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रोमियो - परमेश्वर के वचन को न केवल सुननेवाले, परन्तु उस अनुसार कार्य करने वाले बनो|
याकूब की पत्री का अध्ययन (डॉक्टर रिचर्ड थॉमस द्वारा)
अध्याय III
जुबान का दुरुपयोग (याकूब 3:1-12)
याकूब 3:1-12
1 हे मेरे भाइयों, तुम में से बहुत उपदेशक न बनें, क्योंकि जानते हो,कि हम उपदेशक और भी दोषी ठहरेंगे| 2 इसलिए कि हम सब बहुत बार चूक जाते हैं: जो कोई वचन में नहीं चूकता, वही तो सिध्द मनुष्य है;और सारी देह पर भी लगाम लगा सकता है| 3 जब हम अपने वश में करने के लिए घोड़ों के मुंह में लगाम लगाते हैं, तो हम उन की सारी देह को भी फेर सकते हैं| 4 देखो, जहाज भी, यद्यपि ऐसे बड़े होते हैं,और प्रचंड वायु से चलाए जाते हैं, तौभी एक छोटी सी पतवार के द्वारा मांझी की इच्छा के अनुसार घुमाए जाते हैं| 5 वैसी ही जीभ भी एक छोटा सा अंग है और बड़ी बड़ी डींगे मारती है: देखो, थोड़ी सी आग से कितने बड़े वन में आग लग जाती है| 6 जीभ भी एक आग है: जीभ हमारे अंगों में अधर्म का एक लोक है और सारी देह पर कलंक लगाती है, और भवचक्र में आग लगा देती है और नरक कुण्ड की आग से जलती रहती है| 7 क्योंकि हर प्रकार के बन-पशु,पक्षी,और रेंगने वाले जन्तु और जलचर तो मनुष्य जाति के वशमें हो सकते हैं और हो भी गए हैं| 8 पर जीभ को मनुष्यों में से कोई वश में नहीं कर सकता; वह एक ऐसी बला है जो कभी रूकती ही नहीं; वह प्राण नाशक विष से भरी हुई है| 9 इसी से हम प्रभु और पिता की स्तुति करते हैं; और इसी से मनुष्यों को जो परमेश्वर के स्वरूप में उत्पन्न हुए हैं श्राप देते हैं| 10 एक ही मुंह से धन्यवाद और श्राप दोनों निकलते हैं| 11 हे मेरे भाइयों, ऐसा नहीं होना चाहिए| 12 क्या सोते के एक ही मुंह से मीठा और खारा जल दोनों निकलते हैं ?हे मेरे भाइयों, क्या अंजीर के पेड़ में जैतून,या दाख की लता में अंजीर लग सकते हैं ? वैसे ही खारे सोते से मीठा पानी नहीं निकल सकता|
कुछ पुरुषों एवं महिलाओं का मुख्य व्यवसाय शब्दों का हेर फेर कर व्यवहार करने का होता है जैसे राजनीतिज्ञों,दुकान प्रबंधकों,घोड़े दौड़ाने वाले,प्रवचन देने वाले और शिक्षक| यह लोग अपने विचारों को व्यक्त करने या गुप्त रखने के लिए, अपने मित्रों को जीतने और लोगों पर अपना प्रभाव जमाने के लिए शब्दों का जोड़ तोड़ करते हैं| भाषणों, कार्यक्रमों और प्रवचनों के आधार पर किसी व्यक्ति या वस्तु की प्रसिध्दि बढती या घटती है| शब्द ही वह औजार हैं जिनका ऐसे कई व्यक्ति उपयोग करते हैं (2 तीमुथियुस 2:14 )| याकूब यहाँ शिक्षकों और अपना असर रखने वाले शिक्षकों को सम्बोधित कर रहे हैं, परन्तु उनकी चेतावनी उन सभी लोगों के लिए अच्छी है जिसे भाषण देने का उपहार मिला और जो अपने स्वयं के या परमेश्वर के कारणसे उसमें निरंतर आगे बढने में शामिल होने के जोखिम के बारे में चिंतित थे (1)| परमेश्वर ने इस अद्भुत यंत्र जुबान को हमारे शरीर में स्वयं हमारे हवाले स्थापित कर दिया है यह हमारा उद्देश्य होना चाहिए किहम अपने द्वारा कहे गये शब्दों में गलत शब्दों का उपयोग न करे, शब्दों को तोड़ मरोड़ कर उपयोग न करें और ना ही अपने शब्दों से किसी को पीड़ा पहुंचाए|
