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यूहन्ना रचित सुसमाचार – ज्योती अंध्कार में चमकती है।
पवित्र शास्त्र में लिखे हुए यूहन्ना के सुसमाचार पर आधारित पाठ्यक्रम
तीसरा भाग - प्रेरितों के दल में ज्योती चमकती है (यूहन्ना 11:55 - 17:26)
ब - प्रभु भोज के बाद होने वाली घटनायें (यूहन्ना 13:1-38)

1. मसीह का अपने चेलों के पांव धोना (यूहन्ना 13:1-17)


यूहन्ना 13:1-5
“फसह के पर्व से पहले, जब यीशु ने जान लिया कि मेरी वह घड़ी आ पहुंची है कि जगत छोड़कर पिता के पास जाऊँ, तो अपने लोगों से जो जगत में थे जैसा प्रेम वह रखता था, अन्त तक वैसा ही प्रेम रखता रहा | 2 जब शैतान शमौन के पुत्र यहूदा इस्करियोती के मन में यह डाल चुका था कि उसे पकड़वाए, तो भोजन के समय 3 यीशु ने, यह जान कर कि पिता ने सब कुछ मेरे हाथ में कर दिया है और मैं परमेश्वर के पास से आया हूँ और परमेश्वर के पास जाता हूँ, 4 भोजन पर से उठ कर अपने ऊपरी कपडे उतार दिये, और अंगोछा लेकर अपनी कमर बाँधी | 5 तब बरतन में पानी भरकर चेलों के पाँव धोने और जिस अँगोछे से उसकी कमर बन्धी थी उसी से पोंछने लगा |”

इस अध्याय से यूहन्ना अपने सुसमाचार के नये चरन और विषय की ओर बढ़ते हैं | इस से पहले यीशु साधारण लोगों को बुलाते थे परन्तु दुख की बात यह है कि यह वचन कि, “ज्योती अन्धकार में चमकती है और अन्धकार उसे समझता नहीं,” उन पर सिद्ध हुआ | तो क्या यीशु इस में असफल रहे? जी नहीं, यधपि लोगों में समूहता: आप को स्वीकार नहीं किया परन्तु प्रभु ने कुछ लोगों को चुन लिया जो तैयार थे और उन्हों ने पश्चताप किया था और उन्हें चेलों के झुंड में मिला लिया | इन अध्यायों में हम पढ़ेंगे कि यीशु ने इन चुने हुए चेलों से कैसे अभिवादन किया, मानो दूल्हा अपनी दुल्हन से बात करता है | आप उनके हैं जैसे वे आपके हैं | परमेश्वर का प्रेम इन भाषणों का मुख्य उद्देश बन जाता है | यह प्रेम केवल स्वार्थी अनुभव नहीं है, बल्कि यह सेवा करने के लिये बुलावा है | पवित्र शास्त्र में प्रेम का अर्थ नम्रता से उन लोगों की सेवा करना है जो ऐसी सेवा के पात्र नहीं होते | इन उपदेशों में यीशु अपने उत्तम आंतरिक गुणों को अपने चेलों को बताते हैं जो आपके प्रेम को एक सेवक के रूप में प्रगट करता है और जो आपके जीवन, मृत्यु और जी उठने को दर्शाता है |

यीशु ने यह बताया कि अगले फसह के पर्व के पहले आप की मृत्यु होगी | आप अपने पिता के पास जायेंगे | क्या तुम्हारा भी यही मार्ग है ? आप दुनिया में थे परन्तु आप की दृष्टि हमेशा अपने पिता पर लगी रहती थी | घ्रणित लोगों को सहन करने के लिये आप को पिता से शक्ती, अगुवाई और आनन्द मिलता रहा | पिता की संगती में आपने शैतान को एक चेले के दिल में दुष्ट विचार डालते हुए देखा | इस व्यक्ती ने धीरे धीरे अपने आप को लालच, घमंड और घ्रणा में डाल दिया | फिर भी यीशु ने इस विश्वासघाती से घ्रणा नहीं की परन्तु अन्त तक दिव्य प्रेम से उस से प्रेम करते रहे |

इसे घातक घटना मान कर यीशु ने अपने विश्वासघाती से हार नहीं मानी | ना यहूदा, कैफास, हेरोद, पिलातुस या यहूदी नेता और जनता यह निर्णय करती कि आगे क्या होगा, परन्तु आपके अपमान और समर्पण के कारण पिता ने सारी आत्माओं और मानव जाति को आपके अधीन कर दिया | आप ने पिता का मेमना बन कर मरने का संकल्प कर लिया और होने वाली घटनाओं का समय निश्चित कर लिया | इन सारी घटनाओं के तूफान के बीच आप ने अपनी आँख अपने स्त्रोत और इरादे से नहीं हटाई | यीशु प्रभु हैं जो इतिहास के मार्ग को बदल देते हैं|

