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Home -- Hindi -- John - 029 (Jesus leads the adulteress to repentance)

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Previous Lesson -- Next Lesson

यूहन्ना रचित सुसमाचार – ज्योती अंध्कार में चमकती है।
पवित्र शास्त्र में लिखे हुए यूहन्ना के सुसमाचार पर आधारित पाठ्यक्रम
पहला भाग – दिव्य ज्योति चमकती है (यूहन्ना 1:1 - 4:54)
क - मसीह का पहली बार यरूशलेम को चले आना (यूहन्ना 2:13 – 4:54 ) - सही उपासना क्या है?
4. यीशु सामरिया में (यूहन्ना 4: 1-42)

अ) यीशु एक कुलटा को पश्यताप करने की प्रेरणा देते हैं (यूहन्ना 4:1-26)


यूहन्ना 4:16–24
“16 यीशु ने उससे कहा , “जा , अपने पति को यहाँ बुला ला | “ 17 स्त्री ने उत्तर दिया, “मैं बिना पति की हूँ |” यीशु ने उससे कहा, :तू ठीक कहती है, “मैं बिना पति की हूँ”, 18 क्योंकि तू पाँच पति कर चुकी है, और जिसके पास तू अब है वह भी तेरा पति नहीं | यह तु ने सच ही कहा है |” 19 स्त्री ने उससे कहा, “हे प्रभु, मुझे लगता है की तू भविष्यव्यक्ता है | 20 हमारे बाप दादों ने इसी पहाड़ पर आराधना की , और तुम कहते हो कि वह जगह जहाँ आराधना करनी चाहिए यरूशलेम में है “ 21 यीशु ने उससे कहा, “हे नारी, मेरी बात का विश्वास कर कि वह समय आता है कि तुम न तो इस पहाड़ पर पिता की आराधना करोगे, न यरूशलेम में | 22 तुम जिसे नहीं जानते, उसकी आराधना करते हो; और हम जिसे जानते हैं, उसकी आराधना करते हैं; क्योंकि उद्धार यहूदियों में से है | 23 परन्तु वह समय आता है, वरन् अब भी है, जिसमें सच्चे भक्त पिता की आराधना आत्मा और सच्चाई से करेंगे, क्योंकि पिता अपने लिये ऐसे ही आराधकों को ढूंढता है | 24 परमेश्वर आत्मा है, और अवश्य है कि उसकी आराधना करनेवाले आत्मा और सच्चाई से आराधना करें |”

यीशु ने इस स्त्री में जीवन के पानी की प्यास जगाने के बाद परमेश्वर से उपहार पाने की उसकी इच्छा भी पूरी कर दी और उसे बताया कि उसके पाप उसे परमेश्वर का उपहार प्राप्त करने में बाधा बने हुए थे | आप ने कठोर शब्दों में यह कह कर के “तू कुल्टा है,” उसे आरोपी नहीं ठहराया बल्की बड़ी नरमी से अपने पती को आपके पास ले आने को कहा | इस से उसकी भावना को ठेस पहुंची | वह भी सब स्त्रियों की तरह अपने पती की शरण और देख रेख में रहना चाहती थी | परन्तु वो अकेली थी और लोग उससे घ्रणा करते थे | वह यीशु को यह लज्जाजनक बात बताना नहीं चाहती थी | इसलिये उसने अपने आपको इस स्तिथी से बचने के लिये कह दिया: “मेरा कोई पती नहीं है |”

यीशु ने इस दावे को सच बताया कि आप ही सत्य हैं और सब गुप्त भेद जानते हैं | आप जानते थे की वह आवारा और अकेली थी और कामवासना में प्रेम को ढूंढते हुए पाप पर पाप कर रही थी |

व्यभीचार का प्रत्येक कार्य, विपत्ती लाता है, हमारे अंत:करण को मरोड़ता है और हमारे आतंरिक भावनाओं को घृणित कर देता है | जैसा की स्त्रियों में देखा जाता है, इस तरह की दरार पड़ने के बाद भी एक स्त्री, मिलाप और समझौते के लिये चिन्तित रहती है और चाहती है की उसका भी कोई पती हो |