‘तुममें से बहुत से शिक्षक ना बनें’ एक और धर्मप्रचारक की ओर से यह एक शालीन उपदेश है जो कि आत्म संयम की कठोरता को जानते थे| गिरजाघरों में धर्मप्रचारक एवं प्रवक्ता के साथ साथ शिक्षकों का भी मुखियागिरी में एक विशेष स्थान होता है (1 कुरिन्थियों 12:27)|धर्म प्रचारक प्राय: धर्म प्रचार के कार्य के लिए दूर रहते हैं| प्रवक्ता भी दूर दूर की यात्रा पर रहते हैं, जब ‘घर में’ होते होंगे तब समय समय पर की जानेवाली भविष्यवाणीके लिए आत्मा की प्रतीक्षा में रहते होंगे| शिक्षक अपने स्थान पर रहते हैं और हर स्थान पर अपने झुण्ड पर नजर रखते हैं उनकी आध्यात्मिक आवश्यकताओं पर नियंत्रण और गिरजाघर की शिक्षा का प्रतिपादन करते हैं| यीशु में विश्वास रखनेवाले सदस्य, उनकी ओर नैतिक नेतागिरी और सैध्दांतिक मार्गदर्शन के लिए देखते हैं| यहाँ शिक्षकों के लिए केवल मांग ही नहीं,बल्कि ऐसा लगता है कि लगातार उनकी पूर्ति भी है|
मसीह स्वयं धर्मप्रचारक,प्रवक्ता एवं शिक्षक थे (इब्रानियों 3:1 ) इस कारण से किसी भी व्यक्ति ने ईसाई शिक्षक के रूप में अपने स्तर को बहुत ऊंचा नहीं समझना चाहिए| अधिकतर धर्मशास्त्र हमारे आध्यात्मिक नेताओं का अगाध आदर करने की विनती करते हैं, और यह आगे चलकर शिक्षक-नेता के सम्मान में वृध्दि करता है| केवल शिक्षक के पद का स्तर ढूँढना,अवश्य ही अनावश्यक है और विनाशकारी के रूप में बदल जाता है (1 तीमुथियुस 3:7, तीतुस 1:9)उच्च आध्यात्मिक एवं नैतिक गुण ही सही रूप में शिक्षण के रूप में गिने जाते हैं,परन्तु एक दैवीय बुलावा अनिवार्य है| कोई भी मनुष्य इस सम्मान को स्वयं नहीं ले सकता जब तक कि परमेश्वर उसे स्वयं ना बुलाएँ (इब्रानियों 5:4) हारून जिसके लिए इस मूल पाठ को सचित्र दिखाया गया,इसके लिए उपयुक्त नहीं था,ना ही उसके पास उसके भाई के समान गुण थे, अत: मूसा ही वह मनुष्य थे जिन्हें परमेश्वर ने इस विशेष कार्य को करने के लिए नेता के रूप में बुलावा दिया था|
स्वयं निर्वाचित शिक्षक पर परमेश्वर के अत्यधिक दर्दनाक न्याय के कारण मनुष्य अपना नाम इस पद के लिए देने से पहले दो बार सोचता है| काल्विन उन लोगों की तीव्र निंदा करते हैं जिन्होंने इस पद को प्राप्त किया था परन्तु उसके साथ दी जाने परीक्षा में असफल थे : “कुछ ही लोगों में गुणवत्ता और प्रभाव होता है, बहुत से हमारे साथ सीखते हुए हमें पेशोपेश में डालते हैं, कुछ को ही आत्माओं के सुधार में रूची महसूस होती है, बहुत से पाखण्ड द्वारा प्रेरित होते हैं|”
