Waters of Life

Biblical Studies in Multiple Languages

Search in "Hindi":
Home -- Hindi -- Romans - 048 (The Truth of Christ Guarantees our Fellowship with God)
This page in: -- Afrikaans -- Arabic -- Armenian -- Azeri -- Bengali -- Bulgarian -- Cebuano -- Chinese -- English -- French -- Georgian -- Greek -- Hausa -- Hebrew -- HINDI -- Igbo -- Indonesian -- Javanese -- Kiswahili -- Malayalam -- Polish -- Portuguese -- Russian -- Serbian -- Somali -- Spanish -- Tamil -- Telugu -- Turkish -- Urdu? -- Yiddish -- Yoruba

Previous Lesson -- Next Lesson

रोमियो – प्रभु हमारी धार्मिकता है|
पवित्र शास्त्र में लिखित रोमियों के नाम पौलुस प्रेरित की पत्री पर आधारित पाठ्यक्रम
भाग 1: परमेश्वर की धार्मिकता सभी पापियों को दण्ड देती है और मसीह में विश्वासियों का न्याय करती है और पापों से मुक्त करती है। (रोमियों 1:18-8:39)
इ - हमारा विश्वास हमेशा के लिए बनाहुआ (रोमियो 8:28-39)

2. यीशु की सच्चाई हमारी सभी समस्याओं के स्थान पर परमेश्वर के साथ हमारी मित्रता की जमानत है (रोमियो 8:31-39)


रोमियो 8: 38-39
38 क्‍योंकि मैं निश्‍चय जानता हूं, कि न मृत्यु, न जीवन, न स्‍वर्गदूत, न प्रधानताएं, न वर्तमान, न भविष्य, न सामर्थ, न ऊंचाई, 39 न गहिराई और न कोई और सृष्‍टि, हमें परमेश्वर के प्रेम से, जो हमारे प्रभु मसीह यीशु में है, अलग कर सकेगी।

पौलुस निश्चित थे कि ना तो सांसारिक वस्तु या कोई दूसरी सांसारिक आत्मा यीशु मसीह में प्रकटित परमेश्वर के प्रेम से उन्हें अलग कर पायेगी| इस महान निर्णायक वाक्य के साथ, रोमियों को लिखी अपनी पत्री के सिद्धांत संबधी भाग को आपने समाप्त किया था| निश्चितरूप से आप सिर्फ सोच या विश्लेषण नहीं कर रहे थे, पंरतु अत्यधिक पीडाओ और संघर्ष का गंभीर अनुभव उन्होंने लिखा था जो कि उनके हृदय में पवित्र आत्मा की साक्षी पर आधारित था| पौलुस नहीं कहते, “यदि यह परमेश्वर को प्रसन्न करता है, वह मेरे साथ रहेगा” परन्तु वे इस बात को स्वीकार करते हैं कि मसीह में परमेश्वर के प्रेम का ज्ञान पाप स्वीकारोक्ति में इस बात की पुष्टि करता है कि यह कभी असफल नहीं होगा| परमेश्वर की ईमानदारी सन्देहरहित है|

पौलुस न तो मानवीय प्रेम के बारे में, न ही सामान्य रूप से दयालु, प्रेम करने वाले परमेश्वर के बारे में बात करते थे, परन्तु आपने पुत्र के द्वारा पिता को देखा था| मसीह के सिवाय परमेश्वर तक जाने का कोई और रास्ता वह नहीं जानते थे| परमेश्वर के पुत्र के मानवीय रूप लेने से अब तक हम जानते है कौन सर्वोपरि है, हमारे पिता है| उनका पिता समान प्रेम मानवीय संवेदना नहीं है, क्योंकि एकमात्र पवित्र ने अस्वच्छ लोगों के लिए अपने पुत्र का बलिदान दिया था कि हम उनकी दया पर संदेह ना कर पाये परन्तु आश्वस्त रहे कि वह हमें अपने समझौते और दत्तक रूप में लेने के लिए निमंत्रण देते है अपने पुत्र के खून बहाने के कारण| सूली के कारण पौलुस निश्चित थे कि परमेश्वर का प्रेम कभी असफल नहीं होगा|

