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Home -- Hindi -- The Ten Commandments -- 09 Seventh Commandment: Do Not Commit Adultery

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विषय ६: दस आज्ञाएँ - परमेश्वर की सुरक्षा करने वाली दीवार जो मनुष्य को गिरने से बचाती हैं|
सुसमाचार की रोशनी में निर्गमन २० में दस आज्ञाओं का स्पष्टीकरण

IX. सातवी आज्ञा: तू व्यभिचार मत कर



निर्गमन २०:१४
तुम्हें व्यभिचार नहीं करना चाहिए|


०९.१ -- विवाह का उद्देश्य और संस्था

परमेश्वर ने मनुष्य को अपनी छबी में बनाया था; अपनी छबी में परमेश्वर ने उसकी रचना की थी| उन्होंने उनकी रचना नर और नारी के रूप में की थी| उन्होंने दोनों को अपनी छबी दर्शाने के लिए चुना है| दोनों का आद्यात्मिक स्तर एक समान था| आदमी के और औरत के परमेश्वर के साथ संबध, उनके अगाध सम्मान और प्रतिष्ठा का रहस्य है|

परमेश्वर ने एक आदमी के लिए एक औरत का निर्माण किया था| ध्यान रहे कि उन्होंने उसके लिए दो, तीन या चार पत्नियाँ नहीं बनाई थी| परमेश्वर विवाह सबंधी समझौते के तीसरे मुख्य व्यक्ति हैं| वे दोनों जीवन साथीयों को एक दिमाग, एक उद्देश्य प्रदान करते है, दोनों को सुधारते हैं और दोनों को आद्यात्मिक रूप से बराबर बनाते हैं| वे उन्हें एक बलिदानी जीवन की और मार्गदर्शन करते हैं जिसमे उनका प्रेम परिपूर्णता का बंधन है| वह जो परमेश्वर से प्रेम करता है अपने जीवन साथी से प्रेम कर सकता है| परमेश्वर उनके अनुग्रह में, दो स्वार्थी लोगों को एक साथ बांधते हैं, यह चाहते हुए कि दोनों परमेश्वर की कुलीनता की शक्ति द्वारा अपने स्वार्थीपन पर विजय पा सकेंगे|

परमेश्वर ने औरत की रचना आदमी में से की औरत में से आदमी की रचना नहीं की थी| एक यहूदी शिक्षक ने इसकी व्यख्या की है कि सृष्टिकर्ता ने आदमी के सिर में से नस नहीं निकाली थी कि कहीं औरत उसके ऊपर राज्य ना करे, न ही उन्होंने आदमी के पैर में से नस निकाली थी कि कहीं ऐसा न हो कि आदमी उसे दबा कर रखे| उन्होंने उसकी एक ओर की पसली निकाली कि औरत आदमी के साथ खड़ी हो पाये, उसकी सहायता करे, और उसे परिपूर्ण बना पाए एवम उसके बोझ को बाँट पाये|

आदमी के अपराध में गिरने से पहले, औरत का नाम ईशा था, ईश (A – man) एक आदमी का इब्रानी स्त्रीवाचक रूप, जहाँ पर A केवल एक स्त्रीवाचक सामी शब्द है जो अरबी एवं इब्रानी दोनों में अंत में पाया गया था| वह आदमी के समान प्रत्येक बात में और उसके अधिकारों में समरूपता रखती थी| कोई आश्चर्य की बात नहीं कि एक आदमी उसके माता व पिता को छोड़ सकता है जैसाकि परमेश्वर ने कहा है, और अपनी पत्नी के साथ रहेगा, इसके विपरीत नहीं कहा है| बहुतों ने प्रायश्चित करना चाहिए और एक जवान पति को अपने परिवार को छोड़ कर, शांति से अपने पत्नी के साथ रहने देना चाहिए| दोनों ने एक स्वतंत्र परिवार को बनाना चाहिए और एक साथ परमेश्वर की उस्पस्थिति में, आत्मा, जीवनी शक्ति एवं शरीर की मजबूत एकता का निर्माण करते हुए अपने जीवन बिताना चाहिए| यौन संबंधी प्रेम व इच्छा, श्रद्धामय वैवाहिक संबंधों को सुरक्षित रखने के लिए दिये गये परमेश्वर के उपहार हैं जो परमेश्वर के अनुग्रह द्वारा बच्चे प्राप्त करने के उद्देश्य से दिए गए हैं| परमेश्वर ने कभी भी विवाह में यौन संबधों को अस्वच्छ या अपवित्र नहीं, परंतु आशीषित व पवित्र माना था जब तक भी मनुष्य परमेश्वर के सम्मुख जीता है और अपने जीवन साथी के प्रति ईमानदार रहता है|


