Waters of LifeBiblical Studies in Multiple Languages |
|
Home Bible Treasures Afrikaans |
This page in: -- Afrikaans -- Arabic -- Armenian -- Azeri -- Bengali -- Bulgarian -- Cebuano -- Chinese -- English -- French -- Georgian -- Greek? -- Hausa -- Hebrew -- HINDI -- Igbo -- Indonesian -- Javanese -- Kiswahili -- Malayalam -- Polish -- Portuguese -- Russian -- Serbian -- Somali -- Spanish? -- Tamil -- Telugu -- Turkish -- Urdu? -- Yiddish -- Yoruba
Previous Lesson -- Next Lesson रोमियो – प्रभु हमारी धार्मिकता है|
पवित्र शास्त्र में लिखित रोमियों के नाम पौलुस प्रेरित की पत्री पर आधारित पाठ्यक्रम
भाग 3 का अनुपूरक - रोम में कलीसिया के नेताओं को पौलुस के चरित्र पर विशेष राय (रोमियो 15:14 – 16:27)
3. अपनी यात्राओं से पौलुस की आशाएं (रोमियो 15:22-33)रोमियो 15:22-33 मनुष्य सोचता है और परमेश्वर उसे ले चलते हैं| पौलुस ने अपने हृदय में अपनी यात्राओं के बारे में विचारों को, अपनी अत्यधिक चाहत को दर्शाते हुए, इस दिशा में प्रार्थना करते हुए, मोड दिया था| आपने भूमध्य सागर के पूर्व दिशा और उत्तर दिशा के देशों में, जहां आपने कुछ कलीसियाओं की स्थापना की थी, और हिंसक उत्पीडनाओं को जिसका सामना आपने किया था, के स्थान पर धर्म प्रचार किया| अब आप रोम राज्य के पश्चिमी भागों और यूरोप के ठन्डे उत्तरी भागों में प्रचार करना कहते थे, इस विषय में पूरा जगत जान गया था कि उस समय वे सभी परमेश्वर के पुत्र के पैरों तले थे| पौलुस ने स्वीकार किया था कि आपने रोम की कलीसिया के विश्वास, प्रेम, और आशा को मजबूत करने के लिए अनेक बार वहाँ जाने का प्रयास किया था, परंतु लघु एशिया और यूनान में संभावनाओं और समस्याओं ने आपकी आशाओं और यात्राओं के उद्देश्य को नाकाम कर दिया था| वर्षों पहले आप रोम की यात्रा करने की इच्छा रखते थे, रोम की कलीसिया को जानने के लिए, जो आपके बिना विकसित हो गया था, और उसे मजबूत करना चाहते थे| उनकी इसपानिया की यात्रा के समय आप कुछ समय वहाँ रुक कर कलीसिया के अलग प्रकार के सदस्यों से मिलना चाहते थे| आपको आशा थी कि रोम की कलीसिया उनको इसपानिया में उनके नये याजकीय कार्यों में सहारा देगी, और प्रार्थना, दानों और उनकी व्यवहारिक सेवा में उनका साथ देगी ताकि उनका प्रचार भविष्य में उनका विशेषाधिकार ही ना रहे, परन्तु मूल रूप से रोम के महापुरुषों द्वारा आये| पौलुस ने अपने आपको ऐसी स्थिति में पाया की ना चाहते हुए भी आप को यरूशलेम की यात्रा पहले करनी पड़ी ताकि वे यूनान की कलीसियाओं से अंशदानों को, मूल रूप से गरीब कलीसिया के लिए ला सके, जिन्होंने मसीह के आने के विश्वास के कारण अपनी सम्पतियों को बेच दिया था और अब अपनी भूख शांत करने के लिए उनके पास कुछ भी ना था| इस दुखभरे अनुभव के परिणाम स्वरूप, आपने अन्तोलिया और यूनान की नई कलीसियाओं के विश्वासियों को, उत्साहपूर्वक एवं विश्वास के साथ प्रार्थना करना, और लगातार वहीं पर लगे रहना, सिखाया था| आपने उनको सिखाया था कि अपने व्यापारों को कर्मठता से करते रहो, मसीह के आने का इंतजार, अपने जीवन निर्वाह के साधनों को छोटा या निकल देने का कोई कारण नहीं है| पौलुस ने थिस्लोनिका की कलीसिया को लिखा था कि यदि एक मनुष्य काम नहीं करता है, तों उसे खाना नहीं चाहिए (2 थिस्सलुनीकियों 3:10)| यद्यपि, यरूशलेम की कलीसिया के विश्वासियों की दयनीय अवस्था को उनकी वित्तीय सहयोग की आवश्यकता थी, जो पौलुस के लिए अन्यजातियों के ईसाईयों के विश्वास की साक्षी थी, जो