यद्यपि, शैतान एक सच्चाई है, और जो कोई भी उसकी उपस्थिति को नकारता है, इस सृष्टि की स्थिति से अवगत नहीं है| पौलुस ने देखा था बहुत सारीआत्मिक शक्तियां इस और दूसरे जगत को तहस-नहस करने के लिए तैयार थी| आपने कई बार ना केवल मृत्यु की आत्मा का ही सामना किया था बल्कि अंधकार की परियों के साथ हाथापाई भी की थी और अपनी प्रार्थनाओं के साथ नर्क के पागलपन के साथ संघर्ष भी किया था इसलिए आपने कहा था: “यदि स्वर्ग और नर्क दोनों एक साथ में मुझ पर आक्रमण करते थे, मसीह में परमेश्वर का प्रेम मुझे छोड़ नहीं पायेगा विरोधी शक्तियां मुझ पर हावी नहीं हो पायेगी क्योंकि मसीह के, अनंत लहू ने मुझे पवित्र कर दिया था|”

पौलुस को भविष्यवाणी करने का उपहार प्राप्त था| आपने देखा कैसे विध्वंसक, झूठे, और खूनी आराधनालय पर आक्रमण करते थे, परन्तु जीत नहीं पाये थे क्योंकि यह मसीह में है, और शैतान इसे अपने हाथ से तोड़ कर अलग नहीं कर सकता|

यहाँ तक कि पवित्र नियम भी शिकायतों द्वारा उपदेशकों के विश्वास को हिला नहीं सकता, क्योंकि वे सूली पर मसीह के साथ मर गए थे, और वह उनमे रहते है और उन्हें बनाये रखते है| विश्वासियों को अन्तिम न्याय के दिन तक बनाये रखा जायेगा क्योंकि मसीह अब तक विश्वसनीय विजेता है|

इसलिए हम तुमसे कहते है, प्रिय भाई “तुम्हारी आत्मा, तुम्हारा शरीर, और तुम्हारी जीवन शक्ति पूरी तरह से परमेश्वर के प्रेम को समर्पित कर दो, और एक त्रयी को पकड़ लो ताकि तुम्हारा नाम जीवन की पुस्तक में लिखा जाये और तुम निरंतर परमेश्वर की स्वीकृति में हमेशा रह पाओ|

अब इस विश्वसनीय पर ध्यान दे कि पौलुस ने परमेश्वर के प्रेम की स्तुति का गीत पहला पुरुष एकवचन केवल “मै” में नहीं लिखा है, परन्तु आपने अपने शब्दों को पहला पुरुष अनेक “हम” में समाप्त किया है जोकि भूमध्य सागर के खाडी इलाके की कलीसियाओं और रोम के सभी विश्वासियों के साथ अपने पूर्णतः आश्वासन को शामिल किया है| विश्वास के बारे में आपकी साक्षी हमें ढक लेगी यदि हम पूर्व अध्याय में धार्मिक विश्वास को स्वीकार करें| तब हम इस जगत की महान और शक्तिशाली शक्तियों पर ही अपनी नजर नहीं टिकायेंगे परन्तु हम परमेश्वर के उस प्रेम को जो यीशु मसीह में प्रकटित हुआ था को कस कर पकड़ लेंगे|

“हमारे प्रभु” यह अन्तिम शब्द इस गीत के अंत को दिखाते हैं| दूसरे शब्दों में आप हमें इस बात की पुष्टि करते है कि वह, जो गोलगोथा में विजयी हुए थे प्रभुओं के प्रभु है, जिनकी शक्ति में हम हमारी सुरक्षा की जमानत पाते हैं| वह अपने हाथ हमारे ऊपर फैलाते है, और हमें छोड़ नहीं देते, क्योंकि वह हमें प्रेम करते हैं|

प्रार्थना: ओ यीशु मेरे शब्द मेरी शुक्रगुजारी को व्यक्त करने में असफल है| आपने मुझे बचाया, और मै आपका बन गया| मुझे अपने प्रेम से भर दीजिए ताकि मेरा जीवन आपकी शक्ति के लिए स्तुति का एक सन्देश बन जाये, और यह भी कि मै पूर्ण विश्वास में आपकी आराधना करूँ, विश्वास करूँ कि कुछ भी मुझे आपसे अलग नहीं कर सकता क्योंकि आप विश्वसनीय है| जैसे कि आप पिता के दाहिने हाथ की ओर बैठे है, आप उन् में है और वो आप में है, तो मुझे उनकी धार्मिकता में स्थापित करें, ताकि कुछ भी मुझे पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा से अलग न कर पाये| आमीन|

प्रश्न:

52. क्यों पौलुस ने अपना आखिरी वाक्य “मै” के साथ शुरू और “हम” के साथ समाप्त कियाथा?