यह बात उन लोगों को बहुत ही निरुत्साहित प्रतीत होती है जिन्हें नेत्रत्व की स्थिति प्राप्त हो चुकी है और जो कलीसिया में अपना प्रभाव रखते हैं| क्या हमारे प्रभु ने अत्यधिक पैदावार (उपज) और उसकी कटाईकरने वाले मजदूरों की कमी की ओर हमारा ध्यान नहीं दिलाया था (मत्ती 9:37) क्या उन्होंने हमें सभी राज्यों में सिखाने के लिए नहीं भेजा था, और क्या पूरे संसार में आध्यात्मिक ज्ञान के कार्यक्षेत्र को बढ़ाने के लिए और अधिक शिक्षकों की आवश्यकता नहीं है (मत्ती 28:20)| हमें ऊपर से अर्थात परमेश्वर की ओर से सही निर्णय लेने के लिए बुध्दि की आवश्यकता है, चाहे हम शिक्षक हों या ना हों, ऐसा ज्ञान जिसके लिए हमें प्रार्थना करने की सीख दी गई है (1:5) और जिसके बारे में ज्ञान एवं विस्तृत जानकारी इस अध्याय में बाद में दी गई है|
जब तक तुम इस बात से पूरी तरह आश्वस्त ना हो, कि यह बुलावा परमेश्वर की ओर से है और तुमने परमेश्वर के कठोर न्याय के जोखिम का हिसाब ना लगा लिया हो, तुमने शिक्षक नहीं बनना चाहिए| एक बार तुमने शिक्षक बनने का निर्णय ले लिया तो, याकूब की ‘जुबान’ के बारे में दी गई सलाह व पौलुस की सलाह अनुसार भाषण में नमक का स्वाद, और मिठास के साथ दयालुता का पालन करना होगा (कुलुस्सियों 4:6)|
इस पदबंध का पालन करने के लिए बहुत से मार्ग हैं | एक टीकाकार इसे आत्म-संतुष्ट शिक्षकों के प्रति आलोचनात्मक रूख के रूप में प्रयोग करते हैं, एक और टीकाकार इसे 1 कुरिन्थियों 14: 26-40 में दी गई चेतावनी से जोड़ते हैं,जोकि पुरुष एवं महिला उपदेशकों द्वारा भ्रमित किये जाने के विरूध्द है जहाँ सभी एक ही समय अपनी बात कहने का प्रयत्न करते हैं | वक्ताओं के झुण्ड में से किसी एक झुण्ड को अलग किये बिना यदि हम इसे जुबान की क्रिया के जोखिम के रूप में समझे तो यह अधिक मददगार होगा |
“हम सभी प्राय: गलती करते हैं” (2) हमारी गलतियों का एक बहुत बड़ा हिस्सा जुबान से सम्बधित होता है| अवश्य ही न्याय की बहुत सी गलतियाँ, विचारों के दुरूपयोग,दुनिया से गुप्त रखे जाते थे, हमारे सुविचारित रूप से या असावधानिक रूप से बनाये गये कथनों द्वारा वह प्रकट नहीं किये गये थे| वैसे भी याकूब ने हमें एकदम से नहीं बल्कि धीरे से बात करने की सलाह दी थी (1:19) ; ऐसे शब्दों की बौछार करने में जल्दबाजी मत करो जिनसे दूसरों के साथ दुर्व्यवहार हो और जो स्वयं के लिए न्यायोचित हो| क्या वे विशेषरूप से बहुत बात करने वाले (बातूनी) पुरुष एवं महिलाओं के लिए चिंतित नहीं थे, क्योंकि यह लोग जो बाते करते हैं वह प्राय: नुकासनरहित होती हैं| तीखी जुबान वाले बार बार सावधानी के साथ कटु व्यंगपूर्ण एवं हाजिरजवाब शब्दों को चुनते हैं|
