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१२ -- दसवी आज्ञा: अपने पडोसी के घर का लालच न करना
निर्गमन २०:१७
दूसरे लोगों की चीजों को लेने की इच्छा तुम्हे नहीं करनी चाहिए| तुम्हे अपने पडोसी का घर, उसकी पत्नी, उसके सेवक और सेविकाओं, उसकी गायों, उसके गधे को लेने की इच्छा नहीं करनी चाहिए| तुम्हें किसी की भी चीज़ को लेने की इच्छा नहीं करनी चाहिए|
१२.१ -- आधुनिक प्रलोभन
जो कोई भी दूरदर्शन देखता है, बहकानेवाले विज्ञापनों के प्रलोभन में गिर सकता है| तुम शौक़ीन वस्तुओंको बिमा कम्पनियों के हस्ताक्षरित अनुबंधों के साथ, उत्तम इतरों, कपड़ों और खेलकूद की कारों को खरीद सकते हो| यह सूची बढती ही जाएगी, और तुम इन विज्ञापनों में यीशु का साधरण सा वाक्य कभी नहीं सुन पाओगे, “अपने आपको नकारो और तुम जो तुम्हारे पास है उसमे संतुष्ट रहो”| उन लोगो के पास हमेशा यही सन्देश रहता है, “किसी भी वस्तु की इच्छा करो और जो भी तुम्हारे पास न हो, खरीदो”|
एक समाचार पत्रने एक छोटे बच्चे का चित्र जिसके कानों तक खिलौने, टेडी बैअरों, रुई से भरे जानवरों, कारों और खेल रखे है, दिखाया था| उस छोटे बच्चे ने जिस भी वस्तु की इच्छा की, उसे दिया गया था| उसने ऐसा कुछ भी नहीं चाहा था जो उसे नहीं दिया गया था| कितना गरीब बच्चा है वो! समाज ने उस पर इतनी उदारता से खर्च किया था तब तक जब तक कि वह इतना कुंठाग्रस्त हो गया और अपनी बाल्यवस्था की दुनिया में डूबने लगा|
औद्योगिक समाजों में लोग दसवी आज्ञा के विरोधी सिद्धांतों से प्रभावित हो रहे हैं| उदहारण के तौर पर एक पति व एक पत्नी वर्षो वर्ष कार्य करते हैं ताकि वे उनकी एक लंबे समय से चाहत के अनुसार घर बना सके| वे अपनी सामर्थ्य से अधिक कार्य करते हैं और यदि एक माँ को एक कार्य मिलता है तो वह अपने बच्चों का ध्यान नहीं रख पाती है और बाहर के कार्यों से थक जाती है| वे बहुत अधिक काफी और अन्य स्फूर्तिदायक पदार्थ ग्रहण करते हैं इस आशा में कि उससे उन्हें अधिक कार्य करने की शक्ति मिलेगी| इसका अंतिम परिणाम, पुर्णतःभीतरी संताप, और परिवार में झगड़ों, सदेहों का एक ढेर होता है क्यों? क्योंकि परिवार उन वस्तुओं पर अधिक धन का व्यय करते हैं जिसकी उनको आवश्यकता नहीं होती और अपनी आय के औसत अंश के सहारे जीवन जीते हैं|
१२.२ -- क्या स्वामित्व की अनुमति है?
यीशु कहते हैं, “यदि कोई अपना जीवन देकर सारा संसार भी पा जाये तो उसे क्या लाभ? अपने जीवन को फिर से पाने के लिए कोई भला क्या दे सकता है?” (मत्ती १६:२६)| उन्होंने यह भी कहा था, “क्योंकि जो कोई अपने जीवन को बचाना चाहता है, उसे इसे खोना होगा| और जो कोई मेरे लिए और सुसमाचार के लिए अपना जीवन देगा, उसका जीवन बचेगा|” (मरकुस ८:३५)| युद्ध के समय एक बम, एक आठ मंजिला इमारत को एक सेकण्ड में धाराशयी करने के लिए पर्याप्त है, और अंत में प्रत्येक वस्तु राख हो जाती है| लाखों शरणार्थी अपना सब कुछ खो देते हैं| एक साम्यवादी देश में, जो कोई भी अपना स्वयं का घर या सम्पति खरीदता है को इतने कर भुगतान करने पड़ते हैं जोकि उसकी तुल्नायोग्य फलेट के किराये से अधिक होते है, और यह तब तक भुगतान करने पड़ते हैं जब तक कि उसकी आर्थिक स्थिति उस व्यक्ति की तुलना में जिसका अपना कुछ भी नहीं है, से बदतर हो जाये| परमेश्वर हमें स्वयं के लिए बचाकर रखना चाहते हैं और हमें इस योग्य बनाना चाहते हैं कि हम भौतिक वस्तुओं को उनके दृष्टिकोण से देखें| आद्यात्मिक सत्य भौतिक वस्तुओं से अधिक मूल्यवान हैं|
