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1. पौलुस की उनके अपने खोए हुए लोगों केलिए चिंता (रोमियो 9:1-3)
रोमियो 9:1-3
1 मैं मसीह में सच कहता हूं, झूठ नहीं बोलता और मेरा विवेक भी पवित्र आत्मा में गवाही देता है। 2 कि मुझे बड़ा शोक है, और मेरा मन सदा दुखता रहता है। 3 क्योंकि मैं यहां तक चाहता था, कि अपने भाईयों, के लिये जो शरीर के भाव से मेरे कुटुम्बी हैं, आप ही मसीह से शापित हो जाता।
पौलुस ने यहूदियों, उनके लोगो की कठोरता की स्थिति की व्याख्या का आरंभ विचित्र शब्दों के साथ कि “मै यीशु में सत्य कहता हूँ|” आपने एक दर्शन शास्त्र या अपने व्यक्तिगत विचार प्रस्तुत नहीं किये, परन्तु उनका ये कहना का कारण एक कटु अनुभव और निश्चित ही पीडाओं से गुजरने के बाद जो कि स्वयं उनके द्वारा निर्मित नहीं की गई थी, परन्तु यीशु में निरंतर बने रहने के द्वारा निर्मित हुआ था| वह स्वयं अपना विश्वास हमारे साथ नहीं बांटते परन्तु मसीह उनके द्वारा कहते है क्योंकि प्रभु आत्मिक सिर हैं और उनके अनुयायी उनका आत्मिक शरीर एवं सक्रिय सदस्य है|
पौलुस इस पत्री के पाठकों को इन शब्दों “मै मेरे अन्तःकरण में पवित्र आत्मा की गवाही को धारण करने के साथ कहता हूँ” द्वारा इस बात की पुष्टि करते है कि उनकी गंभीर स्वीकृति सत्य है| मेरे यीशु रक्षक है, जिनमे सत्य की आत्मा कार्य करती है| यह आत्मा झूठ, घुमाव, बचाव या काल्पनिकता की अनुमति नहीं देता परन्तु यीशु के अनुयायियों को इशारा और रास्ता दिखाता है सत्य की साक्षी बनने के लिए ताकि उनके कथन विधिसम्मत और उपयुक्त हो|
उपदेशक का अन्तःकरण उनका आत्मिक दिक्सूचक बन गया था| आप अपनी भावनाओं द्वारा निर्देशित होकर अलग नहीं चल रहे थे तब से जब उनके हृदय का नवीनीकरण हो चुका था और पवित्र आत्मा द्वारा मार्गदर्शन किया गया था| यह दैवीय आत्मा उनके अन्तःकरण की शांति और शुद्ध स्वच्छ शब्दों की पुष्टि करता है| अतः उनकी गवाही हर प्रकार से सत्य थी|
इस लम्बी अवधी के सोचविचार के बाद पौलुस ने क्या गवाही दी?
आपने गवाही दी थी कि उनके अवज्ञाकारी लोगों के कारण उनको गहरा दुःख था| उपदेशक अपने परम प्रिय सम्बन्धियों और परिचितों के कारण महान दुखी थे उनकी यह दुखभरी भावनाएँ उनसे अलग नहीं हो पाई|
यह महान दुख, उनके राज्य में आत्मिक कठोरता के बढने के कारण, उनके हृदय में निवास और हमेशा उनके साथ रहा| आपका हृदय इस बात से तकलीफ में था कि बहुत सारे उनके लोग आत्मिक रूप से अंधे थे और उन आध्यात्मिक सच्चाइयों को जो उनके सामने प्रकट की गई थी को पहचानने में असमर्थ थे| इसीलिए पौलुस उनको बचाना चाहते थे, परन्तु वे लोग बचना नहीं चाहते थे क्योंकि वे लोग स्वयं ही अपने आपको धर्मपरायण मान चुके थे, और इसीलिए पौलुस जिस उद्धार की बात करते थे उसकी उनको आवश्यकता नहीं थी|
पौलुस का दुःख इतना बढ़ गया कि आपने अपने आपको सबसे अलग करने और अपने लोगों के लिए दण्ड को ग्रहण करने के लिए तैयार कर लिया था यह मानकर कि शायद यही उनके उद्धार का एक साधन हो| अपने लोगों के लिए उनका प्रेम इतना अधिक मजबूत था कि वह अपने आप को मसीह अपने रक्षक द्वारा ठुकराये जाने की इच्छा करते थे, यदि यही उन लोगों के लिए मददगार हो सके|
पौलुस अपने खोए हुए लोगो को अपने परिवार और जनजाति के रूप में देखते थे जैसे कि वे उन्ही पूर्वजों के उत्तराधिकारी है| आप उन्हें परमेश्वर के क्रोध से बचाने के लिए सब कुछ करने और देने के लिए तैयार थे|
प्रार्थना: ओ प्रभु यीशु मसीह, आप यरूशलेम पर रोए, और आपके लोगो के कठोरपन और अवज्ञाकारिपन से पीड़ित हुए थे, परन्तु आपने उन्हें उनके अपराधों के लिए क्षमा कर दिया था जब सूली पर आपने उनके लिए प्रार्थना की थी “ओ पिता, उन्हें क्षमा करे, क्योकि वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे है” (लुक 23:34)| हमारी मदद करे ओ प्रभु, हमारे लोगों से प्रेम करने के लिए उनके बढते हुए अविश्वास से पीड़ित होने के लिए, और उनके लिए प्रार्थना करने के लिए, ऐसे जैसे याकूब की संतानों के लिए ताकि वे गंभीरता से प्रायश्चित कर सके आपको पहचान सके और आपको स्वीकार कर सके| आमीन|
प्रश्न:
- 53. पौलुस के गहरे दुःख का कारण क्या था?54. उनके लोगों के उद्धार के लिए पौलुस क्या बलिदान करने के लिए तैयार थे?