बोलना चांदी है,शांत रहना सोना है| भाषण में संयम अत्यधिक मूल्यवान है, जैसा कि यह सदगुणोंके साथ शब्दों की शक्ति को एक साथ दिखाता है जैसा कि मजबूत शांत मनुष्य अपने व्यवहार में दर्शाता है| “यदि तुम परिपूर्ण बनना चाहते हो,” याकूब कहते हैं “अपनी जुबान से शुरुआत करो |” वह व्यक्ति जो अपनी जुबान को नियंत्रण में रखने के योग्य है उसमे अपने सम्पूर्ण शरीर व दिमाग को नियन्त्रण में रखने की अदभुत क्षमता के लक्षण होते हैं (26)| परिपूर्णता के बहुत से क्रम हैं और परिपूर्णता में विकास है (इब्रानियों 5:8,9)| एक कलाकार या वाइलिन बजाने वाले की परिपूर्णता एक टेनिस खिलाडी या एक शैलीकार की परिपूर्णता से अलग है| पवित्र आत्मा जो हमें आपातस्थिति में सही शब्द देता है, और जब हम उसके नेतृत्व में, जोकि हमारे द्वारा कहे गये शब्दों की परिपूर्णता का स्त्रोत हैं, हमारे द्वारा हमारे साथ प्रार्थना करता है|
इन चार एक के बाद एक आनेवाले वचनों (3,4,5,6) में याकूब जुबान के लिए तीन अलंकारों का उपयोग करते हैं और उनमें आलंकारिक संबंध को स्थापित करते हैं| जुबान एक नाल (घोड़े के मुंह में) (वचन 3), एक पतवार (वचन 4), एक आग(वचन 6) के समान है| नाल और पतवार हमें स्मरण कराते हैं कि हम आत्म नियन्त्रण द्वारा अपनी जुबान पर नियन्त्रण रखने के योग्य हैं, तो वैसे ही इससे अधिक लाभ प्राप्त करते हुए इसका उपयोग करें| जब जुबान का उपयोग बुराई में होता है तब आग हमें एक धमकी का स्मरण कराती है| किसी ने जुबान का वर्णन इस प्रकार किया है: “एक तीखी जुबान केवल एक धारवाला औजार है जो इसके लगातार उपयोग के साथ नुकीले होते जाते हैं|”
नाल का उपयोग करके एक घुड़सवार एक घोड़े की जंगली प्रवृति को पालतू बनाकर अपनी इच्छानुसार उपयोग कर सकता है| याकूब गलीली समुद्र और भूमध्यसागर में आये तूफानों को स्मरण करते हैं (नासरतदोनों के निकट है): जहाज के भारी भरकम ढांचे और हवाओं के अंधड़ में बदलाव के स्थान पर पायलेट एक छोटी सी पतवार का रूख बदल कर जहाज की दिशा का मार्गदर्शन करता है| तो जुबान भी महान कार्यों को पूरा करा सकती है जब इसका उपयोग नियन्त्रण में हो| जुबान पर निगरानी रखने और इसके द्वारा संभावित सशक्त बातों को बाहर लाने का एकमात्र मार्ग है कि हम अपने मालिक-विमानचालक को अपने ऊपर नियन्त्रण करने का अधिकार सौंप दें “मेरे मुंह के वचन और मेरे हृदय का ध्यान तेरे सम्मुख ग्रहण योग्य हों, हे यहोवा परमेश्वर, मेरी चट्टान और मेरे उध्दार करने वाले!” (भजन 19:14) क्या हम प्रतिदिन पूरी गंभीरता के साथ प्रार्थना नहीं करते , “मेरे मुंह से निकले शब्द आपको स्वीकृत हों ,ओ परमेश्वर|”
“कितना विशाल जंगल हो एक छोटी सी चिंगारी उसे जला देती है (5)| अभी हाल ही में समाचारों में विनाशकारी जंगली आग हमें स्मरण कराती है कि एकमात्र चिंगारी इस दूर तक फैली विनाशकारी शैतानी क्रिया का कारण है| एक शिविर-दल की असावधानियों या एक बीमार दिमाग द्वारा जानबूझ कर की गई बुरी योजना ही इस अग्निकांड का मार्गदर्शक है जिसने एक सप्ताह के लिए अग्निशामक संस्था को व्यस्त रखा है| सरजिवो पर एक गोली दागी गई थी और एक आदमी मर गया था| आसपास के और दूर के राज्यों में भी एक के बाद एक हत्या होती गई थी| संभवतया पूरा विश्व एक विरोधी हत्याकांड की आग में जल रहा था जिसने मनुष्यों के आशावादी भ्रम को हमेशा के लिए चकनाचूर कर दिया था|
