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रोमियो – प्रभु हमारी धार्मिकता है|
पवित्र शास्त्र में लिखित रोमियों के नाम पौलुस प्रेरित की पत्री पर आधारित पाठ्यक्रम
भाग 3 - परमेश्वर की धार्मिकता मसीह के अनुयायियों के जीवन में दिखाई देती है। (रोमियो 12:1 - 15:13)

9. महत्वहीन कारणों के लिए अपने पड़ोसी को क्रोध ना दिलाये (रोमियो 14:13-23)


रोमियो 14:13-23
13 सो आगे को हम एक दूसरे पर दोष न लगाएं पर तुम यही ठान लो कि कोई अपके भाई के साम्हने ठेस या ठोकर खाने का कारण न रखे। 14 मैं जानता हूं, और प्रभु यीशु से मुझे निश्‍चय हुआ है, कि कोई वस्‍तु अपने आप से अशुद्ध नहीं, परन्‍तु जो उस को अशुद्ध समझता है, उसके लिये अशुद्ध है। 15 यदि तेरा भाई तेरे भोजन के कारण उदास होता है, तो फिर तू प्रेम की रीति से नहीं चलता: जिस के लिये मसीह मरा उस को तू अपने भोजन के द्वारा नाश न कर। 16 अब तुम्हारी भलाई की निन्‍दा न होने पाए। 17 क्‍योंकि परमेश्वर का राज्य खानापीना नहीं; परन्‍तु धर्म और मिलाप और वह आनन्‍द है; 18 जो पवित्रआत्मा से होता है और जो कोई इस रीति से मसीह की सेवा करता है, वह परमेश्वर को भाता है और मनुष्योंमें ग्रहणयोग्य ठहरता है। 19 इसलिये हम उन बातोंका प्रयत्‍न करें जिनसे मेल मिलाप और एक दूसरे का सुधार हो। 20 भोजन के लिये परमेश्वर का काम न बिगाड़: सब कुछ शुद्ध तो है, परन्‍तु उस मनुष्य के लिये बुरा है, जिस को उसके भोजन करने से ठोकर लगती है। 21 भला तो यह है, कि तू न मांस खाए, और न दाख रस पीए, न और कुछ ऐसा करे, जिस से तेरा भाई ठोकर खाए। 22 तेरा जो विश्वास हो, उसे परमेश्वर के साम्हने अपने ही मन में रख: धन्य है वह, जो उस बात में, जिसे वह ठीक समझता है, अपने आप को दोषी नहीं ठहराता । 23 परन्‍तु जो सन्‍देह कर के खाता है, वह दण्‍ड के योग्य ठहर चुका, क्‍योंकि वह निश्‍चय धारणा से नहीं खाता, और जो कुछ विश्वास से नहीं, वह पाप है।।

कुछ कलीसियाओं में अपने कार्यों के द्वारा, पौलुस स्वीकार्य और निषेध भोजन वस्तु के लगातार हठी विवादों के बारे में जान गये थे| आपने यीशु के कथन को निर्दीष्ट करते हुए कहा था कि (मर्कुस 7:15-23, लुका 6:4), कुछ भी अपने आप में अस्वच्छ नहीं है, परन्तु जो वस्तु मनुष्य में से बाहर आती है वह उसे घृणित करती है| विश्वासियों के लिए यह अच्छा है कि कुछ निश्चित जो उनके लिए अच्छा है खाए| यह भी उसके लिए अच्छा है कि अन्य खाद्य पदार्थों से जो उसके अनुसार उसके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, से परहेज करे|

ईसाई लोग अन्य लोगों के सामने अच्छे उदाहरण के रूप में होना चाहिए| उन्हें प्रत्येक ऐसी बात जो दूसरे इन्सान के अपराध का कारण बने, को छोड़ देना चाहिए| वह विश्वासी जो बिना किसी शर्त के खाता है, पीता है और अपनी स्वतंत्रता का गर्व करता है, अन्य किसी ऐसे व्यक्ति के मन में संदेह उत्पन्न करता है जो सोचविचार करता है और उस विश्वासी से घृणा का अनुभव भी करता है| तब वह जो स्वतंत्र है गलत सिद्ध होता है और नए ताजा विश्वासी को भ्रमित करने और मसीह में उसके विश्वास को हटाने के लिए जिम्मेदार माना जाता है| प्रेम, उस व्यक्ति से जो विश्वास में बलवान है, अपेक्षा करता है कि वह उन् लोगों के जो अपनी राय एव चयन में कमजोर है के सामने गर्व ना करे, बल्कि शांत रहे, ताकि वे नए धर्म परिवर्तक के लिए रूकावट ना बन जाये|

