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यूहन्ना रचित सुसमाचार – ज्योती अंध्कार में चमकती है।
पवित्र शास्त्र में लिखे हुए यूहन्ना के सुसमाचार पर आधारित पाठ्यक्रम
दूसरा भाग – दिव्य ज्योती चमकती है (यूहन्ना 5:1–11:54)
क - यीशु की यरूशलेम में अन्तिम यात्रा (यूहन्ना 7:1 - 11:54) अन्धकार का ज्योती से अलग होना
4. लाज़र का जिलाया जाना और उसका परिणाम (यूहन्ना 10:40 – 11:54)

अ) यीशु का यरदन के पार प्रयास (यूहन्ना 10:40 – 11:16)


यूहन्ना 10:40-42
“40 फिर वह यरदन के पार उस स्थान पर चला गया, जहाँ यूहन्ना पहले बपतिस्मा दिया करता था, और वहीं रहा | 41 बहुत से लोग उसके पास आकर कहते थे, ‘यूहन्ना ने तो कोई चिन्ह नहीं दिखाया, परन्तु जो कुछ यूहन्ना ने इसके विषय में कहा था, वह सब सच था |’ 42 और वहाँ बहुतों ने यीशु पर विश्वास किया |”

यीशु और फरीसियों के बीचमें विवाद भड़क उठा; आपके बैतहसदा में एक अपाहिज़ को चंगा करने के बाद उन्होंनें लोगों के नेताओं को उकसाया (अद्धयाय 5) | येरूशलेम मे आपके तीसरे आगमन के अन्त में यह विवाद शिखर को पहुंचा | ज्योती अन्धकार में चमकती है, और अन्ध्कार ने उसे ग्रहण न किया | यीशु को हर बार मृत्यु का खतरा लगा रहता था | आप बार बार मन्दिर मे प्रवेश करते रहे और अपने चेलों को ज्ञान और विश्वास मे विकसित करते रहे, जब कि आप के शत्रु घ्रणा के सब से निचले दर्ज़े तक पहुँच गये थे |

समर्पित करने के उत्सव के बाद यीशु येरूशलेम से चले गये और यरदन से आगे के ऐसे क्षेत्र में पहुँच गये जो उच्च न्यायालय के अधिकार से बाहर था | इस स्थान पर, इस से पहले बपतिस्मा देने वाले यूहन्ना उपदेश दिया करते थे | यह स्थान यहूदियों के अधिकार से बाहर था परन्तु हेरोदेस बादशाहों मे से किसी एक के अधिकार में था | यहाँ बपतिस्मा देने वाले यूहन्ना परिचित थे और उनकी यीशु के बारेमें दी हुई गवाही लोगों को याद थी |

जिन लोगों ने बपतिस्मा देने वाले यूहन्ना के कारण विश्वास किया था उन का विश्वास स्थिर था | उनके उपदेशक का सिर काटा गया था | जब यीशु वहाँ पहुंचे तो लोग आप की तरफ दौड़ते हुए आये क्योंकी वे आप की नम्रता, महानता और शक्ति को जानते थे | यीशु ने उन्हें अपने आश्चर्यकर्मों के उधारन दे दिये और अत्यंत विश्वासपूर्ण रीती से उन्हें परमेश्वर और मनुष्य के विषय में शिक्षा देने लगे | कई लोगों ने, बपतिस्मा देने वाले यूहन्ना की पैगम्बरी भूमिका पर विश्वास रखते हुए, सुसमाचार के लिये अपने दिल खोल दिये यधपि यूहन्ना ने अपनी इस भूमिका को सिद्ध करने के लिये कोई आश्चर्यकर्म नहीं दिखाया था | परन्तु जैसे ही यीशु उनके पास आये, उन्होंने आप को अपना प्रभु और मुक्तिदाता स्वीकार किया |

