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रोमियो - परमेश्वर के वचन को न केवल सुननेवाले, परन्तु उस अनुसार कार्य करने वाले बनो|
याकूब की पत्री का अध्ययन (डॉक्टर रिचर्ड थॉमस द्वारा)

अध्याय I

विश्वास और बुद्धिमानी (याकूब 1:2-8)


याकूब 1:2-8
हे मेरे भाइयों, जब तुम नाना प्रकार की परीक्षाओं में पड़ो, तो इस को पूरे आनंद की बात समझो, यह जानकर,कि तुम्हारे विश्वास के परखे जाने से धीरज उत्पन्न होता है | पर धीरज को अपना पूरा काम करने दो, कि तुम पूरे और सिध्द हो जाओ और तुम में किसी बात की घटी न रहे | पर यदि तुम में से किसी को बुध्दी की घटी हो, तो परमेश्वर से मांगे, जो बिना उलाहना दिए सब को उदारता से देता है; और उस को दी जाएगी| पर विश्वास से मांगे,और कुछ संदेह न करे; क्योंकि संदेह करनेवाला समुद्र की लहर के समान है जो हवा से बहती और उछलती है | ऐसा मनुष्य यह न समझे, कि मुझे प्रभु से कुछ मिलेगा | वह व्यक्ति दुचित्ता है, और अपनी सारी बातों में चंचल है |

याकूब के पास विचारों को आपस में जोड़ने का असामान्य तरीका है, एक युक्ति जिसके लिए यूनानियों ने एक नाम दिया था ‘अनाडीप्लोसिस’ एक वचन का सबसे महत्र्वपूर्ण शब्द अगले पाठ्य को पकड़ने वाला शब्द बन जाता है| तो हमारे पास वचन 1 और 2 में ‘प्रसन्नता’ व ‘आनंद’ है, वचन 3 व 4 में ‘धैर्य’, वचन 4 व 5 में ‘कमी’, वचन 5 व 6 में ‘माँगना’ है| आगे ऐसे उदाहरण पूरी पत्री में फैले हुए हैं|

याकूब ने हमारा अभिवादन किया था निवेदन किया था कि हम प्रसन्न रहे, वे बहुत से ईसाइयों की प्रतिक्रिया का अनुमान लगा चुके थे| हमारे दिमाग, समस्याओं, चिंताओं और मानसिक दुविधाओं से भरे रहते हैं| ऐसी स्थितियों हम कैसे प्रसन्न हो सकते हैं? याकूब के पास यही उत्तर है| हमारी परीक्षा पूर्णतय हमारे आनंद का धरातल है| इस महान विरोधामास के साथ हमारा आमना सामना होने से पहले याकूब हमें भाई कहकर बुलाते हैं| जब कभी भी उन्हे कुछ कठोर शब्द कहने होते थे या बुद्धिमता परिषद प्रस्तुत करना होता था वह हमें अपने भाईरूप की याद दिलाते थे|

मेरे भाइयों, “आनंद मनाओ जब तुम गहरे प्रलोभनों में गिरो”| “प्रलोभनों” का आधुनिक रूप “परीक्षा” है और इसमें कोई शक नहीं कि यह याकूब के दिमाग में था| यूनानियों के पास परीक्षा एवं प्रलोभन एक शब्द है| हमलोग शैतान द्वारा प्रलोभित किये जाते है जैसा कि यह उसके बुरे इरादों की रूपरेखा का एक हिस्सा है| हम लोग परिवर्तनों एवं जीवन के अवसरों द्वारा एक बिल्कुल अलग उद्देश्य के लिए परमेश्वर द्वारा जाँचे परखे जाते हैं| दोनों में से कोई भी एक मार्ग से हम अचंभित हो जाते हैं परीक्षा प्रसन्न होने का एक मामला है| काल्विन घोषित करते हैं कि परीक्षा के दौरान हमारी प्राकृतिक प्रतिक्रिया टूट जाना और आंसुओं में फट जाना है|