०९.२ -- विवाह का स्थायित्व

जैसे ही दोनों जीवनसाथी परमेश्वर के साथ मित्रता से दूर भटक गए थे वैसे ही विवाह का विकृत रुप सामने आया था| मनुष्य का अपराध में गिरना स्वयं उसकी आत्मा और जीवनी में आरंभ हुआ था, उसके शरीर में नहीं हुआ था| मनुष्य शैतान के गर्व द्वारा संक्रमणित हो गया था| आदम और हवा परमेश्वर के समान बनना चाहते थे| यह प्रलोभन मनुष्य के दिमाग और इच्छा में आरंभ हुआ था और विशाल दण्ड इसका परिणाम था जिसने जीवन के प्रत्येक पहलु को विकृत कर दिया था| औरत को आदमी के अधीन कर दिया गया अब और अधिक वह इस जगत में स्वयं जीवन जीने के बारे में समझ पाने में असमर्थ थी| औरत को बहुत दर्द के साथ बच्चो को जन्म देना पड़ा था जबकी आदमी को कांटेदार खेतों में कठिन परिस्थितियों में, कठिन परिश्रम करना पड़ा था| तब से मृत्यु अपराध की मजदूरी है| अपराध में मनुष्य के गिरने से मुलभुत रूप से विवाह पर असर हुआ है, परंतु परमेश्वर के विरुद्ध मनुष्य के विद्रोह के बाद एक विवाह प्रथा निरंतर अस्तित्व में थी| दुर्भाग्यवश पुराने नियम में आदमी ने, एक से अधिक पत्नियाँ रखना आरंभ किया था, जिसके कारण उसे गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ा| परमेश्वर की एक विवाह प्रथा का पालन ना करने के परिणाम स्वरूप वे अपने लिए घोर दरिद्रता व दुख ले आये थे| इस्माइल, इब्राहीम के प्रथम पुत्र में, जिसे इस्लाम अरबी व मुस्लिमों के पिता के रूप में मानते हैं, हम लगातार एक लंबी अवधि तक चलने वाली दरिद्रता व दुख को एक आदर्श उदहारण के रूप में देख सकते हैं जो परमेश्वर के मनुष्य इब्राहीम की आज्ञा का पालन ना करने की उपज है| यह किसी से छिपा नहीं है कि एक पिता के दोनों पुत्रों के उत्तराधिकारियों के बीच छिड़े युद्धो ने वास्तव में उत्तर दिशा तक को, वर्त्तमान काल तक हिला दिया है|

याकूब के, उसकी पसंदीदा पत्नी रेचल द्वारा, उसकी पहली पत्नी लेह द्वारा और बाद में उसकी उपपत्नियों द्वारा बच्चे हुए थे| दाऊद एक विवाहिता स्त्री के प्रेम में पड़ने के बाद एक हत्यारा बना, परंतु उसने गंभीरतापूर्वक प्रायश्चित किया था| बहुत से लोग दाऊद के समान अपराध करते हैं परंतु बहुत कम उसके समान प्रायश्चित करते हैं| हम सभी ने भजन संहिता ५१ स्मरण करना चाहिए और परमेश्वर के इस मनुष्य के वास्तविक प्रायश्चित का अनुकरण करना चाहिए| बुद्धिमान सुलेमान ने मूर्खतापूर्ण एवं मंदबुद्धि समान कार्य किया जब उसने सौओं से विधर्मी पत्नियों से विवाह किया व अपने राज्य में उनके देवताओं को लान की अनुमति दी थी| यह मूर्तियाँ उसके लोगों को विश्वसनीय परमेश्वर से बहुत पीछे ले जाने का कारण थी|

इस्राएल में आज भी एक से अधिक पत्नियाँ रखने के रिवाज का अंत नहीं हुआ है| यहूदी जो अरब देशों से परदेश को गमन करते हैं अपनी सभी पत्नियाँ रख सकते हैं| यदि पहली पत्नी द्वारा पुत्रों का जन्म नहीं हुआ तो तलाक भी पुनर्विवाह का कानूनसम्मत है|

हालाँकि परमेश्वर पुराने नियम में बहुविवाह को सहन करते रहे थे और किसी प्रकार से उल्लंघन कर्ता को उसके अपराध के परिणामस्वरूप दण्ड भोगने देते थे उन्होंने आधिकारिक आदेश दिया था की व्यभिचारी और व्यभिचारिणी को पत्थरवाह करके मार दिया जाये (लैव्यव्यवस्था २०:१०-१६; व्यवस्थाविवरण २२:२२-२६)| जब हम मूसा के नियम में अलग अलग प्रकार के व्यभिचारों के लिए दण्ड की सूची को पढ़ते हैं हम और कुछ नहीं कर सकते परंतु कांप उठते हैं जो अपराध आज भी व्यक्तिगत रूप में या सार्वजानिक रूप में होते हैं| यहाँ तक की परिवारों में और कबीलों में भी यौन संबंधी व्यभिचार होते रहे हैं जोकि उसमे हिस्सा लेने वालों के लिए मृत्यु दण्ड लेकर आते हैं| बाइबिल में समलैंगिक यौनसंबंधों को बिलकुल वर्जित किया गया है इसका दण्ड भी मृत्यु है| परमेश्वर के प्रति इससे भी अधिक घिनौना अपराध है कि आदमी और औरतें जानवरों के साथ सहवास करते हैं | परमेश्वर ने विवाह में पति और पत्नी के बीच यौन संबधों के अलावा किसी भी प्रकार के यौन सहवासों की अनुमति नहीं दी थी| जो कोई भी परमेश्वर संस्थपित आदेश का विरोध करता है, वह परमेश्वर के श्राप व विनाश के अंतर्गत आता है| पूरे जगत को सच्चा, निरंतर प्रायश्चित और दिमाग, ह्रदय व कार्यों में शुद्धता की आवशकता है|


०९.३ -- व्यभिचार द्वारा दण्ड का कारण

व्यभिचार, एक साथी के दूसरे साथी के साथ सहवास करने से आरंभ नही होता, परंतु यह धीरे धीरे परमेश्वर से अलग हो जाने से पहले है और इसके बाद विवाह के साथी अर्थात जीवन साथी से अलग हो जाने से ही आरंभ हो जाता है| लेकिन जो व्यक्ति परमेश्वर के साथ मित्रता में बना रहता है, अपने जीवन साथी से गहरा और परिपक्व प्रेम करता है, और वह किसी भी परिस्थिति में व्यभिचार के जाल में नहीं फंसता है| इसी लिए व्यभिचार, साधारणतया, आध्यात्मिक, भावनात्मक और शारीरिक, मित्रता को सफलतापूर्वक अस्वीकार व विनाश करने के द्वारा आता है| विवाहित जोड़े एक दूसरे को समझ पाने में असमर्थ रहते हैं और अपराध के कीचड़ में गहरे और गहरे डूबते चले जाते हैं|

