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रोमियो - परमेश्वर के वचन को न केवल सुननेवाले, परन्तु उस अनुसार कार्य करने वाले बनो|
याकूब की पत्री का अध्ययन (डॉक्टर रिचर्ड थॉमस द्वारा)

प्रस्तावना


“सारा धर्मशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा द्वारा दिया गया है, और सिद्धांत के लिए , निंदा के लिए, संशोधन के लिए, धार्मिकता में निर्देशों के लिए लाभदायक है|” हमारे पास यहाँ बाइबिल में दी गई परिपूर्ण प्रेरणा पर एक सबसे अधिक संपूर्ण और सुस्पष्ट घोषणा है| इसके आगे मूलपाठ प्रकटित सत्य के जैसे सिद्धांत सम्बन्धी व अनुशासिक तथ्यों की झलकियां देता है| याकूब की इस पत्री का विचारमग्न व प्रार्थनामग्न अध्ययन दर्शाता है कि कैसे प्रशंसनीय रूप से इस उपदेश कीय पत्री में इन उद्देश्यों को प्राप्त किया जा चुका है| चाहे तुम सहमत हो या न हो कि याकूब अत्यधिकरूप से सैद्धांतिक हैं, वह व्यवहारिक निर्देशों, उपदेशों से भरपूर, व कभी कभी जब आवश्यकता हो निंदक हैं|

क्या हम इस पत्री को, इसके लेखक की परिस्थितियों या उनकी सही सही पहचान को जाने बिना समझ सकते हैं? इस प्रश्न का उत्तर अधिकांश रूप से सकारात्मक ही होगा| याकूब एक सामान्य पत्री है जो सभी प्रकार के ईसाइयों, अमीर और गरीब, शिक्षित और उपेक्षित, विश्वासी और वचन का अमल करने वालों के लिए है| इस पत्री के आदेश समरूपतारूपी सुस्पष्ट व सीधे लक्ष्य की ओर हैं| वे परमेश्वर की प्रार्थना के नमूने का अनुसरण करते हैं, जो की जीवन में पालन करने के लिए कठिन परन्तु ग्रहण करने के लिए सरल हैं| यही क्करण है कि वे ‘मार्क ट्वैन’ की प्रसिद्ध स्वीकृति को गहराईपूर्वक विचलित करते व सचित्र दर्शाते हैं: “ बाइबिल में जिस भाग की बातें मैं समझ नहीं पाया, वह मुझे परेशान नहीं करती, परन्तु जो मैं समझ पाया हूँ वह मुझे विचलित करती हैं|”

लेखक

नए नियम में पांच व्यक्तियों का नाम याकूब है| इनमें से कौनसा लेखक है जो हमारे लिए इस अतुलनीय पत्री को छोड़ गया है? हम जिनके बारे में जानते हैं, एक जब्दी का पुत्र याकूब, एक हलफै का पुत्र याकूब, एक मरियम का पुत्र याकूब, एक यहूदा जो अधिक प्रसिद्ध नहीं है के पिता याकूब हैं| यहाँ हम इस बात का अनुभव करते हैं कि यह वही याकूब हैं जो ‘हमारे प्रभु के एक भाई हैं,’ जिनका नाम मत्ती 13:55 मैं है| नासरत के नागरिकों की सूची में बढ़ई के पुत्रों याकूब, युसूफ , शमौन और यहूदा का नाम है| उपदेशक पौलुस ने याकूब को हमारे प्रभु के भाई के रूप में नियुक्त किया था| (गलतियों 1:19)| प्रेरितों के कार्य में उन्होंने, उन लोगों में जो वादे के अनुसार आत्मा की प्रतीक्षा में थे, में प्रधानता प्राप्त की थी| वर्षों बाद हम उन्हें उचित रूप से यरूशलेम में रखी गई कलीसिया की पहली परिषद में पीठासीन अधिकारी के रूप में पाते हैं (प्रेरितों के कार्य 15:13)|