क्या हम स्वर्ग में हमारे पिता से प्रार्थना नहीं करते कि, “हमें परीक्षा में ना ला?” दिमाग में इस बात को ग्रहण करो कि बुरे आशय में प्रलोभन भी अपने आप में एक पाप नहीं है| यीशु स्वयं भी बिना किसी पाप के जंगल में प्रलोभित किये गये थे| दूसरे प्रकार से देखे तो परीक्षा हमें पापों की कड़वाहट और विद्रोह की ओर अग्रसर करती है| तो भी, ऐसी अप्रसन्नता, अकृतज्ञता व अदूरदर्शिता दोनों है| एक रेडियो प्रसारण में किसी ने अपनी वार्ता में यह बात कही थी : जब परीक्षा की घडी आती है हमने उसे स्वीकार करना चाहिए| हमें यह पूछने का कोई अधिकार नहीं है जब दुःख हमारे पास आते है कि: “मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ है?” तब तक जब तक कि ठीक यही प्रश्न हम तब करें जब हमारे मार्ग में आनंद आता है| प्रत्येक परीक्षा एक आशीष के समान समझना चाहिए जैसे प्रत्येक आनंद परमेश्वर की एक आशीष है| जार्डन के एक डाक्टर हमारे मित्र है, वे मेडिकल परीक्षा दूसरी बार दे रहे थे| जाहिर है वे अपनी सफलता के लिए उत्सुक थे, परन्तु असफल होने के लिए भी तैयार थे| जिस दिन परिणाम घोषित होने वाले थे , हमने छिपकर सुना था वे एक ईसाई के समान टेलीफोन पर अपनी प्रतिक्रिया का अभ्यास कर रहे थे : “मैं पास हो गया? परमेश्वर की प्रंशसा हो; मैं फेल हो गया? हालेलुया” | वह परमेश्वर की आत्मा है जिसके लक्षण परमेश्वर के बच्चों में दिखते हैं मेरे भाइयों, “आनंद मनाओ जब तुम गहरे प्रलोभनों में गिरो”| “प्रलोभनों” का आधुनिक रूप “परीक्षा” है और इसमें कोई शक नहीं कि यह याकूब के दिमाग में था| यूनानियों के पास परीक्षा एवं प्रलोभन एक शब्द है| हमलोग शैतान द्वारा प्रलोभित किये जाते है जैसा कि यह उसके बुरे इरादों की रूपरेखा का एक हिस्सा है| हम लोग परिवर्तनों एवं जीवन के अवसरों द्वारा एक बिल्कुल अलग उद्देश्य के लिए परमेश्वर द्वारा जाँचे परखे जाते हैं| दोनों में से कोई भी एक मार्ग से हम अचंभित हो जाते हैं परीक्षा प्रसन्न होने का एक मामला है| काल्विन घोषित करते हैं कि परीक्षा के दौरान हमारी प्राकृतिक प्रतिक्रिया टूट जाना और आंसुओं में फट जाना है||

याकूब न केवल परीक्षा परन्तु परीक्षा के सभी प्रकारों के बारे में कहते हैं| काल्विन यह संकेत देते हैं कि प्रत्येक परीक्षा एक अलग प्रकार की, एक अपने आप को ढूंढने की, दूसरी जलन की, तीसरी संसारिकता की, अन्य लोभीऔर पेटूपन की गिरावट की एक औषधि है| हम बादवाले असभ्य उदाहरणों के बारे में सोच सकते हैं जहाँ बिना सोचे अत्यधिक खाना अनिंद्रा व मतली की ओर ले जाता है| ‘ग्रावर’ कहतेहैं कि अधिक खाने से बीमारियाँ होती हैं जो कि अत्यधिक दर्दनाक होती हैं|

ख़ुशी क्यों मनानी चाहिए जब परीक्षा आती है? याकूब वचन ३ में हमें यह उत्तर देते हैं, एक ऐसा उत्तर जो न केवल उन पापों को जिनकी सूची काल्विन ने दी है परन्तु अनुभवों को भी, जहाँ परीक्षा का विस्तार किसी स्पष्ट पाप से सम्बन्ध नहीं दर्शाता, अपने अंदर समेट लेता है (युहन्ना 9:2-3)| हमारे विश्वास की परीक्षा धैर्य, या स्थिरता उत्पन्न करती है| इस स्थिरता का अपना कोई अंत नहीं है यह ईसाई परिपक्वता पर अपना पूरा असर रखती है| वर्तमान काल के आनंद में प्रसन्न होना सरल है, विश्वास और आशा, भविष्य के आनंद के वादों के लिए प्रसन्न होने के लिए आवश्यक है| एक माँ अपने बच्चे के जन्म के आसान दिखने पर खुश हो सकती है, और उस आनंद के अवसर के मार्ग में आनेवाली प्रत्येक असुविधा को सहन करती है|

