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यूहन्ना रचित सुसमाचार – ज्योती अंध्कार में चमकती है।
पवित्र शास्त्र में लिखे हुए यूहन्ना के सुसमाचार पर आधारित पाठ्यक्रम
तीसरा भाग - प्रेरितों के दल में ज्योती चमकती है (यूहन्ना 11:55 - 17:26)
द - गैतसमनी के मार्ग पर बिदाई (यूहन्ना 15:1 - 16:33)

3. दुनिया मसीह और आप के चेलों से घ्रणा करती है(यूहन्ना 15:18 - 16:3)


यूहन्ना 15:18-20
“15 यदि संसार तुम से बैर रखता है, तो तुम जानते हो कि उसने तुम से पहले मुझ से बैर रखा | 19 यदि तुम संसार के होते, तो संसार अपनों से प्रेम रखता; परन्तु इस कारण कि तुम संसार के नहीं, वरन मैं ने तुम्हें संसार में से चुन लिया है, इस लिये संसार तुम से बैर रखता है | 20 जो बात मैं ने तुम से कही थी, ‘दास अपने स्वामी से बड़ा नहीं होता,’उसको याद रखो | यदि उन्होंने मुझे सताया, तो तुम्हें भी सताएँगे; यदि उन्होंने मेरी बात मानी, तो तुम्हारी भी मानेंगे |”

जब यीशु ने परमेश्वर के साथ अपनी उत्तम एकता का प्रदर्शन किया, और सांत्वना की आत्मा के आने की भविष्यवाणी की तब आपने अपने चेलों को दुनिया की घ्रणा को सहन करने के लिये तैयार किया |

दुनिया मसीहियों की संगती का विरोध करती है परन्तु प्रेम मसीही संगती की रक्षा करता है | यीशु अपने चेलों को दुर्घटना भरी दुनिया से निकाल कर किसी खुशियों से भरे हुए द्वीप में नहीं पहुंचाते हैं | आप उन्हें दुष्ट परियावरण में भेजते हैं ताकि आप का प्रेम प्रचंड घ्रणा पर विजयी हो | यह विशेष कार्य (मिशन) कोई आनंद दाई यात्रा (पिकनिक) नहीं है परन्तु आत्मिक संघर्ष है | जो लोग अपनी सेवा के बीच प्रेम से काम लेते हैं उन्हें अस्वीकृति, शत्रुता और श्राप का सामना करना पड़ता है | यह स्वय: उनकी असफलता के कारण नहीं परन्तु दुष्ट आत्मा के मसीह के वचन के विरुद्ध उत्तेजित करने से होता है | उनका प्रभु जो प्रेम और बुद्धिमानी में उत्तम है उसने मृत्यु तक उस घ्रणा का सामना किया | इतना कठिन अत्याचार होने पर भी आप लड़ाई के मैदान से न भागे और न ही इस संसार को छोड़ा बल्कि आप से घ्रणा करने वालों से प्रेम करते हुए जान दे दी |

हम में से कोई भी दूत नहीं है, हमारे दिलों में से दुष्ट विचार निकलते हैं परन्तु मसीह के अनुग्रह के द्वारा एक नई आत्मा हम में आई है | पश्चताप का अर्थ दिल का बदलना होता है | जो आत्मा से उत्पन्न होता है वह इस दुनिया का नहीं परन्तु प्रभु का होता है | “कलीसिया” शब्द का अर्थ यूनानी भाषा में उन चुने हुए लोगों की मंडली से है जिन्हें दुनिया में ज़िम्मेदारियां पूरी करने के लिये बुलाया जाता है | इस लिये दुनिया कलीसिया को एक अनोखी मंडली के रूप में देखती है | इस तरह अलग होने से परिवार में चिंताजनक दरार और बड़ी परेशानी उत्पन्न होती है जिसका अनुभव यीशु को भी हुआ था (यूहन्ना 7:2-9). ऐसी स्तिथी में जो मसीह में बने हैं उन्हें बुद्धि और नम्रता की आवयश्कता होती है ताकि वे अत्याचार और मज़ाक का सामना कर सकें | अगर तुम अपने आप को ऐसी परिस्तिथियों में पाओ तो यह ना भूलना कि यीशु को भी बगैर किसी कारण इनका सामना करना पड़ा था क्योंकि आपने उनसे प्रेम किया, उन्हें चंगा किया, फिर भी उन्होंने आप को पापी की तरह क्रूस पर चढ़ाया |

