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Home -- Hindi -- Romans - 071 (Problems of the Church of Rome)
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रोमियो – प्रभु हमारी धार्मिकता है|
पवित्र शास्त्र में लिखित रोमियों के नाम पौलुस प्रेरित की पत्री पर आधारित पाठ्यक्रम
भाग 3 - परमेश्वर की धार्मिकता मसीह के अनुयायियों के जीवन में दिखाई देती है। (रोमियो 12:1 - 15:13)

8. रोम की कलीसिया की विशेष समस्याएं (रोमियो 14:1-12)


रोमियो 12:1-12
1 जो विश्वास में निर्बल है, उसे अपनी संगति में ले लो; परन्‍तु उसी शंकाओं पर विवाद करने के लिये नहीं। 2 क्‍योंकि एक को विश्वास है, कि सब कुछ खाना उचित है, परन्‍तु जो विश्वास में निर्बल है, वह साग पात ही खाता है। 3 और खानेवाला न-खानेवाले को तुच्‍छ न जाने, और न-खानेवाला खानेवाले पर दोष न लगाए; क्‍योंकि परमेश्वर ने उसे ग्रहण किया है। 4 तू कौन है जो दूसरे के सेवक पर दोष लगाता है उसक स्थिर रहना या गिर जाना उसके स्‍वामी ही से सम्बन्‍ध रखता है, बरन वह स्थिर ही कर दिया जाएगा; क्‍योंकि प्रभु उसे स्थिर रख सकता है। 5 कोई तो एक दिन को दूसरे से बढ़कर जानता है, और कोई सब दिन एक सा जानता है: हर एक अपने ही मन में निश्‍चय कर ले। 6 जो किसी दिन को मानता है, वह प्रभु के लिये मानता है: जो खाता है, वह प्रभु के लिये खाता है, क्‍योंकि परमेश्वर का धन्यवाद करना है, और जो नहीं खाता, वह प्रभु के लिये नहीं खाता और परमेश्वर का धन्यवाद करता है। 7 क्‍योंकि हम में से न तो कोई अपने लिये जीता है, और न कोई अपने लिये मरता है। 8 क्‍योंकि यदि हम जीवित हैं, तो प्रभु के लिये जीवित हैं; और यदि मरते हैं, तो प्रभु के लिये मरते हैं; सो हम जीएं या मरें, हम प्रभु ही के हैं। 9 क्‍योंकि मसीह इसी लिये मरा और जी भी उठा कि वह मरे हुओं और जीवतों, दोनोंका प्रभु हो। 10 तू अपने भाई पर क्‍यों दोष लगाता है या तू फिर क्‍यों अपने भाई को तुच्‍छ जानता है हम सब के सब परमेश्वर के न्याय सिंहासन के साम्हने खड़े होंगे। 11 क्‍योंकि लिखा है, कि प्रभु कहता है, मेरे जीवन की सौगन्‍ध कि हर एक घुटना मेरे साम्हने टिकेगा, और हर एक जीभ परमेश्वर को अंगीकार करेगा। 12 सो हम में से हर एक परमेश्वर को अपना अपना लेखा देगा।।

क्या निषेध है और क्या करने की अनुमति है इस बारे में मसीह के अनुयायियों की राय अलग अलग है क्योंकि यीशु ने इस संदर्भ में कोई कानून नहीं बनाया था, परन्तु हमें पूर्ण उद्धार, निश्चित न्यायीकरण, और पवित्र आत्मा की शक्ति प्रदान की थी| उनको केवल सभी से प्रेम करने के आध्यादेश के अनुपालन के लिए कानून को रखने की आवशयकता थी|

यही कारण है कि हम एक और दूसरी कलीसिया की राय में मतभेद पाते है| कुछ सूअर का मांस खाने को अपराध मानते है| परन्तु यीशु कहते है: “एक इन्सान के मुंह में जो जाता है वह उसे घृणित नहीं करता है परन्तु जो उसके मुंह से बाहर आता है वह उसे घृणित करता है क्योंकि बुरे विचार, कत्ल, व्यभिचार, कामुकता, चोरी, झूठी गवाही, और ईश्वरनिन्दा हृदय के बहार के विचार है| यह वे बाते है जो एक मनुष्य को घृणित करती है” निश्चित रूप से सूअर का मांस खाना मनुष्य के लिए हानिकारक है, और उससे उसका स्वास्थ्य बिगड सकता है, परंतु इससे उसकी आध्यात्मिकता को हानी नहीं पहुँचती|

कुछ ईसाई लोग हुक्का या सिगरेट का सेवन करते है, जबकि कुछ लोग धूम्रपान को एक जानलेवा अपराध मानते है| निश्चित ही धूम्रपान, धूम्रपान करने वाले व्यक्ति और उसके आसपास के लोगों के लिए हानिकारक है, परन्तु धूम्रपान करने वाला व्यक्ति जो धुआं साँस द्वारा अंदर लेता है वह एक अस्वच्छ आत्मा नहीं है, परन्तु एक हानिकारक विष है, जिसे उसने स्वास्थ्य के लिए नहीं लेना चाहिए| इसलिए धूम्रपान करने वाला अन्य व्यक्तियों के समान अपराधी है|