कि व्यवहारिक बलिदान के लीये तैयार किये गये थे| उपदेशक का कहना था कि यह आवश्यक है कि अन्यजातियों की नई कलीसियाएं यहूदी मूल के विश्वासियों के साथ मिलकर एक साथ कार्य करें तब से अब तक वे लोग, यरूशलेम के मूल कलीसिया के विश्वासियों के साथ, उनको दिये गये आध्यात्मिक धन में उनके साथ भागीदारी करते आये थे, जो उनको दिए गये आद्यात्मिक उपहारों, और उस ज्ञान को जो उनको दिया गया था को बिना किसी शर्त के प्रत्येक को बांटते थे| इसीलिए पौलुस ने लिखा कि वो जो अन्यजातियों की कलीसियाओं में दुबारा जन्म ले चुके है अनिवार्य रूप और और नैतिक रूप से, यरूशलेम में महापुरुषों एवं दीन लोगों की मानवीय आवश्यकताओं में मदद करने के लिए बंध चुके थे| पौलुस के अनुसार, हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि जरूरतमंदों की मदद एक पवित्र सेवा एवं अनिवार्य है जो कि सभी समयों और प्रत्येक स्थान पर अनुप्रयुक्त है| जब पौलुस मुद्रा संबंधी अंशदान यरूशलेम ले गए थे, पौलुस रोम होते हुए इसपानिया जाना चाहते थे ताकि मसीह की आध्यात्मिक आशीषों की पूर्णता को वहाँ के विश्वासियों के लिए ला सके| यद्यपि आपने स्वयं अनुभव किया था कि यरूशलेम के लिए उनकी यात्रा एक गंभीर समस्या थी, क्योंकि आप वहाँ स्थानीय कलीसियाओं में रहे थे, जो मूसा के कानून के अनुसार चलते थे, और उन्हें इस बात की शकायत थी कि कैसे मसीह ने अन्यजातियों के विश्वासियों को इकठ्ठा किया था| यहूदियों के विश्वासी लोग इन अंशदानों को ठुकराना चाहते थे क्योंकि यह उन्हें उनके द्वारा भिजाया गया था जो यहूदी नहीं थे| और इससे भी अधिक लेखकों और फरिसियों ने पौलुस के प्रति खुले रूप से शत्रुता दिखाई और उन्हें मार डालने का निर्णय किया था| इसीलिए पौलुस ने रोम के विश्वासियों से आग्रहपूर्वक विनती की थी, उनकी सुरक्षा के लिए, और इस सत्य कि मनुष्य अनुग्रह द्वारा न्यायोचित है, कानून द्वारा नहीं के आध्यत्मिक संघर्ष में उनको सहारा देने के लिए, मसीह के नाम में प्रार्थना करे| आप उन यहूदियों को जो मसीह से दूर थे, अविश्वासी कहते थे, जो आपको दण्ड देना एवं मार डालना चाहते थे| यरूशलेम में जहाँ समस्याएं आप के इन्तजार में थी के ज्ञान के स्थान पर आप इस मृतक शहर की ओर चल पड़े थे, सच में जैसे यीशु मसीह उनके सामने थे| वहाँ यह था कि यीशु हमारे लिए मर गये थे, और हमारे न्यायीकरण के लिए जी उठे; मसीह की दुर्बलता उनकी शक्ति बन गई| पौलुस ने अपनी सभी योजनाओं और आशाओं को यह कहकर समाप्त किया था कि परमेश्वर की इच्छा द्वारा आप रोम के विश्वासियों के पास आनंद के साथ आ पाये| आपने अपनी पत्री, शन्ति के परमेश्वर से यह प्रार्थना करते हुए समाप्त की कि उन सब के साथ रहना, चाहे वे लोग भोजन, खतना, और अन्य द्वितीय श्रेणी के विषयों के बारे में एकमत न हो| प्रार्थना: ओ स्वर्गीय पिता, आपके पुत्र यीशु के द्वारा यह हमारा विशेषाधिकार बन गया है कि हम आपको धन्यवाद दे क्योंकि उपदेशक पौलुस, सुसमाचार को सभी लोगों को प्रदान करने के लिए दृढ़निश्चयी थे, और अन्यजातियों को आपकी ओर खींच लाना चाहते थे, परंतु एक कैदी के समान अपमान और घृणा के साथ उन्हें रोम खींच कर ले जाया गया था| उनकी पत्री, प्रार्थना, विश्वास और आशा के लिए हम आपका धन्यवाद करते हैं| हमारी मदद करें, कि हम अपने आप को वहाँ से जहाँ हमारा प्रेम हमे आप तक लाया है, मोड ना ले| प्रश्न: 95. यरूशलेम में समस्याएं और कई खतरे जो पौलुस का इंतजार कर रहे थे उनके बारे में जानने के स्थान पर पौलुस स्पेन की यात्रा से पहले यरूशलेम क्यों जाना चाहते थे?
|