यूहन्ना 11:1-3
“ 1 मरियम और उसकी बहिन मार्था के गाँव बैतनिय्याह का लाज़र नामक एक मनुष्य बीमार था | 2 यह वही मरियम थी जिसने प्रभु पर इत्र डालकर उसके पाँवों को अपने बालों से पोंछा था, इसी का भाई लाज़र बीमार था | 3 अत: उसकी बहिनों ने उसे कहला भेजा, ‘हे प्रभु, देख, जिससे तू प्रीति रखता है, वह बीमार है |”

जब यीशु यरदन के विभाग में प्रवचन दे रहे थे, लाज़र नाम का एक मनुष्य बीमार पड़ गया | वह जैतून पर्वत के ऊपर बसे हुए एक गांव का रहने वाला था | यीशु कई बार इस घर मे मेहमान बन कर रहे थे | लाज़र की बहिन, मार्था के साथ यीशु की की हुई बात चीत बहुत प्रसिद्द है | धर्मप्रचारक यूहन्ना ने उन घटनाओं का वर्णन नहीं किया है क्योंकि वो दूसरे सुसमाचारों मे पाए जाते हैं | यूहन्ना मरियम का वर्णन ज़रूर करते हैं जिस ने इत्र से भरा हुआ जग यीशु के पांओं पर उंडेल दिया था | धर्मप्रचारक यूहन्ना इस स्त्री को प्रभु के वचन की भूखी बताते हैं | उस ने आपके पांओं पर इत्र डालने के बाद अपने बालों से आपके पाँव पोंछे (यूहन्ना 12:1-8) | उसने परमेश्वर के पुत्र के लिये अपनी नम्रता, विश्वास और प्रेम जताया |

लाज़र की बीमारी ने यीशु को दुखी कर दिया | परन्तु उन बहिनों के विश्वास ने आपको उनसे मिलने के लिये खींच लिया | उन्होंने यीशु से यह विन्ती न की थी कि आप तुरन्त आकर अपने मित्र को चंगा करें बल्की आपको केवल उसकी हालत की खबर भेजी, और विश्वास किया कि आप उसे दूर ही से चंगा करेंगे | उन्हें विश्वास था कि यीशु का लाज़र के लिये प्रेम आपको कुछ करने पर मज़बूर करेगा | “लाज़र” का अर्थ “परमेश्वर ने सहायता की” होता है | इस लिये यह नाम यूहन्ना रचित सुसमाचार में लिखे हुए आखरी आश्चर्यकर्म का नीतिवाक्य बन गया |

यूहन्ना 11:4-10
“ 4 यह सुनकर यीशु ने कहा, ‘यह बीमारी मृत्यु की नहीं; परन्तु परमेश्वर की महिमा के लिये है, कि उसके द्वारा परमेश्वर के पुत्र की महिमा हो |’5 यीशु, मार्था और उस की बहिन और लाज़र से प्रेम रखता था | 6 फिर भी जब उसने सुना कि वह बीमार है, तो जिस स्थान पर वह था, वहाँ दो दिन और ठहर गया | 7 इसके बाद उसने चेलों से कहा, ‘आओ, हम फिर यहूदिया को चलें |’ 8 चेलों ने उससे कहा, ‘हे रब्बी, अभी तो यहूदी तुझ पर पथराव करना चाहते थे, और क्या तू फिर भी वहाँ जाता है?’ 9 यीशु ने उत्तर दिया, ‘क्या दिन के बारह घंटे नहीं होते? यदि कोई दिन में चले तो ठोकर नहीं खाता, क्योंकि इस जगत का उजाला देखता है | 10 परन्तु यदि कोई रात में चले तो ठोकर खाता है, क्योंकि उसमे प्रकाश नहीं |’”