यीशु पिता के पास अकेले नहीं जाना चाहते थे, परन्तु अपने चेलों को परमेश्वर की उत्तम और सुखद संगती में खींचना चाहते थे | आप ने उन्हें नम्रता सिखाई जो व्यवहारिक तौर पर दिव्य प्रेम का प्रतीक है | इस प्रकार आप सेवक बने | आप ने एक बरतन में पानी लिया और झुक कर चेलों के पांव धोये और उन्हें पोंछा | आप ने अपने आप को सब से नीचा बनाया ताकी उनमें के साधारण लोग भी सीखें की परमेश्वर मानवता की सहायता करता है | आप ने असाधारण अधिकार ना दिखाया परन्तु झुक कर साफ किया और उन्हें अपनी नम्रता के रूप में बदल दिया |

यीशु हमारे वैभवशाली उदाहरण हैं | हम कब आपके सामने झुकेंगे और आप की अराधना करेंगे ? हम कब अपने मनों को बदलेंगे और अपनी पीठ को झुकायेंगे जो सीधी खड़ी रहती है और झुकती नहीं | ऐ भाई, जब तक तुम्हारा दिल नहीं टूटता और पराजित नहीं होता और तुम अपने भाई की सेवा नहीं करते, अपने शत्रुओं से प्रेम नहीं करते, घायल के घाव पर पट्टी नहीं बांधते तब तक तुम सच्चे मसीही नहीं कहे जा सकते | तुम सेवक हो या स्वामी ? याद रखो कि यीशु सारी मानवता के सेवक हैं और तुम्हारी सेवा करने के लिये आप झुकते हैं | क्या तुम आप की सेवा स्वीकार करोगे ? या तुम घमंड़ी हो और सोचते हो कि तुम अच्छे हो और आप को परमेश्वर की सेवा की आवश्यकता नहीं है ?

यूहन्ना 13:6-11
“6 जब वह शमौन पतरस के पास आया, तब पतरस ने उससे कहा, ‘हे प्रभु, क्या तू मेरे पाँव धोता है?’ 7 यीशु ने उसको उत्तर दिया, ‘जो मैं करता हूँ, तू उसे अभी नहीं जानता, परन्तु इसके बाद समझेगा |’ 8 पतरस ने उससे कहा, ‘तू मेरे पांव कभी न धोने पाएगा!’ यह सुनकर यीशु ने उससे कहा, ‘यदि मैं तुझे न धौऊँ, तो मेरे साथ तेरा कुछ भी साझा नहीं |’ 9 शमौन पतरस ने उससे कहा, ‘हे प्रभु, तो मेरे पाँव ही नहीं, वरन हाथ और सिर भी धो दे |’ 10 यीशु ने उससे कहा, ‘जो नहा चुका है उसे पाँव के सिवाय और कुछ धोने की आवयश्कता नहीं, परन्तु वह बिलकुल शुद्ध है; और तुम शुद्ध हो, परन्तु सब के सब नहीं |’ 11 वह तो अपने पकड़वानेवाले को जानता था इसी लिये उसने कहा, ‘तुम सब के सब शुद्ध नहीं |’”

चेले अपने स्वामी के द्वारा उनके पाँव धोये जाने पर संकोच में पड़ गये | अगर उनको मालुम होता कि प्रभु भोज के बाद आप क्या करने वाले हैं तो उन्हों ने तभी अपने पाँव स्वय: धो लिये होते | उनके प्रभु ने, उनके और परमेश्वर के बीच में नया समझोता ही नहीं किया था परन्तु इस नये समझौते का विषय और अर्थ भी दिखाया | यह व्यवहारिक सेवा और प्रेम करने से कम नहीं था |

पतरस चेलों में बहुत अहंकारी और उत्साही व्यक्ति था | वह नहीं चाहता था कि यीशु उसकी सेवा करें, इसलिये उस ने अपने प्रभु की आज्ञा को न मानते हुए प्रयत्न किया कि आप उस के पाँव न धोयें | तब यीशु ने अपने सब चेलों के पाँव धोने के रहस्य को समझाया जैसे आप हमें ही संबोधित कर के कह रहे हों, “बगैर पवित्रिकरण के परमेश्वर के राज्य में तुम्हारा कोई हिस्सा नहीं और पाप की क्षमा पाये बगैर, तुम मुझ में नहीं रह सकते |” आप के खून से हमेशा धोया जाना आवयश्क है और वह धुलाई हमेशा/सदा जारी रहती है | परमेश्वर अनुग्रह के द्वारा तुम्हारी रक्षा करता है और तुम्हें अपने पुत्र की संगती में रखता है |

