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Previous Lesson -- Next Lesson यूहन्ना रचित सुसमाचार – ज्योती अंध्कार में चमकती है।
पवित्र शास्त्र में लिखे हुए यूहन्ना के सुसमाचार पर आधारित पाठ्यक्रम
पहला भाग – दिव्य ज्योति चमकती है (यूहन्ना 1:1 - 4:54)
क - मसीह का पहली बार यरूशलेम को चले आना (यूहन्ना 2:13 – 4:54 ) - सही उपासना क्या है?
4. यीशु सामरिया में (यूहन्ना 4: 1-42)
अ) यीशु एक कुलटा को पश्यताप करने की प्रेरणा देते हैं (यूहन्ना 4:1-26)यूहन्ना 4:1-6 बपतिस्मा देने वाले यूहन्ना यीशु को प्रभु कहते हैं जो अनन्त राजा के तौर पर इतिहास में राज करते हैं | वो दंड भी देते हैं और अनुग्रह भी देते हैं | वो उनका मार्गदर्शन करते हैं और न्याय भी करते हैं | यूहन्ना ने आपकी महीमा देखी और आप को इस महान उपाधि से सम्मानित किया फरीसी संगठित हो चुके थे और युद्ध के लिये तैयार थे | मसीह ने यहूदिया में जो प्रचार किया वह बहुत ही सफल रहा | उन्होंने यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले की तरह लोगों को अपने पाप मान कर पश्चताप पश्यताप करने के लिये बुलाया | ऐसा लगता था जैसे आप ने यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले का ज़िम्मा खुद अपने हाथों में लिया था (परन्तु वह खुद बपतिस्मा नहीं देते थे बल्की यह काम आपने अपने चेलों को दे दिया था क्योंकि वे बपतिस्मा देने वाले यूहन्ना के पास से आये थे )| मसीह सिखाते थे कि पानी का बपतिस्मा केवल आत्मा के बपतिस्मे का चिन्ह है | अबतक आप का समय नहीं आया था और आप खुद बपतिस्मा भी नहीं देते थे | जब फरीसियों का विरोध बढ़ने लगा तब यीशु उत्तर की तरफ/ओ र चले गये | वे अपने पिता की बनाई हुई योजना के अनुसार चल रहे थे | व्यवस्था के इन न्याय्शास्त्रियों के साथ संघर्ष करने का समय अभी नहीं आया था | यीशु ने गलील को छोटे रास्ते से पहुँचने के लिये पहाड़ी क्षेत्र से यात्रा करना पसंद किया और इस तरह आपने सामरिया में प्रवेश किया | पुराने नियम में सामरी लोगों को सम्मानीत जाती का दर्जा नहीं दिया जाता था क्योंकि उनकी नसों में इस्रायली खून के साथ गैर यहूदियों का खून भी प्रवाह करता था | मसीह से 722 साल पहले असीरियों ने सामरिया पर हमला किया और ज़्यादातर अबराहम की नसल को देश से निकाल कर मिसोपोतामिया में बसा दिया और अन्य जातियों को सामरिया में बसा दिया | इस तरह यहां अनेक जातियों का मेल जोल हुआ जिसके कारण अनेक धार्मिक सिद्धांतों का भी मिश्रण हो गया | यीशु सिकिम ने निकट सुखार में आये जो पूर्वजों का केन्द्र स्थान था | यह वही स्थान था जहां जोशुआ ने परमेश्वर और लोगों के बीच समझौता किया था (उत्पत्ति 12: 6 और यहोशू 8: 30-35)| वहां एक प्राचीन कुआँ था जिसे याकूब का कुआँ माना जाता था (उत्पत्ति 33: 19) | यूसुफ की हड्डियाँ भी नाबलुस के पास किसी जगह दफ़न की गई थीं (यहोशू 24: 32) | यह क्षेत्र पुराने नियम का एक ऐतिहासिक केन्द्र बिन्दु बन गया था | लम्बी कठोर पैदल यात्रा और दोपहर