जुबान को इसके अत्यधिक बुरे रूप में (और प्राय: यह अपने बुरे रूप में होती है) निरर्थक रूप से एक विशाल अग्निकांड के ‘कारण’ के साथ तुलना की गई थी| हमें कहा गया था यह दुष्टता की दुनिया, एक ब्रम्हांड है| यह सृष्टि हर ओर से ब्रम्हांड से ढकी है| हमारी दुनिया हम सोच भी नहीं सकते उस सीमा तक झूठ का एक निरर्थक ब्रम्हांड है| मनुष्य एक अति सूक्ष्म जीव है जो कि नहीं के बराबर है और फिर भी निर्माण के मुकुट के समान खड़ा है| अंतिम रूप से हम ‘जुबान’ को एक छोटा सा अति सूक्ष्म ब्रम्हांड कह सकते हैं जोकि हमारे शरीर पर ही निर्भर करता है| फिर भी यह मनुष्यों को घुमा देने के योग्य है, उन्हें विनाश की ओर ले जाने के योग्य है जैसा कि तानाशाह लोग करते हैं| गैस और बिजली को आप अपनी इच्छा से बंद कर सकते हैं, परन्तु जो आग जुबान लगाती है वह बार बार बेकाबू हो जाती है|
थॉमस एडिसन एक बार अपने सम्मान के उपलक्ष्य में आयोजित एक रात्रि भोज में उपस्थित थे| वह धैर्यपूर्वक व पूरी तरह से डूबकर अपने मेजबान की बातों को सुन रहे थे जोकि विशेषरूप से अपने इस उत्कृष्ट वैज्ञानिक मेहमान के अत्यधिक प्रसिध्द अविष्कार ‘एक बोलने वाली मशीन’ के बारे में कहे जा रहे थे| संभावितरूप से वृध्द आविष्कारकर्ता उठे अपने प्रशंसक पर एक शालीन मुस्कान डाली और बोले, “मैं इस भद्र पुरूष का उनके करूणामयी शब्दों के लिए धन्यवाद करता हूँ, परन्तु मैं एक सुधार पर जोर देता हूँ, परमेश्वर ने पहली बोलनेवाली मशीन का अविष्कार किया था, मैंने केवल पहली बार ऐसी मशीन का अविष्कार किया जो कि बंद की जा सके|”
“यह नर्क से आग पकड़ता है(6)| जुबान को इसके विनाशकारी मार्ग पर चलने की लिए असीमित ईंधन उपलब्ध है| शेर को पालतू बनाया जा सकता है, सांप को सम्मोहित किया जा सकता है और बंदरों को तरकीबें करने के लिए अभ्यस्त किया जा सकता है| तुम दूसरों की जुबान पर नियन्त्रण या रोकने के लिए कुछ नहीं कर सकते; परन्तु तुम तुम्हारी अपनी जुबान पर नियन्त्रण रख सकते हो| गलतियों 5:23 में पवित्र आत्मा द्वारा अंतिम फल आत्म संयम है| आत्म संयम का एक आवश्यक भाग जुबान को नियंत्रित करना है| जुबान की नारकीय प्रवृति से इसके द्वारा निकलनेवाले कोड़े के समान चोट पहुँचानेवाले शब्दों के लिए तीन बहाने हैं: (1) जैसे कि मन में दबी भावनाओं को शांति देने के लिए; (2) जैसे मन में छिपे द्वेष के संतोष के लिए; (3) जैसे किसी झेले हुए घात का बदला लेने के लिए| दिमाग में इन प्रलोभनों के होते हुए भी तुम्हे कुछ भी कहने से पहले लगातार प्रार्थना करना चाहिए कि तुम जो कुछ भी कहो वह विनोदी, असरदार, विनाशी अनियंत्रित संकेतों,सुझाये हुए चुटुकलों के समान लगे|
