यक्ति प्रार्थना करने गये एक फरीसी था और दूसरा कर वसूलने वाला| वह फरीसी अलग खड़ा होकर यह प्रार्थना करने लगा, ‘हे परमेश्वर, मै तेरा धन्यवाद करता हूँ कि मै दूसरे लोगों जैसा डाकू, ठग और व्यभिचारी नहीं हूँ और न ही इस कर वसूलने वाले जैसा हूँ| मै सप्ताह में दो बार उपवास रखता हूँ और अपनी समुचि आय का दसवां भाग दान देता हूँ|’ किन्तु वह कर वसूलने वाला जो दूर खड़ा था और यहाँ तक कि स्वर्ग की ओर अपनी आँखें तक नहीं उठा रहा था, अपनी छाती पिटते हुए बोला, ‘हे परमेश्वर, मुझ पापी पर दया कर|’” (लुका 18:10-13)

शिक्षक ने पढ़ना बंद किया और अपने आसपास के लोगों को संबोधित किया, “प्रत्येक व्यक्ति सोचे और अपने आप से पूछे, मै कौन हूँ?” मुझे किस श्रेणी में होना चाहिए? अपने आप को धार्मिक व्यक्ति घोषित करने वाले आदमी के साथ, या प्रायश्चित करने वाले चोर के साथ? क्या वह धार्मिक आदमी हमारे राज्य का उदाहरण नहीं है जो यह दावा करता है कि उसने कोई व्यभिचार नहीं किया था, ना चोरी की थी और ना ही उसने किसी के साथ कुछ गलत किया था, परंतु कठोरतापूर्वक अपने धार्मिक नियमों का पालन किया था, एक सप्ताह में दो बार उपवास किया, भिक्षा दी और जरूरतमंदों की सहायता की थी?

उस समय उस कमरे में एक गहरी शांती थी जिसे एक वृद्ध मनुष्य तोडा व उत्तर दिया था, “परमेश्वर की प्रशंसा हो कि मनुष्य जब चाहे अपनी गंभीर प्रार्थनाओं और जरूरतमंदों एवं दीनों की सहायता करने के द्वारा, परमेश्वर तक पहुँच सकता है| परन्तु इस दावेदार विश्वासी ने अनेक आश्चर्यजनक कार्यों के लिए परमेश्वर की प्रशंसा करने के स्थान पर, अपने आपको ऊंचा और अपने प्रयत्नों की महिमा की थी| ऐसी पवित्रता बिना इस को स्वीकार किये कि परमेश्वर स्वार्थहीन है|

अंधे शिक्षक ने वृद्ध मनुष्य की सलाह की पुष्टि की और आगे कहा था “घमंड, जो स्वयं अपने आपकी धार्मिकता का दावा करता है, घमंडी व्यक्तियों के हृदयों एवं दिमागों को कठोर करता है| वे परमेश्वर के सत्य को पहचान नहीं पाते ना ही वे अपनी स्थिति को स्वीकार कर पाते हैं, यद्यपि वे दैवीय मूल पाठ का स्मरण करते हैं| इससे दिखाई देता है कि धार्मिक पवित्रता बिना परमेश्वर के भय के गलत और प्रेम से रिक्त है| वह अपने आपकी प्रशंसा, महिमा करते है अक्खड और विरोधी बनते हैं| उन्होंने स्वयं अपने आपसे प्रार्थना करनी चाहिए, क्या हमारी प्रार्थनाएं परमेश्वर को या अपने आप को सम्मानित करती है? क्या हम परमेश्वर के बारे में सोचते हैं और उनकी प्रशंसा करते हैं, या हम अपनी जाति को गौरन्वित करते है?

दर्शकों में से एक जवान ने अंधे आदमी से पूछा, “हम प्रार्थना क्यों करते हैं? क्या प्रार्थना करने से कोई लाभ होता है? हमारे शब्दों को कौन सुनता है?” अंधे शिक्षक ने सौम्यतापूर्वक उत्तर दिया था “क्या वह व्यक्ति जिसकी आँखे देख सकने के योग्य हैं क्षितिज से आगे देख सकता है? वह विश्वास करता है कि दुनिया गोल है बिना यह देखे कि क्षितिज के बाहर क्या है; यही होता है जब हम ‘कैरो’ से ‘पेरिस’ दुरध्वनी द्वारा बात करते है, या ‘कसाबलंका’ से ‘टोकियो’ बात करते हैं, हम विश्वास करते हैं कि जिससे हमने संपर्क किया है, हम उसकी आवाज सुन रहे हैं, जबकि हम उसे देख नहीं सकते| इससे कितना अधिक एक विश्वासी विश्वास करता है कि सर्वशक्तिमान उसकी प्रार्थना को सुनते है, कि वह उसकी विन्तियों और धन्यवाद जो एक विनम्र और प्रेम करने वाले हृदय से उछल कर आता है, का उत्तर देते हैं|”

