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स) कुम्हार और उसके बर्तन की शिक्षाप्रद कथा यहूदियों और ईसाईयों की है (रोमियो 9:19-29)
रोमियो 9:19-29
19 सो तू मुझ से कहेगा, वह फिर क्योंदोष लगाता है? कौन उस की इच्छा का साम्हना करता हैं? 20 हे मनुष्य, भला तू कौन है, जो परमेश्वर का साम्हना करता है? क्या गढ़ी हुई वस्तु गढ़नेवाले से कह सकती है कि तू ने मुझे ऐसा क्यों बनाया है? 21 क्या कुम्हार को मिटी पर अधिकार नहीं, कि एक ही लौंदे मे से, एक बरतन आदर के लिये, और दूसरे को अनादर के लिये बनाए? तो इस में कौन सी अचम्भे की बात है? 22 कि परमेश्वर ने अपना क्रोध दिखाने और अपनी सामर्थ प्रगट करने की इच्छा से क्रोध के बरतनों की, जो विनाश के लिये तैयार किए गए थे बड़े धीरज से सही। 23 और दया के बरतनों पर जिन्हें उस ने महिमा के लिये पहिले से तैयार किया, अपके महिमा के धन को प्रगट करने की इच्छा की? 24 अर्यात् हम पर जिन्हें उस ने न केवल यहूदियों में से बरन अन्यजातियों में से भी बुलाया । 25 जैसा वह होशे की पुस्तक में भी कहता है, कि जो मेरी प्रजा न थी, उन्हें मैं अपनी प्रजा कहूंगा, और जो प्रिया न थी, उसे प्रिया कहूंगा। 26 और ऐसा होगा कि जिस जगह में उन से यह कहा गया था, कि तुम मेरी प्रजा नहीं हो, उसी जगह वे जीवते परमेश्वर की सन्तान कहलाएंगे ।27 और यशायाह इस्त्राएल के विषय में पुकारकर कहता है, कि चाहे इस्त्राएल की सन्तानों की गिनती समुद्र के बालू के बारबर हो, तौभी उन में से थोड़े ही बचेंगे । 28 क्योंकि प्रभु अपना वचन पृथ्वी पर पूरा करके, धामिर्कता से शीघ्र उसे सिद्ध करेगा । 29 जैसा यशायाह ने पहिले भी कहा था, कि यदि सेनाओं का प्रभु हमारे लिये कुछ वंश न छोड़ता, तो हम सदोम की नाईं हो जाते, और अमोरा के सरीखे ठहरते।।
मनुष्य की इच्छा, उसका गर्व, और उसकी न्याय की अनुभूति, परमेश्वर के चयन, इच्छा और कार्यों के विरोध में विद्रोह करती है| अवज्ञाकारी मनुष्य उस चींटी के समान है जो हाथी से कहती है: “तुम मेरे ऊपर क्यों चलते हो?” (यशायाह 45:9)
मनुष्य को परमेश्वर से प्रश्न करने या उनसे क्रोधित होने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि परमेश्वर की असीमित विद्वत्ता, उनकी पवित्रता और उनके प्रेम की अपेक्षा मनुष्य के ज्ञान की सीमा और उसको विरासत में मिली मानवीय क्षमता बहुत सीमित और पर्याप्त से बहुत कम है|
वह जो परमेश्वर में इस युग में पूरा विश्वास करता है जबकि व्यक्तियों और राज्यों के हृदय कठोर बन चुके है, उसके पास इस संसार के परमेश्वर के प्रति अंधी आज्ञापालन होना चाहिये और उनको शुक्रगुजारी के साथ झुककर प्रणाम करना चाहिए| केवल यही एक पाठ है जिससे हम इस तथ्य को स्वीकार कर सकते हैं कि एक हिटलर जैसे इन्सान ने छ: लाख यहूदियों को उसकी भट्टी में मार देने की आज्ञा दी थी, एक भी इन्सान इस योग्य नहीं था जो उसे रोक पाये या उससे प्रश्न पूछ पाये| इसी प्रकार से क्या हम समझ सकते है क्यों स्टालिन ने अपनी राष्ट्रिय योजनाओं के परिपालन के अंतर्गत 20 लाख खेतिहर मजदूरों को मार डालने की अनुमति दी थी और किसी एक भी क्यक्ति ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया|
पौलुस ने परमेश्वर के न्याय की क्याख्या करने के लिए हमारे सामने एक तुलना प्रस्तुत की: कुम्हार एक ही मिटटी के ढेले से एक प्रशंसनीय एवं सम्मानीय उपयोगों के लिए, और दूसरा कूड़ा उठाने के लिए एक घृणित बर्तन बनाता है| (यिर्मयाह 18: 4-6)
