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Home -- Hindi -- The Ten Commandments -- 13 Conclusion: The Law and the Gospel

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विषय ६: दस आज्ञाएँ - परमेश्वर की सुरक्षा करने वाली दीवार जो मनुष्य को गिरने से बचाती हैं|
सुसमाचार की रोशनी में निर्गमन २० में दस आज्ञाओं का स्पष्टीकरण

१३ -- निष्कर्ष: कानून और सुसमाचार



एक धर्म गुरु ने यीशु को एक बार पूछा था, “नियम में सबसे विशाल आज्ञा क्या है?” यीशु ने व्यवस्थाविवरण ६:५ और लैव्यव्यवस्था १९:१८ के दो वचनों के साथ उत्तर दिया था, “और तुम्हे यहोवा, अपने परमेश्वर से अपने सम्पूर्ण ह्रदय, आत्मा और शक्ति से प्रेम करना चाहिए| (व्यवस्थाविवरण ६:५) लोग, जो तुम्हारा बुरा करें, उसे भूल जाओ| उससे बदला लेने का प्रयत्न न करो| अपने पडोसी से वैसे ही प्रेम करो जैसे अपने आप से करते हो| मै यहोवा हूँ!” (लैव्यव्यवस्था १९:१८)

इस शब्दों के साथ यीशु ने दस आज्ञाओं का सही संक्षिप्त रूप कर दिया था| जबकि दस आज्ञाओं का पहला भाग परमेश्वर के साथ हमारे संबंधों का उल्लेख और उनको हमारे निर्माता, रक्षक, और सुखदायक प्रमाणित करता है, और दूसरा भाग हमारे मानवरूपी भाई के साथ हमारे संबध और स्पष्ट रूप उसके प्रति हमारी सेवाभावना को दर्शाता है|

यीशु ने व्याकुल करने वाला नकारात्मक उत्तर इस देव मानव को नहीं दिया था| उन्होंने हमें क्या नहीं करना चाहिए के बारे में कुछ नहीं कहा था| इसके बदले उन्होंने उसे आनंदपूर्वक सकारात्मक रूप से कानून की भरीपूरी करने की और मार्गदर्शन किया था| दोनों आज्ञाओं को एक उद्देश्य में संक्षिप्तिकरण कर सकते हैं परमेश्वर से और लोगों से शुद्ध प्रेम के साथ प्रेम करो| हमें अपने आपको परखना चाहिए और देखना चाहिए कि हम परमेश्वर से कितना प्रेम करते हैं और वास्तव में हम अपने मित्रों और शत्रुओं से भी कितना प्रेम करते हैं| इस बिंदू पर हम देख सकते हैं कि किस सीमा तक हम दस आज्ञाओं का पालन करते हैं|


१३.१ -- क्या हम परमेश्वर से प्रेम करते हैं?

परमेश्वर के लिए प्रेम अत्यधिक विस्तृत एवं दबाव डालने वाली आज्ञा है कि हमारे समय, धन और योजना में हमारे लिए कुछ भी शेष नहीं बचेगा यदि हम सत्यतापूर्वक परमेश्वर से प्रेम करते हैं| हमने आत्मा, जीवन शक्ति और शरीर उनसे प्राप्त किये हैं; हमारी इच्छाएँ, चाहत और आशा उनके प्रेम द्वारा निर्मित और भरी हुई हैं| पवित्र सृष्टिकर्ता और उद्धार करने वाले रक्षक हमारे जीवनों के केंद्र बिंदु होने चाहिए| उन के अलावा कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है| वह एक जलनशील परमेश्वर हैं जो हमारे अविभाजित, पूर्ण प्रेम की अपेक्षा करते हैं| वह इस प्रेम को किसी के साथ बाँटना नहीं चाहते हैं| इसीलिए हमें इस प्रश्न का सामना करना पड़ता है: क्या हम परमेश्वर से वैसा ही प्रेम करते हैं जैसा वो हमसे करते थे और अब तक करते हैं? हम उनसे कितना प्रेम करते हैं? क्या हम उनसे भावनात्मक रूप से अपने विचारों में, उनके कार्यों को ध्यान में रखते हुए प्रेम करते हैं ताकि हम उनकी इच्छा जान सके और उसे पूरा करने के लिए उनकी सहायता माँग सके? क्या हम अपने पूरे मन और शरीर के साथ उनके उस अनुग्रह के दान के लिए जिसके द्वारा हम एक नयी जिंदगी, जो हम जी रहे है, प्रदान करने के लिए उनकी प्रशंसा करते हैं| जो कार्य हमें करने चाहिए वो हम करें और जो नहीं करने चाहिए वो ना करते हुए हमें उनका आदर करना चाहिए हमारे विविध प्रकार के पापों के लिए, बिना किसी मूल्य के यीशु मसीह की क्षतिपूर्ति मृत्यु द्वारा, हमें पूरी तरह से क्षमा प्रदान करने के लिए हमें उनका धन्यवाद करते रहना चाहिए| हम आनंद, शांति और सुखदायक आत्मा जो उन्होंने हमारे हृदयों में उंडेल दी थी के लिए उनकी प्रशंसा करें| हमारा प्रेम पर्याप्त नहीं हैं| हम हमेशा अपने पूरे ह्रदय और आत्मा के साथ परमेश्वर से प्रेम नहीं करते हैं| इसीलिए हमें हमारे प्रभु की सहायता की आवश्यकता है, हालांकि हम उनसे प्रेम करते है जो हमें आवश्यक रूप से करना चाहिए| उपदेशक पौलुस हमें दर्शाते हैं कि कैसे परमेश्वर हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर देते हैं, “जो हमें दिया गया है, परमेश्वर का प्रेम हमारे ह्रदय में उंडेल दिया गया है|” (रोमियों ५:५ब) हमारे स्वर्गीय पिता हमें स्वयं उनका प्रेम प्रदान करते हैं ताकि हम सत्यतापूर्वक उनसे प्रेम कर सके| जैसे ही पवित्र आत्मा हममें निवास करता है, हमारे ह्रदय उनके प्रेम से भर जाते हैं|


१३.२ -- क्या हम अपने भाई से अपने समान प्रेम करते हैं?

प्रेम की आत्मा हमें अपने आस पास के लोगों को परमेश्वर की आँखों से देखने के योग्य बनाती है| आओ इसलिए हम यीशु के अनुग्रह के साक्षी बने, पापियों के लिए उनके मुक्तिदायक प्रेम का वर्णन करें| हम उनके लिए प्रार्थना करेंगे और उनकी सेवा करेंगे यदि हम उनसे वैसा ही प्रेम करते हैं जैसा हम अपने आप से करते हैं| यदि हमें भूख लगती है हम भोजन प्राप्त करने का प्रत्येक संभव प्रयास करते हैं| यदि हमें भय लगता है हम उससे बचने का प्रयास करते हैं| यदि हम थक जाते है हम गहरी नींद सोते हैं| इसी प्रकार से यीशु मसीह का प्रेम भूखों को तृप्त कराने, दुःख में डूबे हुओं को उससे मुक्त कराने और थके हारों को सुख के साधन उपलब्ध कराने में हमारा मार्ग दर्शन करता है| मसीह प्रत्येक से बहुत प्रेम करते हैं इसलिए उन्होंने अपने आपको हमारे बराबर बनाया था| वह हम मे से एक बने| उन्होंने पहले ही हमें दर्शाया था कि वह राजाओं के राजा, अपने अनुयायियों से न्याय के दिन क्या पूछेंगे “फिर वह राजा, जो उसके दाहिनी ओर हैं, उनसे कहेगा, ‘मेरे पिता से आशीष पाए लोगो, आओ और जो राज्य तुम्हारे लिए जगत की रचना से पहले तैयार किया गया है उसका अधिकार लो| यह राज्य तुम्हारा है क्योंकि मै भूखा था और तुमने मुझे कुछ खाने को दिया, मै प्यासा था और तुमने मुझे कुछ पिने को दिया| मै पास से जाता हुआ कोई अनजाना था, और तुम मुझे भीतर ले गए| मै नंगा था, तुमने मुझे कपडे पहनाए| मै बीमार था, और तुमने मेरी सेवा की| मै बंदी था, और तुम मेरे पास आये|’ फिर उत्तर में धर्मी लोग उससे पूछेंगे, ‘प्रभु, हमने तुझे कब भूखा-देखा और खिलाया या प्यासा देखा और पिने को दिया? तुझे हमने कब पास से जाता हुआ कोई अनजाना देखा और भीतर ले गए या बिना कपड़ों के देखकर तुझे कपडे पहनाए? और हम ने कब तुझे बीमार या बंदी देखा और तेरे पास आये?’ फिर राजा उत्तर में उनसे कहेगा, ‘मै तुमसे सच कह रहा हूँ जब कभी तुमने मेरे भोले-भाले भाईयों में से किसी एक के लिए भी कुछ किया तो वह तुमने मेरे ही लिए किया|’” (मत्ती २५:३४-४०)|