अंधा व्यक्ति अपने मनन में लगातार आगे बढ़ रहे थे| अब वह चोर की प्रार्थना पर आये और कहा, “परमेश्वर की प्रशंसा हो जिन्होंने उस चोर को उसके अपराध का परित्याग करने और परमेश्वर की ओर मुड़ने के लिए, एवं अपने अन्तः कारण की आवाज सुनने एवं अत्यंत दयावान परमेश्वर से प्रार्थना करने के लिए उसका मार्गदर्शन किया| उसकी प्रार्थना संकेत देती है कि वह परमेश्वर के अस्तित्व, सत्ता शक्ति में विश्वास करता है, क्यों कि वह उन्हें “परमेश्वर” बुलाता था, यह जानते हुए कि परमेश्वर उनकी शक्ति, वचन, और आत्मा में एक है| प्रायश्चित करने वाले इस चोर को महान दयावान परमेश्वर की पवित्रता का ज्ञान था, वह एक ओर उन की दया पर वह विश्वास करता है और दूसरी ओर अपने अपराधों पर उनके न्याय से डरता है| वह परमेश्वर की दयालुता और उनके न्याय के बीच में झूल रहा था| उसे डर था कि परमेश्वर उसे न्याय के आधार पर दण्ड देंगे और उसे नरक में फेंक देंगे- परंतु उसी समय वह पवित्र परमेश्वर की दया पर विश्वास में अपने आप को जकड लेता था| वह विश्वास करता था कि परमेश्वर की दयावानता उनके न्याय से विशाल है, और यह कि सर्वशक्तिमान, अपने प्रेम से उसके अपराधों की क्षतिपूर्ति करेंगे| अतः उसने अपने आपको दयावान न्यायधीश से क्षमा मांगते हुए, उनके हाथों में अपने आपको सौंप दिया था| इसीलिए वह रोकर चिल्लाया था | ‘परमेश्वर मुझ पर एक अपराधी पर दया करे !’”

अंधे शिक्षक प्रायश्चित के अर्थ की गहराई में चले गये और कहा, “अपराधी ने स्वीकार किया था कि उसने ना केवल अपराध किया था, परंतु यह भी कि वह अस्वच्छ, भ्रष्ट और परमेश्वर द्वारा पूर्णरूप से ठुकराया गया था| पवित्र परमेश्वर के सामने, उसे अपनी वास्तविकता दिखाई दी थी| परमेश्वर की आँखों ने उस में कुछ भी अच्छा नहीं पाया था, वह एक घृणित अपराधी बन गया था|

शिक्षक निरंतर कहते रहे थे, “अधिकांश लोग अपनी स्वयं की स्थिति पर अपने आपको धोखा देते हैं और मान लेते हैं कि वे आदरणीय और सही हैं| परंतु वह जो परमेश्वर की रोशनी में खड़ा होता है तुंरत देखता है कि केवल परमेश्वर के सिवाय यहाँ कोई भी धार्मिक नहीं है| वह पश्चाताप करने वाला चोर आशिषित था क्योंकि वह समझदार बन गया था वह अपनी स्वयं की स्थिति को पहचान गया था, अपने सृष्टिकर्ता की ओर मुड गया था, उनकी दया की भीख चाहता था, परमेश्वर के सामने अपने भ्रष्टाचार को स्वीकार कर के परमेश्वर की दया और करुणा को प्राप्त कर चुका था| परमेश्वर, प्रत्येक व्यक्ति को जो प्रायश्चित करता है, जिसकी इच्छा अपने हृदय का परिवर्तन करने और जिसकी आशा अपने व्यवहार को बदलने की हो जिसकी इच्छा अपने अन्तः करण को स्वच्छ करने की हो, को नहीं ठुकराते हैं| परमेश्वर प्रत्येक व्यक्ति को जो प्रायश्चित करता है, अपना उद्धार दान देते हैं और न्यायीकरण के साथ दैवीय क्षतिपूति प्रदान करते है|

दयालु और अंधे शिक्षक ने दर्शकों से पूछा, “क्या तुम जानना चाहोगे कि यीशु, मरियम के पुत्र द्वारा दोषी धार्मिक मनुष्य और पश्चाताप करने वाले चोर के सबंध में अन्तिम निर्णय क्या दिया गया? उन्होंने सुसमाचार खोला और उनकी उँगलियां उभरेहुए बिंदुओं पर चलने लगी और उन्होंने यीशु का निर्णय पढा,

