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यूहन्ना रचित सुसमाचार – ज्योती अंध्कार में चमकती है।
पवित्र शास्त्र में लिखे हुए यूहन्ना के सुसमाचार पर आधारित पाठ्यक्रम
दूसरा भाग – दिव्य ज्योती चमकती है (यूहन्ना 5:1–11:54)
क - यीशु की यरूशलेम में अन्तिम यात्रा (यूहन्ना 7:1 - 11:54) अन्धकार का ज्योती से अलग होना
1. झोपड़ियों के पर्व के समय पर यीशु का वचन (यूहन्ना 7:1 – 8:59)

अ) यीशु और आपके भाई (यूहन्ना 7:1-13)


यूहन्ना 7:1-5
“1 इन बातों के बाद यीशु गलील में फिरता रहा ; क्योंकि यहूदी उसे मार डालने का यत्न कर रहे थे, इसलिये यहुदियों में फिरना न चाहता था | 2 यहुदियों का झोपड़ियों का पर्व निकट था | 3 इसलिये उसके भाइयों ने उससे कहा, ‘यहाँ से यहूदिया को जा, कि जो काम तू करता है उन्हें तेरे चेले वहाँ भी देखें | 4 क्योंकि ऐसा कोई न होगा जो प्रसिद्ध होना चाहे, और छिप कर काम करे | यदि तू यह काम करता है, तो अपने आप को जगत पर प्रगट कर |’ 5 क्योंकि उसके भाई भी उस पर विश्वास नहीं करते थे |”

यीशु की अपनी महीमा के विषय में गवाही सुन कर जनसमुहदाय चकित हो गया | यरूशलेम में आप के कुछ मित्र आपकी संगती से अलग हो गये और गलील में कई अनुयाईयों ने आपका साथ छोड़ दिया | राजधानी के संप्रदायवादी लोग यह मानने को तैयार ना थे कि यही नौजवान मृत्कों को जिलाने वाला और दुनिया का न्याय करने वाला व्यक्ती है | गलील के भक्त यह सुन कर घ्रणा करने लगे थे कि आप का मांस और लहू पीना आवयश्क है | वो यह ना समझ सके कि यह प्रभु भोज का चिन्ह है |

यरूशलेम के उच्च न्यायालय के कुछ सदस्यों ने यीशु को जान से मारने का निश्चय किया था | उन्हों ने यीशु को गिरिफ्तार करने कि आज्ञा दी और जो यहूदी आप पर विश्वास करते थे उन्हें धमकी दी कि अगर उन्हों ने यीशु के पीछे चलना ना छोडा तो उन्हें आराधनालयों से निकाल दिया जायेगा | उन्हें परमेश्वर की आशीष भी नहीं मिलेगी | अदालत के भेदिये गलील के क्षेत्र में घूम फिर कर यीशु को ढूंढने और आप के बारे में जानकारी प्राप्त करने लगे | आश्चर्य की बात नहीं कि भीड़ आप से अलग हो गई क्योंकी उसे कौम के नेताओं से अत्याचार या मसीह में पाया जाने वाला अनिश्चित उद्धार में से किसी एक को चुन लेना था |

यीशु के भाइयों को राज्य के सामाजिक जीवन से निकाल दिये जाने का डर था इसलिये वो खुले आम आपसे अलग हो गये ताकी यहूदी आराधनालयों से निकाल ना दिये जायें (मरकुस 6: 3) | उन्हों ने आप को गलील से चले जाने को कहा ताकी वो आपकी ज़िम्मेदारी से अलग हो जायें और इस लिये भी कि आप विवश हो कर यरूशलेम जा कर अपनी महीमा प्रगट करें | कई साल आप के साथ रहने के बाद भी उन्हों ने आपकी दिव्यता पर विश्वास नहीं किया और आप के प्रेम और दयालुता को महत्व नहीं दिया | दुख की बात यह है कि बहुत से विश्वासी, मसीह के प्रेम की सच्चाई को समझे बगैर आपके प्रेम से सन्तुष्ट रहते हैं |