अब उस स्त्री ने जान लिया कि यीशु कोई साधारण व्यक्ती नहीं हैं बल्की किसी भविष्यवक्ता के जैसे आतंरिक ज्ञान रखते हैं | उसका दिल जानता था की केवल परमेश्वर ही उसकी सहायता कर सकता है | परन्तु वह उसे कहां मिलेगा? और वह उसे कैसे प्राप्त कर सकेगी? प्रार्थना और धार्मिक रसमों से वह अपरिचित हो चुकी थी | कई सालों से वह किसी धार्मिक सभा में सहयोगी नहीं हुई थी, फिर भी वह मुक्ती और परमेश्वर के साथ शान्ती चाहती थी |

उसके अन्दर पवित्र होने की प्यास जगाने के बाद यीशु ने उसे एहसास दिलाया कि आवयश्क यह नहीं की आराधना किस जगह की जाये बल्की यह कि किस की आराधना की जाये | आप ने घोषणा की कि परमेश्वर आस्मानी पिता है | इस तरह परमेश्वर की पहचान के तौर पर आप ने उसे अपना उद्धार प्रदान किया | आप ने विषेश शब्द “पिता” का तीन बार प्रयोग किया | मसीह पर विश्वास करने से ही परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त होता है, भक्ती या बुद्धी से नहीं |

यीशु ने स्पष्ट कर दिया कि हर देवता पिता नहीं होता | सामरी कई देवताओं पर श्रद्धाभाव रखते थे | परन्तु यहूदी उस प्रभू को जानते थे जिस ने दुनिया/जगत पर ज़ाहिर होकर प्रतिज्ञा की थी की दाउद की नसल से दुनिया/जगत के लिये उद्धारकर्ता जन्म लेगा |

पवित्र शास्त्र में वर्णन किया हुआ धर्म विश्वव्यापी होने वाला था | तब से परमेश्वर की आराधना किसी विशेष मंदिर से जुड़ी हुई नहीं रही | सभी विश्वासियों को परमेश्वर का मंदिर बनना था जिसमें पवित्र आत्मा रहता था और उनका सारा जीवन परमेश्वर की महीमा की आराधना बन रहा था | जैसे ही वो मसीह के विशाल प्रेम में प्रवेश करते हैं, आप का उद्धार उनकी पहचान बन जाता है | उन्हों ने ऐसा जीवन चुन लिया है जो न्यायपूर्ण, ईमानदार और उसकी शक्ती में पवित्र है | उनके आस्मानी पिता ने उनका नवीकरण किया है | उनकी भावनापूर्ण भक्ती प्रशंसा से परिपूर्ण है | जब परमेश्वर के बच्चे धन्यवाद के साथ और भक्तीभाव से उसे “हमारे आस्मानी पिता” कह कर संबोधित करते है तब वह प्रसन्न होता है |

परमेश्वर आत्मा है | वह कोई मूर्ती या भूत नहीं है | वह हमारा पिता है और हम उसकी आत्मा से परिचित हैं | उसे हमारी निर्बलता का ज्ञान है और वो यह भी जानता है की हम उस तक पहुंच नहीं सकते | वो अपने पुत्र के रूप में हमारे पास आया और उसके बलीदान से हमें पवित्र किया ताकी हम उसकी आत्मा पायें | परमेश्वर चाहता है कि उसकी बहुत संतान हो | केवल उसकी संतान ही आत्मा और सच्चाई के साथ उसकी आराधना कर सकती है | हम अपने आस्मानी पिता से प्रार्थना करते हैं कि वो हमें अपनी आत्मा, सच्चाई और अनुग्रह से परिपूर्ण कर दे ताकी हमारा जीवन उसके प्रेम का उत्तर बन जाये |