पौलुस ने इस बात की साक्षी दी थी कि परमेश्वर का राज्य खाने या पीने द्वारा प्रमाणित नहीं होता परन्तु यह पवित्र आत्मा के फलों द्वारा दिखाई देता है जिसे आपने कलीसियाओं में मतभेदों के उत्तर के रूप में धार्मिकता, शांति और आनंद नाम दिया था| कलीसियाओं की एकता के समेकन के बाद पौलुसने तीव्र लालसा की और विश्वासियों का ध्यान इस वास्तविकता की ओर लगाया था कि खाना और पीना इतना महत्वपूर्ण नहीं है कि इस कारण से कलीसिया अलग हो जाये| आत्मा की एकता अत्यधिक महत्वपूर्ण है इन द्वितीय श्रेणी के विषयों पर किये गये आपसी अनुबंधों की अपेक्षा, जैसे खाना पीना, पहनावा, बाल कैसे कटने चाहिए क्योंकि मसीह की आत्मा, उनके प्रेम और चिरसंतप्त सहनशीलता में, सांसारिक जीवन की इन आवश्कताओं के ऊपर विजयी है| पौलुस ने साक्षी दी कि मसीह के ज्ञान के लिए नीवं के रूप में, हमें एक दूसरे के साथ प्रेम में बंधने की आवश्यकता है, इन निरर्थक मामलों से बगावत, एवं मनुष्य में रूचि लेने के द्वारा जिसके लिए मसीह ने अपने प्राण न्योछावर कर दिये थे|

पूर्ण स्वतंत्रता, और कानून की आवश्यकताओं की अपेक्षा कलीसियाओं में परमेश्वर की शांति अति महत्वपूर्ण है| यदि कोई व्यक्ति कलीसिया में ऐसा है जो मांस नहीं खाता, या शराब नहीं पीता, अपने अंतर्मन की खुशी के लिए या उसके अपने सिद्धांतों के कारण या मांस खाने और शराब पीने को रोकने के लिए, तब यह आवश्यक है कि बिना किसी शिकायत के प्रेम के साथ हम उसके अनुरूप व्यवहार करे, और उन अन्य लोगों के लिए सोचे जिनका विश्वास हमारे व्यवहारों से लडखडा सकता है|

यद्यपि, वह नया विश्वासी जो अपने अंतर्मन में संदेह के साथ खाता और पीता है कलीसिया के सभी लोगों के साथ गलत है क्योंकि सतही शांति की अपेक्षा आश्वासन में विश्वास अधिक आवश्यक है| कलीसिया में आपसी सहयोंग पर प्रेमकी जीत में विश्वास प्राप्त हुआ था; और वह जो बिना किसी शर्त के अपनी हठ को ही लेकर चलना चाहता है, आत्मा की भागीदारी का एक विध्वंसक है|

प्रार्थना: ओ प्रभु यीशु, हम आपकी आराधना करते हैं क्योंकि आपने अशिष्ट मच्छली पकड़नेवालो, चालाक कर अधिकारियों, कानून के विशषज्ञों, और रहस्य वादियों में से अपने शिष्यों को स्वीकार किया था| आपने उनको एक साथ इकठ्ठा किया, एकजुट किया और उनको कुछ और नहीं बल्कि क्षमा दान, धीरज, और शांति के साथ परिपूर्ण प्रेम की आयत दी| हमारी मदद कीजिए कि हम एक दिन में सात बार नहीं परन्तु सत्तर बार अन्य लोगों को क्षमा करें, और यह भी ना भूलें कि वे भी एक दिन में सात बार नहीं बल्कि सत्तर बार हमारे अपराधों और गलतियों को क्षमा करें|

प्रश्न:

90. इस वचन का अर्थ क्या है: “परमेश्वर का राज्य खाना और पीना नहीं, परंतु पवित्र आत्मा में धार्मिकता, शांति और आनंद है|” (रोमियों 14:17)?

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