पृथ्वी पर हमारे प्रभु के याजकीय कार्यों की अवधि में उनके भाइयो ने उनके अधिकारों के प्रति अपनी थोड़ी सी प्रतिक्रिया जताई थी| “न ही उनके भाइयो ने उन पर विश्वास किया था” (यूहन्ना 7:5)| पुनरुत्थान के बाद यीशु ने याकूब, अकेले याकूब जोकि एक अलौकिक प्रकटीकरण के लिए एक नैसर्गिक भाई के रूप में जाने जाते थे, एक अकेले जो थोमा के सामने ठीक मसीह के समान आये थे, के सामने अपने आप को प्रकट किया था| “अब से मैं तुम्हें दास न कहूँगा, क्योकि दास नहीं जानता, कि उसका स्वामी क्या करता है: परन्तु मैं ने तुम्हें मित्र कहाहै क्योकि मैं ने जो बातें अपने पिता से सुनीं,वे सब तुम्हें बता दी” (यूहन्ना 15:15)| यह शब्द उनके शिष्यों के लिए थे, और उनके सबसे प्रिय शिष्य द्वारा हम में से प्रत्येक के लिए कहे गए हैं| “क्योकि पवित्र करनेवाला और जो पवित्र किए जाते हैं, सब एक ही मूल से हैं : इसी कारण वह उन्हें भाई कहने से नहीं लजाता” (इब्रानियों 2:11)| याकूब ने इस अनुक्रम को उल्टा कर दिया है, वह जिनके पास यीशु के विधिसम्मत भाई होने का अधिकार था, ने अपने आपको परिवर्तन के पश्चात केवल ‘प्रभु यीशु मसीह के बंधक सेवक’ कहते थे| उनकी पूरी पत्री में वे यीशु को प्रभु कहकर ही संबोधित करते हैं| मसीह ने अपने आप को हमारे निचले स्तर तक गिरा कर, हमसे अपने मित्रों व भाईयों के समान व्यवहार किया,वह हमेशा हमारे प्रभु और हमारे ईश्वर बने रहेंगे जिनकी आज्ञा का पालन करना चाहिए एंव जो प्रशंसा के योग्य हैं| चारों सुसमाचार प्रचारक अपने अपने सुसमाचारों में शालीनतापूर्वक अपने सुसमाचार के मूलपाठ में उल्लेख करने से बाज नहीं आये| याकूब ने उसी प्रकार की शालीनता के साथ उन सभी रिश्तों के उल्लेख को अपनी पत्री में से निकाल दिया था जो उनके प्रभु से उनका सम्बन्ध दर्शाते थे| अपनी पत्री में उन्होंने कहीं भी प्रथम पुरूष में एकवचन का उपयोग नहीं किया सिवाय एक प्राक्कल्पित आपत्तिकर्ता के मुँह में उन्होंने “मैं” शब्द डाला है|

तब हम सुरक्षित रूप से याकूब की पत्री को यीशु के इस भाई के नाम से जोड़ सकते हैं| निश्चित रूप से यहाँ और कोई उपयुक्त प्रतियोगी इस शीर्षक के लिए नहीं है| यह कारण सबसे पहले आरंभिक ईसाइयत के उत्कृष्ट बाइबिल अध्ययनकर्ता द्वारा प्रस्तावित किया गया था| वर्तमान युग के कई तर्क करने वाले विद्वान उनके साथ इस बात में सहमत हैं; कि उनके नाम कई बार आते हैं जिन्होंने कठोरतापूर्वक रूढ़िवादी सुसमाचार सम्बन्धी बात नहीं कही है|