कोई व्यक्ती पिता कि आराधना योग्यतापूर्वक नहीं कर सकता इस लिये यीशु ने हमें आत्मा का उपहार दिया है | उसकी आत्मा में होकर हम ईमानदार भक्त, प्रसन्न सेवक और निडर गवाह बन जाते हैं | तब हमारा जीवन, मसीह के क्रूस से निकलने वाली आत्मिक शक्ती के कारण अपने प्रिय पिता की आराधना कर पायेगा | मसीह ने मंदिर की सफाई कर दी ताकी वहां सच्ची आराधना हो सके | मसीह के रूप में पिता उस पापी स्त्री के सामने प्रगट हुआ | जब उसने अपने पापों को स्वीकार किया और जीवन के पानी के लिये अपनी प्यास की इच्छा प्रगट की तब यीशु ने उस पर अनुग्रह किया |

प्रार्थना: ऐ आस्मानी पिता, हम तेरा धन्यवाद करते हैं क्योंकी तू चाहता है कि हम दिल से तेरा सम्मान करें और अपने चाल चलन में पवित्र रहते हुए तेरे अनुग्रह की प्रशंसा करें | हमारी आराधना को पवित्र कर. हमें ऐसे सेवक बना जो तेरे पुत्र के पीछे चलें जिसने हमेशा तेरी महीमा की | हमें अपनी प्रार्थना की आत्मा से परीपूर्ण कर दे ताकी हर समय हम सुसमाचार में से बहने वाले तेरे वचन पर चलते रहें |

प्रश्न:

33. सच्ची आराधना में बाधा कैसे आती है? सच्ची आराधना कैसे की जाती है?

यूहन्ना 4:25–26
“25 स्त्री ने उससे कहा, “ मैं जानती हूँ कि मसीह जो ख्रिस्त कहलाता है, आनेवाला है; जब वह आएगा, तो हमें सब बातें बता देगा |” 26 यीशु ने उससे कहा, “मैं जो तुझ से बोल रहा हूँ, `वही हूँ |”

इस स्त्री ने यीशु के प्यार भरे शब्दों की शक्ती और सच्चाई का अनुभव किया और वो आप के कहे गये वचन पूरे होते हुए देखना चाहती थी | उस ने आप के नाम पर अपनी आशा स्थिर रखी थी और उसे विश्वास था कि केवल आप ही उसे परमेश्वर की सच्ची आराधना के बारे में बता सकते हैं

आश्चर्य इस बात का है कि यीशु ने इस से पहले इतने स्पष्ट शब्दों में अपने आप को किसी और के सामने प्रगट नहीं किया जैसा कि इस स्त्री के सामने किया | आप ने कहा कि आप ही प्रतिज्ञा किये हुए मसीह हैं जो परमेश्वर की तरफ से भेजे गये हैं और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हैं | “मैं स्वंय मानव् जाती के लिए परमेश्वर का उपहार हूँ,परमेश्वर का वचन जो अवतारित हुआ और वो उद्धार जो सब के लिये तैयार किया गया है |”

वो स्त्री समझ ना सकी कि मसीह का मतलब/अर्थ राजाओं का राजा, भविष्य वक्ताओं का प्रधान और महायाजक होता है | संभवता उसने सुना होगा कि मसीह का आना, मृतकों में से जी उठने और पृथ्वी पर शान्ती फैलाने से जुडा हुआ है | हो सकता है उसने मसीह के नाम के साथ जुड़े हुए यहूदियों के राजनीतिक सपनों के बारे में भी सुना हो | परन्तु वह केवल एक उद्धारकर्ता चाहती थी जो उसे उसके पापों से मुक्ती दे | उसे विश्वास था कि मसीह ऐसा कर सकते हैं |

यह सुनकर यीशु ने कहा, “मैं जो तुम से बातें कर रहा हूँ वही तो हूँ | “मैं हूँ” इस कथन से आस्मानी योजना और भविष्यवक्ताओं की प्रतिज्ञायें पूरी हो जाती हैं |कोई साधारण व्यक्ती इस तरह स्पष्ट नहीं कर सकता था कि वो मसीह है | मसीह का विरोध करने वाला भी आने वाला था जो संभवता ऐसा झूठा दावा करे | परन्तु मसीह में ऐसा अवतरीत प्रेम है जो किसी अज्ञानी पापी को घ्रणा की द्रिष्टी से नहीं देखता बल्की वो सामरिया की एक अपरिचित स्त्री पर भी दया करेगा | मसीह दया हैं, न्याय नहीं |

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