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रोमियो – प्रभु हमारी धार्मिकता है|
पवित्र शास्त्र में लिखित रोमियों के नाम पौलुस प्रेरित की पत्री पर आधारित पाठ्यक्रम
भाग 2 - परमेश्वर की धार्मिकता याकूब की संतानों उनके अपने लोगों की कठोरता के बावजूद निश्चल है। (रोमियो 9:1 - 11:36)

2. चुनेहुए लोगों के आध्यात्मिक विशेषाधिकार (रोमियो 9:4-5)


रोमियो 9:4-5
4 वे इस्‍त्राएली हैं; और लेपालकपन का हक्क और महिमा और बचाएं और व्यवस्था और उपासना और प्रतिज्ञाएं उन्‍हीं की हैं। 5 पुरखे भी उन्‍हीं के हैं, और मसीह भी शरीर के भाव से उन्‍हीं में से हुआ, जो सब के ऊपर परम परमेश्वर युगानुयुग धन्य है। आमीन ।

पौलुस रोम में कलीसिया को उनके लोगों के आध्यात्मिक अधिकारों और विशेषाधिकारों के बारे में स्मरण कराना चाहते थे| आपने उसी समय स्वीकार किया था कि वे विशेषाधिकार, आपको और आपके लोगों को, सच्चे मसीहा को स्वीकारकरने या पहचानने में मदद नहीं कर पाये थे, इसलिए वे उनसे घृणा करते थे कि उन्होंने उन्हें सूली पर चढाये जाने तक पहुंचा दिया था, अपने हृदयों को पवित्र आत्मा के विरोध में कठोर कर लिया| जैसे अँधियारा अचानक से नहीं धीरे धीरे आता है, वैसे ही कठोरता उनके लोगों पर छाई|

वह क्या आशीषे थी जो पौलुस के साथी देशवासियों को मिली थी जो उन्हें अन्य लोगों से अलग करती थी?

याकूब की संतानों का वास्तविक नाम धोखेबाज था, न कि इस्राएल की संतान| परन्तु उनके पिता जो कि अपराधी थे तब तक जब तक परमेश्वर ने उन्हें आशीषित नहीं किया था, परमेश्वर के पास नहीं गये थे| याकूब के स्थिर विश्वास के कारण परमेश्वर ने उसका नाम बदलकर इस्राएल रख दिया था जिसका अर्थ है ‘वह जो परमेश्वर “एई” के साथ कुश्ती लड़ा, और अपने विश्वास द्वारा जीत गया’ | याकूब शारीरिक रूप से मजबूत नहीं थे न ही वह अच्छे संस्कारी थे, परन्तु स्थिर विश्वास उनमे निवास करता था, जिसने उन्हें परमेश्वर के क्रोध और न्याय से बचाया था (उत्पति 32: 22-32)|

याकूब यीशु के पूर्वजों में से एक थे यीशु परमेश्वर का मेमना था जो इस जगत के अपराधों को दूर ले गए और हमारे अपराधों के न्याय से हमें बचाने के लिए परमेश्वर से संघर्ष कर रहे थे| उन्होंने परमेश्वर को अपने विश्वास से पकड लिया, और उन्हें कही नहीं जाने दिया जब तक कि परमेश्वर ने हमें आशीषित नहीं किया| मरियम के पुत्र ने हमें न्याय से मुक्त किया था| इसलिए, परमेश्वर से संघर्ष करने वाला सच में याकूब नहीं बल्कि यीशु, इस्राएल है, जिन्होंने हमें परमेश्वर के क्रोध से छुडाया था|

यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम जो इस मध्यस्थ को स्वीकार नहीं करते, जो उनके लिए संघर्षरत है, उनकी आशीषों में कभी भागीदार न होगे ना ही उनके चुने हुए आध्यात्मिक लोगों में होंगे| इस ज्ञान ने पौलुस के हृदय को दुःख से भर दिया था क्योंकि आपने देखा था कि उनके लोगों में से अधिकतर लोग उनके वादा किये हुए अधिकारों को नहीं पहचानते, परन्तु अपने आध्यत्मिक अंधेपन और अत्यधिक घमंड में हठपूर्वक उनको अस्वीकार करते हैं|

