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रोमियो – प्रभु हमारी धार्मिकता है|
पवित्र शास्त्र में लिखित रोमियों के नाम पौलुस प्रेरित की पत्री पर आधारित पाठ्यक्रम
भाग 1: परमेश्वर की धार्मिकता सभी पापियों को दण्ड देती है और मसीह में विश्वासियों का न्याय करती है और पापों से मुक्त करती है। (रोमियों 1:18-8:39)
स - न्यायीकरण का अर्थ है परमेश्वर और मनुष्य के बीच एक नया रिश्ता (रोमियो 5:1-21)

2. पुनर्जीवित यीशु हमारे अंदर अपनी धार्मिकता पूरी करते हैं (रोमियो 5:6-11)


रोमियो 5:6–8
6 क्योंकि जब हम निर्बल ही थे, तो मसीह ठीक समय पर भक्तिहिनों के लिए मरा| 7 किसी धर्मी जन के लिए कोई मरे, यह तो दुर्लभ है, परन्तु क्या जाने किसी भले मनुष्य के लिए कोई मरने का भी हियाव करे| 8 परन्तु परमेश्वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीती से प्रगट करते है, कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिए मरा|

परमेश्वर के रोष और न्यायसंगत न्याय के प्रकटीकरण के बाद पौलुस हमें निष्ठावान पश्चाताप, और स्वाभिमान को तोड़ने की ओर हमारा मार्गदर्शन करते हैं ताकि हम विश्वास द्वारा न्यायीकरण को स्वीकार करने की एक विशाल आशा को पकडे हुए, परमेश्वर के ईमानदार प्रेम में लगातार बने रहने के लिए तैयार हो सके| हालाँकि हम इस उद्धार में प्रवेश कर चुके हैं, हमें अपने भूतकाल को भी याद रखना चाहिए ताकि हम अहंकारी न बन जाएँ|

सभी आत्मिक उपहार, शांति, अनुग्रह, प्रेम, स्वच्छीकरण, विश्वास, आशा और धीरज ना हमारे द्वारा ना हमारी मानवीय शक्तियों द्वारा भविष्य में लाए गए हैं| यह यीशु की मृत्यु का परिणाम है, जिन्होंने अपना जीवन केवल अपने प्रिय भाइयों के लिए ही नहीं, बल्कि अधार्मिक लोगों के लिए भी, जिन मे परमेश्वर हमें देखते हैं, दी है| मनुष्य जैसे बुराई का बम है| वह केवल अपने आप को ही नहीं, परन्तु दूसरो को भी भ्रष्ट करता है| अतः मसीह ने हमसे प्रेम किया और हमारे लिए अपने प्राण त्याग दिए थे|

इस विनम्रता द्वारा हमने परमेश्वर के महान प्रेम को देखा| कदाचित ही हम किसी ऐसे व्यक्ति को ढूँढ पाए जो अपना आराम, समय, धन, और अपने जीवन को अपने बीमार भाई की चंगाई के लिए पेशगी के रूप में अपनी इच्छा से बलिदान करता है| शायद से कोई एक अपने जीवन को अपने स्वदेश, या अपनी संतानो के लिए या एक माँ अपने जीवन को अपनी संतानो के लिए बलिदान करेगी, परन्तु परमेश्वर के सिवाय कोई भी अपराधियों के लिए और अस्वीकृत दुश्मनों के लिए अपना जीवन को देने को तैयार नहीं होगा|

यह सिद्धांत हमारे विश्वास के चरम बिंदु को गठित करता है| जबकि हम परमेश्वर के अनाज्ञाकारी दुश्मन रहे थे, उस एकमात्र पवित्र ने हमसे प्रेम किया था| वे अपने पुत्र में, अपराधियों के साथ जुड गए और उनके कातिलों के अपराधों के प्रायश्चित के रूप में अपनी जान देदी थी| इसकी तुलना में महान प्रेम नहीं है, कि कोई अपने मित्रों के लिए अपने जीवन को दे दे| मसीह के इस शब्द से हम पाते है कि उन्होंने अपने दुश्मनों को “अपने दोस्त” कहा था क्योंकि वे सबसे प्रेम करते है यहाँ तक कि मृत्यु तक भी|

हमारे लिए परमेश्वर का प्रेम बहुत महान है कि उन्होंने हमारे द्वारा अपराध करने से पहले, यहाँ तक कि हमारे जन्म लेने से पहले सूली पर हमारे अपराधों को क्षमा कर दिया था| अतः हमे हमारे द्वारा अपने आपको न्यायोचित करने के लिए कोई प्रयत्न करने की आवश्यकता नहीं है, परन्तु केवल इस बात की आवश्यकता है कि दैवीय अनुग्रह को स्वीकार करे, और विश्वास करे कि हम न्यायोचित हो चुके है और तब मसीह की उद्धार शक्ति हममें प्रकटित होगी|