तब हम सुरक्षित रूप से याकूब की पत्री को यीशु के इस भाई के नाम से जोड़ सकते हैं| निश्चित रूप से यहाँ और कोई उपयुक्त प्रतियोगी इस शीर्षक के लिए नहीं है| यह कारण सबसे पहले आरंभिक ईसाइयत के उत्कृष्ट बाइबिल अध्ययनकर्ता द्वारा प्रस्तावित किया गया था| वर्तमान युग के कई तर्क करने वाले विद्वान उनके साथ इस बात में सहमत हैं; कि उनके नाम कई बार आते हैं जिन्होंने कठोरतापूर्वक रूढ़िवादी सुसमाचार सम्बन्धी बात नहीं कही है| मसीह का पुनरुत्थान से पहले याकूब के सामने एक अत्यधिक हलचल मचाने वाला अनुभव है| नासरत में पहले उनके सबंध और प्रतिदिन उनके सम्पर्क कैसे थे? जैसे की एक बारह वर्ष के लड़के यीशु ने आराधनालय में विद्वानों को सत्य की मजबूत पकड़ एंव अपने उत्तरों से अचंभित कर दिया था| वह अपने बढ़ते हुए ज्ञान एंव अनुग्रहता का प्रदर्शन करते हुए लगातार एक पुरूष के रूप में बढ़ते रहे थे| नासरत में उन्होंने अपने परिवार की भलाई की भावना व्यक्त करते हुए स्वर्गीय ज्ञान की अभिव्यक्ति दी थी| एक लम्बे समय तक याकूब केवल एक सुननेवाले थे, उन शब्दों के अनुसार कार्य करने वाले नहीं थे| याकूब के जीवन में यह समायोजित क्षण कुछ विलम्ब से, जब पवित्र आत्मा ने उनके स्मरण में ज्ञान के यह मोती डाले थे, आये थे| लगभग 60 ए. डी में वह इस अनमोल पत्री को हमारी व्यवहारिक धार्मिकता में निर्देश देने व हमारे सुधार के लिए लिखने के लिए प्रेरित हुए थे|

कुछ विशेषताएँ

तुम कुछ बातों में याकूब के साथ सुसमाचारों की तुलना पाओगे जोकि यीशु द्वारा और उसी प्रकार से याकूब द्वारा प्रकटित विचारों व कहे गए शब्दों का एक उल्लेखनीय संयोग है| हम पत्री के सभी भागों से ऐसे साक्ष्य का ढेर पाएंगे| यह पर्याप्त होगा की पाँचों अध्यायों में से हम एक वचन चुने और उसे एक सुसमाचार सम्बन्धी कथन के साथ रखें|

याकूबसुसमाचार
1:22वचन को केवल सुनने नहीं, उस अनुसार कार्य करने वाले बनोलूका 8:21
मेरे भाई वह हैं जो वचन को सुनते हैं और उस अनुसार कार्य करते हैं|
2:5क्या परमेश्वर ने उन गरीबों को जो विश्वास में अमीर एंव परमेश्वर के राज्य के उत्तराधिकारी हैं को नहीं चुना है|लूका 6:20
आशीषित हो तुम जो दीन हो क्योकि परमेश्वर का राज्य तुम्हारा है|
3:12क्या सोते के एक ही मुंह से मीठा और खारा जल दोनों निकलता है? हे मेरे भाइयों, क्या अंजीर के पेड़ में जैतून,या दाख की लता में अंजीर लग सकते हैं? वैसे ही खारे सोते से मीठा पानी नहीं निकल सकता|मत्ती 7:16
उन के फलों से तुम उन्हें पहचान लोगे क्या झाड़ियों से अंगूर , वा ऊंट कतारों से अंजीर तोड़ते हैं?
4:10प्रभु के सामने दीन बनो, तो वह तुम्हे शिरोमणि बनाएगा|मत्ती 23:12
जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा , वह छोटा किया जाएगा: और जो कोई अपने आप को छोटा बनाएगा, वह बड़ा किया जाएगा|
5:1हे धनवानों सुन तो लो; तुम अपने आनेवाले क्लेशों पर चिल्लाकर रोओं|लूका 6:24-25
परन्तु हाय तुम पर ;जो धनवान हो, क्योकि तुम अपनी शांति पा चुके| हाय, तुम पर; जो अब तृप्त हो,क्योकि भूखे होगे: हाय, तुम पर; जो अब हँसते हो, क्योकि शोक करोगे और रोओगे|

