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Home -- Hindi -- John - 073 (The raising of Lazarus)
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यूहन्ना रचित सुसमाचार – ज्योती अंध्कार में चमकती है।
पवित्र शास्त्र में लिखे हुए यूहन्ना के सुसमाचार पर आधारित पाठ्यक्रम
दूसरा भाग – दिव्य ज्योती चमकती है (यूहन्ना 5:1–11:54)
क - यीशु की यरूशलेम में अन्तिम यात्रा (यूहन्ना 7:1 - 11:54) अन्धकार का ज्योती से अलग होना
4. लाज़र का जिलाया जाना और उसका परिणाम (यूहन्ना 10:40 – 11:54)

3) लाज़र का मृतकों में से जी उठाना (यूहन्ना 11:34-44)


यूहन्ना 11 :34–35
“34 और कहा, ‘तुम ने उसे कहाँ रखा है ?’ उन्होंने उससे कहा , ‘हे प्रभु चलकर देख ले |’ 35 यीशु रोया |”

यीशु ने एक शब्द भी नहीं कहा | किसी दुखी से वार्तालाप करना अर्थहीन होता है | इस समय शब्दों से ज़्यादा गतिविधी प्रभावशाली होती है | आप ने उपस्थित लोगों से कहा कि वे आप को कबर तक ले चलें | उन्होंने कहा: “आओ और देखो |” यह वही शब्द हैं जो यीशु अपनी सेवा के शुरू में अपने चेलों से कहा करते थे | आप ने उन्हें जीवन देखने के लिये बुलाया था और ये लोग आप को मृत्यु देखने के लिये बुला रहे थे | उन की नासमझ, अज्ञानता और अविश्वास को देखकर आप रो पड़े | यहाँ तक की आपके उत्तम अनुयायी भी सच्चा विश्वास दिखाने में असमर्थ थे | शरीर से कुछ प्राप्त नहीं होता और आत्मा विश्वास रहित है | पवित्र आत्मा अभी तक उन पर नहीं उतरा था | आत्मिक मृत्यु उन पर राज कर रही थी और परमेश्वर का पुत्र मानव जाती की करुना जनक हालत को देख कर केवल रो पड़ा |

यीशु असली मनुष्य थे | जो आनन्दित होते थे उनके साथ आप भी आनन्दित होते और जो रोते थे उनके साथ आप भी रोते थे | आप की आत्मा परेशान थी | आप की भावपूर्ण आत्मा में आपने अनुयायियों के दिल में मृत्यु का डर और जीवित परमेश्वर के प्रती प्रेम की कमी देख कर हलचल मच गई | यीशु आज भी हमारी कलीसिया की स्तिथी पर और स्वय: हमारे लिये और उन सब लोगों के लिये जो पाप में और आत्मिक मृत्र्यु में पड़े हुए हैं, रोते हैं |

यूहन्ना 11 :36–38 अ
“36 तब यहूदी कहने लगे, ‘देखो,वह उससे कितना प्रेम रखता था |’ 37 परन्तु उनमें से कुछ ने कहा, ‘क्या यह जिसने अंधे की आँखें खोलीं, यह भी न कर सका कि यह मनुष्य न मरता?’”

यहूदियों ने यीशु के आँसुओं को देखा और उसे लाज़र से प्रेम का कारण बताया | प्रेम तर्क और बुद्धि की दृष्टि से ठंडा नहीं होता बल्की दूसरों के जज़बात से अनुकूलित होता है | मसीह का प्रेम हमारी समझ से भी बड़ा है | वह मृत्यु के बाद भी कायम रहता है | आप ने लाज़र को मुहर लगी हुई कबर में देखा और अपने मित्र की मृत्यु की विजय को देख कर दुखी हुए, परन्तु आपके दिल ने पत्थर के पार, मृतक को अपनी पुकार सुनने के लिये तैयार किया |

कुछ लोग जो वहाँ उपस्तिथ थे उन्होंने यीशु के कठिन (कठोर) तरीके की निन्दा की और आपके अधिकार पर विवाद करने लगे | इस पर यीशु क्रोधित हुए, क्योंकी अविश्वास, प्रेम की कमी और धुंदली आशा परमेश्वर के क्रोध का कारण होती है | यीशु हमें उदासी के सक्रिये क्षितिश से बचाना चाहते हैं ताकि हम आपके प्रेम में लिपटे रहें और आपके विश्वास के कारण जीते रहें और आपकी आशा में संतुष्ट रहें ताकी मानवी स्तर की ओर न लौटें बल्की आप की योग्यता पर विश्वास करें | आप चाहते हैं कि हमारे आस पास जो लोग पाप में मर गये हैं उन्हें दोबारा जीवित करें | क्या तुम्हारे अविश्वास से यीशु चिन्तित हो जाते हैं या आप तुम्हारे उत्साहपूर्वक प्रेम से आनन्दित होते हैं?

प्रार्थना : प्रभु यीशु ! आप पर विश्वास करने और आप से प्रेम करने के अवसर को खो देने के लिये मुझे क्षमा कीजिये | मेरे अविश्वास और अपना स्वार्थ चाहने के लिये भी क्षमा कीजिये | आप का आदर करने और हमेशा आप की आज्ञा पालन करने के लिये मुझे प्रेरित कर दीजिये |'

प्रश्न:

77. यीशु चिन्तित क्यों हुए और आप क्यों रोये?

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