यीशु ने तुम्हें एक बड़ा वचन दिया है कि चाहे लोग तुम्हें सतायें और तुमसे लड़ें, फिर भी उनमेंसे कुछ लोग तुम्हारी गवाही सुनेंगे जैसे उन्होंने आप की गवाही सुनी थी | जिस तरह आत्मा से पाया हुआ यीशु का वचन सुनने वाले लोगों में अनन्त जीवन उत्पन्न करता है उसी तरह तुम्हारी गवाही भी कुछ सुनने वाले लोगों में अनन्त जीवन उत्पन्न करेगी | हर एक मसीही इस शत्रुता से भरी हुई दुनिया में मसीह का राजदूत है, इस लिये तुम्हारे इस आस्मानी बुलावे को उचित समझो |

यूहन्ना 15:21-23
“21 परंतु यह सब कुछ वे मेरे नाम के कारण तुम्हारे साथ करेंगे, क्योंकि वे मेरे भेजने वाले को नहीं जानते | 22 यदि मैं न आता और उनसे बातें न करता, तो वे पापी न ठहरते; परन्तु अब उन्हें उन के पाप के लिये कोई बहाना नहीं | 23 जो मुझ से बैर रखता है, वो मेरे पिता से भी बैर रखता है |”

यीशु ने पहले से ही अपने चेलों को बता दिया था कि आपके आस्मान पर उठा लिये जाने के बाद उन्हें आप के नाम के कारण बहुत दुख भरे अत्याचार को उठाना पड़ेगा | यहूदियों को इस बात की अपेक्षा नहीं थी कि उनका मसीह मेमने की तरह दीन होगा परन्तु राजनितिक नेता की तरह उन्हें सम्राजिय जुए से बचायेगा | उन्हें इस राजनितिक उद्धार के अहंकार की आशा इस लिये थी क्योंकि वे परमेश्वर की सही प्रभुसत्ता से अज्ञान थे | वो धर्म और राजनीती का अंतर ना समझ सके | उनका परमेश्वर फौजी था | वो हमारे प्रभु यीशु के पिता को नहीं जानते थे, जो सारे आराम और शान्ति का परमेश्वर है | जी हाँ वो सज़ा की तौर पर आक्रमण की लड़ाई कि आज्ञा देता है परन्तु इस तरह की लड़ाइयों और सखतियों से राज्य नहीं बनता बल्कि वह आप की आत्मा के द्वारा सत्य और शुद्धता में बनता है |

मसीह अपने पिता के सिद्धांतों का स्पष्ट रूप से प्रतिनिधित्व करते हुए आये परन्तु यहूदियों ने प्रेम और मेल मिलाप की आत्मा को अस्विकार किया | उन्होंने उग्रवाद और लड़ाई का मार्ग अपनाया | वह सब राष्ट्र जो मेल मिलाप करने वाले मसीह को स्वीकार नहीं करते वे यहूदियों की तरह वैसे ही पाप में पड़ जाते हैं | हमारे पाप को नैतिक दोष के समान न समझना चाहिए बल्कि वह परमेश्वर से हमारी शत्रुता और हमारा उसकी मेल मिलाप करने वाली आत्मा को अस्विकार करना जताता है |

