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1. परमेश्वर का क्रोध राज्यों के विरोध में प्रगट होता है (रोमियो 1:18-32)
रोमियो 1:24-25
24 इस कारण परमेश्वर ने उन्हें उनके मन को अभिलाषाओं के अनुसार अशुद्धता के लिए छोड दिया, कि वे आपस में अपने शरीरों का अनादर करें| 25 क्योंकि उन्हों ने परमेश्वर की सच्चाई को बदलकर झूठ बना डाला, और सृष्टि की उपासना और सेवा की, न कि उस सृजनहार की जो सदा धन्य है| आमीन||
वचन 24 परमेश्वर के क्रोध के दैवी प्रकाशन का पहला लक्ष्य दर्शाता है | पवित्र न्यायाधीश ने उन सब लोगों को छोड दिया है जो उन्हें जानते है परन्तु उनका आदर नहीं करते, कि वे अपने ह्रदयों की उत्कृष्ट अभिलाषाओं में डूबे रहे| वे आत्मिक रूप से अंधे हो गए क्यों कि वे परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघनकरते रहे| वे बहुत समय तक परमेश्वर को विश्व के केंद्र के रूप में नहीं मान पाये, बल्कि अपने ही चारो ओर केंद्र बनाने लगे क्यों कि उन सभी लोगों में अहंकारीपन पनपने लगा जो परमेश्वर से प्रेम नहीं करते हैं| उसी प्रकार से उनके जीवन की दिशाएं बदल गई थी, उनके जीवन के अंत तक परमेश्वर के स्थान पर स्वार्थ की आत्मा उन पर शासन करने लगी| वे सिर्फ अपने शारीरिक आनंद और अभिलाषाओं के लिए जी रहे हैं, परमेश्वर के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को सौगंध खा कर परित्याग कर रहे हैं और उनके अस्तित्व को नकार रहे हैं|
जहाँ मनुष्य की इच्छा उसकी अपनी उत्कृष्ट अभिलाषाओं के वश में हो जाती है, वहाँ पाप केवल सिद्धांत या कल्पना में ही नहीं दिखता है बल्कि अभ्यास में भी दिखता है, क्योंकि लगभग सभी पाप, दूषित होने के बाद शारीर को बाहरी ओर से भी बांधते हैं| तुम्हारा अंतःकरण सभी प्रकार की अपवित्रता के विरोध में विद्रोह करता है, क्योंकि पापों के अभ्यास के द्वारा, तुम स्वयं में परमेश्वर की छबी को भ्रष्ट कर लेते हो| तुम्हारा शरीर पवित्र आत्मा के मंदिर के रूप में बनाया गया है, और कोई भी शारीरिक पाप, पवित्र आत्मा के मंदिर का अपवित्रीकरण है, तुम्हारा शरीर जो कि परमेश्वर की छबी में बनाया गया है, का अनादर और तिरस्कार है|
अपवित्रता के क्रम होते है| जब मनुष्य परमेश्वर से मुँह फेर लेता है, वह सामान्य स्थिति से असामान्य स्थिति में गिरता है, और अन्याय संगत को न्याय संगत के रूप में मनन करता है, क्योंकि परमेश्वर के सत्य को मोड़ना, अचेत पाप का परिचय है| एक दूषित व्यक्ति, एक असावधान व्यक्ति है, जो की दूसरों को भ्रष्ट करता है, और अपनी स्वयं की उत्कृष्ट अभिलाषाओं के वश में है| आत्मा और शरीर की भ्रष्टता के लालच का समुद्र कितना गहरा है, और परमेश्वर की आत्मा के बिना जीवन पर शाप है| पाप शुरुवात में आनंदायक और मीठे लगते है, लेकिन जब हम उसके आदि हो जाते है, हमें इस से घृणा होती है, और हम अपने आप से शर्मिंदा होते है| इसी प्रकार से शर्म और व्याकुलता से बहुत सारे लोगों के मुख लाल हो जाएँगे, जब उनके अति घृणित कार्य अंतिम न्याय के सामने खुल जाएँगे|
पापों का सत्व दोष नहीं बल्कि गलत आराधना है| अपने परमेश्वर से दूर चले जाने पर मनुष्य की आतंरिक स्थिति भ्रष्ट होती है, क्योंकि जैसे ही वह परमेश्वर से दूर होता है वैसे ही वह दिशा हीन जीवन जीता है| जो कोई भी परमेश्वर को पहचान नहीं पाता है, वह अपने लिए मूर्तियां बनाता है, क्योंकि वह बिना किसी दिशा के नहीं जी सकता, जब कि लोगों की सभी मूर्तियां झूठ, नाशवान और हाथो से बनी हुई हैं| यदि मनुष्य ही जीवन और अनंत काल का भेद कर पाया होता तो वह पैसे, आत्माओं, पुस्तकों और लोगों का गुलाम नहीं हुआ होता|
एक ही है जो हमारे द्वारा भक्ति और मान का अधिकार रखते है| वह सर्व शक्तिमान है, जिन के बिना कुछ नहीं हो सकता, विद्वान और त्रिकाल दर्शी हैं, जो अपने द्वारा बनाये गए प्राणियों के लिए दयालु हैं| हमें अपने मुँह से हमेशा उनकी प्रशंसा करनी चाहिये, क्योंकि वह अभ्रांत एवं अति प्रशंसा योग्य हैं और उनमे कोई अधार्मिकता नहीं है| प्रत्येक सुबह उनका प्रेम नया है| उनकी ईमानदारी महान है| वह कभी बदलते या मरते नहीं हैं परन्तु वह हमें अपने अजय धैर्य के साथ रखते हैं| यदि सिर्फ सभी मनुष्य अपने सृष्टिकर्ता की ओर मुड जाएँ तो वे अपने जीवन की नींव, अपने महत्व का परिमाण और अपनी आशा के उद्देश्य को पा सकेंगे|
पौलुस ने ‘आमीन’ शब्द के साथ अपने वाक्य पर मूहर लगायी थी कि सृष्टिकर्ता हमेशा के लिए धन्य है, जैसे आपके उपदेश या व्याख्यान एक प्रार्थना और गवाही थे| ‘आमीन’ शब्द का अर्थ है ‘वैसा ही हो’| सच में, वास्तव में और बहुत दृढता में परमेश्वर अतुलनीय है| परमेश्वर हमारे विचारों के खास उदेश्यों, योजनाओं और कार्यों में अपनी दिव्यता बनाये रखे कि हमारा जीवन और हमारे दिमाग स्वस्थ और शुद्ध बने रहे| परमेश्वर के बिना यह जगत एक समयपूर्व नरक है, उनके लिए जिनके भ्रष्ट हृदयों ने अपनी शर्मनाक अपवित्र्ताओं के साथ अपनी उत्कृष्ट अभिलाषाओं से हार मान ली है |
प्रार्थना: हम आप की आराधना करते हैं ओ पवित्र परमेश्वर, क्यों कि आप अन्नंत, स्वच्छ और धार्मिक हैं| आप ने हमें उत्तम रूप में निर्मित किया, और हमें आप की दयालुता में रखा| हम आप से प्रेम करते हैं, और प्रार्थना करते हैं आप हमारे ह्रदयों को अपनी ओर खींचे, कि हम आप के लिए जियें, आप का आदर करें, और हर समय आप का धन्यवाद करें| हमें आप से दूर जानेकेलिये क्षमा करें, और हमें हमारी अपवित्रता से स्वच्छ करें| हमें हमारी बनाई मूर्तियों से मुक्त करें कि हम इस जगत में किसीसे भी नहीं परन्तु आप से प्रेम करें|
प्रश्न: