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Previous Lesson -- Next Lesson रोमियो – प्रभु हमारी धार्मिकता है|
पवित्र शास्त्र में लिखित रोमियों के नाम पौलुस प्रेरित की पत्री पर आधारित पाठ्यक्रम
भाग 3 - परमेश्वर की धार्मिकता मसीह के अनुयायियों के जीवन में दिखाई देती है। (रोमियो 12:1 - 15:13)
6. मनुष्यों के संबद्ध में आयतों का सारांश (रोमियो 13:7-10)रोमियो 13: 7-10 उपदेशक पौलुस के समय में विश्वासियों के लिए रोम राज्य का वित्तपोषण एवं शासन पद्धति का कोई महत्त्व नहीं था, क्योंकि ईसाई एक अल्प संख्या में थे और विधि निर्माण के कार्य पर उनका कोई प्रभाव नहीं था| इसलिए उपदेशक ने ईसाईयों को कर्तव्य और करो को बिना किसी छल कपट या बेईमानी के भुगतान करने के लिए, कानून और विनियमों को मानने के लिए, और सरकारी विभागों का आदर करने के लिए आदेश दिया था, यह जानते हुए कि अपराधियों और सत्ताधारियों के लिए प्रार्थना करना उनको आदेश दिया हुआ कर्तव्य था ताकि राज्य के सभी प्रधान विवेकपूर्ण एवं उचित रीती से कार्य कर पाये| परंतु रोम राज्य में परिस्थितिया सामान्य नहीं रही थी| उन्होंने मसीह का विरोध किया और उन् सभी ईसाई लोगों को, जो कैसर की उपासना नहीं करते थे, मार डालने का आदेश दिया था, और वे ईसाई लोगों को सार्वजनिक खेल के मैदानों में जंगली जानवरों के सामने शिकार के रूप में देकर मार डालते थे| पौलुस स्वयं एक रोम के नागरिक के रूप में जन्मे थे| आप स्वयं अपने आप को अपने शक्तिशाली राज्य के प्रति उत्तरदायी मानते थे, और यीशु के वचनों को अमल में लाना चाहते थे: “जो कैसर का है वह कैसर को दो, और जो परमेश्वर का है वह परमेश्वर को दो”| कलीसियाओं के सम्बंध में आप जानते थे कि सांसारिक सभी संविधानो से मसीह का नियम कंही ऊपर था, क्योंकि यीशु ने कहा था: “(यूहन्ना 13:34-35 मै तुम्हे एक नई आज्ञा देता हूँ, कि एक दूसरे से प्रेम रखो: जैसा मै ने तुम से प्रेम रखा है, वैसा ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो| यदि आपस में प्रेम रखोगे तों इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो|)” प्रत्येक ईसाई व्यक्ति जो उसी प्रकार से जैसे यीशु अपने शिष्यों से प्रेम करते थे, और उनकी सेवा करते थे, प्रेम करता है वह यीशु के आदेश को पूरा करता है| यह दैवीय प्रेम कलीसियाओं का आध्यादेश एवं संविधान है और इसके कार्यों की पूर्णता के लिए पवित्र आत्मा अनिवार्य शक्ति और सार है| ठीक इसी समय, मसीह ने मूसा की आयत को समाप्त नहीं किया था कि “(लैव्यव्यवस्था 19:18 पलटा न लेना, और ना अपने जाति भाइयों से बैर रखना, परंतु एक दूसरे से अपने ही समान प्रेम रखना; मै यहोवा हूँ|)” दस आयतों के दूसरे भाग द्वारा पौलुस इस आयत को समझते हुए कहते है: “किसी से ना घृणा करे, ना किसी की हत्या करे| व्यभिचार ना करें| अशुद्ध जीवन ना जिएं| चोरी न करे, परंतु कष्ट करे| किसी से उसकी दौलत के कारण ईर्ष्या न करे, परंतु परमेश्वर द्वारा तुम्हे दिए गये उपहारों के साथ संतुष्ट रहें| इन अध्यादेशों के अनुपालन से ही ‘अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम करे’ की आयत को पूर्ण करते है| उपदेशक केवल भावनात्मक या धाराप्रवाह रूप से ही कह नहीं रहे थे बल्कि आप इस बात पर महत्व दे रहे थे कि सबसे पहला और महत्वपूर्ण कदम सच्चे प्रेम के अभ्यास की ओर बढने का यह है कि व्यभिचार से, परहेज करे| आप चाहते थे कि दैवीय प्रेम अगापे, कामुक प्रेम इरोज के ऊपर विजय पाये| सच्चा प्रेम स्वार्थीपन पर नहीं पाया जाता परंतु यह जरुरत मन्द लोगो की देखभाल करने और उनकी सेवा करने में पाया जाता है| जैसे हम अन्य लोगों के दुखों, तकलीफों और पीडाओं में हिस्सा लेते है, हमने किसी के भी दुःख, तकलीफ, और पीड़ा का कारण नहीं बनना चाहिए बल्कि इसके स्थान पर हमने उनके कठिन समय में उनकी मदद, उनके दुःख में उनको तसल्ली, और उनकी जरुरत के समय उनको सहारा देना चाहिए| यह प्रश्न, “हमारे पड़ोसी कौन है?” का उत्तर भी मसीह द्वारा दिया गया था| इसका अर्थ है कि सिर्फ तुम्हारे रक्त सबंधी ही नहीं परन्तु प्रत्येक क्यक्ति जिससे तुम मिलते हो और जो तुमसे एक अच्छे शब्द की आशा करता है, तुम्हारा पड़ोसी है| इसमें सुसमाचार के संदेश का दूसरों को संचार भी सम्मिलित है, क्योंकि “(प्रेरित के कामों का वर्णन: 4:12 और किसी दूसरे के द्वारा उद्धार नहीं, क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नहीं दिया गया, जिस के द्वारा हम उद्धार पा सकें|)” प्रार्थना: ओ प्रभु यीशु मसीह, हम आपकी आराधना करते है आपने अपनी कलीसिया हमें एक नयी आयत के रूप में दी, और आपने उसे पूरा करने के लिये पवित्र आत्मा की शक्ति हमें दी| हमें क्षमा करे यदि हमने अपने कठोर हृदय के साथ हड़बड़ी में व्यव्हार किया हो| हमें हमारे मित्रों जिनके लिए हम प्रार्थना करते है को समझने के लिए, उनको उनकी जीविका कमाने कि लिए कार्य उपलब्ध करने के साथ उनको आशीष देने के लिए हमारी सहायता कीजिए; और हमें सिखाइए कि हम जहाँ कंही भी हो, सभी लोगों की सेवा करें| प्रश्न: 87. तुम अपने पड़ोसियों से अपने समान प्रेम करो”| पौलुस ने इस आयत का व्यवहारिक रूप से वर्णन कैसे कियाथा?
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