परमेश्वर ने मूसा को आदेश दिया था कि मिस्र के फिरौन की ओर अग्रसर होकर उससे कहना कि याकूब की सभी संताने उनकी पहली संताने हैं (निर्गमन 4:22 व्यवस्थाविवरण 14:1, 32:6, होसेया 11:1-3)| परमेश्वर अपनी संतानों जोकि उनका आदर नहीं करते थे के कठोरपन से पीड़ित थे, हालाँकि उन्होंने, उनको ग्रहण करने का अधिकार प्रदान किया| उनका फिर से जन्म नहीं हुआ, परन्तु उन्हें परमेश्वर की प्रथम संतान का अधिकार प्राप्त था|

जब चुने हुए लोग जंगलों में भटक रहे थे, परमेश्वर की महिमा, देवालय के भीतरी कक्ष में, पवित्रों के पवित्र में निवास करती थी| परमेश्वर ने उनकी सुरक्षा की और खतरों द्वारा उनका मार्गदर्शन किया, और बहुत सारे चमत्कार दिखाये (निर्गमन 40:34, व्यवस्थाविवरण 4:7;1, राजा-2: 11; यशायाह 6:1-7, येहेजकेल 1:4-28, इब्रानियों 9:5) यद्यपि परमेश्वर ने अपने चुने हुए लोगो को, उनके अविश्वास के कारण दण्ड और मृत्यु की धमकी दी थी, परन्तु मूसा एवं हारून की विनतियों ने उन्हें, परमेश्वर की जानलेवा महिमा से बचाया था|

पौलुस ने यहूदियों को अन्य विशेषाधिकारों का स्मरण कराया था जो कि समझौते की एक श्रंखला में पाया गया था जो परमेश्वर के महान एवं शक्तिशाली कथनों की गवाही है, कि, परमेश्वर सृजनकर्ता, निष्पक्ष न्यायाधीश, स्वयं को अपने इन थोड़े से लोगों के साथ हमेशा के लिए बांध चुके है| पवित्र शास्त्र नीचे दिये गए समझौते के बारे में कहता है:

नोहा के साथ परमेश्वर का समझौता (उत्पति 6:18, 9:9-14)
इब्राहीम के साथ परमेश्वर का समझौता (उत्पति 15:18, 17:4-14)
इसहाक और याकूब के साथ परमेश्वर का समझौता (उत्पति 26:3,26:3, निर्गमन 8:13-19)
मूसा के साथ परमेश्वर का समझौता (निर्गमन 2:24, 6:4, 24:7-8, 34:10,28)

परन्तु खेदपूर्वक कहना पडेगा कि पवित्र शास्त्र बार बार इस बात की गवाही देता है कि पुराने समझौते के लोग एक के बाद एक, वादों को छोड़ते गये, इसलिए उपदेशक यिर्मयाह ने कहा था कि परमेश्वर ने उनकेसाथ एक नए समझौता बनाने का निष्कर्ष लिया था उनके अवज्ञाकारी लोगों के आध्यात्मिक जन्म को शामिल करते हुए (यिर्मयाह 31:31-34)

उपदेशक मूसा द्वारा परमेश्वर के लोगों के साथ परमेश्वर के समझौते का आधार, नियम है| दस आयतों के साथ समझौते की आधार नियम है| मेमोनैड्स के अनुसार दस आयतों के साथ समझौते की पुस्तक, कुल 613 आयतों का आरंभिक बिंदु है, जिसमे 365 नकारात्मक आयतों (निषेध) और 248 सकारात्मक आयतों को शामिल करते है|

इन आयतों के आरंभ में हम सीधा वाक्य पढते है “मै तुम्हारा परमेश्वर तुम्हारा प्रभु तुम्हारे लिए’ मेरे आलावा और कोई ईश्वर नहीं है|” (निर्गमन 20:1-3)

वह जो इन आयतों के उद्देश्य की खोज करता है, यह आयत पाता है “तुम पवित्र बने रहोगे, क्योंकि मै तुम्हारा परमेश्वर तुम्हारा प्रभु पवित्र हूँ” (लैव्यव्यवस्था 19:2)| इन आयतों का महत्वपूर्ण अंश है. “तुम्हे अपने परमेश्वर अपने प्रभु के साथ अपने पूरे हृदय से प्रेम करना चाहिए, अपनी पुरी आत्मा, और अपनी पूरी शक्ति के साथ” (व्यवस्थाविवरण 6:5) और “तुम अपने पड़ोसी से वैसा ही प्रेम करो जैसा तुम स्वयं से करते हो” (लैव्यव्यवस्था 19:18)