जो विरासत में प्राप्त होता है उसे बाँटने वालों ने इस सिद्धांत को पूरी तरह से आत्मसात कर लेना चाहिए, कि क्या धन और जायदाद के कारण सगे संबंधियों में आपस में घोर शत्रुता स्थापित करना अच्छा होगा? यीशु ने कहा था, “यदि कोई तुझ पर मुक़दमा चला कर तेरा कुर्ता भी उतरवाना चाहे तो तू उसे अपना चोगा तक दे दे|” (मत्ती ५:४०)| पौलुसने हमें आश्वस्त किया था कि कुछ प्राप्त करने की अपेक्षा कुछ देना अधिक आशीषित है| यीशु का अनुसरण करते हुए यह हमेशा हमारा मार्गदर्शन करने वाला सिद्धांत होना चाहिये |अन्य व्यक्तियों की वस्तुओं को रखना गलत है| वह व्यक्ति जो जाली दस्तावेजों को रखता है या किसी की निश्छलता का लाभ उठाता है, परमेश्वर के क्रोध का अधिकारी है, क्योंकि परमेश्वर अनाथों व पितृविहीन बच्चों का रक्षक है|
१२.३ -- लोगों को धोखा देना
दसवी आज्ञा केवल सम्पति अर्जित करने तक ही सीमित नहीं है परंतु यह साथी कर्मचारियों, सेवकों या मित्रों को प्रलोभित करने को भी निषेध करती है| केवल इस लिए एक कर्मचारी अपने बॉस से अप्रसन्न हैं या कार्यस्थल पर उन्हें कुछ कठिनाईयां है, हमें विवाद करने का अधिकार नहीं देता है| इसके स्थान पर हमने उन्हें चुनौती देना चाहिए उस स्थान पर रूककर जहाँ वे हैं, कोई चिंता नहीं कि हमें या उन्हें स्थान परिवर्तन करने से कितने सारे लाभ मिलते हो| हमारे लिए आवश्यक है कि हम कलीसिया, समाजों, शालाओं और परोपकार में भी दसवी आज्ञा को बनाये रखे, क्योंकि भाईयों, बहनों या साथी कर्मचारियों को प्रलोभित करना, कोई आशीष नहीं लायेगा|
यदि कोई व्यक्ति पारिवारिक मामलों में हस्तक्षेप करता है और पति या पत्नी को पारिवारिक एकता, जो उन्हें परमेश्वर की आशीषों के साथ मिली है, को छोड़ने के लिए प्रलोभन देता है, वह गंभीर परिणाम का निर्माण करता है | परिवर्तन की चाह, या एक दूसरे के बारे में गंभीर गलत फहमियां या एक तीखा विवाद भी ऐसे दर्दनाक कदम उठाने के लिए न्यायोचित नहीं हैं| यीशु ने स्वयं ही कहा था “जिन्हें परमेश्वर ने एक साथ जोड़ा है, उन्हें कोई मनुष्य अलग नहीं कर सकता|” यदि कोई व्यक्ति किसी परिवार को तबाह करने की कोशिश करता है या विवाह के बाहर किसी और के साथ यौन संबंध रखता है तो उसे बेहिचक प्रायश्चित, अपने व्यवहार को बदलने और अपने परिवार की जिम्मेदारी को उठाने के लिए अपने आप को तैयार करने की आवश्यकता है| तब उस व्यक्ति विशेष के लिए जीवन अर्थपूर्ण हो पायेगा , और वह सभी प्रकार के पापों से घृणा करना और उन्हें ठुकराना सीख पायेगा| उसे अपने मन में एक रात किसी और के साथ बिताना ,विवाह से कुछ दिनों के लिए छुट्टियाँ लेना, या दूसरे साथी के साथ कुछ दिन रहना, आदि जैसे विचार नहीं रखना चाहिए| इसके स्थान पर, पवित्र आत्मा की शक्ति से वह ईमानदारी से किसी भी प्रकार के पाप से दूर रहेगा, क्योंकि तुम पवित्र आत्मा से दूर रहकर कुछ भी नहीं कर पाओगे|
१२.४ -- हमारी प्रबल इच्छाओं के कारण क्या हैं?