वैवाहिक अनिष्ठता प्रायः मन से आरंभ होती है| दिमाग प्रलोभनकारी छबियों के चित्र बनाता है जोकि, यदि मूलभुतरूप से, यीशु के नाम में डांट फटकार कर, जड़ से समाप्त न किये गए तो यह एक मृतक जाले के समान मनुष्य को उसमे फंसा देंगे| अतः मनुष्य इन अस्वच्छ स्वप्नों के अनुसार क्रिया कलाप करना चाहता है और सुविचारित रूप से अपराध करता है| दूसरा व्यक्ति भी हो सकता है आकर्षित होता है, और अपराध के प्रति इतना आकर्षित होता है जब तक कि दोनों, बहुत अधिक अपने आप पर नियंत्रण न रखते हुए प्रलोभन में फंस जाते हैं| आरंभ में अन्तःकरण जागता था, परंतु जब विद्रोह बढता है, ह्रदय कठोर हो जाता है, और व्यभिचार एक आदत नहीं बल्कि एक अनिवार्यता बन जाता है| यद्यपि आरंभ में उसके अपराध के विकसित होने की अवस्था में व्यभिचारी जानता है कि उसका कार्य अनुचित व अस्वच्छ है| वह जो अपराध करना आरंभ करता है उसमे निरंतर बना रहता है| अपराध के प्रति जो व्यक्ति अपने आप को अर्पित करता है, अपराध उसके लिए एक धकेलने वाली शक्ति बन जाता है, लेकिन प्रभु का धन्यवाद, जहाँ अपराध से छुटकारा पाने के लिए एक अनंत आशा है| यीशु कहतें हैं “मैं तुमसे सत्य कहता हूँ| हर वह जो पाप करता रहता है, पाप का दास है| और कोई दास सदा परिवार के साथ नहीं रह सकता| केवल पुत्र ही सदा साथ रह सकता है| अतः यदि पुत्र तुम्हे मुक्त करता है तभी तुम वास्तव में मुक्त होगे| मैं जानता हूँ तुम इब्राहीम के वंश से हो|” (युहन्ना ८:३४-३६) हमारे प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह और आत्मा, मानवीय अन्तःकरण के भीतरी हिस्सों में पहुँचता है, और यह इसे स्वच्छ करता है और हमें पूर्णतः चंगा करता है| कुछ निशान व प्रलोभन रहेंगे परन्तु यीशु मसीह का लहू हमारे सभी अपराधों को स्वच्छ करता है और अपराधों पर विजय पाने की शक्ति हमें देता है| यदि परमेश्वर के पुत्र किसी को स्वतंत्र करेंगे, वह अवश्य ही स्वतंत्र है|


०९.४ -- एक यीशु आवर्धित विवाह

यीशु ने एक विवाह की पुष्टि की थी और जोर दिया था की नर व नारी जीवनभर एक दूसरे के हिस्सेदार हैं, उन्होंने अपने विरोधियों को यह कहकर उत्तर दिया था, “क्या तुमने शास्त्र में नही पढ़ा कि जगत को रचने वाले ने प्रारम्भ में, ‘उन्हें एक स्त्री और एक पुरुष के रूप में रचा था?’ और कहा था ‘इसी कारण अपने माता-पिता को छोड़ कर पुरुष अपनी पत्नी के साथ दो होते हुए भी एक शरीर होकर रहेगा|’ सो वे दो नहीं रहते बल्कि एक रूप हो जाते हैं| इसलिए जिसे परमेश्वर ने जोड़ा है उसे किसी भी मनुष्य को अलग नहीं करना चाहिये|” (मत्ती १९:४-६) (मरकुस १०:१-१२ भी देखे)

इन वचनों के द्वारा यीशु ने परमेश्वर, नर व नारी के बीच एक प्रकार की त्रयी को स्थापित करने को प्रमाणित किया था, जिसपर उन्होंने अपने अनुयायियों के हृदयों में पवित्र आत्मा द्वारा मोहर बंद किया था| उन्होंने हमारी आत्मा, जीवनी व शरीर को पवित्र किया है, हमें जीवित परमेश्वर का मंदिर, एक छोटे स्वर्ग में वैवाहिक जीवन का विकास जिसमे परमेश्वर का राज्य व निवास हो, बने रहने की अनुमति दी है| यीशु के लहू द्वारा अपराधों की क्षमा हमें एक आत्मा, एक स्वच्छ किया गया शरीर देता है और पूरे परिवार में एक ताजगीभरा वातावरण का निर्माण करता है| मसीह में, वैवाहिक जीवन का एक नया अर्थ है, जो एक आशीषित गुण, और विवाह को नया उद्देश्य देता है| सुनहरा नियम यह है कि ईसाई व्यक्ति किसी अविश्वासी या गैर ईसाई व्यक्ति से विवाह न करे| इस प्रकार से वह बहुत सी समस्याओं से बच जाता है| यीशु से प्रेम करने का अर्थ है अपने जीवन साथी से प्रेम व उसके प्रति मृत्यु आने तक विश्वसनीय बने रहना|

यीशु या उनके शिष्य किसी ने भी आदमी का औरत के प्रति और उनकी संलग्नता को नकारा नहीं है| उन्होंने आदमी के प्रति औरत की अधीनता को नकारा नहीं है| अतः पवित्र आत्मा विवाहित जोड़े को जीवन के हर क्षेत्र में नम्रता और सौम्यता की ओर मार्गदर्शन करता है| उपदेशक पौलुसने प्रत्येक आदमी को अपनी पत्नी से वैसे ही प्रेम करने के लिए आज्ञा दी थी जैसे यीशु ने कलीसिया के लिए स्वयं अपना बलिदान दिया था| सच्चा प्रेम साधारण रूप से, अपने ऊपर संयम रखे बिना इच्छाओं में लिप्त नहीं हो जाता, परंतु आपसी सम्मान में अपने जीवन साथी की सेवा से रहता है| आत्मसंयम पवित्र आत्मा के साथ रहने से आता है जिसमे विवाह एक यौन संतुष्टि का एक स्थान नहीं बन जाता है, परंतु एक दूसरे के लिए वैवाहिक सेवकाई जो परमेश्वर की महिमा करती है|