कुछ लोग शराब और नशीली दवाईयों को निषेध मानते है और वे सही है क्योंकि जो भी व्यक्ति शराब या नशीली वस्तुओं में लग जाता है वह उनका दास बन जाता है| इसीलिए हम प्रत्येक व्यक्ति को शराब और नशीली दवाईयों से परहेज करने का सुझाव देते है| कम मात्रा में शराब दवाई के रूप में लेना ठीक है| अब यह कहा गया है कि ताजा, स्वच्छ जल स्वयं परमेशर द्वारा दिया गया सबसे उत्तम पेय है|

उपदेशक पौलुस के काल में कलीसियाओं में प्रमुख प्रश्न था: “देवमूर्तियों को बलि चढाए गये जानवरों का मांस खाना क्या एक अपराध है? क्योंकि कुछ लोग इस मांस को एक अत्यधिक रूचि से खाते है, जबकि अन्य लोग इसे घृणा के साथ देखते थे| पौलुस ने पुष्टि दी थी कि दोनों दल सही थे, क्योंकि जो मांस देवमूर्तियों को चढाया जाता था वह आत्मा नहीं परन्तु मांस है| आपने ऐसा इसीलिए कहा था क्योंकि कुछ लोगों का विचार था कि यह मांस अस्वच्छ आत्माओं के प्रभाव के अंतर्गत आता है| यद्यपि मसीह ने अपने उद्धार में सभी को सम्मिलित किया है| वे कानून के तले अब और अधिक दबे हुए नहीं है, परन्तु इन अन्य मूर्खतापूर्वक बातों से मुक्त हैं|

जैसे कुछ विश्वासियों ने विश्राम दिवस माना हुआ है, कुछ शुक्रवार को, और कुछ रविवार को मानते है, पौलुस ने उनसे कहा था तुम सभी ठीक हो क्योंकि यीशु ने दिनों का उद्धार नहीं किया बल्कि लोगों का किया है| इसीलिए तुम हर दिन और हर समय परमेश्वर की आराधना कर सकते हो क्योंकि प्रार्थना किसी एक निश्चित दिन या निश्चित समय के लिए प्रतिबंधित नहीं है परन्तु यह हर दिन और हर समय सुविधाजनक और उपयुक्त है|

कलीसिया के सदस्यों के लिए यह आवश्यक है कि वे एक दूसरे का अपमान ना करे या विशेष रूप से इन अन्य मामलों में, सतहिरूप से एक दूसरे का न्याय ना करे| यीशु कहते है “ न्याय ना करो, कि तुम्हारा भी न्याय न किया जाए”| इसीलिए जो विश्वास में मजबूत है वह उन् लोगों का जो ज्ञान में कमजोर है का अपमान ना करे या उनको उनके तरीकों के लिए शर्मिंदा ना करे परंतु प्रेम के इन तरीकों का अभ्यास करने से परहेज करें| वह जो विश्वास में मजबूत है कमजोर विश्वासियों के साथ रहे उन्हें उत्साहित करे और उनकी मदद करें| ठीक इसी प्रकार जो विश्वास में कमजोर है उन लोगों का जो विश्वास में मजबुत है का अपमान ना करें, या उनसे द्वेषपूर्वक बात ना करें परन्तु उनसे प्रेम करे क्योंकि यीशु सबसे प्रेम करते हैं|

पौलुस प्रत्येक व्यक्ति को इस बात की पुष्टि देते है कि “हम हमारे लिए ही बहुत समय तक नहीं हो सकते, परन्तु हमें अपने आपको प्रभु यीशु मसीह को पूर्णरूप से और हमेंशा के लिए सौंप देना है| यदि हम जीते है हम प्रभु के लिए जीते है; और यदि हम मरते है हम प्रभु के लिए मरते है| इसीलिए, चाहे हम जिए या मर जाये, हम खाएं या पियें, हम हमारे प्रभु के है जो हममे निवास करने के लिए अपने नए जीवन को अस्तित्व में लाए थे|”

जैसे ही बुराई की आत्मा कलीसिया को शीघ्रता से भेदने लगी, पौलुस ने कमजोर और बलवान दोनों को यह चेतावनी दी थी: सावधान क्योंकि तुम अनंत न्यायधीश के सामने खड़े हो| दूसरों का न्याय ना करो, परन्तु तुम स्वयं अपना न्याय करो, अपने अपराधों को स्वीकार करो और मसीह के नाम में उन पर विजय पाओ| यदि तुम ऐसा सोचते ही कि तुम्हे अन्य लोगों को उनके अपराधों से मुक्त करना है, धैर्यपूर्वक तुम्हारी प्रार्थनाओं में प्रेम के साथ उनसे बात करो, और सावधान रहो कि तुम दूसरों की तुलना में अधिक धार्मिक नहीं हो| हमेशा ऐसे प्रयत्न करो जिससे विश्वासियों का विश्वास ठोकर ना खाये|

प्रार्थना: ओ स्वर्गीय पिता, जब हम स्वयं को आपकी पवित्रता, और आपके प्रेम की बढती हुई महानता से नापते है, हममे आदर, धार्मिकता या सम्मान कुछ भी शेष नहीं बचता है| हमें हमारी कमियों के लिए क्षमा करे, और हमारी मदद करे कि हम अन्य लोगों की निंदा न करें| और अपने आप की सबसे महत्वहीन में विनती करें|

प्रश्न:

89. हमें क्या सोचना या कहना चाहिए यदि मसीह के किसी अनुयायी की जीवन के कुछ द्वितीय श्रेणी के विषयों में एक अलग राय हो?

www.Waters-of-Life.net

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