लोगों का यीशु को आपके राज्य और मेल मिलाप करने को अस्विकार करने का मूल कारण सत्य परमेश्वर का ज्ञान न होना है | लोग अपने देवताओं की कल्पना अपने अपने मन की लहर के अनुसार करते हैं | परन्तु यीशु ने हम पर प्रेम करने वाले परमेश्वर को प्रगट किया | जो प्रेम को अस्विकार करता है वह आतंक और भ्रष्टाचार के मार्ग पर चलता है और जो मसीह को अस्विकार करता है वह सत्य परमेश्वर को अस्विकार करता है |

यूहन्ना 15:24-25
“24 यदि मैं उन में वे काम न करता जो और किसी ने नहीं किए, तो वे पापी नहीं ठहरते; परन्तु अब तो उन्होंने मुझे और मेरे पिता दोनों को देखा और दोनों से बैर किया | 25 यह इसलिये हुआ कि वह वचन पूरा हो, जो उनकी व्यवस्था में लिखा है, ‘उन्होंने मुझ से व्यर्थ बैर किया |”

यीशु ने दावा किया कि परमेश्वर के पितृत्व की घोषणा उन लोगों के लिये न्याय की घोषणा होगी जो आप की आत्मा और उसके साथ आप के अनेक आश्चर्यकर्मों का विरोध करते हैं | दुनिया में कोई व्यक्ति यीशु की तरह लोगों को ना चंगा कर सका या दुष्ट आत्माओं को निकाल सका या तूफान को शांत कर सका, हजारों लोगों को खाना खिला सका और मृतकों को ज़िन्दा कर सका | परमेश्वर इन चिन्हों के साथ यीशु में होकर काम करता रहा और नई उत्पत्ती के सिद्धांत देता रहा | यहूदियों को इन आश्चर्यकर्मों में कोई महत्वपूर्ण बात दिखाई न दी क्योंकि इन में राष्ट्र के लिये कोई राजनीतिक या आर्थिक लाभ न था | परन्तु जैसे ही उन्होंने यीशु के प्रेम का अधीकार देखा, यही आश्चर्यकर्म उनके लिये ठोकर का कारण बन गये क्योंकि वो पिता पर विश्वास न कर पाये | जिस तरह यहूदियों ने अपने प्राण को पवित्र आत्मा के आकर्षण से वंचित किया उसी तरह आज भी लाखों लोग ऐसी आत्मा की कैद में जी रहे हैं जो परमेश्वर पर दमन करती है | जो लोग यह स्वीकार नहीं करते कि यीशु परमेश्वर के पुत्र हैं वह आप के अनुयायियों से घृणा करते हैं और परमेश्वर को निष्ठा से नहीं जानते, अपने पाप में बने रहते हैं और पवित्र त्रिय के विरुद्ध धर्मद्रोह करते हैं | तथापि यीशु ने उन्हें सज़ा नहीं दी बल्कि अपने सेवकों के द्वारा प्रेम के काम करते रहे | ऐ भाई, इस आत्मिक संघर्ष के लिये तैयार हो जाओ और अपने प्रभु से शक्ति मांगो ताकि धीरज के साथ इसे सहन कर सको और कष्ट भोगने के लिये तैयार हो सको |

प्रार्थना: हे प्रभु यीशु, हम आप का धन्यवाद करते हैं कि लोगों की घ्रणा के बावजूद आप ने अपने उद्देश पूरे किये | हमें अपने शत्रुओं से प्रेम करना सिखाइये ताकि वे उद्धार पायें | अनेक लोगों के दिल खोल दीजिये ताकि वे आप की सांत्वना देने वाली आत्मा को स्वीकार करें, आपकी आवाज सुनें और आप की इच्छा पूरी करें | हमारी अगुवाई कीजिये और हमें अधिक शक्ति और धैर्य प्रदान कीजिये |

प्रश्न:

97. दुनिया मसीह से और आप से प्रेम करने वालों से घ्रणा क्यों करती है?

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