रोमियो 5:9–11
9 सो जब कि हम, अब उसके लोहू के कारण धर्मी ठहरे, तो उसके द्वारा क्रोध से क्यों न बचेंगे? 10 क्योंकि बैरी होने की दशा में तो उसके पुत्र की मृत्यु के द्वारा हमारा मेल परमेश्वर के साथ हुआ फिर मेल हो जाने पर उसके जीवन के कारण हम उद्धार क्यों न पाएंगे? 11 और केवल यही नही, परन्तु हम अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा जिस के द्वारा हमारा मेल हुआ है, परमेश्वर के विषय में घमंड भी करते है|

अब खुशियाँ मनाओ और आनंद के लिए उछलो| मसीह में हमारे एकजुट विश्वास के कारण हम लोग परमेश्वर के सामने न्यायोचित बन चुके हैं| शैतान के पास हमारे विरोध में शिकायत करने का कोई अधिकार नहीं है| मसीह के लहू में हमारा शरीर और आत्मा दोनों स्वच्छ हो गए हैं| यह नई स्थिति हमेशा रहेगी, क्योंकि यीशु की मध्यस्थी हमें न्याय के दिन परमेश्वर के क्रोध से बचा लेगी|

पौलुस नीचे दिए अर्थो के साथ उद्धार के निश्चित सत्य की गहराई में हमें बताते है:

पहला: परमेश्वर से हमारी संधि तब जब हम परमेश्वर के प्रति शत्रुता और विद्रोह में जी रहे थे, हो गयी थी| यह संधि हमारे किसी करार नामें और किसी मूल्य को चुकाए बिना हुई थी| हालाँकि हम इस संधि का आरम्भ करने के लिए असमर्थ और अयोग्य थे, जो कि सिर्फ अनुग्रह का एक उपहार है| यह संधि केवल परमेश्वर के पुत्र द्वारा संभव हो सकी है, जिन्होंने हमारे लिए मनुष्य रूप में अवतार लिया और अपने जीवन का बलिदान किया|

दूसरा: यदि यीशु की मृत्यु कुछ बदलते हुए परिणामों का कारण हो सकती थी, मसीह का जीवन कितना और अधिक उद्धार को प्राप्त करेगा| कि अब हम पूरी इच्छा और दृढ निश्चयता से परमेश्वर से संधि कर चुके है, हम उनकी इच्छा को अपने पुरे ह्रदय के साथ पूरी करना चाहते हैं कि उनकी शक्ति हमारे अंदर कार्य कर पाए| अतः अनंत जीवन, जो और कुछ नहीं परन्तु स्वयं मसीह का जीवन है, परमेश्वर के मेमने में विश्वास द्वारा, हम तक आया है, पवित्र आत्मा कौन है, परमेश्वर के प्रेम का सत्व है| यह दैवीय वचन हमारे ह्रदयों में शांति, खुशी, प्रशांति और स्तुति स्थापित करते हैं| परमेश्वर की आत्मा हमारे महिमामयी भविष्य का वादा है क्योंकि जो कोई भी प्रेम में रहेगा, परमेश्वर के साथ है और परमेश्वर उसमे हैं|

तीसरा: इसलिए पौलुस को महिमा को कुछ ऊपर उठाने का साहस था यह कहते हुए “हम भी परमेश्वर में आनंदित है” जिसका अर्थ है कि एक मात्र पवित्र स्वयं हमारे अंदर रहते है और हम उनमे रहते है क्योंकि उनके साथ केवल हमारी संधि ही नहीं हो चुकी है, परन्तु पवित्र आत्मा जो परमेश्वर स्वयं है ने ईश्वरत्व के लिए हमारे शरीरों को एक मंदिर बनाया था| क्या तुम तुम्हारे अंदर परमेश्वर की उपस्थिति का आनंद लेते हो? एक टूटे हुए मनुष्य बन गए हो स्वयं को जैसे कुछ नहीं समझते हो, अपने प्रभु की स्तुति करो, और उस उल्लेखनीय पदवी को देखो जिस तक मसीह की मृत्यु ने तुम्हे ऊपर उठा दिया है|

प्रार्थना: सूली पर चढाये गए यीशु के प्रेम की शक्ति की उद्घोषणा के सम्मुख हम घुटने टेकते हैं, और हम दैवीय प्रेम के प्रयोजन के लिए अपने शरीरों को सौंपते हैं जोकि हमें गीरे हुए दिमागों में शामिल करते है| हम स्वयं अपने बारे में सोचना नहीं चाहते परन्तु दैवीय प्रेम के सागर में डूबना चाहते है|

प्रश्न:

35. परमेश्वर का प्रेम कैसे प्रकट हुआ था?

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