दसवी आज्ञा कुछ लोगों और कुछ वस्तुओं के बारे में जिनकी हम इच्छा करते हैं कहती है| आज के युग में हम इस सूची में, कारों, संगीत वाद्यों, वाशिंग मशीनों, फ्रिज और फैशनेबल कपड़ों को शामिल कर सकते हैं| मनुष्य के सोचने की प्रवृति का झुकाव ऐसा ही है कि जो दूसरों के पास है वह भी उसे पाना चाहता है| जीवन का बढ़ता हुआ स्तर वास्तव में विनाशकारी व कंगाल कर देने वाला है| विकासशील देशों ने जटिल परियोजनाएं आरंभ की हैं जिसके कारण वे इतनी सीमा तक कर्ज में डूब जाते हैं कि वे उस कर्ज के ब्याज का भुगतान भी नहीं कर पाते हैं| वे आधुनिक मशीनों को खरीदते है जिनका उपयोग नहीं किया जाता है क्योंकि किसी को उन्हें दुरुस्त करना या टूटे हुए हिस्सों को बदलना नहीं आता है| यीशु के उपदेशक जानते हैं कि क्यों यह महत्वपूर्ण है कि हमारे पास जो है उसमे हमें संतुष्ट रहना चाहिए, और कर्ज बढाने से, जो आत्मा और शरीर को बर्बाद कर सकते हैं, स्वतंत्र रहना चाहिए| इसके अतिरिक्त, यीशु ने कहा था,, “ किन्तु तुम्हारे बीच ऐसा नहीं होना चाहिए | बल्कि तुममे जो बड़ा बनना चाहे, तुम्हारा सेवक बने| और तुममे जो कोई पहला बनना चाहे, उसे तुम्हारा दास बनना होगा|” (मत्ती २०:२६-२७)| मसीह इस जगत में सभी मान्यताओं को पुर्नस्थापन करने आये थे, जैसा कि उन्होंने प्रार्थना की थी, “उस अवसर पर यीशु ने कहा , “परम पिता, तू स्वर्ग और धरती का स्वामी है, मैं तेरी स्तुति करता हूँ क्योंकि तूने इन बातों को, उनसे जो ज्ञानी हैं और समझदार हैं, छिपा कर रखा है| और जो भोले भाले हैं उनके लिए प्रकट किया है| हाँ परम पिता यह इसलिए हुआ क्योंकि तूने इसे ही ठीक जाना| मेरे परम पिता ने सब कुछ मुझे सौंप दिया है और वास्तव में परम पिता के अलावा कोई भी पुत्र को नहीं जानता| और कोई भी पुत्र के अलावा पिता को नहीं जानता| और हर वह व्यक्ति परम पिता को जानता है, जिसके लिये पुत्र ने उसे प्रकट करना चाहा है| अरे, ओ थके-मांदे, बोझ से दबे लोगों! मेरे पास आओ, मै तुम्हे सुख चैन दूंगा| मेरा जुआ लो और उसे अपने ऊपर संभालो| फिर मुझ से सीखो क्योंकि मै सरल हूँ और मेरा मन कोमल है| तुम्हे भी अपने लिए सुख-चैन मिलेगा| क्योंकि वह जुआ जो मै तुम पर डाल रहा हूँ, हल्का है|” (मत्ती ११:२५-३०)
पौलुस ने लिखा था कि परमेश्वर सभी घमंडों और अक्खड़पनों को एक ही समय में नष्ट कर देंगे जब केवल कुछ अमीर और महत्वपूर्ण लोग कुरिन्थियों की कलीसिया के होंगे| जीवन के लक्ष्यों में परिवर्तन और हृदयों के नवीनीकरण ने प्रथम कलीसियाओं के सदस्यों को एक नया अर्थ दिया था|
दसवी आज्ञा न केवल हमारी बुरी और घृणित क्रियाओं को निषेध करती है परंतु यह हमारे छिपे हुए उद्देश्यों को भी दण्डित ठहराती है| न्यायालय एक निश्चित सीमा तक एक व्यक्ति के अपराधों का न्याय करता है, परंतु मनुष्य के ह्रदय को केवल परमेश्वर पहचान सकते है| यहाँ तक कि हम स्वय भी अपने ह्रदय को परिपूर्णतापूर्वक समझ नहीं पाते हैं| कभी कभी हमें समझ नहीं आता है कि हमारे मित्र कुछ अलग व्यवहार क्यों कर रहे हैं| क भी कभी हम स्वयं के लिए ही एक रहस्य बन जाते हैं| बाईबिल कहती है “यहोवा ने देखा कि पृथ्वी पर मनुष्य बहुत अधिक पापी हैं| यहोवा ने देखा कि मनुष्य लगातार बुरी बातें ही सोचता है|” (उत्पत्ति ६:५) यदि हम अपने आप को यीशु मसीह की पवित्रता के विरोध में तोले तो हम देख पाएंगे कि हम कितने अस्वच्छ और भृष्ट हैं| “क्योंकि सभी ने पाप किये हैं और सभी परमेश्वर की महिमा से विहीन हैं|” (रोमियो ३:२३) यह हम इस प्रकार भी देख सकते है कि एक बच्चा अपनी मनमानी करने के प्रयास में कैसे लगातार चिखचिखकर