भविष्यवाणीके रूप में, कुछ लोग अनुभव करते होंगे कि याकूब ने पौलुस के अनुसार जो मुख्य संज्ञा रूप थे इस वचन में बदल कर रख दिया हैं| यह हैं डोकिमीओं (डोकिमे रोमियो 5:4)और हाई पोमोन ( धैर्य या स्थिरता)| याकूब की पुस्तक प्रस्तुत करती है ‘सिध्द करना,धैर्य उत्पन्न करता है’, पौलुस के अनुसार इसका प्रतिरूप है ‘धैर्य स्वीकृति या अनुमति उत्पन्न करता है; या जैसे कि (एन.ई.बी) में है यह प्रमाण है कि तुम परीक्षा में खड़े हो|

हमने जिस परिपक्वता की बात पहले की है निश्चित ही वचन 4 में वह भाववाचक संज्ञा है जो कि ‘ परिपक्व और सम्पूर्ण ‘ विशेषणों के समरूप है| ऐसी परिपक्वता या सम्पूर्णता किसी कमी के नहीं होने को अंतर्निहित करती है| वही हमारे जीवन का उद्देश्य होना चाहिए| हमारी आवश्यकता के अनुसार परमेश्वर हमें सब कुछ उपलब्ध कराते हैं; तो भजन संहिता के लेखक के साथ हम गा सकते हैं “मुझे कुछ कमी ना होगी |” आध्यात्मिक रूप से परमेश्वर हमें धार्मिकता के और अनुग्रहों से अलंकृत करना चाहते हैं| क्या तुममें विश्वास, प्रेम, समझदारी (ज्ञान) की कमी है?

याकूब कहते हैं, हम एक विशेष आवश्यकता पर ध्यान केन्द्रित करते हैं, तुम्हे ज्ञान (समझदारी) की आवश्यकता है| नये नियम में इस निधि के बारे में अन्य गुणों उदाहरण के तौर पर विश्वास,आशा और प्रेम की अपेक्षा कम लिखा गया है| पौलुस सांसारिक ज्ञान को अस्वीकृत करते हैं जैसे उनके अनुसार मनुष्य की परमेश्वर की अच्छाई की खोज में यह सांसारिक ज्ञान लाभप्रद नहीं है (1कुरिन्थियो 1:21;3:19)| अत: सच्चा ज्ञान परमेश्वर के स्तुति गान से उत्पन्न होता है| वह पवित्र है, वह प्रेम है, एकमात्र वही बुध्दिमान परमेश्वर हैं (यहूदा :25, 1 कुरिन्थियो 1:24; पुनरुत्थान 7: 12)| उनका ज्ञान उन सभी के लिए उपलब्ध है जो उनको सुनते हैं; यह उनके जो उनकी पवित्र आत्मा के साथ हैं, अलंकृत करता है (यशायाह 11:2, प्रेरितों के कार्य 6:3)|

फिर यह ज्ञान है क्या? यह बाईबिल के कुछ चुने हुए अंकों के वचन जो कूट भाषा में लिखे गये हैं के गहरे रहस्यों का ज्ञान नहीं है या कृतसंकल्प और स्वतंत्र ईच्छा की समस्या का समाधान करना नहीं है| नहीं, ज्ञान वह दूरदर्शिता जो हमें इस काबिल बनाता है कि अनंतता और इसके विशुध्द मूल्य सभी को एक बराबर कर सके| एक मनुष्य के साधारण जीवन को एक असाधारण मार्ग द्वारा नियंत्रण में करने से यह प्राप्त होता है| बेंगल के अनुसार इसके द्वारा हम समझ पाते हैं किकैसे परीक्षा जन्म लेती है और हम प्रलोभन का सामना कैसे करें| तब से अब तक प्रार्थना के अतिरिक्त आद्यात्मिक अनुभव में कोई बढ़ोतरी नहीं है, याकूब इसका ज्ञान के साथ परिचय देते हैं| क्योंकि किसी भी मामले पर व्यवहारिक सलाह के लिए हम किसी विशेषज्ञ के पास जाते है| परमेश्वर की आत्मा हमें सिखाती है कि कैसे प्रार्थना करना, ढूंढना, खटखटाना है, और यहाँ वह इसे उपदेशक द्वारा करते हैं जिनके सख्त घुटने प्रार्थना की प्राथमिकता के गवाह हैं|