मसीह ने अपने व्यक्तित्व में परमेश्वर के प्रेम और मनुष्य के प्रेम को एक साथ जोड़ दिया है| वह अपने प्रेम में हमें प्रमाणित करेंगे ताकि हम परमेश्वर की और साथ ही साथ उनकी भी जो जरूरत मंद हैं की सेवा कर सके| हम उनकी सेवा अपने-आप को बचाने के लिए नहीं, परंतु क्योंकि हम बचाए जा चुके हैं, हम परमेश्वर और लोगो की सेवा कृतज्ञता पूर्वक और इच्छापूर्वक करें| हमारे अच्छे कार्यों के द्वारा हमारी आत्म धर्मपरायणता पर हमारा प्रेम आधिरित नहीं है जैसा कि मुस्लिम सोचते हैं, परंतु वह उद्धार जो सभी के लिए यीशु मसीह में निष्पादित हुआ है, आधारित है|


१३.३ -- एक अत्यंत गहरा अर्थ

प्रभु यीशु मसीह द्वारा उद्धार का सुसमाचार हमें मूसा के कानून का अत्यंत गहरा अर्थ ग्रहण करने के लिए हमारा मार्गदर्शन करता है| अन्य शब्दों में दस आज्ञाएँ हमें स्वयं अपने आप का विनाश करने से बचाने और हमारी खुशियों को सुरक्षित बनाये रखने के लिए हैं | यीशु ने अमीर आदमी से कहा था, “ आज्ञाओं का पालन करो और तुम अनंत जीवन के उत्तराधिकारी होगे |” निसंदेह जो राज्य परमेश्वर की आज्ञाओं पर चलता है और उनके द्वारा जीवन जीता है, प्रत्येक मार्ग में अनगिनत आशीषों का अनुभव करेगा|

लेकिन यदि हम कानून पर ध्यान मनन करें यह हमारे गर्व को हिला और हमारी सच्चरित्रता पर प्रश्न करेगा| कानून निरा निर्देशतत्व नहीं परन्तु इसका उद्देश्य, परमेश्वर को हमारा पूर्ण समर्पण और पाप से पूर्ण अलगाव है| प्रभु प्राय: कहते थे, “पवित्र रहो, क्योकि मैं पवित्र हूँ| “परमेश्वर आडम्बरी धर्मपरायणता या प्राकृतिक धार्मिकता जो कि अन्यधर्मों द्वारा प्रदर्शित की जाती है, के साथ संतुष्ट नहीं होते हैं| वह हममें परिवर्तन करना चाहते हैं और हमें हमारे विद्रोहीपन से वचन और कार्यों द्वारा उनकी अपनी छबी में पुनर्स्थापित करना चाहते हैं| यीशु ने हमें आज्ञा दी थी, “परिपूर्ण बनो, क्योकि स्वर्ग में तुम्हारे पिता परिपूर्ण हैं| “उन्होंने विशेषरूप से अपने शत्रुओं से प्रेम करने और दरिद्रों पर दया करने का अभिदेश दिया है ठीक उसी प्रकार से जिस प्रकार से हमारे स्वर्गीय पिता हमसे करते हैं|


१३.४ -- क्या कानून हमारे विनाश का कारण है ?

यदि कोई व्यक्ति पवित्र परमेश्वर की मांगों को समझता है, और उन्हें निष्ठापूर्वक पालन करने का प्रयत्न करता है, शायद वह सिहर जायेगा और पूछेगा,” क्या मनुष्य ठीक वैसे ही प्रेम कर सकता है जैसे परमेश्वर करते हैं? और कौन वैसा पवित्र है जैसे परमेश्वर पवित्र हैं? कानून हमारे रहस्यों को प्रकट करता है; यह पवित्रता का आईना हमारे मुख के सामने लाता है और पापों को प्रकट करता है| कानून आत्मतुष्ट पापियों को अनुशासित करता है और उनको उनकी नींद से जगाता है| परमेश्वर का न्याय सभी के लिए अनंत दण्ड को शामिल करता है| यदि कोई व्यक्ति सम्पूर्ण कानून का पालन करता है और एक बिंदु पर डगमगाता है वह सभी बातों में अपराधी बन जाता है|

यदि कोई दस आज्ञाओं की रोशनी में अपने जीवन का परिक्षण करता है, अपने जीवन के प्रत्येक दिन में छोटी और बड़ी मूर्तियों को देखता है, सोचता है कि कैसे प्रायः ही उसने परमेश्वर के नाम का दुरुपयोग किया है और सब्त के दिनों को अपवित्र किया है, वह इस बात को समझ पायेगा कि उसे बहुत पहले ही परमेश्वर द्वारा मौत की अनंत सजा दी जा चुकी है| यदि कोई अपने आप को मसीह की पवित्रता के पलड़े के विरुद्ध नापता है, वह स्वयं में पिस जायेगा, और यह निष्कर्ष निकालेगा कि कानून का उद्देश्य सभी लोगों का विनाश है|

हमें प्रायश्चित करने में लगातार आगे बनाये रखने के लिए कानून हमारी अस्वच्छताओं को प्रकट करता है| कानून हमारी आत्म धर्मपरायणता और गर्व को तोड़ता है| यद्यपि, हम एक पवित्र परमेश्वर के सम्मुख काँपते हुए खड़े हैं, और जानते हैं कि हमारी अपनी आत्मा धर्मपरायणता के आधार पर नहीं परन्तु उनकी महान करुणा के आधार पर हमारा न्याय किया गया था| हम कानून के मूल अभिप्राय को स्वीकार कर सकते है क्योंकि हम ईसाईं लोग अब और अधिक कानून के अंतर्गत नहीं आते, परन्तु यीशु के अनुग्रह के अंतर्गत आते हैं|