रोता है| बच्चे एक के बाद एक तरकीबें करते हैं, और जब हम वंशानुगत पाप उनके जीवन में देखते हैं हम इस सतही सिद्धांत कि “बच्चे मासूम होते हैं “ को ठुकरा देते हैं| एक बढ़ता हुआ बच्चा प्रत्येक इच्छा का अभ्यास करता है, और जिद्दी व स्वार्थी बन सकता है| अवश्य ही, बुरा करने और बुरा सोचने में एक अंतर है| कोई भी मनुष्य प्रलोभनों को अनदेखा करने के योग्य नहीं होता परंतु तुम्हे बुराई को तुम्हारे पूरे ह्रदय के साथ प्रतिरोध करने के लिए बुलाया गया है| डॉ. मार्टिन लूथर ने कहा था, “मै चिड़ियों को अपने सिर के ऊपर से उड़ने से रोक नहीं सकता, परंतु मै उन्हें अपने बालों में घोंसला बनाने से रोक सकता हूँ|” हमें प्रलोभनों पर एक दम शुरुआत से नजर रखनी चाहिए इसका प्रतिरोध करना चाहिए और इसके ऊपर विजय पाना चाहिए| पौलुस प्रायः यूनानी शैली में लिखते हैं, “ऐसा हो कि यह विचार मुझमे कभी जन्म न लेने पाए!” याकूब की पत्री प्रलोभन के मूल की रुपरेखा है| प्रथम अध्याय में उन्होंने प्रमाणित किया है कि प्रलोभन परमेश्वर की ओर से नहीं आते, क्योंकि परमेश्वर किसी को भी बुराई के साथ प्रलोभन नहीं देते हैं| लेकिन यदि कोई आकर्षित होता है वह अपने स्वयं के शरीर व लहू की इच्छाओं द्वारा खींच कर दूर चला जाता है| वास्तव में, “सो मेरे प्रिय भाईयों, धोखा मत खाओं| प्रत्येक उत्तम दान और परिपूर्ण उपहार ऊपर से ही मिलते हैं| और वे उस परम पिता के द्वारा जिसने स्वर्गीय प्रकाश को जन्म दिया है,नीचे लाये जाते हैं| वह नक्षत्रों की गतिविधि से उत्पन्न छाया से कभी बदलता नहीं है| सत्य के सुसंदेश के द्वारा अपनी संतान बनाने के लिए उसने हमें चुना| ताकि हम सभी प्राणियों के बीच उसकी फसल के पहले फल सिद्ध हों|” (याकूब १:१६-१८)|
एक ईसाई विश्वासी ने परमेश्वर के वचन को, उसकी इच्छाओं, उसके उद्देश्यों और लक्ष्यों को अनुशासित करने की अनुमति देना चाहिए| अस्वच्छ विचारों पर विजय यीशु को हमारे पूर्णतः समर्पण व उनके अनंत अनुग्रह पर निर्भर करता है ताकि हम दृढ़ता पूर्वक प्रार्थना कर पायें, “भारी कठिन परीक्षा मत ले हमें उससे बचा जो बुरा है|” (मत्ती ६:१३)| ईसाई लोग आश्वस्त है कि उनके पाप जिनका आरोप उन पर लगा था यीशु के लहू द्वारा क्षमा कर दिए गए हैं और उन्होंने मसीह की पवित्रता को पकड़ा हुआ है| इसीलिए वे सुविचारित रूप से पाप नहीं करेंगे, क्योंकि पवित्र आत्मा ने उनके विचारों और व्यवहारों को पवित्र किया है| यीशु, हमारे हृदयों के सभी विचारों में एक विजयी प्रभु बने रहना चाहते हैं| वह हमारे जीवन के युद्ध में हमारा नेतृत्व व हमें विजय प्रदान करना चाहते हैं| यह कुछ एक व्यक्तित्वों या राज्य के विरुद्ध नहीं, परंतु वास्तव में हमारे विशाल अहम्, हमारी बुरी इच्छाओं के जो हममें रहती हैं और प्रलोभनों जो हम पर बाहर से वार करते हैं, के विरुद्ध एक पवित्र युद्दः है| आइये हम प्रार्थना करे और जो प्रार्थना की है उस पर विश्वास करें, “ओ जीवित परमेश्वर और सामर्थ्यवान रक्षक| मै आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मुझे बचाया| कुपा करके मुझे पापों में फिर से गिरने की अनुमति न देना, परंतु मुझे इससे मुक्त कर देना और मुझे उन सभी बुराईयों से जो मुझमे निवास करती हैं, से दूर रखना| कृपा करके बुराई को मेरे अन्दर पैर रखने की अनुमति न देना| मुझ पर आपका अधिकार रहे, प्रभु, और हमेशा के लिए मुझमे निवास करें| मेरे विचारों को आपके लहू के साथ पूर्णरूप से स्वच्छ करें और आपकी आत्मा के साथ मुझे पूर्णरूप से पवित्र करें, ताकि मेरी इच्छा और चाहत आपको प्रसन्न करे|”
१२.५ -- एक नया ह्रदय और एक नई आत्मा