सरंचनात्मक रूप से याकूब ने प्रवचन को एक उत्तम रूप में वर्णित किया था| अठारवी सदी के एक टीकाकार ने कहा है कि यह पत्री एक उत्कृष्ट वक्ता जो कि पहली बार लिख रहे थे के हाथ से निकल कर आयी है| इसमें सूक्तियों, लघु करुणाजनक कथनों व अलंकारो का खजाना है| याकूब ने आदेशात्मक मनोदशा का प्रभावशाली उपयोग किया है| इस पत्री के वचन 108 में 60 बार आदेश दिए गए हैं| यह ध्यान देने योग्य उदहारण बार बार वचन 4:7,8,9 में आता है: “प्रतिरोध करो ....., नजदीक खींचो ......., स्वच्छ करो......, शुद्ध करो....., दुखी होओं......., मातम....., तुम्हारी हंसी बदल जाए.......| ” इन सब की सन्निकटता एक प्रभावशाली सुसमाचार सम्बन्धी बुलावे को दर्शाता है| पूरा लेखांश शुद्ध समाचार है ठीक उसी प्रकार का जैसा हम पहाड़ पर के उपदेश, या पौलुस के उपदेश में पाते हैं| ‘याकूब’ में यूनानी धारा प्रवाह व भव्यता है| इस बात को सिद्ध करने के लिए हमें कुछ तकनीकी शब्दों को समझाने की आवश्यकता है जैसे कि ऐसे शब्द जो लेख में केवल एक बार आते हैं, अलंकारो का प्रयोग, और ऐसे शब्द जो वाक्यों के अंत में आते हैं और फिर दुसरे वाक्य के आरंभ में आते हैं और तब हम इसके उदाहरणों को चुने| यह विचार कि यह पत्री एक गलाली शिल्पकार द्वारा लिखी गयी नहीं है, का प्रभाव सामने आ गया है| यह एक जिवंत साक्षी है कि एक यहूदी एक ऐसी भाषा जैसे कि हिंदी का उपयोग बिना किसी पाठशाला की शिक्षा के, इस परिशुद्धता व विविधता से कर रहा है कि इसकी सुन्दरता वास्तव में सराहनीय है और इसी लिए इसे शैरोन अर्थात अत्यन्त सुन्दर की उपाधि से सुशोभित किया गया है|

जैसे कि कोई व्यक्ति उसकी किशोरावस्था के दौरान फिलिस्तान में रहता था, मैं इस बात की साक्षी देता हूँ कि याकूब फिलिस्तान में रह चुके थे| कल्पना हमें हमारे प्रभु के प्रवचन और नीतिकथाओं का स्मरण दिलाती है| निम्नलिखित पर ध्यान दो, हवा व लहरें, समुद्र व सूर्य, लगाम व मुखरी, घोडा व पतवार, झरना व अंजीर का वृक्ष – यह कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण उदहारण हैं| निश्चित रूप से हम इस कल्पना के अध्ययन से क्या अनुमान लगा सकते है, यह प्रकृति से प्रेम, मानवीय सहानुभूतिय रुचि और ‘पत्थरों में उपदेशों’ के लिए तैयारी है|

याकूब फिलिस्तान में अपने स्वयं के लोगों के लिए एक धर्म प्रचारक बनने तक बने रहे थे| इसमें एक बहुत बड़ी संख्या में उन ईसाई लोगो ने उनका अनुकरण किया, जिनका उद्देश्य घरों में ही रह कर अपने देश वासियों के गवाह बनना था| परंपरा कहती है कि वह यरुशलेम की कलीसिया में धर्माचार्य निक्युक्त किये गए थे| वह घुटनों पर घंटो अन्य व्यक्तियों के लिए प्रार्थना करते थे| परिणामतः वह शहीदों की तरह उनके साथी यहूदियों के हाथो मारे गए थे| मुझे प्रेरितों के कार्य पुस्तक में टिप्पणी 21:17-20 पसंद है| पौलुस ने याकूब और अन्य वृद्धव्यक्तियों से वह महान कार्य जो प्रभु ने अन्य जातियों में किये थे के बारे में कहा था; तब याकूब ने अपने उपदेशक भाई को आशवस्त किया है कि कई हजार यहूदी प्रभु की और मुड जाएँगे| तो मसीह अपने राज्य व विदेशी राज्यों में गौर-न्वित होंगे |

विश्वास एवं कार्य

कुछ वर्ग विशेष के लिए केवल याकूब की पुस्तक में विश्वास व कार्य के स्पष्ट फलने फूलने के संकेत का बहाव है| यह खेदजनक है कि इस बहमूल्य पत्री में का एक विवादस्पद बिंदु हमारे दिमाग में समाया रहे और इसके साथ ही बहमूल्य मामलों जिनकी छाप प्रमुखता से है, को हम छोड़ दें| कम से कम आरंभ में कुछ अस्थायी टिप्पणियों के साथ मामले निपटने चाहिए| परिणामतः एक अत्यधिक विस्तृत अच्छा व्यवहार, विचारों के विरोध को सुलझाने में सहायता कर पाएंगे|