परन्तु हमने पाया कि कोई भी, यीशु के आलावा, इन सभी आयतों को पूरा नहीं कर पाया (भजन संहिता 14:3, रोमियों 3:10-12)

देवालय में परमेश्वर की स्तुति के पहले, और तब यरूशलेम के मन्दिर में इस बात की आवश्यकता है कि पहले कुछ रक्तरंजित बलिदानों द्वारा अपराधियों का शुद्धिकरण हो ताकि वह परमेश्वर तक पहुँचने का अधिकारी हो सके और पवित्रतापूर्वक उनकी आराधना कर सके| भजन संहिता का पठन, भक्ति गीत और निवेदन, अपराधों की स्वीकारोक्ति, धार्मिक विधियों का प्रदर्शन, और स्तुति द्वारा यह प्राप्त हुआ था| वह जो पुराने नियम की भजन संहिता की पुस्तक में गहराई तक जाता है, स्पष्ट रूप से आत्मा और इन वाक्यों का परिपालन कर पाता है| बिनाकिसी बलिदानों के आशीष प्राप्त करना, इस स्तुति की इस क्रिया में अति महत्वपूर्ण है|

यह स्तुति की क्रियाएँ, उत्सवों, विशेषरूपसे मुक्तिदिवस, देवालयों, और योम किप्पुर (प्रायश्चित के दिन) उनके उच्चतम बिंदू पर पहुँचती थी|

यरूशलेम के मन्दिर में परमेश्वर के निवास पर एकाग्रता ने राज्य की एकता को शक्ति शाली बनाया था| परन्तु इस आध्यात्मिक केन्द्र के स्थान पर, वहाँ ऐसे कई गाँव थे जिन्होने बाल देवों के लिए वेदिया बनाई और अन्य देवताओं की त्याग सहित आराधना की थी, उनकी छबियों और मूर्तियों को ऊंचा किया, जिससे उनके विरोध में परमेश्वर का क्रोध उत्तेजित हो उठा था|

पुराना नियम कुछ प्रधान वादों से भर पूर है, जिसमे हम तीन उद्देश्य पाते है:

अ) परमेश्वर उनके प्रभु की उपस्थिति, क्षमादान, सुरक्षा और सांत्वना (निर्गमन34:9-11)
ब) शांति का राजकुमार और परमेश्वर का विनम्र मेमना, मसीह के आने का वादा (व्यवस्थाविवरण 18:15; 2-शमूएल 7:12-14; यशायाह 9:5-6; 49:6; 53:4-12)
स) चुने हुए लोगो और सारी मानवजाति पर पवित्र आत्मा का उदगार (यिर्मयाह 31:31-34; यहेजकेल 36:26-27; योएल 3:1-5)

परन्तु आह, यहूदियों में से अधिकतर परमेश्वर के मेमने उनके लोगो के राजा के आने को पहचान नहीं सके| वे पवित्र आत्मा के उदगार को नकारते थे, उनको एक शक्ति शाली राजनितिक अवस्था के उठने की उम्मीद थी| इसीलिए न तो वे अपने अपराधों को पहचानते थे, न ही नए आध्यात्मिक जन्म के लिए उत्सुक थे| बहुत से वादे मसीह के आचरण और उनके अनुयायियों पर पवित्र आत्मा के उदगार द्वारा पूरे हो रहे थे परन्तु फिर भी अधिकांश चुनेहुए लोग उनके लिए इन वादों की पूर्ति को न तो पहचान पाये, न ही स्वीकार कर पाये थे|

चुने हुए लोगों के पिता दार्शनिक नहीं थे, परन्तु अन्य लोगों के लिए गडरिये और पादरी थे| उनके गंभीर विश्वास और कमजोरियों पर विजय पाने के कारण इन लोगों ने इब्राहीम, ईसहाक और याकूब द्वारा प्रति निधित्व किया था| समझौते के परमेश्वर इब्राहीम, और ईसहाक और याकूब के प्रभु कहलाये गए थे (उत्पति 35:9-12; निर्गमन 3:6; मत्ती 22:32)

