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Previous Lesson -- Next Lesson यूहन्ना रचित सुसमाचार – ज्योती अंध्कार में चमकती है।
पवित्र शास्त्र में लिखे हुए यूहन्ना के सुसमाचार पर आधारित पाठ्यक्रम
दूसरा भाग – दिव्य ज्योती चमकती है (यूहन्ना 5:1–11:54)
क - यीशु की यरूशलेम में अन्तिम यात्रा (यूहन्ना 7:1 - 11:54) अन्धकार का ज्योती से अलग होना
1. झोपड़ियों के पर्व के समय पर यीशु का वचन (यूहन्ना 7:1 – 8:59)
5) शैतान हत्यारा और झूटा है (यूहन्ना 8:37-47)यूहन्ना 8:37–39 यहूदी स्वंय को अब्राहम की सन्तान समझते थे और कल्पना करते थे कि विश्वास के पिता (अब्राहम) से यह रिश्ता होने के कारण वो सारी आशीषों के उत्तराधिकारी थे जिसे परमेश्वर ने अपने आज्ञाकारी सेवक को अर्पित की थीं | यीशु ने इस संबंध से मिलने वाले विशेषाधिकार का इन्कार नहीं किया | परन्तु आप को दुख इस बात का था कि अब्राहम की सन्तान अपने पूर्वजों की आत्मा से खाली थी | इस आत्मा ने अब्राहम को परमेश्वर की आवाज़ को सुनने की और उसके वचन का पालन करने की क्षमता दी थी | परिणाम यह हुआ कि उन्होंने अपने दिल यीशु का वचन सुनने के लिये बंद कर लिये और यह वचन उनके दिलों में प्रवेश ना कर सके और उन्हें ज्ञानप्रद ना कर सके | इसलिये वे अज्ञान रहे और विश्वास ना कर सके | अस्वीकृति और घ्रणा के सिवाय मसीह का वचन उनके दिलों में कोई फल उत्पन्न ना कर सका | बहुत करके उस समय उनमें से कई लोगों की यीशु को जान से मारने की इच्छा नहीं थी परन्तु यीशु ने उनके दिलों की इच्छा का अनावरण कर दिया और आप जानते थे कि घ्रणा ही हत्या की प्रारंभिक क्रिया होती है और बहुत जल्दी वो पुकारने वाले थे: “क्रूस पर चढाओ, क्रूस पर चढाओ” (मत्ती 27:21-23; यूहन्ना 19:15) | अब्राहम ने परमेश्वर की आवाज़ सुनी और तुरन्त उसकी आज्ञा का पालन किया | आश्चर्य इस बात का है कि यीशु हमेशा अपने पिता की आवाज़ ना केवल सुनते रहे बल्की उसके काम और उसकी महीमा भी देखते रहे | आपका अनावरण पूरा था जो आप का पिता के साथ मजबूत संगती से उत्पन्न होता था | यीशु, परमेश्वर की निकली हुई आत्मा और उसके प्रेम से निकला हुआ प्रेम हैं | परन्तु यहूदी, परमेश्वर से निकल आये हुए एकलौते पुत्र से घ्रणा करते थे | इस से यह सिद्ध होता है कि वो स्वंय सत्य परमेश्वर से नहीं निकले थे | उनके सोचने का स्त्रोत आस्मानी ना होते हुए कोई और था | वादविवाद के इस दौर में यीशु उन्हें उनके “पूर्वजों” की पहचान पर विचार करने के लिये उदबोधित कर रहे थे | वह अब्राहम ना था | यूहन्ना 8:40-41 यहूदियों को यीशु के शब्द बुरे लगे क्योंकि आप ने उन्हें अब्राहम की सन्तान नहीं माना | अब्राहम की सन्तान होना उनके विश्वास और आशा का आधार था और उस पर उन्हें गर्व था | फिर यीशु ने यह कहने का साहस कैसे किया कि वो अब्राहम की सन्तान नहीं हैं और उनके इस रिश्ते का खंडन कैसे किया? यीशु ने उन्हें यह भी बताया कि अब्राहम का अपना देश छोड़ कर प्रवास करना उनका परमेश्वर के उपर विश्वास करके उसकी आज्ञा पालन करना था | उनका परमेश्वर की प्रतिबद्धता पर विश्वास उस समय प्रदर्शित हुआ जब उन्होंने अपने पुत्र, इज़हाक को बलीदान करने के लिये समर्पित किया और उस समय भी जब उन्होंने अपने भतीजे लोट के प्रति नम्रता दिखाई | परन्तु यहूदियों ने अपने हटीलेपन, विद्रोह और अविश्वास का प्रदर्शन