०९.५ -- नए नियम में विवाह

यीशु ने हमारी जीवनी, आत्मा और शारीर की शुद्धता के लिए एक ऊंचा स्तर तय किया है| वह कहते थे “किन्तु मैं तुमसे कहता हूँ कि यदि कोई किसी स्त्री को वासना की आँख से देखता है तो वह अपने मन में पहले ही उसके साथ व्यभिचार कर चुका है|” (मत्ती ५:२८) इस स्तर के अनुसार सभी पुरुष पवित्र परमेश्वर के सामने पापी दिखाई देते हैं| हमें खुलकर परमेश्वर के सामने अपने अपराध स्वीकार करने चाहिए क्योंकि उनके सामने कोई भी पवित्र नहीं है| यीशु की पाठशाला में हमारे पवित्रीकरण के आधार के रूप में हमें अपने यौन अपराधों को पूरी तरह से स्वीकार करना चाहिए| हम सभी को अनंत न्यायाधीश के सम्मुख स्वयं टूटेपन की आवश्यकता है, जो ठीक उसी समय से परमेश्वर के नम्र मेमने हैं जो इस दुनिया के पापों को उठा कर लेकर चले गए थे| प्रत्येक व्यक्ति जो उनके निकट आता है, न्यायोचित, स्वच्छ और पापों से मुक्त हो जायेगा, परन्तु केवल तब तक जब तक उद्धार के लिए समय है|

जब एक राज्य के परिपक्व लोग एक स्त्री जिसे उन्होंने व्यभिचार करते हुए पकड़ा था, यीशु के पास लाये थे, उन्होंने उसके पाप को महत्व नहीं दिया था, परंतु उन लोगों को स्वयं उनके बारे में सोचने की अ

नुमति देने के बाद, उन्होंने कानून के अनुसार उस स्त्री को पत्थारवाह

करने का आदेश दिया था| लेकिन यीशु ने एक छोटी सी शर्त रखी: जिस मनुष्य ने कभी पाप न किया हो, वह पहला पत्थर फेंके| तब सभी अपने अन्तःकरण में भीतर तक भेदे गए व दोषसिद्ध पाए गए| उन लोगों में महायाजक, परिपक्व सम्मानीय व्यक्ति व स्वय मसीह के उपदेशक थे| सभी शांतिपूर्वक एक के बाद एक चले गए| अन्त में यीशु और व्यभिचारिणी ही रह गए थे| अब उन्होंने उस स्त्री को पहला पत्थर मारना चाहिए था क्योंकि वह ही एक मात्र निष्पाप व्यक्ति बचे थे| परंतु उन्होंने उसे पत्थर नहीं मारा था| उन्होंने उससे कहा कि घर जाये और अब और अधिक पाप न करे| क्या यीशु ने उसे पत्थर न मारकर कानून तोडा था? नहीं| उलटे, उन्होंने उसके गुनाह को अपने ऊपर ले लिया और उसके स्थान पर स्वयं मर गए थे| तो उनके पास उसे उसके पाप से क्षमा करने का अधिकार था| सिर्फ यीशु की सुली पर मृत्यु व्यभीचारिणी को कटु न्याय से मुक्त कर पाई | जो भी व्यक्ति विचार, शब्द या कार्य में व्यभिचार करता है केवल यीशु में और सूली पर उनकी मृत्यु में उद्धार पायेगा|

यीशु ने तलाक को निशेध किया था और विवाहित जोड़े की अनंत एकता की पुष्टि की थी| जो कोई भी व्यक्ति विवाह पर मनन करता है को इस कदम के बारे में बहुत अधिक प्रार्थना करने की आवश्यकता है| एक व्यक्ति ने पूछना चाहिए “क्या यही वह लडकी है जिसे परमेश्वर ने मेरे लिए नियुक्त किया है या मै अपने स्वार्थी उद्देश्यों से इससे विवाह कर रहा हूँ? क्या हम आयु, प्रकृति, गुणों, शिक्षा और परिवार की शर्तों पर सहजीवी हैं? क्या दूसरा व्यक्ति त्रयी परमेश्वर में स्थिर खड़ा है या उसका परमेश्वर के साथ केवल सतही संबंध है? जितना हो निर्णय लेने से पहले जितना भी समय लगे , उतना समय लेकर ऐसे कुछ प्रश्न उठाये व प्रार्थनापूर्वक सोच विचार कर के निर्णय लें| जब दोनों पात्र एक साथ रहने के लिये सहमत न हो, तो ऐसी स्थिति में विवाह के समझौते में बंधने की अपेक्षा मंगनी तोडना अच्छा है|

किसी भी मूल्य पर विवाह से पहले यौन संबंध से दूर रहना चाहिए| यदि तुम अपनी मंगेतर से प्रेम करते हो तुम उसका आदर करोगे और उसके अन्तःकरण को मैला या बदनाम करना नहीं चाहोगे| कोई भी इस बारे में निश्चित नहीं है कि विवाह होने तक वह जीवित ही रहेगा| तो जवानों तुम्हे यह सीखना चाहिए कि विवाहित जीवन की तैयारी करते समय कैसे आत्म संयम का अभ्यास करें| यदि तुम्हारी पत्नी बहुत बीमार हो जाये तब तुम सहवास नहीं कर पाओगे तब क्या? प्रेम, सिर्फ आनंद ही नहीं है, लेकिन इसमें आत्म त्याग व आत्म बलिदान की आवश्यकता है| यदि कोई कहता है कि वह विवाह तक प्रतीक्षा नहीं कर सकता, उसके लिए अच्छा है कि वह विवाह ना करे क्योंकि वह बाद में विश्वसनीय नहीं रहेगा| दूरदर्शन और कुछ धर्म यौन लिप्तता को प्रोत्साहन देते हैं इसके एक विपरीत यीशु मसीह हमें आत्म संयम रखने के लिए कहते हैं|