जुबान के बहाव को रोके रखने के दो कारण दिमाग में आते हैं| स्मरण रखें कि इसके कारण हमें नुकसान और घोर दुःख हो सकता है| कई वर्षों बाद तुम उन शब्दों को वापस याद करोगे जो उस समय तुम्हें एकदम सटीक लगे थे, परन्तु वे कड़वाहट व दुःख के कारण थे| दूसरा कारण अभी भी बहुत अधिक वजनदार है और केवल अंत:करणके विनाश ही नहीं यह बहुत अधिक दंड की ओर इशारा करता है| हमारे प्रभु हमें चेतावनी देते हैं: “और मैं तुम से कहता हूँ, कि जो जो निकम्मी बातें मनुष्य कहेंगे, न्याय के दिन हर एक बात का लेखा देंगे |” (मत्ती 12:36)| जो शब्द हम विनोदपूर्वक या अनियंत्रित रूप से कहते हैं वह हमें सम्बोधित करते हैं| कुछ शब्द बुध्दिमता के होते हैं और कुछ शब्द बुराई के होते हैं और इनके बीच कुछ शब्द होते हैं जो साधारण उपयोग के होते हैं| क्या परमेश्वर उन सभी शब्दों का लिखित प्रमाण रखते हैं जो घड़ी के काँटों के साथ साथ मथकर निकल कर बाहर आते हैं| हम उन लोगों द्वारा आश्वस्त किये जाते हैं जो जानते हैं कि वाणी की लहरें खो जाती हैं, सृष्टि के ढांचे में डूब जाती हैं और बंद हो जाती हैं,तब तक जब तक कोई ऐसा इस स्थिति में न हो जो उसे छुड़ा सके| वाटरगेट अनैतिक कार्य और निक्सन टेपरिकार्ड हमें याद दिलाते हैं कि हमारे द्वारा कहे गये शाब्दिक अपराध किसी दिन सामने आयेंगे| फालतू शब्द कभी भी पूरी तरह से मिटाए नहीं जा सकते हैं|
एक भीमकाय बेमेल जुबान को हम परमेश्वर को आशीष व धन्यवाद देने के लिए तथा लोगों को श्राप देने के लिए उपयोग में लाते हैं| याकूब ने तीन समानताओं (9,10,11,12) एक झरना, एक अंजीर वृक्ष,और एक द्राक्षलता की सहायता से इस विसंगति के बहाव को अधोरेखांकित किया है| प्राकृतिकरूप से प्रत्येक स्त्रोत एक विचित्र प्रकार, चाहे वो कडवा, मीठा, खट्टा या नमकीन, अधिक या कम अनुपात में, एक सामान आकार व एकरूपता में हों, उत्पन्न करता है| अप्रसन्न रूप से जुबान कड़वापन और मिठास दोनों देती है, इसके द्वारा सम्बन्ध खट्टे या मीठे हो सकते हैं| जुबान अपने बुरेपन के शिखर पर निंदा, श्राप और गाली दे सकती है और इसके विपरीत प्रशंसा, आशीष और राहत पहुंचा सकती है| त्रासदी यह है कि वही यह जुबान है जो यह सब बाहर निकालती है और यह किसी धार्मिक मनुष्य के ही विचार हैं जो ऐसी विरोधी बातों के लिए दुखी हैं|
पुराने नियम में अत्यधिक संख्या में प्रत्येक प्रकार के उल्लंघनकर्ताओं के लिए श्राप दिए गये हैं| यिर्मयाह की पुस्तक में तीन ऐसे श्राप पाए गये हैं जो ध्यान देने योग्य हैं : “उन से कहो, इस्राएल का परमेश्वर यहोवा यों कहता है, श्रापित है वह मनुष्य, जो इस वाचा के वचन न माने |”(11:3)| “यहोवा यों कहता है, श्रापित है वह पुरुष जो मनुष्य पर भरोसा रखता है , और उसका सहारा लेता है, जिसका मन यहोवा से भटक जाता है |”(17:5) “हे दीबोन की रहने वाली तू अपना वैभव छोड़कर प्यासी बैठी रह! क्योंकि मोआब के नाश करनेवाले ने तुझ पर चढाई कर के तेरे दृढ़ गढ़ों को नाश किया है|”(48:10)| “श्रापित हो वह दिन जिस में मैं उत्पन्न हुआ! जिस दिन मेरी माता ने मुझ को जन्म दिया वह धन्य न हो!”