यीशु, बप्तिस्मा देने वाले यूहन्ना के पास आये थे और जिन लोगों ने अपने पापों को स्वीकार किया था और यर्दन नदी में बप्तिस्मा लिया था को अपना शिष्य बनाया था| उन्होंने उन लोगों में से जो कानून का पालन करने का दावा और अपनी धर्मपरायणता का ढोंग करते हैं, अपने शिष्यों का चुनाव नहीं किया था| इसके स्थान पर उन्होंने उनको चुना था, जिन्होंने अपने पापों को स्वीकार किया और परमेश्वर के न्याय से बचने का प्रयत्न किया था, जिन्होंने अपने पुराने स्वभाव को नकार कर उसे बपतिस्मे के पानी में डुबो कर मार दिया था| यीशु उन लोगों को आध्यात्मिक रूप से ऊपर उठा कर उनका निर्माण व कानून के दण्ड से बाहर निकाल कर लाने में सक्षम थे| अब जब उन लोगो ने वास्तव में प्रायश्चित किया था, यीशु उन्हें गलील के पहाड़ पर ले गये और स्वयं अपने साथ मित्रता में रखा था| कानून ने अपना कार्य पूरा कर दिया था| अब कानून देनेवाला व्यक्तिगत रूप से आये थे और अपने अनुयायियों की ग्लानी को दूर लेकर चले गए थे| यीशु ने कानून की अनिवार्यताओं को पूरा किया था, जो कि यीशु की प्रशंसा करने में उनके अनुयायियों का नेतृत्व करता है| परमेश्वर हमारे साथ है| एकमात्र परिपूर्ण, अपरिपूर्ण व्यक्तियों के पास आये थे| न्यायाधीश रक्षक बने जो पापियों का उद्धार करने के लिए नीचे उतर आये|


१३.५ -- यीशु द्वारा कानून की शर्तें पूरी की गई

यीशु ने मूसा के कानून के साथ क्या किया? उन्होंने पूर्णरूप से उसका निर्वाह एक ऐसे प्रकार से जो कोई भी नहीं कर पाया होगा किया| वह नम्र और संतोषी बने रहे| उन्होंने धन को अपने ऊपर राज करने नहीं दिया| वे हमेशा अपने पिता की महिमा करते थे| यीशु ने पिता का सर्वोच्च नाम १६८ बार से अधिक बार लिया था| सुसमाचार में पिता उनके जीवन के प्रमुख केंद्र हैं| पिता का प्रेम और पुत्र का प्रेम एकता में स्थापित हुआ था जैसे यीशु ने कहा था “मै और पिता एक है| पिता मुझ में हैं, और मै पिता में हूँ |” पिता का प्रेम और पवित्रता यीशु में अवतरित हुए हैं जिन्होंने कहा था, “वह जो मुझे देख चुका है, पिता को देख चुका है|

यीशु अपनी माता से प्रेम और उनकी आज्ञा का पालन करते थे, हमेशा वे उनके साथ रहते थे, जैसा कि कुरान में सूरा मरयम १९:३२ में वर्णन है|

यीशु अपने शत्रुओं से प्रेम करते थे उन्होंने दाऊद या मुहम्मद के समान विवाह नहीं किया था| वे पापियों और कर वसूली अधिकारियों के साथ भोजन करते थे और प्रायश्चित करने के लिए उनकी अगुवाई करते थे| उनके पास उनका अपना एक घोडा नहीं था, और उन्हें अपने एक मित्र को एक गधा देने के लिए कहना पड़ा था जब उन्होंने यरूशलेम में प्रवेश किया था| उन्होंने अपने वचन और कार्य दोनों में एक पापरहित, पवित्र जीवन जिया था| कोई झूठ, वासना, इच्छा या स्वार्थ पूर्ण उद्देश्य, यीशु की पवित्रता और परिपूर्णता को कभी भी भ्रष्ट नहीं कर पाये था| वह पापरहित बने रहे, अपने शत्रुओं से और सभी लोगो से इतना प्रेम किया कि स्वयं को उनके बराबर बना दिया था| वह जानते थे कि उन्हें अपने जीवन को बहुतों के लिए फिरौती के रूप में देना होगा| सभी पापियों के लिए उनकी मुक्तिकारक मृत्यु कानून की अंतिम पूर्ति मानी गई थी: “बड़े से बड़ा प्रेम जिसे कोई व्यक्ति कर सकता है, वह है अपने मित्रों के लिए प्राण न्योछावर कर देना|” (युहन्ना १५:१३)|