यौन इच्छा अपने आप में अस्वच्छ नहीं है; यह परमेश्वर का एक उपहार है जिसके लिए हमें धन्यवाद करना चाहिए| यद्यपि, मनुष्य को अपनी इच्छा पर नियंत्रण और किसी और को भी आकर्षित नहीं करने की आवश्यकता है| एक परिपक्व व्यक्ति जो एक तरुण का दुरूपयोग करता है के संबध में, यीशु ने कहा था, “किन्तु जो मुझमे विश्वास करने वाले मेरे किसी ऐसे नम्र अनुयायी के रास्ते की बाधा बनता है, अच्छा हो कि उसके गले में एक चक्की का पाट लटका कर उसे समुद्र की गहराई में डुबो दिया जाये|” (मत्ती १८:६) तीव्र न्याय ऐसे एक इन्सान की प्रतीक्षा करता है| जो कोई भी बच्चों का दुरूपयोग करता है परमेश्वर के राज्य का उत्तराधिकारी नहीं रहेगा जब तक कि वह पूर्णतः अपने पाप को तोड़ न दे और गंभीरता पूर्वक प्रायश्चित न करे (१ कुरिन्थियों ६: ९-११)| सच्चा प्रेम किसी के साथ बुरा नहीं करता है|

लड़कियों को भी उनके जीवन साथी के लिए अपने आपको तैयार करने की आवश्यकता है जैसा कि वे यीशु का अनुसरण करती हैं| यह इस शर्मनाक चलचित्रो, अश्लील पत्रिकाओं और बर्बर दूरदर्शन कार्यक्रमों जिनका आरम्भ स्वर्ग में नहीं, नरक में होता है, के युग में करना आसान नहीं है| एक अच्छा ईसाई परिवार या मसीह केन्द्रित जवान समूह जीवनी शक्ति, आत्मा और शरीर के धीरे धीरे विकास की ओर सहायता करते हैं| एक लड़की ने अपने आपको यीशु, को देदिया, बहुत अच्छा हुआ| वह सभी प्रलोभनों से सुरक्षित विकसित होगी और चलेगी| एक लड़की को एक पति की संपति या ऊंची उपाधियाँ ढूंढने की आवश्यकता नहीं है, परंतु वह व्यक्ति एक नये ह्रदय के साथ जीता है व अपने कार्य को कर्मठतापुर्वक एवं विश्वासपूर्वक करता है, यह देखने व जानने की आवश्यकता है| आत्मा के फल, मानवीय आकर्षणों से अधिक महत्वपूर्ण है| प्रभु ने कहा था, “दुष्ट के पास शांति नहीं रहेगी” विवाहित जीवन के क्षेत्र में जिसे भरा जा सकता है|

लेकिन हमें अपने आपको छलना नहीं चाहिए: स्वर्ग में भी सांप पाया गया था | मनुष्य के जीवन में यीशु के सामने झुकने और उनके साथ रहने के अलावा कोई सुरक्षा या शांति नहीं है | वह एक अकेले ऐसे हैं जो हमें हमारे प्रलोभनों पर विजय पाने के लिए सहायता करते हैं |क्योकि हम में से कोई भी पापों से मुक्त जीवन नहीं जीता,हमें यीशु के सामने अपने पापों और गुनाहों को स्वीकार करना चाहिए | यदि तुम पाप स्वीकार करने में देर करते हो, पाप तुम पर राज करेंगे | परमेश्वर की ओर आ जाओ वह तुम्हे तुरंत छुड़ा लेंगे | प्रलोभनों के प्रहार के समय हर बार शीघ्रतापूर्वक उनके पास चले जाओ | एक विवाह यीशु के नाम में, यदि संभव हो तो गिरजाघर समारोह में, एक आशीषित जीवन की प्रत्याशा करते हुए सम्पन्न होना चाहिए | धन, कपड़े, स्वास्थ्य और सांसारिक मान्यता विवाहित जीवन का केंद्र नहीं, परन्तु विवाहित दम्पति के लिए परमेश्वर और उनके वचन अनुग्रह पर अनुग्रह की जमानत है | यीशु कहते हैं, “इसलिए पहिले तुम उसके राज्य और धर्म की खोज करो तो ये सब वस्तुएं भी तुम्हें मिल जाएंगी |” (मत्ती ६:३३)| यहाँ तक कि नपुसंकता या बांझपन के मामले वाले विवाह भी सफल हो सकते हैं | पति-पत्नी, एक विशेष आशीष व दैवीय ज्ञान, यीशु की सेवकाई कई प्रकार से प्राप्त कर सकते हैं | वे अनाथ बच्चों को गोद ले सकते हैं या परमेश्वर के लिए परोपकारी कार्य कर सकते हैं | यदि विवाह की योजना पिता परमेश्वर, यीशु और आत्मा के बिना होती है, दाम्पत्य विधर्मता और तलाक की प्रत्याशा और पूर्वयोजना होती है क्योकि अविश्वासी शायद ही स्वंय को और उसकी पूरी स्वंय केन्द्रित जीवनशैली को नकारना सीख पाए | जो कोई केवल एक छोटे से समय के लिए विवाह (खुटा) करता है या बिना एक निश्चित शर्त पर साथ रहते हैं या परीक्षण आधार पर एक साथ रहते हैं, एक आदमी या एक औरत के जीव-वैज्ञानिक रहस्यों को अच्छी तरह समझ नहीं पाते और उन्हें परमेश्वर के भय की कमी रहती है | विश्वास के आज्ञापालन के बिना स्वतंत्रता, अराजकता की ओरएक खुला दरवाजा है | प्रत्येक सभ्यता का आधार ईमानदारी है, तो अपने परमेश्वर, अपने प्रभु, सृष्टिकर्ता को मत उकसाओ | पवित्र आत्मा अस्वच्छता , वेश्यावृति, अश्लील कपड़े, गंदे चुटकुले , अत्यधिक खाना, शराब पीना या नशीली दवा लेने की अनुमति नहीं देता है | यह अवनति के चिन्ह हैं जो लाखों हृदयों को मैला,दिमागो में विष और शरीरों का विनाश करते हैं | हम इस दुनिया में या तो शैतान की सत्ता के तले जो इस दुनिया का राजकुमार है, रहते हैं या हम मसीह में रहते हैं जो एक इकलौते हमारे रक्षक हैं और हमारी कमजोरी में शक्ति प्रदान करते हैं | हमारी दुनिया अत्यधिक भौतिकवादी बन गई है और यहाँ लोग यीशु मसीह के विश्वासियों की मान्यता अनुसार जीवन जीने के लिए सहमत नहीं हैं, वह विश्वासी जिन्होंने मसीह की शुध्दता एवं उनकी पवित्रता को वसीयत में पाया है |