यीशु के भाइयों ने आपके आश्चर्यकर्म देखे थे, फिर भी उन्हें विश्वास न हुआ कि आप ही आने वाले मसीह हैं जिनके सामने हर व्यक्ती अपना घुटना टेकेगा | आप की गतिविधि के कम होने और भीड़ को आपको छोड़ कर जाते हुए देख कर उन्हें बहुत दुख हुआ | उन्होंने यीशु की परीक्षा ली ठीक उसी तरह जैसे शैतान ने जंगल में ली थी | उसने यीशु के सामने प्रस्ताव रखा था कि वे मंदिर में जाकर भक्तों के सामने अपनी महीमा दिखायें ताकी नाटकिये संकेत द्वारा उनको जीत लें | यीशु को अपनी प्रतिष्ठा से प्रेम नहीं था | आपने नम्रता और मानवी प्रक्रति को चुन लिया | वे नहीं चाहते थे कि इस भव्य कर्तव्य द्वारा लोगों का धर्म परिवर्तन किया जाये |

यूहन्ना 7:6-9
“6 तब यीशु ने उनसे कहा, ‘मेरा समय अभी तक नहीं आया, परन्तु तुम्हारे लिये सब समय है | 7 संसार तुम से बैर नहीं कर सकता, परन्तु वह मुझ से बैर करता है क्योंकि मैं उसके विरोध में यह गवाही देता हूँ कि उसके काम बुरे हैं | 8 तुम पर्व में जाओ, मैं अभी इस पर्व में नहीं जाता, क्योंकि अभी तक मेरा समय पूरा नहीं हुआ |’ 9 वह उनसे ये बातें कहकर गलील ही में रह गया |”

मनुष्य घमंडी हैं क्योंकी शैतान कि आत्मा ने उन्हें भ्रष्ट कर दिया है | घमंड आत्मिक बीमारी और मानसिक दुर्दशा का चिन्ह है | सच तो यह है कि परमेश्वर के विपरीत प्रत्येक व्यक्ती छोटा और निर्बल होता है और मृत्यु उसके भाग्य में लिखी हुई है | वो अपनी निर्बलता को छिपाने के लिये सुन्दर पोशाक पहनता है | घमंडी मनुष्य अपने आप को छोटा परमेश्वर समझता है जो अपनी इच्छा से कुछ कर सकता है या नहीं करता | वो परमेश्वर की उपेक्षा कर अपनी प्रतिदिन की योजनाएं बनाता है | अपने स्वभाव के कारण वह अपने निर्माता का विद्रोही बन जाता है | मनुष्य परमेश्वर से नहीं परन्तु स्वंय अपने आप से प्रेम करता है | वो अपने नाम की बड़ाई करता है परन्तु अपने स्वर्गीय पिता के नाम की सराहना नहीं करता |

लोगों के केवल विचार और इच्छा ही नहीं परन्तु उनके सारे काम बुरे होते हैं | क्योंकी जो कोई अपने प्रभु के साथ नहीं रहता वो उसके विरुध रहता है | विज्ञान के बहुत से अविष्कार और खोज, राजनीतिक सिद्धांत और दार्शनिक सिद्धांत पाप के क्षेत्र से संबन्ध रखते हैं | उन में मृत्यु के बीज होते हैं |

यीशु ने बताया कि संसार आपसे घ्रणा करता है क्योंकी आप अपनी इच्छा से काम करने के लिये नहीं आये बल्की आप और पिता एक हैं और आप उसकी संगति में काम करते हैं | आप धार्मिक लोगों के लिये भी ठोकर का कारण बन गये क्योंकी जिस प्रेम को आप सराहते हैं वह व्यवस्था के अनुसार नहीं बल्की दिव्य है | वो आपसे बैर रखते थे क्योंकी आपकी उपस्तिथी ने उनके स्वाभिमान को समाप्त कर दिया था |