यीशु परमेश्वर की पवित्र आत्मा से, सभी लोगों के स्थान पर कानून की शर्तों को पूरा करने के लिए, पैदा हुए थे| वह परमेश्वर के परिपूर्ण मेमने के समान मरने की इच्छा करते थे| वे पापों को पूर्ण रूप से दूर ले गए, और यीशु कानून के पूर्णक बन गए जैसा कि पौलुस ने लिखा था, “मसीह ने व्यवस्था का अंत किया ताकि हर कोई जो विश्वास करता है, परमेश्वर के लिए धार्मिक हो|” (रोमियों १०:४)| कानून उन लोगों पर कोई आरोप नहीं लगाता जो यीशु की प्रतिस्थानिक मृत्यु द्वारा मुक्त हो चुके थे, क्योंकि वे कानून के दबाव से स्वतंत्र है| वो लोग, यीशु के साथ मर चुके थे| अब यदि पुत्र किसी को स्वतंत्र करते हैं, वह निश्चित ही स्वतंत्र है और पवित्र परमेश्वर का क्रोध उस पर नहीं गिरेगा| उनके अनुयायी न्यायोचित हो ही चुके हैं और अंतिम दिन को होनेवाले विस्मयकारी न्याय से दोषरहित माने जायेंगे| केवल एक दान द्वारा यीशु ने अपने स्वयं के पवित्र किये हुओं को परिपूर्ण कर दिया है| वह जो यीशु को ठुकराते है, न्याय के दिन उनके सामने खड़े होंगे और पहाड़ों को कहेंगे कि, “वे पहाड़ों और चट्टानो से कह रहे थे ‘हम पर गिर पड़ो और वह जो सिंहासन पर विराजमान है तथा उस मेमने के क्रोध के सामने से हमें छिपा लो’ ”| (प्रकाशित वाक्य ६:१६) (लुका २३:३०)| जो भी परमेश्वर के मेमने द्वारा न्यायोचित होने को ठुकराता है, कानून के नियंत्रण में रहता है और कानून द्वारा उसका न्याय होगा|

यहाँ तक कि मुहम्मद ने भी स्वयं अपने या अपने अनुयायियों के स्वर्ग में जाने का कोई आश्वासन नहीं दिया है, बल्कि वह परमेश्वर के रोषपूर्ण न्याय की कल्पना करते थे जैसा कि वे स्वीकार करते थे कि प्रत्येक मुस्लिम ने अपने अच्छे बुरे कार्यों के अनुसार नर्क में जाना और वहाँ एक निश्चित समय तीव्र आग की लपटों में बिताना चाहिए, (सूरा मरिर्यम १९:७१) किसीभी मुस्लिम के उद्धार की कोई आशा नहीं है, क्योंकि उनकी आशा कानून पर निर्मित है और कोई इसका पालन परिपूर्ण रूप से नहीं कर पायेगा| फिर भी यीशु कहते हैं, “इसलिए वह जो उसके पुत्र में विश्वास करता है अनंत जीवन पाता है पर वह जो परमेश्वर के पुत्र की बात नहीं मानता उसे वह जीवन नहीं मिलेगा| इसके बजाये उस पर परम पिता परमेश्वर का क्रोध बना रहेगा|” (युहन्ना ३:३६)

ईसाई लोगो के बारे में क्या? क्या वे मुस्लिम लोगों और उन सभी से जो खो चुके हैं उत्तम हैं? ईसाईयों ने अपने सभी पापों को स्वीकार किया है और उसके लिए उन्हें बहुत खेद है| वे आध्यत्मिक रूप से टूट चुके हैं और वे नहीं भूल पाएंगे कि वे क्या और कौन थे| उनके घमंड पर परमेश्वर के पुत्र के बहे खून ने विजय पाई है जिसके कारण उन्होंने, उनसे अनंत जीवन पाया था|