जैसे ही हम स्वयं हमारी बुराई के विरुद्ध एक संघर्ष करने लग जाते हैं तब हमें यीशु का यह कहने का अर्थ समझ में आयेगा, “हमारे ह्रदय में से एक बहुत बड़ी मात्रा में बुरे विचार निकल कर सामने खड़े हो जाते हैं|” तो यह बुरे क्रिया कलापों से बचने या यहाँ तक कि किसी विशेष पाप के विरुद्ध संघर्ष करने का ही मामला नहीं है, परंतु यहाँ पर इससे कहीं अधिक कार्य करने की आवश्यकता है| हमें एक स्वच्छ अन्तःकरण, एक शुद्ध दिमाग और एक नए ह्रदय की आवश्यकता है| इसलिए, हमें यीशु से प्रार्थना करना चाहिए कि वह अपने उद्देश्यों को पवित्र आत्मा की शक्ति द्वारा हममें निष्पन्न (पूरा) करें ताकि हमारी आत्मा, जीवनी शक्ति और शरीर का प्रत्येक भाग वास्तविक रूप से उनके द्वारा पवित्र हो जाये| ना केवल हमारे शारीर में बल्कि आत्मा और जीवनी शक्ति में भी बुराई है| दसवी आज्ञा का उद्देश्य एक बूढ़े मनुष्य का नया जन्म और उसके विचारों व व्यवहारों का आध्यात्मिक नवीनीकरण करना है| उपदेशक यिर्मयाह ने अपने विद्रोहपूर्ण लोगों के लिए अत्यधिक वेदना सही और विशाल दैवीय वादे को प्राप्त किया था, “ ‘भविष्य में यह वाचा मैं इस्राएल के लोगों के साथ करूँगा|’ यह सन्देश यहोवा का है| ‘मै अपनी शिक्षाओं को उनके मस्तिष्क में रखूँगा तथा उनके हृदयों पर लिखूंगा| मै उनका परमेश्वर होऊंगा और वे मेरे लोग होंगे| लोगों को यहोवा को जानने के लिए अपने पड़ोसियों और रिश्तेदारों को, शिक्षा देना नही पड़ेगी| क्यों ? क्योंकि सबसे बड़े से लेकर सबसे छोटे तक सभी मुझे जानेंगे|’ यह सन्देश यहोवा का है| ‘जो बुरा काम उन्होंने कर दिया उसे मै क्षमा कर दूंगा| मै उनके पापों को याद नहीं रखूंगा’| (यिर्मयाह ३१:३३-३४)|
परमेश्वर ने इसी प्रकार का वादा उपदेशक यहेजकेल से भी किया था जब वे उसके सामने प्रकट हुए थे, “ परमेश्वर ने कहा, ‘मै तुम में नयी आत्मा भी भरूँगा और तुम्हारे सोचने के ढंग को बदलूँगा| मै तुम्हारे शरीर से कठोर ह्रदय को बाहर करूँगा और तुम्हे एक कोमल मानवी ह्रदय दूंगा| मै तुम्हारे भीतर अपनी आत्मा प्रतिष्ठित करूँगा| मै तुम्हे बदलूँगा जिससे तुम मेरे नियमों का पालन करोगे| तुम सावधानी से मेरे आदेशों का पालन करोगे|’” (यहेजकेल ३६:२६-२७)| राजा दाऊद ने इन भविष्यवाणियों के प्रकटीकरण के ३० वर्षों पूर्व प्रायश्चित की निम्नलिखित प्रार्थना की थी:
मुझ पर अपनी दया कीजिए, ओ परमेश्वर आपकी प्रेममयी दयालुता के अनुसार; आपकी देखभाल करने वाली दयाओं के सागर के अनुसार मेरे द्वारा किये गए उल्लंघनों के धब्बों का मिटा दीजिए| मेरी अशुद्धताओं से मुझे पूर्णरूप से धो दीजिए; और मुझमे से मेरे पाप साफ कर दीजिए| क्योंकि मै मेरे द्वारा किये नियम उल्लंघनों को स्वीकार करता हूँ; और मेरे पाप हमेशा मेरे सामने हैं| आपके और केवल आपके विरोध में मैंने पाप किये हैं, और आपकी दृष्टी में मैंने बुरा किया है; कि जब आप मुझे देखे आप मुझे निष्पाप पाए और जब न्याय करे मुझे अपराध रहित पाए| दया दीजिए, मै अन्यायतापूर्वक सामने; और पाप में जब मेरी माँ ने मुझे गर्भ में धारण किया, लाया गया था| ध्यान दीजिए, आप अंदरूनी हिस्सों, और छिपे हुए हिस्सों में सत्य की इच्छा रखते हैं| आप मुझे ज्ञान जानने योग्य बनायेंगे| मुझे औषधि युक्त पानी के साथ दोषमुक्त कीजिए, और मै स्वच्छ बन जाऊंगा, मुझे धो दीजिए, और मै बर्फ के समान सफ़ेद बन जाऊंगा| मुझे आनंद और हर्षोउल्लास सुनने योग्य बनाये; ताकि जो हड्डियाँ आपने तोड़ दी है खुशिया मना पाए| मेरे पापों से आप अपना चेहरा छिपा ले; और मेरी सारी दुष्टताओं के निशानों को मिटा दें| मुझमे एक नए ह्रदय का निर्माण करें और