हम साहसी सुधारक ‘मार्टिन लूथर’ के विशाल कर्ज के देनदार हैं| उनकी ‘विश्वास द्वारा न्यायीकरण’ के सिद्धांत पर पूर्ण अविष्कार नए युग के अविष्कार का आध्यात्मिक प्रतिरूप था| इन दोनों घटनाओं, एक धर्मशास्त्रीय क्षेत्र में, एक भूगोलिय क्षेत्र में, ने इतिहास के मार्ग को सचेत किया है| तो भी उन्होंने एक या दो उद्धत दावे किये जिनमे धर्मशास्त्र के सिद्धांत को सहन कर सकते हैं| उदाहरण के लिए उन्होंने पुनरुत्थान की पुस्तक के प्रति नापंसदगी दशाई थी इस आधार पर कि पुनरुत्थान ने प्रकट करना चाहिए जबकि इस पुस्तक में इस प्रकार का कुछ नहीं है| इसके अतिरिक्त यह देवदूत द्वारा रहस्य उदघाटन है ‘जो कि सभी पुस्तकों के आगे लोगो को यह अनुभव कराती है कि स्वर्ग वास्तविक है|’ लूथर इसके आगे गये; उन्होंने याकूब की पत्री को ‘दो कौड़ी की पत्री’ कह कर उसे मुल्यरहित कर दिया था | सभी प्रोटेस्टेन्ट उस शुभ दिन के बारे में जानते है जब सुसमाचार की रौशनी उन पर चमकी थी जब उन्होंने रोमन के मध्यवचनों के साथ लडाई की थी रोमियों 2:17 “विश्वास से धर्मी जन जीवित रहेगा”| अपनी सभी गोलमोल या अस्पष्ट बातों की रक्षा करने के प्रयास में लूथर ने इन शब्दों ‘विश्वास द्वारा’ को जोड़ दिया था|

शीघ्र ही लूथर का ध्यान इस बात पर गया था जब उन्होंने पत्री में यह देखा था “वैसे ही विश्वास भी, यदि कर्म सहित न हो तो अपने स्वभाव में मरा हुआ है”(याकूब 2:17) कि याकूब सत्य से असहमत होते दिखाई दिए थे| यहाँ याकूब विशेष शब्द का उपयोग करते हैं जोकि लूथर ने अपने अगले पाठ में जोड़ा था परन्तु प्रतिकूल उद्देश्य के साथ के जोड़ा था|

कुछ वर्षों पूर्व लेबनान में मुझे कुछ ईसाई धर्म प्रचारकों द्वारा विधिवत आम ईसाईयो और विदेशी इसाईयों की विभिन्न अभिवृतियों को निकट लाने के विचार के साथ ‘याकूब’ और ‘गलतियों’ पर कुछ कहने के लिए कहा गया था| दोनों दलों के पास प्रशंसनीय विशेषतायें हैं और दोनों परमेश्वर की महिमा लाने का एक कठोरता पूर्वक और एक स्वतंत्रता पूर्वक प्रयास कर रहे थे| एक उत्कृष्ट विद्वान की सहायता से हम इन दो अभिवृतियों को परिभाषित करने का प्रयास कर पाएंगे| परमेश्वर की दया पर पूरी तरह से निर्भर रहने के स्थान पर गुणों के आधार पर किये गए मानवीय क्रियाकलापो पर विश्वास करना विधिवाद की प्रवृति है| क़ानून रहितों की एक धारणा है कि परमेश्वर की दया, भोगविलासी जीवन या स्वार्थी अनिच्छा पूर्वक दिए गए भिक्षा दान जैसे कार्यों को क्षमा कर देती हैं| यह भ्रान्ति पूर्ण धारणा याकूब की शिक्षा में एक विधिवत्त तत्त्व है; इसकी प्रतिक्रिया उन क़ानून रहितों पर जो पौलुस की विश्वास और कार्यों की शिक्षा को गलत बताते थे, पर हुई|