१३.६ -- हममें यीशु का कानून

प्रभु की प्रशंसा हो! यीशु कानून के परिपूरक का मन अपने शिष्यों के लिए करुणा से भर गया था और उन्होंने उनके दिमागों पर दैवीय नियम लिख दिया और अपनी पवित्र आत्मा उनके हृदयों में डाल दी| न्यायोचित हो चुकने पर, वे नियमों के बगैर नहीं जी सकते न ही वे नियमों के दास बनकर जीते हैं| यह यीशु हैं जिन्होंने अपने अनुयायियों के हृदयों में नया आदेश डाल दिया है जैसा कि उन्होंने उनसे कहा था, “एक नई आज्ञा मै तुम लोगों को देता हूँ, कि तुम एक दुसरे से प्रेम करना, जैसा कि उन्होंने उनसे कहा था, “एक नई आज्ञा मै तुम लोगों को देता हूँ,कि तुम एक दूसरे से प्रेम करना, जैसा प्रेम मैंने तुमसे किया है तुम भी वैसा ही प्रेम एक दूसरे से करना | इसके द्वारा सब जान सकेंगे कि तुम मेरे शिष्य हो, यदि तुम एक दूसरे से प्रेम करो | “ इस आज्ञा में यीशु ने दस आज्ञाओं का संक्षिप्तीकरण कर दिया था और उन्हें यथार्थवादी बना दिया था | रोमियों १३:१० में पौलुस लिखते हैं, “ प्रेम पड़ोसी की कुछ बुराई नही करता, इसलिए प्रेम रखना व्यवस्था को पूरा करना है |”

यीशु की यह अनूठी आज्ञा शिष्यों के भय का कारण कभी नही थी तब से जब से यीशु ने उन्हें इसे पूरा करने के लिए आध्यात्मिक शक्ति प्रदान की थी| पौलुस, जो तोरह के विद्वान थे, ने इस सत्य को प्रकट किया है, “क्योकि जीवन की आत्मा की व्यवस्था ने मसीह यीशु में मुझे पाप की, और मृत्यु की व्यवस्था से स्वतंत्र कर दिया|” परमेश्वर की आत्मा यीशु के अनुयायियों में दैवीय फलों का निर्माण करता है: प्रेम, आनंद, मेल, धीरज, कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता और संयम| मसीह की शक्ति रोशनी की संतानों की साक्षी है, “क्योकि आत्मा का फल सब प्रकार की भलाई,और धार्मिकता, और सत्य है (इफिसियों ५: ९)|” ईसाई लोग कानून के तले नहीं हैं | परन्तु वे कोई बिना नियमों वाले लोग नहीं है, क्योकि मसीह का नियम उनमें रहता है और, ठीक उसी समय, उसे पूरा करने की शक्ति भी प्रदान करता है |