राजा हेरोदेस ने अपनी बेटी सलोमी को जो कुछ भी वह चाहे मांगने, यहाँ तक कि उनका आधा राज्य तक मांगने की इच्छा करने का दान दिया| वह हिचकिचाई, तब अपनी माता के पास भागकर गई और कहने लगी, “मै क्या मांगूं?” तुम उस दहलादेने वाले उत्तर का सार जानते हो| हम ठीक उसी प्रकार की विनती करते हैं जब हम संदेह करते है, “मै क्या मांगूं?” लेकिन स्वर्गीय पिता के पास इसके उत्तर के लिए जाओ| परमेश्वर का वचन इस सन्दर्भ में हमें निर्देश देता है कि परमेश्वर से ज्ञान के लिए प्रार्थना करें| परमेश्वर से प्राप्त किये गए बहुत से उपहारों में यही एक अकेला अनोखा है| अन्य सभी उपहार सुधारवादी, आनंदित प्रशंसा करने वाले बन जाते हैं जब हम ज्ञान प्राप्त करके प्रार्थना करते है और ज्ञान के साथ उनका अभ्यास करते हैं|

प्रार्थना की अतिमहत्वपूर्णता में हमारे विश्वास का आधार परमेश्वर की असीमित उदारता है| वह उसको जो भी प्रार्थना करता है स्वतंत्रता पूर्वक देते हैं , न उसे ठुकराते है न उसका अनादर करते हैं| जैसा कि बेंगल ने कहा है , “वह ना तो हमारे पूर्व में की गई मूर्खताओं के लिए हमें झिडकते हैं ना ही भविष्य में उनकी अच्छाइयों के लिए हमारे साथ दुर्व्यवहार करते हैं | किसी महंगी वस्तु के लिए एक बच्चे द्वारा परेशान किए जाने पर, एक सांसारिक पिता उसे वह वस्तु बहुत डांटफटकार के बाद ही देगा|”

मैं प्रार्थना कैसे करूं? यह एक दूसरा प्रश्न है जिसका उत्तर वचन ६ में दिया गया है| विश्वास से मांगो| याकूब के अपमानजनक विश्वास के दायित्व को यह अकेला वचन स्पष्ट करता है| अत: विश्वास अत्यंत महत्वपूर्ण है कि इसके बिना की गई प्रार्थना निरर्थक है और हम परमेश्वर द्वारा स्थायी रूप से कुछ भी प्राप्त नहीं करते हैं| संदेह विश्वास और अविश्वास के बीच , अविश्वास के साथ अधिक झुकाव के साथ रहता है| यह संकेत देता है कि हमने जो प्रार्थना की है विशेष तौर पर जब यह किसी गहरी सुपुर्दगी या आशीष के अंतर्गत की हो, हम पूरी तरह से आश्वस्त नहीं हैं जिसके लिए हमने प्रार्थना की है| याकूब सिर्फ वास्तविक विश्वास की नहीं बल्कि स्थिर विश्वास की सिफारिश करते हैं| ऐसा विश्वास जैसा लूका १८ में उस जिद पकड़ लेने वाली,बिना टूटे लगातार विनती करने वाली विधवा का था|

“उसे कल्पना न करने दी जाए” हम वचन 7 और 8 को साथ में लेते हैं, यह ध्यान देने योग्य बात है विश्वास सिर्फ कल्पना पर नहीं परन्तु निश्चितताओं जैसे यीशु मनुष्य रूप में और कार्यों में एक मजबूत चट्टान, पर बना रहता है| विश्वास से एकदम अलग दुचित्तापन है, दो तरह की आत्माओं के साथ वाला व्यवहार (जैसे यूनानियों का है) करने वाला मनुष्य, दो मालिकों की सेवा एक साथ करने वाला मनुष्य, अपने प्रार्थना जीवन, अपने बाइबिल अध्ययन में अस्थिर रहने वाला मनुष्य अपने कर्तव्यों को अनदेखा करता है| ऐसे मनुष्य ने परमेश्वर से जो माँगा, उसकी आशा क्यों करनी चाहिए जबकि जो कुछ उसके पास है वह उसके लिए परमेश्वर की प्रशंसा नहीं करता है |

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