परन्तु क्या याकूब विधिवादी है? क्या उत्साह पूर्वक प्रार्थना करना विधिवत है, क्यों की इसकी ही तो उन्होंने सिफारिश की हैं? क्या, विधवाओं और अनाथों से मिलने जाना, सांसारिक प्रदुषण पर ध्यान नहीं देना, गरीब व्यक्ति के साथ सम्मान पूर्वक व्यव्हार करना, अपनी जुबान को नियंत्रण में रखना, अपने भाइयों का निर्दयता पूर्वक न्याय ना करना, विधिवत है? याकूब की की कार्य अवधि जो भी रही हो यह विशेष कार्य पूरी तरह से प्रशंसनीय है – इनके बिना हमारे आचरण में सच्ची धर्मपरायणता नहीं रह सकती, और हम भी विधर्मियों की अपेक्षा बहुत अच्छे नहीं माने गये होते| काल्विन लिखते हैं कि हमें निराश नहीं होना चाहिए यदि याकूब हमारे पसंदीदा सिध्दांतों पर उपदेश देने में बहुत अनिच्छुक दिखाई देते हैं| “हमें प्रत्येक से ऐसी आशा नहीं रखनी चाहिए कि सभी एक समान कार्य करे| ऐसी विभिन्नताओं के कारण हम एक उपदेशक की प्रशंसा व दूसरे पर दोष नहीं लगा सकते हैं|”

मैं भी ‘याकूब की पत्री’ में पवित्र आत्मा के बारे में कुछ न पाकर निराश हो गया था| परन्तु मेरी संतुष्टि के लिए यह खोज बहुत बड़ी बात थी कि इस पत्री में आत्मा के सभी नौ फल हैं| सात स्पष्ट रूपक एक सूची में परन्तु एक सुपरिचित श्रेणी में नहीं हैं परन्तु उसके पर्याय में और नवां एक अलंकार है|

‘गलतियों’ में पौलुस ने सख्ती से विधिवाद को दोषी ठहराया है| वह कानूनरहित लोगों के साथ कैसे अच्छा व्यवहार कर सकते हैं? उन्होंने रोमियों 6 में शिक्षा दी है, उन्होंने उनके समकालीन व्यक्तियों को ऊंचा करने के द्वारा हमारे ईसाई स्तर को चुनौती दी है: “क्या हम निरंतर पाप करेंगे क्योकि अनुग्रह तो प्रचुर मात्रा में होगा? परमेश्वर ने वर्जित किया है|” यदि ऐसी शिक्षा हमें ठंडा करती है तो क्या? कुछ धर्मशास्त्री हैं जो जोर देते हैं कि ईसाई लोग समलिंगकामिता में रह सकते हैं या विवाह अतिरिक्त यौन सबंधों में लिप्त हो सकते हैं| खेदजनक बात है कि माने हुए ईसाई व्यक्ति भी जलनेवाले,छलपूर्ण, धमंडी, शेखी बघारने वाले, पालकों के प्रति अवज्ञाकारी हैं| पौलुस ऐसे भ्रष्ट सम्मानीय उल्लघनकर्ताओं पर छींटाकशी करने में जरा भी हिचकिचाते नहीं हैं रोमियों 1:26-32 में तुम देख सकते हो|