१३.७ -- वह मसीह के प्रचार पर जोर देते हैं

मसीह का प्रेम, अनुग्रह द्वारा बचाए हुओ का मार्गदर्शन करता है कि अब और अधिक स्वयम के लिए न जियें,परन्तु मसीह की धर्मपरायणता को सभी लोगों को बिना किसी मूल्य के प्रदर्शित करें| लोगों को प्रंशसा व सेवा के साथ मसीह के बारे में कहना हममें मसीह के प्रेम के होने का पहला परिणाम है| उनके शिष्य नियमों और सुसमाचार का प्रचार करने पूरे जगत में जाते हैं| कानून मनुष्य के पापी होने को सिद्ध करता है कि वह निंदा व न्याय का अधिकारी है जबकि सुसमाचार हमारे हृदय की आँखों के सामने यीशु को चित्रित करता है| सुसमाचार हमें आश्वासन देता है कि यीशु का अनुग्रह हमें कानून के न्याय से बचाता है| यीशु ने हमारे स्थान पर दैवीय न्याय की अनिवार्यताओं को पूरा किया, और अपनी असीमित करूणा में से अपनी स्वंय की धर्मपरायणता हमें प्रदान की थी| इसलिए हमें खोये हुए और अत्यधिक निराश लोगों के पास जाकर उन्हें अनंत आशा देना चाहिए| हमें मुस्लिम लोगों और उसी प्रकार से यहूदी लोगों से सम्पर्क करके उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए, “फिर उस ने उन से कहा, कि जाकर चिकना चिकना भोजन करो और मीठा मीठा रस पियो, और जिनके लिए कुछ तैयार नहीं हुआ उनके पास बैना भेजो; क्योकि आज का दिन हमारे प्रभु के लिए पवित्र है; और उदास मत रहो, क्योकि यहोवा का आनंद तुम्हारा दृढ गढ़ है (नहेमायाह ८:१०)|” अच्छी तरह से समझे और जान ले कि तुम्हारे लिए उद्धार तैयार है! बस इसे प्राप्त कर लो! तुम अब और अधिक निराशा में नहीं रहोगे जैसे अन्य लोग कानून के श्राप के तले रहते हैं, और नर्क की उन पर कोई शक्ति ही नहीं है जो मसीह में विश्वास करते हैं| यीशु प्रत्येक श्राप और दोषारोप और परमेश्वर का क्रोध स्वंय अपने ऊपर लेकर चले गये हैं “उसके दिनों में यहूदी लोग बचे रहेंगे, और इसरायली लोग निडर बसे रहेंगे| और यहोवा उसका नाम “हमारी धार्मिकता रखेगा|” (यिर्मयाह २३: ६ )| उनके पास आओ! उनपर विश्वास करो! उनके साथ एकता में रहो! वह अवतार लिया हुआ नियम है| उनके खून ने हमारे सभी पापो को साफ कर दिया है| उन्होंने हमें अपना पुनर्जीवन देने वाला प्रेम प्रदान किया है और वे हमें परमेश्वर व लोगों से विश्वसनीयता पूर्वक प्रेम करने की शक्ति देते हैं “प्रेम पड़ोसी की कुछ बुराई नहीं करता, इसलिए प्रेम रखना व्यवस्था को पूरा करना है (रोमियो १३:१०)|”


१३.८ -- पहेली

Dear Reader:
If you have read this book carefully, you can easily answer the following questions. We will be glad to send you another of our books as a prize for your diligence. Please make sure you write us your complete name and mailing address and enclose it with your answers.

  1. Write the Ten Commandments with the Bible reference.
  2. Why do Christians respect and obey the ten commandments?
  3. What is the profound meaning of God revealing Himself in the beginning as “I am the Lord“?
  4. What are the different meanings of Allah and Elohim?
  5. What is the spiritual significance of the Israelites' exodus from the house of slavery?
  6. “The Ten Commandments are crash barriers for those set free by grace.“ Explain.
  7. List some of the modern idols in your society.
  8. What does the Old Testament say about the unity of the Trinity?
  9. What Quranic verses point to the deity of Christ?
  10. How can the image of Christ be seen in His followers?
  11. Give examples of saying the name of the Lord in vain.
  12. Which kind of prayers would be questionable?
  13. What was the penalty for someone cursing his parents in the midst of the camp of the children of Israel?
  14. What blessing do we reap from keeping the Lord's day?
  15. What are the right ways to keep the Lord's day?
  16. Why did Christians substitute the first day of the week for the last day for worship? Why is this change legal?
  17. What is the blessing for honoring parents?
  18. What would you do if your parents were to resist the Gospel of Jesus?
  19. What was the first crime committed in the world? What caused it?
  20. What can the soldier's responsibility be in view of the sixth commandment?
  21. How can someone keep himself or herself clean from the sin of adultery?
  22. What are the privileges of marital life in the light of the New Testament?
  23. Why did David pray, “Create in me a new heart, O God“?
  24. There are modern forms of stealing. List them.
  25. What did the early Christians do with their money? What did the apostle Paul do to relieve them?
  26. What is the remedy which the apostle Paul offered to cure stealing?
  27. James provided three constructive examples which would lead us to repentance. List them.
  28. How can we escape the sin of lust?
  29. How can we receive a new heart and a new spirit?
  30. What is the summary of the Ten Commandments?
  31. How can you love God with all your heart and others as yourself?
  32. Why are we no longer under the law but in the grace of Jesus?

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