“मै तुम्हे बताता हूँ, यही मनुष्य नेक ठहराया जाकर अपने घर लौटा, न कि वह दूसरा| क्योंकि हर वह व्यक्ति जो अपने आप को बड़ा समझेगा, उसे छोटा बना दिया जायेगा और जो अपने आप को दीन मानेगा, उसे बड़ा बना दिया जायेगा|” (लूका 18:14)

प्रिय पाठकों,
एक बार फिर अपने आप को परखिये| क्या तुम अपनी पवित्रता अपने अच्छे कार्यों से स्वयं संतुष्ट हो, और अपने व्यवहार से खुश हो? या तुम परमेश्वर के सामने विनम्र हो जो कुछ भी अपने जीवन में तुमने किया है उससे शर्मिंदा हो? इस बात के बारे में निश्चिन्त रहो कि जो कोई भी घमंड करता है और अपने आपको महान समझता है, अवश्य ही गिरता है| परन्तु जो पश्चाताप करता है, अपने प्रभु की ओर मुड़ जाता है, और उनके सामने अपने अपराध को स्वीकार करता है, उसे प्रभु की क्षतिपूर्ति और अनंत दया से न्यायीकरण और दया प्राप्त होती है|

प्रायश्चित के लिए एक प्रार्थना
हमारे साथ दाऊद की प्रार्थना करे, दाऊद एक उपदेशक, जिन्होंने अपने अपराध को स्वीकार किया था एक महिला के साथ व्यभिचार करने और उसके पति को मार देने का आदेश देने के बाद, जब परमेश्वर ने उनके शर्मनाक कार्य के लिए उनका न्याय किया था|

“हे परमेश्वर, अपनी विशाल प्रेमपूर्ण अपनी करुणा से मुझ पर दया कर| मेरे सभी पापों को तु मिटा दे| हे परमेश्वर, मेरे अपराध मुझसे दूर कर| मेरे पाप धो डाल, और फिर से तु मुझको स्वच्छ बना दे| मै जानता हूँ, जो पाप मैंने किये हैं| मैं अपने पापों को सदा अपने सामने देखता हूँ| हे परमेश्वर, मैंने वही काम किये जिनको तुने बुरा कहा| तु वही है, जिसके विरुद्ध मैंने पाप किये| मैं स्वीकार करता हूँ इन बातों को, ताकि लोग जान जाये कि मैं पापी हूँ और तु न्यायपूर्ण है, तथा तेरे निर्णय निष्पक्ष होते हैं| मैं पाप से जन्मा, मेरी माता ने मुझको पाप से गर्भ में धारण किया| हे परमेश्वर, तु चाहता है, हम विश्वासी बने| और मै निर्भय हो जाऊं| इसलिए तु मुझको सच्चे विवेक से रहस्यों की शिक्षा दे| तु मुझे विधि विधान के साथ, जूफा के पौधे का प्रयोग कर के पवित्र कर| तब तक मुझे तु धो, जब तक मैं हिम से अधिक उज्जवल न हो जाऊं| मुझे प्रसन्न बना दे| बता दे मुझे कि कैसे प्रसन्न बनूं? मेरी वे हडिडयां जो तुने तोड़ी, फिर आनंद से भर जायें| मेरे पापों को मत देख| उन सबको धो डाल| परमेश्वर, तु मेरा मन पवित्र कर दे| मेरी आत्मा को फिर सुदृढ़ कर दे| अपनी पवित्र आत्मा को मुझसे मत दूर हटा, और मुझसे मत छीन| वह उल्लास जो तुझसे आता है, मुझमे भर जायें| मेरा चित अडिग और तत्पर कर सुरक्षित होने को और तेरा आदेश मानने को| मैं पापियों को तेरी जीवन विधी सिखाऊंगा, जिससे वे लौट कर तेरे पास आयेंगे| हे परमेश्वर, तु मुझे हत्या का दोषी कभी मत बनने दें| मेरे परमेश्वर, मेरे उद्धारकर्ता, मुझे गाने दे कि तु कितना उत्तम है? हे मेरे स्वामी, मुझे मेरा मुँह खोलने दे कि मैं तेरे प्रशंसा का गीत गाऊं| जो बलियां तुझे नहीं भाती सो मुझे चढानी नहीं है| वे बलियां तुझे वांछित तक नहीं हैं | हे परमेश्वर, मेरी टूटी आत्मा ही तेरे लिए मेरी बलि है| हे परमेश्वर, तू एक कुचले और टूटे हृदय से कभी मुख नहीं मोड़ेगा| “ (भजन संहिता 51:1-17)


परमेश्वर के वचन का अध्ययन

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