मसीह के भाइयों ने पवित्र आत्मा को स्वीकार नहीं किया था बल्की वे दुनियावी आत्मा से परिपूर्ण हो चुके थे और इस तरह वो फरीसियों के सिद्धांतों से सहमत थे | उनका अविश्वास यह सिद्ध करता था कि परमेश्वर की प्रेमालू आत्मा उनमें नहीं है बल्की दूसरी आत्मा उनकी अगवाई करती थी जिसमें घमंड था और वह परमेश्वर का विरोध करती थी | वो अपने अच्छे कामों के महत्व मे विश्वास करके अपने आप को धोका दे रहे थे |

यूहन्ना 7:10-13
“10 परन्तु जब उसके भाई पर्व में चले गए तो वह स्वंय भी प्रगट में नहीं परन्तु मानो गुप्त रूप से गया | 11 यहूदी पर्व में उसे यह कहकर ढूंढने लगे, ‘वह कहाँ है?’ 12 और लोगों में उसके विषय में चुपके चुपके बहुत सी बातें हुईं : कुछ कहते थे, ‘ वह भला मनुष्य है |’ और कुछ कहते थे, ‘नहीं, वह लोगों को भरमाता है |’ 13 तौभी यहुदियों के डर के मारे कोई व्यक्ति उसके विषय में खुलकर नहीं बोलता था |”

हर साल यहूदी झोपड़ियों के पर्व को बड़ी खुशी से मनाते थे | पेड़ों की डालियों से वो घर की छतों पर या सड़क के किनारे कुटियाँ बनाते थे जिस में आराम करते थे | लोग एक दूसरे से मिलते और स्वादिष्ट भोजन का उपभोग करते थे | अत्यधिक फसल के लिये और परमेश्वर का धन्यवाद करने के लिये यह पर्व मनाया जाता है | ये कुटियाँ और तम्बू उन्हें जंगल की वाचा की याद दिलाते थे क्योंकी उन दिनों में उनके पास पृथ्वी पर बसने के लिये कोई शहर ना था |

यीशु ने इस पर्व की खुशियों पर चर्चा नहीं की क्योंकी आप पर और आप के चेलों पर अत्याचार किया जा रहा था | आपने अपने भाइयों को जाने दिया | बाद में वे स्वंय यरूशलेम गये और गलील को बिदाई दी जो आपका दुनियावी घर था | निर्णायक समय आ चुका था जो इतिहास का शिखर था यानी दिव्य क्रोध के द्वारा हमारे उद्धार के लिये आप की मृत्यु |

यीशु के विषय में यहुदियों के भिन्न भिन्न मत थे | कुछ यहूदी आपको परमेश्वर की तरफ से आये हुए अच्छे व्यक्ती और समाज सुधारक समझते थे | कुछ यहूदी आपको लोगों को दिशाहीन करने वाले और मृत्यु दंड के योग्य समझते थे | वे सोचते थे कि यीशु की उपस्तिथी उन पर परमेश्वर का क्रोध ढायेगी और उनकी सारी खुशियाँ बरबाद हो जायेंगी | उच्च न्यायालय ने इस आशा से आज्ञा दी और घोषणा की, कि यीशु के अनुयायी आप का साथ देने से हिचकिचायेंगे | इस के बाद किसी ने यीशु के बारे में खुल कर बात करने का साहस नहीं किया |

प्रार्थना: प्रभु यीशु, आप की नम्रता और परमेश्वर के प्रती आप की आज्ञाकारी के लिये हम आप का धन्यवाद करते हैं | हमें दुनिया की विचारधारा से स्वतंत्र कीजिये ताकी हम आप की आत्मा से परिपूर्ण हों | हमें बुरे व्यवहार से बचाएं और हमारे अंत:करण को स्वस्थ कीजिये ताकी हम आप की ऐसी सेवा करें जैसी आप चाहते हैं |

प्रश्न:

52. दुनिया यीशु से घ्रणा क्यों करती है ?

www.Waters-of-Life.net

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