किया और उनकी आत्मा मसीह की आत्मा के विरुध थी | इस प्रकार उन्होंने उस अवतारित सत्य से वादविवाद छेड़ दिया जो उनके बीच में खड़े हुए थे और ना ही आपके द्वारा आने वाली परमेश्वर की आवाज़ को सुना | यीशु महीमा वा दूतों से घिरे हुए, परमेश्वर के पुत्र के समान नहीं परन्तु एक साधारण मनुष्य के समान केवल अपना वचन ले कर आये | आप ने लोगों को अपना सुसमाचार स्वीकार करने पर विवश नहीं किया | आपने परमेश्वर का प्रेम, अनुग्रह और नाम प्रगट किया | यहूदियों ने घ्रणा से इस सुसमाचार को ठुकरा दिया और आप की हत्या करने की सोचने लगे | यह अब्राहम के गुणों और कामों के विरुध था | अब्राहम ने परमेश्वर के वचन को सुना, आज्ञा मानी, जिये और परमेश्वर के प्रगट किये हुए वचन के अनुसार काम किया | यूहन्ना 8:42–43 यीशु ने यहूदियों को साबित करके दिखा दिया कि अब्राहम उनके पिता नहीं थे और उन्हें उनके असली पिता का नाम दिखाने का प्रयत्न किया जिसके पीछे वो चल रहे थे | जैसे वह था वैसे ही यह भी थे | यहूदियों को इस बात का अनुभव हुआ कि यीशु ने उनके और अब्राहम के बीच की असमानता को उनको जता दिया | उन्होंने उत्तर दिया: “हम व्यभिचार से नहीं जन्मे जैसे मोआबी और आमोनी अंतर्प्रोजन से जन्मे थे (उत्पत्ति 19:36-38), ना ही वो सामरियों की तरह मिश्रित जाती थे क्योंकी वो निर्गमन 4:22; व्यवस्था विवरण 32:6 और यशायाह 63:16 के अनुसार दावा करते थे कि परमेश्वर उनका पिता था | जब यीशु ने उन्हें यह बताया कि परमेश्वर स्वंय आप का पिता है तब उन्होंने मुहतोड़ उत्तर दिया कि पवित्र वचन के अनुसार परमेश्वर उनका भी पिता है | और वो इस सिद्धांत पर विश्वास करते थे जिसके कारण उन्होंने संघर्ष किया और दुख उठाया था | परन्तु उनकी गवाही झूटी थी | यीशु ने संक्षेप में यह बताया कि वो स्वंय को धोका दे रहे हैं | आप ने कहा, “अगर परमेश्वर तुम्हारा पिता होता तो तुम मुझ से प्रेम करते क्योंकी परमेश्वर प्रेम है ना की घ्रणा | वो अपने पुत्र से प्रेम करता है जो उस से निकल कर आया है और पुत्र मे उसका तत्व है |” यीशु पल भर के लिये भी अपने पिता से अलग ना हुए बल्की एक आज्ञाकारी प्रेरित की तरह उसकी आज्ञा का पालन करते रहे | तब यीशु ने भीड़ से पूछा: “तुम मेरी भाषा क्यों नहीं समझते? मैं अजनबी भाषाओँ में नहीं बोल रहा हूँ बल्की मैं ने अपनी आत्मा बिलकुल आसान शब्दों में प्रस्तुत की है ताकी छोटे बच्चे भी ग्रहण कर सकें | यीशु ने स्वंय अपने प्रश्न का उत्तर अपने शत्रुओं से यह कहते हुए दिया: “तुम सुन नहीं सकते क्योंकी तुम स्वतंत्र नहीं बल्की गुलाम हो | तुम्हारे आत्मिक जीवन खो चुके हैं | तुम बहरों की तरह हो जो बुलावे को सुन नहीं सकते |” प्यारे भाई, तुम्हारी सुनने की शक्ती आत्मिक दृष्टी से कैसी है ? क्या तुम परमेश्वर का वचन अपने दिल में सुन पाते हो ? क्या तुम उसकी आवाज़ सुनते हो जो तुम्हारे अन्त:करण को साफ और व्यवस्थित करने को उत्सुक है | या तुम घमंडी और बहरे हो गये हो क्योंकी एक अपरिचित आत्मा ने तुम पर कब्ज़ा कर लिया है ? क्या तुम सुसमाचार की शक्ती से परमेश्वर की सेवा करते हो या कोई दुष्ट आत्मा तुम्हारे अन्दर बसी हुई है और तुम उसके निर्देशन पर चलते हो | प्रश्न: 63. यीशु ने यहूदियों को कैसे सिद्ध करके दिखा दिया कि वो अब्राहम की सन्तान नहीं हैं?
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