जब यह खबर यीशु तक पहुंची तब आप जान गये थे कि लाज़र मृत्यु से लड़ रहा है | आप ने यह भविष्यवाणी की थी कि बीमार मौत का शिकार न होगा बल्की उस में परमेश्वर की महिमा प्रगट होगी | यीशु को पवित्र आत्मा के द्वारा यह जानकारी हो चुकी थी कि आप के मित्र की मृत्यु से पहले आप को क्या करना है | येरूशलेम के दरवाज़े के सामने मृत व्यक्ती को जिलाकर आप का अधिकार प्रगट होगा ताकी यरूशलेम के लोगों को विश्वास न करने के लिये कोई बहाना न होगा |

परमेश्वर की महिमा और यीशु का दैविकरण होना एक ही बात है | आप की महिमा दुगनी हो गई क्योंकि आप का मृत्यु से सामना हुआ और आप विजयी रहे | मानवजाती आम तौर पर मृत्यु के विचार से भयभीत हो जाती हैं | वो सोचते हैं कि मृत्यु उन के व्यक्तित्व को सरल नष्ट कर देती है | यीशु को अपने पिता की इच्छा की जानकारी थी और आप मृत्यु और उसके परिणाम से प्रभावित न हुये थे परन्तु मृत्यु का कारण भी जानते थे | आप बीमार जगत में मरे हुए व्यक्ति को भी जिला सकते हैं |

यीशु सीधे बेथानी गांव में नहीं गये बल्की दो दिन और वहीँ रुके रहे | आप ने मृत्यु को अपने मित्र को निगलने दिया | चेले यह सुनकर कि आप यहूदिया वापस जा रहे हैं, निराश हुये; क्योंकि उन्होंने यहूदियों को आप को पथराव करने की कोशिश् करते हुये देखा था | चेलों को लाज़र की चिन्ता न थी, न ही वे परमेश्वर की महिमा देखने के इच्छुक थे, बल्की उन्हें स्वंय: अपने जीवन का खतरा लगा हुआ था |

उस समय यीशु ने एक उधारण दिया कि दिन के समय सुरक्षित प्रवास किया जाता है , परन्तु रात के समय उस के प्रवास में बाधा आ सकती है या वह घाटी मे गिर सकता है | जैसे ही क्रूस की मृत्यु का समय नजदीक आ रहा था, दिन के प्रकाश के घंटे समाप्त नहीं हुये थे | उन्हें परमेश्वर के हाथों में सुरक्षित रह कर , शान्तीपूर्वक यरूशलेम जाना था |

जो कोई परमेश्वर की वैकल्पिक योजना पर विश्वास नहीं रखता, वह यीशु के शत्रुओं की तरह अन्धकार में पड़ा रहेगा क्योंकि विश्वास की ज्योती उन पर नहीं चमकी | इस लिये यीशु ने अपने चेलों को आप पर और आप के मार्गदर्शन पर पूर्णत: विश्वास करने के लिये कहा | अन्यथा अविश्वास उन्हें अन्धकार में घसीट लेगा | अन्धकार के समय हमारे लिये शान्तीपूर्वक बात यह है कि हमारे प्रभु की इच्छा के बिना हम पर कोई आपत्ति नहीं आयेगी | आप पर हमें पूर्ण विश्वास है |

प्रार्थना : प्रभु यीशु, जीवन के स्वामी होने के लिये हम आप के आभारी हैं | आप की ज्योति मे हम रास्ता देख पाते हैं | यदि आप के शत्रु हमें नाश करने के इच्छुक हों, तो भी आप हमारा सीधी राह पर मार्गदर्शन कीजिये | हमारी सहायता कीजिये ताकी हम देर न लगायें बल्कि आप के लिये दुःख सहने और मृत्यु को गले से लगाने के लिये तैयार रहें | ताकि हमारे विश्वास से हमारे लिये आप की सहानुभूति और चिन्ता से आप की महीमा हो |

प्रश्न:

74. लाज़र की मृत्यु के बावजूद यीशु ने परमेश्वर की महिमा की बात क्यों कही?

www.Waters-of-Life.net

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