एक अत्यधिक उग्र मामले में पौलुस ने कुरिन्थियों की कलीसिया से आग्रह किया है, “यहाँ तक सुनने में आता है, कि तुम में व्यभिचार होता है, वरन ऐसा व्यभिचार जो अन्यजातियों में भी नहीं होता, कि एक मनुष्य अपने पिता की पत्नी को रखता है| और तुम शोक तो नहीं करते; जिस से ऐसा काम करनेवाला तुम्हारे बीच में से निकाला जाता, परन्तु घमंड करते हो| मैं तो शरीर के भाव से दूर था, परन्तु आत्मा के भाव से तुम्हारे साथ होकर, मानो उपस्थिति की दशा में ऐसे काम करनेवाले के विषय में यह आज्ञा दे चुका हूँ| कि जब तुम, और मेरी आत्मा, हमारे प्रभु यीशु की सामर्थ के साथ इकट्ठे हो, तो ऐसा मनुष्य, हमारे प्रभु यीशु के नाम से शरीर के विनाश के लिए शैतान को सौंपा जाए, ताकि उस की आत्मा प्रभु यीशु के दिन में उध्दार पाए|”(1 कुरिन्थियों 5:1-5 )| आज के युग में कलीसिया का इस प्रकार का अभिशाप कैसे लागू हो सकता है? विधर्मियों या माने हुए व्यभिचारियों को हम और अधिक जला कर भस्म नहीं कर सकते| कुरिन्थियों के उसी अध्याय में हमें चेतावनी गई है कि हमें ऐसे भाई का साथ नहीं देना चाहिए जो एक लालची, एक निंदक या एक शराबी हो (1 कुरिन्थियों 5:11) याकूब का एक सरल उपाय है: बिना विश्वास के कार्य मृत है; एक जीवित और एक मृतजात विश्वास होते हैं| क्या कभी एक बाँझ विश्वास न्यायोचित करा सकता है? नहीं, यह कभी नहीं कर सकता है|

1 कुरिन्थियो 16 में पौलुस ने कलीसिया का अभिशाप सर्वनाम उन लोगों के लिए उपयोग किया है जो यीशु से प्रेम नहीं करते; गलतियों 1 में उन्होंने ठीक वैसा ही उन लोगों को कहा है जिनकी विधिवाद में रूची ने सुसमाचार का अर्थ ही घुमा दिया है| पूर्णरूप से याकूब इन विधिरहित लोगों के असहयोगी रूख, उनके विश्वास के मूल्य और विधिमान्यता पर प्रश्न पूछते हुए एक असहयोगी रूख अपनाये हुए थे|

विषय सामग्री का सारांश

याकूब की पत्री में कुछ ऐसा प्रतीत होता है कि इसे ऐसे बहुमूल्य तिनकों से बनाया गया है ; अन्य व्यक्तियों के लिए यह एक खजाना है जैसे अनमोल मोतियों का एक संग्रह हो| यह पत्री एक साफ़ सुथरे विश्लेषण को परिभाषित करती है ; यह तेजी से एक के बाद एक विषय, कल्पनाओं और दृष्टान्तों की सहायता के साथ दायित्व से चुनौती की और बढती है| संगीत की भाषा में हम मूलभाव, पुनरावृति,विकास और सारकथन कहते हैं| ‘याकूब’ सुविधापूर्वक पदबंधों का संक्षिप्तिकरण कर पाए होंगे जैसा कि आगे दिया है

1:01 -- अभिवादन ( नमस्कार )
1:02-08 -- विशवास एंव बुध्दिमानी
1:09-11 - गरीबी और धन
1:12-18 - परीक्षण और प्रलोभन
1:19-27 - सुनना और करना
2:01-13 – अन्याय के विरुद्ध चेतावनी
2:14-26 – विश्वास एवं कार्य
3:01-12 – जुबान का गलत उपयोग
3:13-18 – ऊपर से मिली बुद्धिमानी
4:01-10 – सांसारिकता और धर्मपरायणता
4:11-12 – न्याय में प्रकल्पना (अनुमान)
4:13-17 – आत्मविश्वास के विरुद्ध चेतावनी
5:01-06 – धन के विरुद्ध चेतावनी
5:07-12 – परिक्षण में धैर्य
5:13-20 – प्रार्थना और विश्वास

ध्यान दीजिये कैसे याकूब ने आरंभ और अंत विश्वास के साथ किया है, बीच में वे सिर्फ वास्तविक विश्वास में आनेवाली रुकावटों को ढूंढ रहे हैं| ‘अमीरी’ एक और विषय है जिसने उनके विचारों पर अधिकार जमाया है; कुछ अनुचित आदर जिसकी आज्ञा धन देता है, और सुरक्षा का झूठा अभीप्राय पैदा करता है| वह आगे परमेश्वर के वचन को सुनने और विश्वास करने के व्यवहारिक उत्तर में उस अनुसार कार्य करने पर जोर डालते है| इन सब के ऊपर (अलावा) वह हमसे बुरी से बुरी स्थिति में परमेश्वर के उत्तम उपहार के लिए प्रार्थना करने की विनती करते हैं|

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