(20:14४), इनमें से अंतिम साधारणतया यिर्मयाह के उदास मन को जिसका अनुभव उन्होंने किया था को दर्शाता है| अन्य तीन श्रापों में उपदेशक के दिमाग में कोई व्यक्ति विशेष की छबि नहीं थी; किये गये कार्यों के परिणामस्वरूप दिए गये वाक्य श्राप हैं| परमेश्वर के नियमों का उल्लंघन, उसके स्थानपर अपने आप पर अत्यधिक आत्मविश्वास, पाखण्ड या नियमों के प्रति आलस्य, इन सभी के लिए दंड है| इन सभी बातों में दंड का अत्यधिक सजीवतापूर्वक ऐसे जैसे श्राप के रूप में वर्णन किया गया है|
सभी अवसरों में यह परमेश्वर का शब्द है जो श्राप देता है; यह उनका विशेषाधिकार है आशीष या नाश; यह अधिकार मनुष्यों का नहीं है| मनुष्यों में केवल यीशु मसीह के पास यह अधिकार था जो किसी मनुष्य को श्राप दे सकते थे, इसके स्थान पर उन्होंने कुछ ऐसे अवसरों पर जैसे कि उन शहरों के विरोध में जिन्होंने उन्हें ठुकराया था, उन लोगों के विरोध में जो छोटे बच्चों को ठोकर लगने का कारण थे, उसके विरोध में जिसने उनके साथ धोखा किया था, और सबसे अधिक उनका विरोध करने वाले शास्त्रियों और फरीसियों जोकि तीन अपराधों के गुनहगार थे के लिए उनके मुंह से दुःखभरे शब्द निकले थे (मत्ती 11:21;लूका 17:1-3;मरकुस 14:21;मत्ती 23)| यह दुखभरे शब्द श्राप के बराबरी के दर्जे के नहीं थे परन्तु मरकुस 13:17 और लूका 6:26 द्वारा दुःख की गहरी भावनाओं को स्पष्ट दर्शाते हैं| अवश्य ही हमारे प्रभु हमसे विनती करते हैं किउन्हें आशीष दो जो हमें श्राप देते हैं इस आशा में कि परमेश्वर उन लोगों के श्राप को वापस ले लेंगे जिन्होंने नियमों को तोडा है (लूका 6:28)|
याकूब ने हमें श्रापों के सहारे को ना लेने के अपने कुछ कारण दिए हैं, “मनुष्य परमेश्वर की छबि में बनाये गये हैं|”(9) वह छबि एक आध्यात्मिक वास्तविकता है, जो इसे जानते हैं उनके लिए एक चुनौती है और एक ऐसा सत्य है जो उन लोगों द्वारा जो यह भूल चुके हैं कि मानवीय छबि मनुष्य की स्वंय की इच्छानुसार कुमार्ग पर चलकर ‘विकृत’ एंव ‘विरूपित’ हो चुकी है किया जानेवाला असंगत न्याय है| परमेश्वर की इच्छाएँ हैं, हमारी भी हैं, उनके पास दिमाग है, हमारे पास भी है, उनके पास भावना हैं, हम भावनाओं की निर्मिती हैं| परन्तु जहाँ उनकी इच्छानुसार जो अच्छा है, हम बुराई चुनते हैं; जहाँ उनकी सोच सीधी होती है,हमारी टेढ़ी-मेढ़ी होती है| हम यह कह सकते हैं कि ‘अच्छा कार्य करनेवाले’ उन लोगों के विरोध में जो बुरा कार्य करते हैं जैसे (बलात्कारियों,खूनी,आतंकवादियों और ऐसे ही और कई ) आन्दोलन करते हैं| वे स्पष्टरूप से दिखनेवाली मानव जीवन की प्रतिष्ठा के कार्य करते हैं| जो छबि वहां है वे उसके मूल का पता लगाने में अबतक भी असफल हैं| वह छबि नये रूप में बदल सकती है और पूरी तरह से बदल सकती है जैसे ही हम परमेश्वर के पुत्र के समान अपने आपको ढालने के लिए तैयार होते (1 यूहन्ना 3:2)|