०९.६ -- एक मुस्लिम दृष्टिकोण से विवाह

इस्लाम विवाह शरिया में विशेष कानून प्रदान करता है और दावा करता है कि यूरोप और अमेरिका केवल शरिया को स्वीकार करके उनकी नैतिकता की गिरावट से ऊपर उठ सकते हैं |

मुहम्मद ने अपने अनुयायियों को चार पत्नियों तक अनुमति दी है | यहाँ तक कि वह मुटाविवाह की भी अनुमति देते हैं जो कुछ निश्चित की गई धनराशी के लिए एक छोटे से समय की अवधि तक, आपसी सहमति द्वारा किया जाता है ( सूरा – अल – निसा ४: ४, २४ )| उनके अनुयायी साहसी योद्धा व अनुभवी व्यापारी थे | वे प्राय: एक लम्बे समय के लिए परिवार से दूर रहते थे और वे अपने यौन संबंधो के आनंद की आवश्यकता को पूरा करना चाहते थे | इस्लाम में पुरुषों के लिए संयम या आत्मत्याग जैसी कोई चीज नहीं है, परन्तु यह केवल महिलाओ के लिए है | इस्लाम के शोधकर्ताओं ने कानूनी रूप से तेरह पत्नियों से विवाह किया था, इसमें उनकी यहूदी, ईसाई और विधर्मी उपपत्निया शामिल नहीं हैं |

अधिकांश इस्लामिक देशों में एक पुरुष बिना किसी कारण के अपनी पत्नी को तलाक देने का अधिकारी है | यदि पुरुष अपनी पत्नी को तलाक देने से दुखी है तो वह बिना नई मैहर दिए उससे दो महीनों के बीच वापस विवाह कर सकता है | यहाँ तक कि दूसरा तलाक और दूसरा पुनर्विवाह भी क़ानूनी है| लेकिन यदि एक मुस्लिम अपनी पत्नी को तीसरी बार तलाक देता है वह उससे फिर से विवाह तब तक नहीं कर सकता जब तक कि वह किसी दुसरे पुरुष से आधिकारिक रूप से विवाह नहीं करती है| यदि यह अंतिम पुरुष भी उस स्त्री को तलाक देता है, तब वह वापस से अपने पहले पति से विवाह कर सकती है| इस प्रकार से वह स्त्री क्या सोचती होगी? वह फर्नीचर के टुकड़े समान मानी जाती है न की एक जीवित आत्मा के साथ एक जीवन साथी के रूप में जो अपने पति के साथ सम्मान, अधिकारों या एकता में जिए और जीवन की समस्याओं पर एकसाथ विजय पाए|

एक मुस्लिम अपने परिवार का मुखिया के समान है जिसे चार पत्नियाँ रखने का अधिकार है| लेकिन इसके साथ एक शर्त है कि वह उन चारों से समानरूप से प्रेम करे| यदि अपनी एक पत्नी को एक उपहार देता है तो उसे अपने सभी पत्नियों के लिए भी ऐसा ही करना पडेगा| यदि एक पत्नी के बच्चे के लिए नये कपडे लाये गए है तो सभी पत्नियों के सभी बच्चों के लिए उसी मूल्य के कपडे खरीदने पड़ेंगे| आर्थिक समस्याओं के कारण अधिकांश मुस्लिम एक पत्नी से अधिक विवाह नहीं करते हैं| अतः तुर्किस्तान और तुनिशुया के आलावा सभी इस्लामिक देशों में विवाह आज क़ानूनी रूप से होता है| एक अधिक उम्रवाली पत्नी को प्रायः घर से बाहर निकाल दिया जाता है और उसके स्थान पर जवान, सुन्दर पत्नी को लाया जाता है|यद्यपि जब एक पति, दो, तीन या चार पत्नियाँ रखता है ऐसे परिवार ईर्ष्या और जलन से बंधे रहते हैं| महिलाओं के साथ अपने अनुभवों के परिणाम स्वरुप मुहम्मद ने महिलाओं को घरेलु बुराई के एक सोते के समान वर्णित किया था और दावा किया था कि उनको बहुत अधिक बुद्धि और धर्म को आत्मसात करने का थोडा सा ज्ञान नहीं है (मुसद इब्न हंबल ११, ३७३)| वह कभी कभी महिला की तुलना एक गधे से जो परिवार का बोझ उठाने में असमर्थ है, से भी करते थे, और उन्होंने कहा था जो राज्य एक महिला द्वारा चलाया जाये उसकी स्थिति अत्यधिक खराब होनी ही चाहिए|