की धूप से थक कर यीशु कुएँ के पास बैठ गये | आप भूत या मनुष्य के रूप में कोई दिव्य व्यक्ती न थे बल्की असली मनुष्य थे जो थके मांदे और प्यासे थे | आप एक साधारण मनुष्य थे जिसमे मनुष्य की सारी कमजोरियाँ मौजूद थीं | यूहन्ना 4: 7-15 जब यीशु कुएँ क्वे पास खड़े थे तब एक सामरी स्त्री पानी लेने आई | वो दूसरी स्त्रियों यों की तरह सुबह या शाम के समय नहीं बल्की दोपहर को आई | वो किसी से मिलना नहीं चाहती थी क्योंकि वो बदनाम थी इस लिये वो जहाँ कहीं भी जाती थी लोग उसे घृणा की दृष्टि से देखते थे | यीशु ने दूर ही से उसके दुखी दिल का अन्दाज़ लगा लिया और उसकी पवित्र होने की प्यास को भी जान लिया | आप ने उसकी सहायता करने का निर्णय लिया लेकिन उसके सामने ना ही दस आज्ञायों पर चर्चा की और न उसे डांटा बल्की सिर्फ पीने के लिये पानी मांगा | आप ने उसे ऎसी व्यक्ती समझा जो आप को पानी पीला सकती थी | लेकिन जब उसने देखा कि आप यहूदी हैं तो वो हिचकिचाई क्योंकी उसकी जाती और यहूदियों के बीच धार्मिक सिद्धांतों के विषय में दरार पड़ गयी थी |यहाँ तक की वो एक दूसरे के बर्तन भी अपवित्र होने के डर से नहीं छूटे थे | परन्तु यीशु ने उससे ऐसा व्यवहार किया जैसे उनके बीच में धार्मिक परम्परा के विषय में कोई रूकावट न थी और पानी मांग कर उसे सम्मानित किया | मसीह का उद्देश इस पापी के दिल में परमेश्वर को जानने की इच्छा उत्पन्न करना था क्योंकी उस समय वहाँ कुआँ था इस लिये पानी के विषय में बात करना उचित था | इस से उसके दिल में परमेश्वर का उपहार पाने कि इच्छा जाग उठी | आपने उसके सामने परमेश्वर के प्रेम को लक्ष बनाया | यह सज़ा की आज्ञा ना थी जो उसे नरक का मार्ग बताती बल्की यह परमेश्वर का अनुदान था जो उसके अनुग्रह के द्वारा उसके लिये तैयार किया गया था | निश्चय ही यह एक वैभवशाली चमत्कार था | अनुग्रह तत्काल हवा के साथ नहीं आता बल्की केवल यीशु के व्यक्ती में आता है | आप ही प्रतीभा और दिव्य अनुग्रह के देने वाले हैं | फिर भी उस स्त्री ने आप को एक साधारण व्यक्ती समझा | मसीह की महीमा अब तक उसकी आँखों से छिपी हुई थी, परन्तु आप का पवित्र प्रेम उसके सामने साफ उज्वलित था | आपने उससे कहा कि जीवन का पानी आपके पास है | जो आस्मानी पानी आप देते हैं उससे आत्मा की प्यास बुझती है | सभी मनुष्य प्रेम और सत्य चाहते हैं और परमेश्वर के पास लौट कर जाने की इच्छा रखते हैं | जो व्यक्ती यीशु के पास आता है वह अपनी प्यास बुझा लेता है | यीशु हर उस व्यक्ती को परमेश्वर का उपहार देते हैं जो उनसे मांगता है | हमें अपनी आवश्यकता स्वीकार करना चाहिये, ठीक उसी तरह जैसे मसीह ने पानी के लिये अपनी आवश्यकता को प्रकट किया | जब तक मनुष्य सर झुका कर ना मांग ले वो उस मुफ्त में दिये जाने वाले आस्मानी पानी को नहीं पा सकता | यह स्त्री यीशु को समझ न सकी | उसने आम तौर पर कहा, “आपके पास कुँए में से पानी निकालने के लिये कोई बरतन तो है नहीं और कुआँ गहरा है फिर आप मुझे पानी कैसे दे सकते हैं ? “ साथ ही