परमेश्वर मुझमे एक अटल आत्मा का नवीनीकरण कर दें| मुझे आपकी उपस्थिति से दूर मत कीजिए, और आपकी पवित्र आत्मा मुझसे ना लें| आपके उद्धार के आनंद का मुझमे पुनर्स्थापन कीजिए; और आपकी उदार आत्मा के साथ मुझे उठाये रखना| तब मै उल्लंघनकर्ताओं को आपके मार्ग सिखा पाऊंगा; और पापियों का मन परिवर्तन करके आपके पास लेकर आ पाऊंगा| मुझे मेरे लहू की दोषभावना से मुक्त करें, और परमेश्वर, मेरे उद्धार के परमेश्वर; और मेरी जुबान आपकी पवित्रता के गीत गाती रहेगी| ओ परमेश्वर मेरे होठों को खोलिए, और अब इसके बाद से मेरा मुंह आपकी प्रशंसा करता रहेगा| क्योंकि आपको बलिदान की चाहत नहीं, यदि होती तो मै वह करता; आपको होमबली से प्रसन्नता नहीं मिलती| एक टूटी हुई आत्मा, एक टुटा, ग्लानियुक्त ह्रदय यही परमेश्वर के बलिदान हैं, ओ परमेश्वर आप इससे घृणा नहीं करेंगे| (भजन संहिता ५१:१-१७)
जो कोई भी दाऊद की यह उदाहरणात्मक प्रार्थना करेगा वह परमेश्वर से निश्चित रूप से उत्तर प्राप्त करेगा | यीशु ने इस भविष्यवाणी को पूरा किया था ऐसे जैसे उन्होंने कहा था, “फिर वहां उपस्थित लोगों से यीशु ने कहा, ‘मै जगत का प्रकाश हूँ जो मेरे पीछे चलेगा कभी अँधेरे में नहीं रहेगा| बल्कि उसे प्रकाश की प्राप्ति होगी जो जीवन देता है|’” (युहन्ना ८:१२)| उन्होंने यह भी कहा था “वह दाखलता मै हूँ और तुम उसकी शाखाएँ हो| जो मुझमे रहता है, और मै जिस में रहता हूँ वह बहुत फलता है क्योंकि मेरे बिना तुम कुछ भी नहीं कर सकते|” (युहन्ना १५:५)|
अपने पुरोहित पद के कार्य के आरंभ में ही, यीशु ने लोगो में एक प्रौढ़ व्यक्ति निकुदेमुस को स्पष्ट कर दिया था “यीशु ने जवाब दिया, ‘सच्ची तुम्हे मै बताता हूँ| यदि कोई आदमी जल और आत्मा से जन्म नहीं लेता तो वह परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं पा सकता|’” पतरस ने पिन्तेकुस्त के दिन इस वादे को ३००० लोगों के सामने प्रमाणित कर दिया था, “पतरस ने उनसे कहा, “मन फिराओ और अपने पापों की क्षमा पाने के लिए तुममे हर एक को यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा लेना चाहिए| फिर तुम पवित्र आत्मा का उपहार पा जाओगे|” (प्रेरित के कामों का वर्णन २:३८)
१२.६ -- आद्यात्मिक संघर्ष
जब पवित्र आत्मा हममे निवास करता है हम प्रलोभनों के प्रभाव से मुक्त नहीं हो पाते हैं| लेकिन आत्मा शरीर के विरुद्ध लड़ता है, और एक युद्ध प्रचंड रूप धारण कर लेता है, जैसा कि पौलुस ने इसका विवरण दिया है “क्योंकि यदि तुम भौतिक शरीर के अनुसार जिओगे तो मरोगे| किन्तु यदि तुम आत्मा के द्वारा शरीर के व्यवहारों का अंत कर दोगे तो तुम जी जाओगे|” (रोमियों ८:१३) इफिसियों ४:२२-२४ में पौलुस ने नसीहत दी है, “जहाँ तक तुम्हारे पुराने जीवन – प्रकार का संबन्ध है तुम्हे शिक्षा दी गयी थी कि तुम अपने पुराने व्यक्तित्व को उतार फेंको जो उसकी भटकने वाली इच्छाओं के कारण भृष्ट बना हुआ है| जिससे बुद्धि और आत्मा में तुम्हे नया किया जा सके| और तुम उस नए स्वरूप को धारण कर सको जो परमेश्वर के अनुरूप सचमुच धार्मिक और पवित्र बनने के लिए रचा गया है|” (इफिसियों ४:२२-२४)| बूढ़े आदमी को निकाल दो का अर्थ है कि अपनी सभी पापपूर्ण इच्छाओं से हमेशा के लिए घृणा करो और उनका त्याग करो| नए आदमी को पहनो का अर्थ है यीशु को एक कपडे के समान पहन लो उन्होंने हमें हमारे मूलभूत स्वार्थीपन पर विजय पाने के लिए हमारी सहायता की थी, इसके बाद तो हमें यह करना ही चाहिए|