कुरान और हदीथ सिखाते हैं कि एक आदमी के पास अपनी पत्नी को अनुशासन में रखने का अधिकार है| वह पहले उसे सतर्क करे (यदि उसे पत्नी के विद्रोह का भय है), तब वह उसके सोना न चाहे और अंत में वह उसे अपने आप को समर्पण करने की सीमा तक उसकी पिटाई करे|

कचहरी में एक महिला की गवाही उसके पति की गवाही से आधे मूल्य की मानी जाती है| तभी तो एक पुरुष की गवाही दो महिलाओं की गवाही के बराबर है| एक महिला को अपने पति की वसीयत का केवल आठवां भाग विरासत में प्राप्त होता है यदि उस पति के पुत्र हैं| एक पुत्र, यदि अपनी बाल्यवस्था में है तो भी एक चौथाई हिस्सा प्राप्त करता है| उसका महत्व एक पुत्र के रूप में पहले से ही उसकी माँ के महत्व से दुगुना है| जब एक पुरुष की वसीयत का बंटवारा होता है, स्वाभाविक रूप से उसके सगे संबंधियों का स्थान पत्नी से पहले होता है (सूरा अल-निसा ४:७-११)|

बच्चे अकेले पति के होते हैं| एक तलाकशुदा पत्नी बच्चों को परिपक्वता की उम्र तक बड़ा करने का विशेषाधिकार प्राप्त करती है| सामान्यतया पत्नी पति के साथ नहीं रहती है परंतु पूरे परिवार के साथ रहती है जहाँ उसकी सास के आदेश के अनुसार ही सबकुछ होता है| इस्लामिक विवाह का मुख्य सिद्धांत पति और पत्नी की एकता या जीवन की समस्याओं से जूझने के लिए उनका आपसी सहयोग नहीं है, परंतु विवाह उनकी जनजाति को निरंतर बनाये रखने की जमानत है| पत्नी और कुछ नहीं परंतु पति की एक ऊंचे स्तर की नौकर है| कबीले के लिए बहुत से पुत्रों को जन्म देना ही उसका कार्यकलाप है | यदि वह बहुत से पुत्रों को जन्म देती है उसका प्रभाव बढ़ता है | लेकिन यदि वह पुत्रियों को जन्म देती है तो कहा जाता है, “ओह नहीं, क्या शर्म की बात है!”|

यदि एक विवाहित महिला या अविवाहित जवान महिला व्यभिचार करते हुए पकड़ी जाती है, मुहम्मद की आज्ञा है कि उसे एक थप्पड़ के साथ एक कोड़ा १०० बार लगाया जाये या पत्थरवाह करके मार डाला जाये (सूरा अल-नूर २४:३)| एक बार मुहम्मद के पास एक स्त्री जो एक अजनबी द्वारा गर्भवती थी लाई गई| उन्होंने उसे उस समय वापस भेज दिया और बच्चे को जन्म देने के तुरंत बाद बुलाया| तब उन्होंने आदेश दिया कि बच्चे को उससे ले लिया जाए और उसे तुरंत घर से बाहर निकाल कर पत्थरवाह करके मार दिया जाए| यीशु और मुहम्मद के बीच का अंतर कितना बड़ा है, यीशु जिन्होंने अपने बलिदानी प्रेम से व्यभिचारियों के पापों को स्वय उठा लिया और उनके स्थान पर स्वयं अपना प्राण दे दिया| इस्लाम, परमेश्वर के न्याय में एक मध्यस्थी को स्वीकार नहीं करता है| इसीलिए एक मुस्लिम किसी को उसके पापों के लिए क्षमा नहीं करता परंतु निर्दयतापूर्वक प्रतिशोध लेना ही उसका मुख्य ध्येय बन गया है|

इस्लाम में खुला व्यभिचार खतरनाक है, यह प्रायः नहीं होता है| अभी भी इस्लामिक कानून पुरुषों को निश्चित रूप में कानूनी व्यभिचार की अनुमति देता है| एक मुस्लिम पुरुष हमेशा अपनी पत्नियों को निकाल सकता है और किसी तरुण लड़की से विवाह कर सकता है| कुछ इस्लामिक देशों ने अधिक पत्नियों से विवाह को निषेध किया है, इतना होते हुए भी इस्लाम की आत्मा पुरुषो और स्त्रियों में अब तक प्रचलन में है|

इस्लामिक देशों में और यहाँ तक कि स्वर्ग में भी स्त्रियों का आदर बहुत कम है| मुहम्मद ने कहा था, “स्वर्ग के निवासियों में स्त्रियाँ सबसे कम है|” इसके आतिरिक्त पुरुष स्वर्ग में दर्जनों कुँवारियों के साथ, जो कि अंधेरो में अपने पतियों के साथ सोने के बावजूद कुँवारी बनी रहती हैं बहुत से आनंद लेने की प्रतीक्षा में झूठ कहते रहते हैं| इसके साथ ही प्रसन्नचित्त लड़के स्वर्ग में मुस्लिम लोगों की सेवा में उपस्थित रहते है| स्त्रियों के भविष्य के बारे में मुहम्मद ने कहा था, “जब मुझे नरक दिखाया गया, मैंने देखा जलते हुए नरक के निवासियों में ९० प्रतिशत स्त्रियाँ है|”

