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रोमियो – प्रभु हमारी धार्मिकता है|
पवित्र शास्त्र में लिखित रोमियों के नाम पौलुस प्रेरित की पत्री पर आधारित पाठ्यक्रम
भाग 3 का अनुपूरक - रोम में कलीसिया के नेताओं को पौलुस के चरित्र पर विशेष राय (रोमियो 15:14 – 16:27)

1. यह पत्री लिखने की पौलुस की योग्यता (रोमियो 15:14-16)


रोमियो 15:14-16
14 हे मेरे भाइयो; मैं आप भी तुम्हारे विषय में निश्‍चय जानता हूं, कि तुम भी आप ही भलाई से भरे और ईश्वरीय ज्ञान से भरपूर हो और एक दूसरे को चिता सकते हो। 15 तौभी मैं ने कहीं कहीं याद दिलाने के लिये तुम्हें जो बहुत हियाव करके लिखा, यह उस अनुग्रह के कारण हुआ, जो परमेश्वर ने मुझे दिया है। 16 कि मैं अन्याजातियोंके लिये मसीह यीशु का सेवक होकर परमेश्वर के सुसमाचार की सेवा याजक की नाई करूं; जिस से अन्यजातियोंका मानों चढ़ाया जाना, पवित्र आत्मा से पवित्र बनकर ग्रहण किया जाए।

आध्यात्मिक सिद्धांतों के शोध को पूर्ण करते हुए साथ ही अपने व्यवहारिक सुझावों को जोड़ते हुए, पौलुस ने अपनी योजना और योग्यता इस पत्री को लिखते हुए समाप्त किया था| आपने यह इसलिए किया था कि पाठक किसी आलोचना या संदेह के शिकार न हो पाये|

पौलुस ने रोम के ईसाईयों को इस बात की पुष्टि दी थी कि वे लोग एक सैद्धांतिक आध्यात्मिक दर्शन शास्त्र का अनुसरण नहीं कर रहे थे परन्तु यह कि सुसमाचार के फल उनमे व्यवहारिक रूप में दिखना चाहिए| आप उनको परमेश्वर के परिवार की आत्मा में स्वयं अपने भाईयों के रूप में बुलाते है जो सच्चाई और आत्मा के अनुसार परमेश्वर के बच्चे बन गये थे| उनको यह विशेषाधिकार थे क्योंकि वे अच्छाई से भर गये थे, जोकि उनकी नहीं थी, परन्तु परमेश्वर द्वारा उन को दी गई थी वे ना केवल परमेश्वर और उनसे उनके सबंधों के बारे में कहते थे परन्तु उन्हें प्रेम, विनम्रता और आदर के साथ इस वादे में जीवन जीना था ताकि वह लोग जो कलीसिया से, बाहर के हैं, उनकी अच्छाई को देखकर अचंभित हो जाये|

उपदेशक पौलुस ने प्रमाणित किया था ऐसे आध्यत्मिक विशेषाधिकार और दैवीय चरित्र पिता परमेश्वर के बारे में ज्ञान, पिता के पुत्र में विश्वास रखने के द्वारा आता है| आपने कुछ अतिरंजना के साथ कहा था कि वे पूरी तरह ज्ञान से भर गये थे| वे जानते थे कि पवित्र परमेश्वर, पिता हैं, यह कि यीशु मसीह उनके प्रिय पुत्र हैं और पवित्र आत्मा की शक्ति का अनुभव वे कर चुके थे| इसलिए वे एक दूसरे, स्तर पर जीवन जीते थे जिस प्रकार से अन्य यहूदी और अन्यजाति के लोग सामान्य रूप से रहते थे|

यह उन्हें एक दूसरे का पुर्नगठन करने की जिम्मेदारी प्रदान करता है, घमंड और अहंकारीपन के साथ नहीं, परंतु मसीह की दीनता और सत्य की आत्मा के मार्गदर्शन के साथ| जो लोग भटक रहें है, उन्हें इस प्रेम का अनुभव होता है जब नम्रता और प्रेम पूर्वक इस का आदान प्रदान होता है| यद्यपि सही भाषण को, अभ्यास, ज्ञान और आदर एवँ मर्यादा के साथ निष्पादन की आवश्यकता होती है| उपदेशक पौलुस ने अपनी आध्यात्मिक परिपक्वता में ईसाई विश्वास और जीवन शैली के सिद्धांतों के स्थान पर इस पत्री को लिखा था और आपने अपनी इस विस्तृत पत्री को ‘एक भाग’ कहा था|