इस संघर्ष में जैसा कि हम एक पवित्र जीवन जीना चाहते हैं, हमें कई बार हार की पीड़ा सहनी होगी| तब हमे शीघ्रतापूर्वक वापस से यीशु की ओर मुड कर अपने पापों को ईमानदारी से स्वीकार करना चाहिए| जब हमारा गर्व और आत्म – विश्वास टूटता है हम वापस से यीशु के साथ जुड़ जाते हैं और अपनी कमजोरी में उनकी शक्ति का अनुभव करते हैं| यही एक मात्र हमारी बुराई पर विजय प्राप्त करने और परमेश्वर में परिपक्व होने का मार्ग है| बाईबिल कहती है, “वह सभी जिनकी अगुवाई परमेश्वर की आत्मा द्वारा की जाती है, परमेश्वर के बच्चे हैं|” रोमियों ८:१-२ में, पौलुस ने उन सभी को जो इस आध्यात्मिक संघर्ष में भागीदार हैं, सांत्वना दी है, “इस प्रकार अब उनके लिए जो यीशु मसीह में स्थित हैं, कोई दण्ड नहीं है| क्योंकि वे शरीर के अनुसार नहीं बल्कि आत्मा के अनुसार चलते है| क्योंकि आत्मा की व्यवस्था ने जो यीशु मसीह में जीवन दिया है, तुझे पाप की व्यवस्था से जो मृत्यु की और ले जाती है, स्वतंत्र कर दिया है|” (रोमियों ८:१-२)| पुराने नियम में जहाँ हमारे बुरे उद्देश्य और क्रियाएँ कानून के दण्ड के अंतर्गत आते हैं वही नया नियम हमें हमारे सारे पापों का गहरा ज्ञान प्रदान करता है, और ठीक उसी समय हमें यीशु में विश्वास को आत्मसात करके अनुग्रह द्वारा परमेश्वर की धार्मिकता को अपनाने की शिक्षा देता है| वह हमें पवित्र आत्मा को प्राप्त करने की शक्ति, हमारे दिमाग और इच्छा के नवीनीकरण के लिए देता है| मूसा का कानून हमें गिरने से बचाने का प्रयत्न करता है, परंतु यीशु हमें पूर्णतः न्यायीकरण और परमेश्वर की आत्मा की शक्ति, उनकी आज्ञाओं को पूरा करने के लिए प्रदान करते हैं| जहाँ पुराना नियम हमारे दुष्ट उद्धेश्यों के परिणामस्वरूप हमारे जीवन की अस्तव्यस्तताओं को उजागर करता है, हमारे स्वर्गीय पिता हमें दैवीय न्यायीकरण प्रदान करते हैं: दोष नहीं,दण्ड नहीं | यीशु पहले ही मूल्य भुगतान कर चुके हैं | हमारे न्यायीकरण में और कुछ जमा करते हुए, वह अपनी अनंत आत्मा की शक्ति हमें अपने पापों पर विजय प्राप्त करने के लिए देते हैं | एक त्रयी परमेश्वर ने हमें हमारे पापों से, उनकी धार्मिकता की ओर जाने के लिए मुक्त किया है और हमें पराजय से विजय की ओर, अपने निवास करने वाले प्रेम की शक्ति द्वारा हमारा नेतृत्व किया है |
१२.७ -- इस्लाम और कामुकता
विश्वास द्वारा न्यायीकरण या आत्मा द्वारा शरीर पर विजय, और इनके द्वारा कानून की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के बारे में इस्लाम को कोई जानकारी नहीं है| कुरान कहती है, “ मनुष्य कमजोर बनाया गया है “(सूरा-अल–निसा ४:२८)| इस्लाम इसका दोष कुछ मात्रा में अल्लाह को देते हैं|इसलिए मुहम्मद ने एक आदमी को चार पत्नियों के अलावा उपपत्नियों से जिनके लिए उनके मन में आकर्षण होता है, से भी विवाह करने की अनुमति दी थी (सूरा अल–निसा–४:२५)| मुहम्मद ने स्वयं जायद उनके गोद लिए हुए पुत्र की पत्नी से विवाह किया था| इस विवाह के संदर्भ में, मुहम्मद को एक विशेष प्रकटीकरण अल्लाह की ओर से हुआ था जिसने उन्हें जायद की पत्नी और प्रत्येक वह महिला जो स्वयं अपने आप को उनको सौंपती है से विवाह करने की अनुमति दी थी| (सूरा अल– अह्जब ३३:३७,५०,५१ )|
कुरान ने बहुत बार यह भी प्रकट किया है कि अल्लाह जिसको चाहे उसको सही मार्गदर्शन देते हैं, जिसको चाहे सही मार्गदर्शन नहीं देते हैं (सूरा इब्राहीम १४:४ और अल-फातिर ३५:८)| परिणामस्वरूप यहाँ स्वयं मनुष्य पर कुछ अधिक जिम्मेदारियां नही हैं |