ना तो मूसा, ना दाऊद, ना एलिजा, ना ही किसी अन्य पुराने नियम के व्यक्तित्व ने कोई विश्वविद्यालय या अकादमी को स्थापित किया था, परन्तु लोगों के भ्रष्टाचार के स्थान पर, वे परमेश्वर के सत्य और शक्ति का बार बार अनुभव करते रहे थे| वे अपने विश्वास की अनुरूपता के साथ जीते रहे, और अपने लोगों के लिए एक अच्छा उदाहरण, और अपने नातिपोतों के लिए आशीषों का एक झरना बन गये थे|

यद्यपि इस्राएल के लोगों का महान विशेषाधिकार और सम्मान यीशु के आने की आशा थी, राजाओं का राजा, सच्चे उच्च पादरी, और परमेश्वर के वचन का अवतार जिनमे हम लोगों के बीच परमेश्वर की सत्ता, शक्ति और प्रेम को देखते है| उन्होंने कहा था, “मै इस जगत की रौशनी हूँ” क्योंकि परमेश्वर का प्रेम उनमे निवास करता था, और पवित्र आत्मा ने उनको महिमामयी, किया था| वे और परमेश्वर एक है जैसे कि उन्होंने स्वीकार किया था: “मै और मेरे पिता एक है” (यूहन्ना 10:30) इस सत्य के अनुसार, उपदेशक पौलुस उनको “प्रभु” कहते थे| आपने “एक प्रभु” नहीं कहा था बल्कि सच्चे “प्रभु” जैसे सभी कलीसियाओं ने स्वीकारा था कि यीशु प्रभु से प्रभु है, रोशनी से रोशनी| सच्चे परमेश्वर से सच्चे परमेश्वर; पिता के साथ एक तत्व में जन्मे, सृजित नहीं किये गये|

यहूदी लोग क्रोधित थे, कठिनाइयां उत्पन्न कर रहे थे और ईसाई लोगों को श्राप देते थे क्योंकि उन् लोगों ने अपने अपराध स्वीकार किये थे जिन्हें पौलुस ने रोम कि कलीसिया को लिखी अपनी पत्री में अभिव्यक्त किया था| यहूदियों में से अधिकांश लोग मसीह को भटकनेवाला, ईश्वरनिन्दक, और परमेश्वर के विरोध में बगावत करने वाला मानते थे, और वे उन्हें रोम, उनके उपनिवेशक को सौंप चुके थे, उन्हें सूली पर चढाने के लिए| वे उनकी कठोरता में लगातार बने रहे यशायाह के युग तक जैसे कि 700 ईसा पूर्व (यशायाह 6:9-13, मत्ती 13-11-15; यूहन्ना 11:40, प्रेरितों के कार्य 28:26-27)

उनके हृदयों की बढती हुई कठोरता हमारे सामने इन वचनों के द्वारा और अधिक स्पष्ट रूप से साफ समझ में आती है| उन्होंने अपने अपराधों का प्रायश्चित नहीं किया परन्तु अपने आपको धार्मिक गिनते थे क्योंकि वे मूसा के नियमों का पालन करते थे और अन्य लोगों को गिरे हुए लोगों के रूप में देखते थे|

उन् लोगों की कठोरता के समय, यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले यीशु के लिए मार्ग तैयार करने के लिए आगे आये और अच्छी संख्या में लोगों ने उनसे बपतिस्मा लिया| उन् लोगों ने उनसे सुना था कि मसीह परमेश्वर का मेमना था और वे यह समझ गए थे कि मसीह पवित्र आत्मा के साथ बपतिस्मा देंगे एक नए आध्यात्मिक राज्य को स्थापित करने के लिए और वह लोग जो उस एक मनुष्य जो जंगलों में रो रहा था, द्वारा बपतिस्मा लिये थे मसीह को स्वीकार करने के लिए तैयार थे| मसीह ने क़ानूनी विशेषज्ञों, पवित्र, या विद्वानों को अपना अनुसरण करने के लिए नहीं बुलाया था, परन्तु उन्होंने उनको बुलाया जो बपतिस्मे से पहले अपने अपराधो को स्वीकार कर चुके थे, और वे उनके शिष्य बने एवं पवित्र आत्मा से भर गए थे| चुने हुए लोगों का रहस्य ना ही महानता है, परन्तु अपराधों को स्वीकारना और आत्मा का टूटना है| वो जो अपने अपराधों को प्रायश्चित करते हुए स्वीकार कर चुके थे, ने यीशु से उद्धार और अनंत जीवन को प्राप्त किया था|