तब पतरस ने ज्योती देखी, अपने हाथों को देखा जिन्हों ने बुरे काम किये थे और परमेश्वर की योजना को समझने में अपने दिमाग की धीमी गति का अनुभव किया | वह लज्जित हुआ और पूरे शरीर के धुलवाने के लिये निवेदन किया | यीशु ने उसे विश्वास दिलाया, “जो कोई पूर्ण विश्वास के आधार पर मेरे पास आता है वह पवित्र हो जाता है |” इस प्रकार हम यह जान जाते हैं कि हमें कोई विशेष सफाई की या पवित्रता की आवयश्कता नहीं है क्योंकी यीशु का खून हमारे सारे पापों को साफ कर देता है | आप के खून के द्वारा मिली हुई पापों की क्षमा से बढ़ कर उत्तम और कोई पवित्रता नहीं होती | जैसे चलने फिरने से हर दिन हमारे शारीर पर धूल जमा होती है उसी तरह हम लगातार प्रार्थना करते हैं, “हमारे अपराध क्षमा कर |” जैसे परमेश्वर की सन्तान को हर दिन केवल पाँव धोने की आवयश्कता होती है उसी तरह इस संसार की सन्तान को पूरे शरीर की सफाई की आव्यश्कता होती है |

यीशु ने अपने चेलों की ओर देखा और कहा, “तुम सब शुद्ध हो |” आप ने उन्हें परमेश्वर के साथ समझौता करने का निमंत्रण दिया | मेमने ने अपने चेलों के लिये जान दी ताकि वे दिव्य संगती में बने रहें | कोई भी मनुष्य अपने आप शुद्ध नहीं होता, परन्तु यीशु का खून हमें सब पापों से शुद्ध करता है |

दुख की बात यह है कि आप के सभी अनुयायी पवित्र नहीं थे, जैसे की स्थिति आज भी है | उन में से कुछ लोग इस शुद्धता के आधार पर दिखावे की सेवा करते हैं | वे इस तरह व्यवहार करते हैं जैसे उन्हें मसीह के खून में विश्वास है परन्तु वे पवित्र आत्मा से परिपूर्ण नहीं होते | शैतान की आत्मा उन्हें घ्रणा, इर्षा, घमंड और व्यभिचार की ओर उत्साहित करती है | इस प्रकार धर्मियों के बीच ऐसी आत्मा के लोग पाये जाते हैं जो धन के प्रेमी होते हैं | यीशु प्रतिदिन तुम्हारे पाँव धोना चाहते हैं और तुम को हर प्रकार के पाप से मुक्त करना और परमेश्वर की संगती के लिये पूरी तरह से शुद्ध करना चाहते हैं | अपने आप को जांचो | क्या तुम सेवक हो या स्वामी?

प्रार्थना: प्रभु यीशु, आप ने अपने आप को महिमा से वंचित कर के हम अशुद्ध लोगों के पास नीचे आये उसके लिये हम आप का धन्यवाद करते हैं |” आप ने झुक कर अपने चेलों के पाँव धोये और हमारे पापी दिलों को साफ किया | हम आप की अराधना करते हैं और बिनती करते हैं कि आप हमें हमारे घमंडी विचारों से मुक्ती दीजिये ताकि हम झुकें और आप के सेवक बनें | मेरी सहायता कीजिये ताकि मैं आप की सेवा करने के लिये सब से अल्पमत बन कर अपनी कलीसिया और परिवार में आप की सेवा के लिये तैयार रहूँ |

प्रश्न:

85. यीशु का अपने चेलों के पाँव धोने का क्या अर्थ है ?

यूहन्ना 13:12-17
“12 जब वह उनके पाँव धो चुका, और अपने कपड़े पहिनकर फिर बैठ गया, तो उनसे कहने लगा, ‘क्या तुम समझे कि मैं ने तुम्हारे साथ क्या किया? 13 तुम मुझे गुरु और प्रभु कहते हो, और ठीक ही कहते हो, क्योंकि मैं वही हूँ | 14 यदि मैं ने प्रभु और गुरु होकर तुम्हारे पाँव धोए, तो तुम्हें भी एक दूसरे के पाँव धोना चाहिए | 15 क्योंकि मैं ने तुम्हें नमूना दिखा दिया है कि जैसा में ने तुम्हारे साथ किया, तुम भी वैसा ही किया करो | 16 मैं तुम से सच सच कहता हूँ , दास अपने स्वामी से बड़ा नहीं, और न भेजा हुआ अपने भेजने वाले से | 17 तुम ये बातें जानते हो, और यदि उन पर चलो तो धन्य हो |”