साथ जब उसको यीशु की कृपा और प्रेम का अनुभव हुआ तो वह आश्चर्यचकित रह गई | उसके पड़ोसियों की तरह आप ने उससे घ्रणानहीं की | आप महानता और महीमा में उससे अलग थे परन्तु अपनी पवित्रता में उससे प्रेम करते थे | वह स्त्री कभी भी आपके जैसे पवित्र मनुष्य से ना मिली थी | इस लिये उसने पुछा, “क्या आप हमारे पिता याकूब से महान हैं ? क्या आप किसी चमत्कार के द्वारा हमें नया कुआँ दे सकते हैं ?” यीशु ने उसे बता दिया कि आप दुनियावी पानी के बारे में नहीं सोच रहे, क्योंकी जो मनुष्य प्राकृतिक पानी पी कर अपनी शारीरिक प्यास बुझाता है वो फिर प्यासा होगा | शारीर केवल पानी को सोख लेता है और फिर उसे निकाल देता है | यधपि यीशु हमें जीवन का पानी देते हैं और आत्मिक प्यास बुझाते हैं |मसीही परमेश्वर को ढूंढते हैं और उसे पाते हैं | वो तत्वज्ञानी नहीं हैं जो सच्चाई तक पहुंचे बगैर उस पर विचार विनमय करते रहे | परमेश्वर ने उन्हें ढूंड लिया है और वो उसके मूल तत्व को जानते हैं | उसका प्रेम हमेशा हमारे लिये पर्याप्त होता है | उसका प्रकाशित वचन अरोचक या प्राचीन नहीं होता | वह हर समय झरने की तरह बहता रहता है, प्रती दिन नवीकृत होता है, स्पष्ट और परमेश्वर के ज्ञान को उत्साहप्रद बना देता है | परमेश्वर का वचन केवल विचार ही नहीं बल्की शक्ती, जीवन, ज्योति और शांती होता है | पवित्र आत्मा परमेश्वर का दिया हुआ उपहार है और यही आस्मानी पानी है | यीशु ने तीन बार अपने दावे को दुहराया कि केवल आप ही जीवन का पानी देते हैं | यीशु के सिवा, जो आप के उद्धारकर्ता हैं कोई धर्म या समुदाय, कोई पारिवारिक संबन्धी या मित्र आप कि आत्मिक प्यास नहीं बुझा सकता | जो व्यक्ती परमेश्वर के इस उपहार को प्राप्त करता है उसमें आत्मिक बदलाव आ जाता है | जो मनुष्य पहले प्यासा था, अब वो झलकता हुआ झरना बन कर दूसरों के लिये आशीष, अनुग्रह, खुशी, प्रेम और पवित्र आत्मा के अन्य फल बन जाता है | इस स्त्री ने महसूस किया कि यीशु कोई जादूगर नहीं हैं परन्तु उसके साथ सच बोल रहे हैं | उसने आपसे जीवन का पानी मांगा | उसने अपनी ज़रूरत स्वीकार की, परन्तु फिर भी यह सोचती रही की अब भी यीशु ज़मीन के पानी की बात कर रहे हैं | उसने सोचा कि अगर उसे वो पानी मिल गया तो उसे सिर पर घड़ा रख कर पानी भरने नहीं आना पड़ेगा और ना ही उसका उन लोगों से पाला पड़ेगा जो उसे घ्रणा की दृष्टी से देखते हैं | प्रार्थना: जीवन का पानी देने वाले प्रभु यीशु, हमारी परमेश्वर के ज्ञान और प्रेम की प्यास बुझाइये, हमारे भ्रष्टाचार को क्षमा कीजिये और हमारे सब दाग मिटा दीजिये ताकी पवित्र आत्मा हम पर उतर आये और हमेशा हमारे साथ रहे | हम पानी का झरना बन जाएँ ताकी बहुत से लोग हमारे दिलों में उंडेली हुई आपकी आत्मा द्वारा अपनी प्यास बुझा सकें | हमें नम्रता, प्रार्थना, प्रेम और विश्वास का ज्ञान दीजिये | प्रश्न: 32. यीशु हमें कौनसा उपहार प्रदान करते हैं ? इस की विशेषताएं क्या हैं ?
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