इस्राएल के लोगों ने जिन विधिसम्मत विशेषाधिकार का आनंद, परमेश्वर की उपस्थिति के साथ लिया था, ने अधिकांश यहूदियों पर नकारात्मक असर किया था| वे घमंडी और अन्य राज्यों पर प्रबल बन गए, और उन लोगों ने अपने आप को धार्मिक मान लिया था, जिन्हें प्रायश्चित की आवश्यकता नहीं थी| वे अपने अपराधों को नही पहचानते थे, परन्तु अपने हृदयों को परमेश्वर के विरोध में, यीशु के विरोध में, और पवित्र आत्मा के विरोध में इतने युगों तक कठोर कर लिया था, जब तक कि वे अधिकारों में अमीर, परन्तु आत्मा में गरीब न बन गये थे|

अपने भूत काल में पौलुस उनमे से एक जोशीले और घमंडी व्यक्ति थे| आप यीशु के अनुयायियों को यातना देते थे और कुछ पर दबाव डालते थे दूर चले जाने के लिए, और उन् लोगों को जो विश्वास में अडिग थे मार डालते थे| परन्तु यीशु से आपकी मुलाकात, दमिश्क के पास उनकी विकिरक महिमा ने आपके सपनों, कल्पनाओं और घमंड को बिखेर दिया था, और आपके अपने अपराधों एवं भ्रष्टाचार को स्वीकारने लगाया था| आप यीशु के अनुग्रह द्वारा टूटकर, पवित्र आत्मा में फिर से जन्म लेकर, प्रभु मसीह के एक उपदेशक बन गए थे|

पौलुस पहचान गए थे कि मनुष्य को क्या बचा सकता है, ना तो इब्राहीम के उत्तराधिकारी होना, ना ही खतना, परन्तु मसीह के प्रायश्चित द्वारा न्यायीकरण और उनकी पवित्र आत्मा से भरपूर होना एक मात्र उपाय है| अतः यीशु के आत्मिक शरीर में जो मनुष्य एक पेड की कलम समान है, इसका एक सदस्य बन गया है| इब्राहीम की नयी पीढ़ी को सुसमाचार का प्रवचन देने के द्वारा पौलुस पहचान गए थे कि परमेश्वर का आध्यात्मिक राज्य, इस्राएल के राजनितिक प्रदेश के समान कभी नहीं हो पाया होगा| खेदजनक बात है, आज इस्राएल में यीशु का आध्यात्मिक शरीर हिंसक उत्पीडन को सहन करता है| पौलुस एक राजनितिक प्रदेश के बारे में नहीं, परन्तु मसीह के आध्यात्मिक राज्य के बारे में कहते है जो कि पूरे जगत में अच्छे संस्कारों, सच्चाई, और पवित्रता में दिखाई देता है|

प्रार्थना: ओ स्वर्गीय पिता, हम आपका धन्यवाद करते है, आपके चुने हुए लोगों के साथ धैर्यता के लिए, और आपकी महिमा करते है पुराने नियम में इन विद्रोही लोगों को चेतावनियां एव दण्ड देने के स्थान पर आपने जो वादे किये उनके लिए| हमें क्षमा करना, यदि हमने आपके महान प्रेम का विश्वास और ईमानदारी के साथ आदानप्रदान नहीं किया; और इब्राहीम की कई संतानों के दिमागों का नवीनीकरण करके, एव उनके हृदयों को जीवित यीशु मसीह के लिए शुध्दिकरण करके नहीं बचाया|

प्रश्न:

55. पुराने समझौते के लोगों के लिए पौलुस ने कितने विशेषाधिकार बताए थे? उनमे से कौनसा एक तुमको अति महत्वपूर्ण लगता है?
56. क्यों परमेश्वर का अनुग्रह अधिकांश चुने हुए लोगों को बचा सकने में असमर्थ था, कौन एक न्याय से दूसरे में गिरा?

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