यीशु ने अपनी बिदाई का प्रवचन केवल शब्दों से शुरू नहीं किया | अक्सर ऐसे शब्द बहुत कम उपयोगी होते हैं जब तक उन्हें कार्य में परिवर्तित ना किया जाये | आप ने अपने अनुयायियों से पूछा, “क्या तुम मेरे प्रतीकात्मक काम को समझ गये हो ? अपनी आँखें खोलो और देखो, क्योंकी मैं तुम्हारे अपनों के समान तुम्हारे साथ हूँ | मैं किसी ऊँचे सिंहासन पर नहीं बैठा हूँ ताकि तुम दास की तरह मेरे सामने झुको | नहीं! मैं ने अपने आप को महिमा से वंचित किया ताकि तुम में से एक बनूँ | उस से भी अधिक मैं ने अपने शिक्षक और स्वामी के स्थान को छोड़ दिया ताकि सेवक बनूँ | क्या अब तुम समझ गये हो कि दिव्य प्रेम को किस दिशा में जाना है ? घमंडी मनुष्य आत्म प्रशंसा करता है परन्तु जो व्यक्ति प्रेम करता है वह अपने आप को नम्र बनाता है और सब कुछ सह लेता है, अपना त्याग करता है और व्यवहारिक तौर से शरीर से सेवा करता है |” “तुम मेरे चेले बनना चाहते हो जैसे कि मैं तुम्हारा उधारण हूँ | मैं केवल बोलता नहीं, परन्तु जैसा सिखाता हूँ वैसा करता भी हूँ | मेरी तरफ देखो, मैं सेवक हूँ | अगर तुम मेरे पीछे आना चाहते हो तो झुको और दूसरों की सेवा करो | तुम में से जो पहला रहना चाहता है वह कमज़ोर रहेगा परन्तु जो शान्ती से दूसरों की सेवा करता है और दीन रहता है वह सच में महान है |”

“इस बात की कल्पना ना करो कि कलीसिया श्रेष्ठ सन्तों का संग्रह है | वे सब अभी सन्त बनने में लगे हैं | मैं ने उन सब को शुद्ध किया है और वे सब इस दृष्टिकोण से सन्त हैं | परन्तु प्रत्येक सदस्य को आत्मिक प्रगति के लिये धीरज और समय की आवयश्कता होती है | सभी गलती करते हैं और लड़खड़ा जाते हैं | यह मेरी आज्ञा है, एक दूसरे की गलती और पाप को क्षमा करो | एक दूसरे का न्याय ना करो, बल्कि सहायता करो | दूसरों का सिर ना धो परन्तु उनके पाँव धो | कोई भी एक दूसरे के ऊपर अधिकार ना जताये ,तुम सब भाई हो | अगर इस प्रकार का व्यवहार करोगे तो समझ जाओगे कि मैं ने पहले क्या स्पष्ट किया था | मैं सेवा करवाने नहीं परन्तु सेवा करने आया हूँ | मेरा जीवन सब के लिये सेवा, बलीदान और आत्मसमर्पण का है |”

“मैं तुम्हें दुनिया में प्रेम के प्रेरित के रूप में भेज रहा हूँ | भेजा हुआ उतना ही महान है जैसा भेजने वाला | तुम्हारा पहला कर्तव्य मेरे जैसे सेवक बनना है | अगर इसे तुम समझो तो मसीही धर्म के उद्देश और उसके संकेत शब्द को समझ जाओगे |”

“मेरा दूसरा सिधान्त: अगर तुम इसे जान लोगे और उसे करोगे तो तुम धन्य होंगे | मैं ने प्रेम को केवल शब्दों में नहीं बताया है बल्कि उसे करके दिखाया है | सेवा, परिश्रम और बलीदान है, केवल शब्द, प्रार्थना और सहानुभूती नहीं है | सेवा करने की अंतप्रेरणा विश्वासी के स्वभाव में होती है | इस केंद्र बिंदु से प्रेम के कई काम होते हैं | जो सेवा नहीं करता वह मुश्किल से विश्वासी हो सकता है | बगैर कर्म के गूंजने वाली प्रार्थना पाखंडी होती है | तुम्हारे अच्छे कामों के करण तुम ने उद्धार नहीं पाया, मेरा खून उद्धार देता है | परन्तु अगर तुम झुक कर दुखी और भटके हुए लोगों की लगातार सेवा करते रहोगे तो परमेश्वर की प्रसन्नता में परिपूर्ण हो जाओगे | परमेश्वर की प्रसन्नता, मसीह के सेवकों पर हमेशा छाई रहती है |

भाई, क्या तुम स्वामी या शिक्षक बनना चाहते हो ? यीशु को देखो, आप सब से उत्तम शिक्षक हैं परन्तु तुम्हारे सामने सेवक के रूप में खड़े हैं | क्या तुम आप की शिक्षा का प्रयोग करना चाहते हो ? तो आज से ही सेवा करना शुरू करो | प्रार्थना में निवेदन करो कि आप तुम से कैसे और किस की सेवा करवाना चाहते हैं | अगर तुम यह जानते हो और वैसा करते भी हो तो तुम धन्य हो |

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