पवित्र युद्धों में लूट-मार और युद्ध में तबाह की गई वस्तुओं को उठा कर ले जाना बहुत महत्वपूर्ण था| कभी कभी योद्धा लूट का माल एकत्र करने व उसे घर ले जाने में अपरिपक्वरूप से जकड़े हुए होते थे और युद्ध हार जाते थे| कभी कभी युद्ध में लाये गए लूट के माल को किसी व्यक्ति विशेष को देने के बारे में तीक्ष्ण झगडा होता था| एक मुस्लिम के जीवन में वस्तुओं को प्राप्त करना और कामुकता में लिप्त होना प्राय: ही एक सम्पूर्ण भूमिका निभाता है| एक मुस्लिम के लिए अधिकार व इज्जत अल्लाह के अनुग्रह का सबूत है, जो स्पष्ट रूप से मुस्लिम शासकों के जीवनों में प्रकट होता है| यीशु की विनम्रता और सौम्यता इस्लाम के लिए पूरी तरह से विदेशीय बात है|
अधिकतर खूनी प्रतिशोध इस्लाम में निषेध नही हैं, तब तक जब तक चोरी की हुई वस्तु को वापस करने का कोई अनुबंध न बने| मुहम्मद ने व्यक्तिगत रूप से अपने शत्रुओं की हत्या करने के लिए सन्देश वाहक भेजे थे| मनुष्य की अहंकारी इच्छाए विकसित नही होती हैं यदि वह इस्लाम का पालन करता है, सभी बाते अपरिवर्तनीय रहेंगी यदि वह यीशु के उद्धार को स्वीकार नहीं करता है| एक मुस्लिम के लिए पिता परमेश्वर में विश्वास एक क्षमा न किया जाने वाला पाप है| वह अच्छे कार्य करके अपने आप को बचाने का प्रयास करता है| अच्छे कार्य दया के प्रमुख कार्य नहीं हैं परन्तु धार्मिक कर्तव्यों जैसे कि विश्वास की स्वीकारोक्ति, एक दिन में पांच बार इस्लामिक प्रार्थना, रमजान के महीने में दिन के समय का उपवास, गरीबों को भिक्षा दान, मक्का की तीर्थयात्रा, कुरान को पाठ कर लेना, और इस्लाम को फैलाने के लिए पवित्र युद्ध में लड़ाई करना, की पूर्ति करना है| स्पष्टरूप से यह समझ में आता है कि एक मुस्लिम इस बारे में कुछ नहीं जानता कि उसके हृदय का नवीनीकरण किस प्रकार होगा| यह नई रचना असंभव है क्योकि इस्लाम में वास्तविक पवित्र आत्मा के बारे में कोई नही जानता है (सूरा अल-इसरा १७:८५)| एक मुस्लिम यह समझता है कि पवित्र आत्मा,परमेश्वर द्वारा निर्मित और सामान्यत: देवदूत जिब्रायल को ही उस रूप में जानते हैं| वह परमेश्वर के साथ उनमें रहने वाली आत्मा नहीं है| इसलिए इस्लाम की संस्कृति और नागरिकता शरीर के कार्य का ही निर्माण है| आत्मा के फल प्रेम, आनंद और शांति इस्लाम में अनदेखे किये गये हैं क्योकि सूली पर मारे गये के अनुग्रह द्वारा पापों से क्षमा, यह आधार ही इसमें ठुकराए गये हैं| मुस्लिम बनना मनुष्य के लिए बहुत सरल है, जैसे वह जीता रहा है वैसा ही लगातार रह सकता है| यदि कोई इस्लाम को अंगीकार करता है, वह अफ्रीका और एशिया में बहुपत्नी प्रथा में निरंतर बना रह सकता है| शारीरिक और भौतिक इच्छाओं जैसे खाना पीना और कामइच्छाओं की संतुष्टि का वादा स्वर्ग में भी किया गया है| एक मुस्लिम की अनंतता और कुछ नहीं परन्तु एक मनुष्य की भौतिकवादी इच्छाओं की योजना है ( सूरा अल-वाकिया ५६:१६-३७)| अल्लाह स्वयम भी इस्लामिक स्वर्ग में नही होते हैं| इस्लाम में अल्लाह के साथ कोई सम्पर्क या मित्रता की आशा नहीं है, न ही वहां एक आध्यात्मिक नवीनीकरण या मनुष्य के अहंकारी स्वार्थीपन के विरुद्ध युद्ध की कोई आशा है| नैतिक रूप से और आध्यात्मिक रूप से, इस्लाम पुराने नियम से बहुत नीचे और नये नियम के आदर्शों की तुलना योग्य नहीं है|
१२.८ -- मसीह हमारी एक मात्र आशा
हमें पूर्णरूप से आशान्वित होना चाहिए कि हम मुस्लिम या यहूदियों के लिए किसी घृणा को नहीं आने देंगे, क्योंकि ऐसा कोई भी ईसाई व्यक्ति नहीं है जो स्वयं अपने आप में, इन लोगों से अच्छा है मसीह में विश्वास द्वारा हम धर्मपरायण व पवित्र जीवन जीने के लिए धर्मपरायणता और शक्ति प्राप्त कर सकते हैं| यीशु लता है और हम उनकी शाखाएँ हैं और उनके साथ हमेशा रहने से ही हम गर्व से दूर रहते हैं और हम यीशु के बिना कुछ भी अच्छा नहीं कर सकते है| वह हमारा आधार हैं|