यीशु मसीह का स्वर्ग इसके एकदम विपरीत है| स्वर्ग में उनके अनुयायी, परमेश्वर के देवदूतों के समान महिमामयी है जिनके विवाह नहीं होते है| परमेश्वर का राज्य खाना, पीना या विवाह नहीं परंतु पवित्र आत्मा की शक्ति में आद्यात्मिक प्रेम, आनंद और शांति है| इस जगत में वास्तविक स्वर्ग नहीं है| यीशु के रहस्य प्रकटीकरण की तुलना में, क्या कोईभी कुरान को दैवीय प्रकटीकरण के एक सोते के रूप में मान सकता है? यह पुरुषों की आदतों एवं प्रभुत्व द्वारा प्रोत्साहित है और पुराने एवं नए नियम के स्तरों से अत्यधिक नीचे है|


०९.७ -- प्रयश्चित के लिए बुलावा

ईसाइयों ने मुस्लिम लोगों को निम्न स्तर का नहीं समझना चाहिए| आज बहुत से पश्चिमी देशों में बाइबिल से एकदम असंबंधित स्वतंत्रता है, अमेरिका और यूरोप में तलाक एक उल्लेखनीय दर पर होते हैं| यह बहुत से बच्चों के आश्रित जीवन को नष्ट कर चुके हैं, जो अपने टूटे हुए घरों से दूर भाग गए| जिस प्रकार से पाठशालाओं में यौन शिक्षा दी जा रही है उससे हम शर्मिंदगी का अनुभव करते हैं| साप्ताहिक समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, वीडियो और दूरदर्शन पर कितनी घिनौनी तस्वीरें दिखाई देती हैं| फिर भी केवल कुछ थोड़े से अभिभावक इसका विरोध करते हैं|

परमेश्वर के भय की कमी का परिणाम लंपटपना है| यूरोप में फोटोग्राफरों ने हर प्रकार की संभावित अशलीलता के लिए मार्ग प्रशस्त कर लिया है| परमेश्वर की संगत में न रहने के कारण यौन अव्यवस्थाएं निर्मित हुई हैं| जन्म नियन्त्रण की गोलियों ने लोगो को असीमित कामुकता में लिप्त रहने की अनुमति दी है| यद्यपि कंडोम के प्रयोग के बावजूद AIDS को समाप्त नहीं कर सके हैं| वह व्यक्ति जो अपनी पत्नी के प्रति अविश्वसनीय है, समलैंगिकामियों, समलैंगिकामी स्त्रियों, वैश्याओं और जो नशिली दवाओं का सेवन करते हैं, उन सब के लिए यह एक अत्यांत गंभीर दण्ड है| रोमियों १:२४ में पौलुस कहते है, “इसीलिए परमेश्वर ने उन्हें मन की बुरी इच्छाओं के हाथों सौप दिया| वे दुराचार में पड़ कर एक दुसरे के शरीरों का अनादर करने लगे|” परमेश्वर का न्याय मुस्लिम, यहूदी या नाम के ईसाई, किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं करता है| “तू व्यभिचार न करना” आज्ञा को ध्यान से देखें, इसका अर्थ है कि लाखों लोग यौन पापों द्वारा अपने आप को खतरे में डाल रहे हैं| इस वचन का अर्थ, “पाप की मजदूरी मृत्यु है” आज भी स्पष्ट रूप से दिखाई देता है|

कई सीदे साधे लोग बदकिस्मती से रक्ताधान द्वारा AIDS की चपेट में आ जाते है| इसीलिए यह न्यायसंगत नही होगा कि ऐसे व्यक्ति के बारे में जिसे यह बीमारी है, गलत धरणा बनाई जाए| केवल परमेश्वर हम सबके भूतकाल को जानते हैं| हम उस व्यक्ति से जो व्यभिचार में पकड़ा जाता है, बहुत अच्छे नहीं हैं| यीशु जानते हैं कि हम ने अपने हृदयों में क्या धारणा बनाई हुई है जैसा कि उन्होंने कहा था, “क्योंकि बुरे विचार, हत्या, व्यभिचार, दुराचार, चोरी, झूठ और निंदा जैसी सभी बुराइयाँ मन से ही आती हैं|” (मत्ती १५:१९) हमें AIDS से बचने के लिए सुरक्षित पद्धतियों को जानना आवश्यक नहीं है, लेकिन प्रत्येक को एक शुद्ध ह्रदय, एक स्वच्छ आत्मा और नये विचारों की आवश्यकता है| दाऊद, जब कामवासना के सामने समर्पित हुए थे, और जिन्होंने व्यभिचार व हत्या की थी, हमें प्रार्थना करना सिखाते हैं “परमेश्वर, तू मेरा मन पवित्र कर दे| मेरी आत्मा को फिर सुदृढ़ कर दे| अपनी पवित्र आत्मा को मुझसे मत दूर हटा, और मुझसे मत छीन|”(भजन संहिता ५१: १०,११)

इन शब्दों के साथ गंभीरतापूर्वक प्रार्थना और पापों की स्वीकारोक्ति, यीशु के दैवीय उत्तर को सुनिशिचत करती है “और देखो कई लोग एक झोले के मारे हुए को खाट पर रखकर उसके पास लाए; यीशु ने उन का विश्वास देखकर, उस झोले के मारे हुए से कहा; हे पुत्र,ढाढस बांध; तेरे पाप क्षमा हुए|” ( मत्ती ९: २ )| ( लूक ७: ४८ भी देखे )| पवित्रता के परमेश्वर हमें अपनी पवित्र आत्मा की शक्ति प्रदान करते हैं जो हमें हमारे पापों के क्षमादान के साथ, एक स्वच्छ जीवन की ओर अग्रसर करता है| यीशु कभी भी हमें हमारे प्रलोभनों में अकेला नहीं छोड़ेगे, परन्तु वह हमें अपने नाम में मजबूत बनाने के लिए तैयार हैं जिससे हम प्रलोभनों पर विजय पायें|

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