पहेली - 2

प्रिय पाठको,
इस पुस्तिका में रोमियों को लिखी गयी पौलूस कि इस पत्री पर हमारे मत्त पढ़ने के बाद, आप लोग निम्न लिखित प्रश्नों के उत्तर दे सकने के योग्य हैं| यदि आप 90% प्रश्नों के उत्तर दे सके, हम इस श्रंखला के अगले भाग को आप को भेजेंगे, आपकी नसीहत के लिए | कृपया कर के अपना पूरा नाम और पता उत्तर पत्रिका पर साफ़ साफ़ लिखना न भूले|

27: विश्वास के द्वारा हमारा न्याय करने के क्या प्रमुख विचार है?
28: “परमेश्वर की धार्मिकता का प्रदर्शन” इस पदबंध का अर्थ क्या है?
29: हम क्यों केवल अपने विश्वास द्वारा न्यायोचित ठहराये गये, न कि हमारे अच्छे कार्यों द्वारा?
30: इब्राहीम और दाऊद किस तरह से न्यायोचित ठहरे?
31: मनुष्य क्यों खतना द्वारा नहीं बल्कि केवल विश्वास द्वारा न्यायोचित ठहराया गया ?
32: हम क्यों परमेश्वर के वादों में विश्वास द्वारा, ना कि नियमों के पालन द्वारा परमेश्वर की आशीष?
33: इब्राहीम के विशवास के संघर्ष से हमें क्या सीख मिलती है ?
34: परमेश्वर की शांति ने कैसे हमारे जीवन में पूर्णता दी थी?
35: परमेश्वर का प्रेम कैसे प्रकट हुआ था?
36: पौलुस आदम और मसीह के बीच तुलना द्वारा हमें क्या दर्शाना चाहते हैं?
37: बपतिस्मे का अर्थ क्या है?
38: हम मसीह में कैसे सूली पर मरे, और उन में जी उठे?
39: हम कैसे अपने आप को और अपने शरीर के अंगों को परमेशर की धार्मिकता के हथियारों के समान लायें?
40: मृत्यु एव अपराध की दास्ताँ और यीशु के प्रेम के बीच क्या अंतर है?
41: क्यों सभी विश्वासी पुराने नियम की शर्तों से छुडाये जा चुके हैं?
42: कैसे कानून जो हमारे लिए अच्छा है, बुराई और मृत्यु के लिए एक कारण है?
43: पौलुस ने स्वयं अपने बारे में क्या स्वीकार किया था और इस स्वीकृति का हमारे लिए क्या अर्थ है?
44: पाठ 8 के पहले वाक्य का अर्थ क्या है ?
45: वो कौन से दो कानून है, जिनकी तुलना उपदेशक ने एक साथ की है, और उनके अर्थ क्या है?
46: आत्मिक मनुष्य की रूचियाँ क्या है? वह जो भोग विलासी है उनकी विरासत क्या है?
47: पवित्र आत्मा ने उन लोगों को जो मसीह में विश्वास करते है, क्या दिया?
48: परमेश्वर का नया नाम क्या है, जोकि पवित्र आत्मा ने हमें सिखाया है? इसका अर्थ क्या है?
49: वह कौन हैं जो मसीह के आगमन के लिए दर्द सहेंगे? क्यों?
50: क्यों सभी बाते उसके लिए जो परमेश्वर से प्रेम करता है, के अच्छे के लिए साथ में कार्य करती है?
51: किस प्रकार से ईसाई धर्मी, कठिनाइयों पर विजयी होते है?
52: क्यों पौलुस ने अपना आखिरी वाक्य “मै” के साथ शुरू और “हम” के साथ समाप्त कियाथा?

रोमियों की इस श्रंखला की सारी पुस्तिकाओं के पाठ्यक्रम को समाप्त कर के यदि आप हमें हर पुस्तिका के अंत में दिये गये प्रश्न के उत्तर भेजे, तब हम आप को एक

उच्च शिक्षा का प्रमाणपत्र
रोमियों को लिखी गई पौलुस की पत्री को समझने में

भविष्य में मसीह के लिए तुम्हारी सेवकाई के प्रोत्साहन के रूपमे| रोमियों को लिखीगई पौलुस की पत्री की परिक्षा हमारे साथ पूरी करने के लिए हम तुम्हे प्रोत्साहित करते है| ताकि तुम एक अनंत खजाने को प्राप्त कर सके| हम आप के उत्तर की प्रतिक्षा कर रहे हैं और आप के लिए प्रार्थना कर रहे हैं| हमारा पत्ता है:

Waters of Life
P.O.Box 600 513
70305 Stuttgart
Germany

Internet: www.waters-of-life.net
Internet: www.waters-of-life.org
e-mail: info@waters-of-life.net

www.Waters-of-Life.net

Page last modified on March 05, 2015, at 11:54 AM | powered by PmWiki (pmwiki-2.3.3)