उपदेशक ने इस कथा की गहराई तक जाकर, परमेश्वर के क्रोध के बर्तनों के बारे में कहा था, जो कि परमेश्वर एक लंबे समय से धैर्यपूर्वक सहन कर रहे थे, और अन्त में उनको नाश करने के लिए गिरा चुके थे| पौलुस ने यह भी कहा था कि परमेश्वर ने उनकी दया के बर्तनों की योजना पहले से बना ली थी, और उनको अपनी महिमा लाने के लिए तैयार किया था| इसलिए उनकी दया के बर्तन, सृष्टिकर्ता की महिमा के प्रसार से आते हैं, और वापस उनके पास लौट जायेंगे|
पौलुस ने, अपने पूरे जीवन के अनुभव के ज्ञान के आधार पर, दया से रिक्त एक दर्शन शास्त्र को विकसित नहीं किया है, परन्तु वह लोग जो परमेश्वर के क्रोध के तले दूर हो गये और वह लोग जो उनकी दया में महिमामयी हुए के बीच के अलगाव की व्यख्या करते है, जो केवल अन्यजातियों पर ही नहीं बल्कि चुने हुए यहूदियों पर भी लागू होता है| इस बात को स्पष्ट करने के लिए, आप होशे (2:23) को परमेश्वर का रहस्य प्रकटीकरण भी शामिल करते है कि वे उन लोगों को जो उनके लोग नहीं थे को भी अपने लोग बनायेंगे| उपदेशक पतरस भी अन्यजाति के विश्वासियों को लिखी अपनी पत्री में इस बात की पुष्टि करते है: “परन्तु तुम एक चुने हुई पीढ़ी एक राजकीय पुरोहिताई, एक पवित्र राज्य, उनके विशेष अपने लोग हो, कि तुम उनकी प्रशंसा की घोषणा कर पाये जिन्होंने तुम को अंधियारे में से अपनी अद्भुत रौशनी की ओर बुलाया, जो पहले एक लोग नहीं थे परन्तु अब परमेश्वर के लोग हो, जिन्होंने पहले दया प्राप्त नहीं की थी, किन्तु अब दया प्राप्त कर चुके हो|” (1 पतरस 2:9-10)
पौलुस के अनुसार यह एक दिव्य उद्देश्य है, कि परमेश्वर उनको चुनते है जो चुने हुए नहीं है, और उनको बुलाते है जो परमेश्वर की संतान बनने के लिए नहीं बुलाए गये थे (रोमियों 9:26; 1 यूहन्ना 3:1-3)| इसी समय उपदेशक स्पष्ट करते है कि, उपदेशक यशायाह इस बात को जान गये थे कि परमेश्वर इन चुने हुए अवज्ञाकारी लोगों को महान कष्ट की ओर ले जाते है, और यदि वे अपनी हठ में लगातार बने रहे तो परमेश्वर उनका नाश करेंगे, हालांकि उन्होंने पहले ही कहा था कि वे समुद्र की रेत के समान अनगिनत होगे|
जीवन्त परमेश्वर अपने हठी लोगों का ध्यान रखते हैं| उनमे से सभी का नाश नहीं होगा, परन्तु कुछ पवित्र शेष स्पष्ट रूप से उभर कर सामने आयेंगे, जिनमे परमेश्वर के वादों को महसूस किया जायेगा (यशायाह 11:1-6); जबकि बुलाए हुए में से अधिकांश सदोम और अमोरह के समान बन जायेंगे जिनका विनाश हो गया था (यशायाह 1:9)|
पौलुस प्रेमपूर्वक रोम के यहूदियों को यह सिखाना चाहते थे कि परमेश्वर के पास बगैर चुने हुए अन्यजातियों को बचाने और उन्हें पूर्णतया उनके अपराधों से छुड़ाने का अधिकार है, जबकि वे विश्वासी यहूदियों को तब तक कठोर कर देते है जब तक कि उनका नाश न हो जाये| यह अनुभव सैद्धांतिक तर्क समान नहीं आया है, बल्कि उपदेशक ने यह अपने हृदय में यहूदियों के विषय में अनुभव किया था जिनको अपनी स्वयं की धार्मिकता पर गर्व था| आपने उनको प्रायश्चित की ओर ले जाने की जी तोड़ कोशिश की, ताकि वे इस बात को स्वीकार करें कि यीशु ही वादा किये हुए मसीहा है जो उन्हें उद्धार दान करते है| परंतु अधिकांश यहूदियों ने यीशु को आज तक भी स्वीकार नहीं किया है|
प्रार्थना: ओ स्वर्गीय पिता, हमें हमारे सतहीपन के लिए क्षमा करे यदि हमने आपके धैर्य को जो आपने हमारे साथ प्रयोग किया है, नहीं पहचाना है| आपने हमसे एक लंबे समय से प्रेम किया और हमें दंड या हमारा नाश नहीं किया| हमें पूर्णतः हमारे अपराधों से छुडाया ताकि हम धन्यवाद रूप में और आभार के साथ आपके प्रेम का आदान प्रदान कर पाये और आनंदपूर्वक आपकी पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन की आज्ञा का पालन कर पाये|
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