इस पत्री के प्रथम भाग में, आपने परमेश्वर की धार्मिकता को स्पष्ट किया था वह जो धार्मिकता में रहते है, यहाँ तक कि उन्होंने यीशु मसीह के लहू द्वारा अपराधियों को न्यायोचित ठहराया एव अपनी पवित्र आत्मा और अनंत प्रेम से भर दिया था|

भाग द्वितीय में आपने परमेश्वर की धार्मिकता की निरंतरता पर जोर दिया था, चुने हुए लोगों के हृदयों की कठोरता के बावजूद, और विश्वास के पिताओं से वादे के अनुसार, इस आज्ञा में कि पूरा जगत उनके अनुग्रह की पूर्णता में भागीदार बन पाये|

भाग तृतीय में उपदेशक ने परमेश्वर की धार्मिकता के व्यवहारिक बोध की, मसीह के अनुयायियों के जीवन में व्याख्या की थी, जो बिना किसी शिकायत के एक दूसरे को सहन करते हैं, यहाँ तक कि उनमें से कुछ; अन्य लोगों से एकदम अलग प्रकार का जीवन जीते थे|

पौलुस ने अपनी इस छोटी पत्री में कुछ सिद्धांतों के बारे में लिखा था “विश्वास का आधार”, “नियतिवाद का मत”|, “ईसाई व्यवहार के सिद्धांत”| आपने यह कलीसिया को स्मरण कराने के लिए लिखा था जोकि परमेश्वर की आत्मा द्वारा, परमेश्वर की विश्वव्यापी पूर्णता के साथ, विश्वासियों को उपहार स्वरुप प्रदान किया गया था| आपको ईसाई धर्म के इन मुलभुत सिद्धांतों पर जोर डालने का साहस था क्योंकि आपने अपने जीवन में परमेश्वर के क्षमादान का अनुभव किया, जबकि आपने स्वयं कलीसिया पर अत्याचार किये थे| इससे भी आगे एकमात्र पवित्र ने आपको मसीह के दास के रूप में बुलाया, और अस्वच्छ अन्यजातियों में सुसमाचार प्रचार बिना किसी शर्त के किया| यह सेवा हिंसा, तलवार या खून बहाने के साथ नहीं, ना ही उत्कृष्ट भाषण पटुता के साथ करना था, परंतु परमेश्वर के सिहांसन के सामने प्रार्थना, विश्वास, और धन्यवाद देते हुए करना था| पौलुस एक आध्यात्मिक याजक बन गये थे जिन्होंने उन के जमघट जो यहूदी नहीं थे की परमेश्वर से संधि कराई थी|

आपके कठोर शब्दों का उद्देश्य उन लोगों को जो, विश्वास की आज्ञाकारिता में धन्यवाद के रास्ते द्वारा अपने आपको मसीह को सौपने से अनभिज्ञ थे, को तैयार करना था, ताकि शायद वे मसीह के आद्यात्मिक शरीर में सदस्यों के समान जुड पाये| पवित्र आत्मा की शक्ति द्वारा आपकी सेवा का पालन हो पाया था, जिसने उपदेशक को मसीह की इच्छानुसार ईसाई याजक समान कार्य को पूरा करने की ओर अग्रसर किया था| परमेश्वर का आनंद उनके साथ था क्योंकि आप उनकी आत्मा की प्रेरणा के आज्ञाकारी थे|

प्रार्थना: ओ स्वर्गीय पिता, हम आपकी अतिरंजना करते हैं क्योंकि आपने सौल, एक अवज्ञाकारी धार्मिक प्रोफ़ेसर को, दमिश्क के पास मसीह के प्रकटीकरण द्वारा दब्बू और विनम्र बनाया| आपने उनको बचाया, और पवित्र आत्मा के साथ शक्ति शाली बनाया, भूमध्य सागर के जलकुंड के लोगों में मसीह के उद्धार का प्रचार करने के लिए बुलाया| हम विशेषरूप से रोम की कलीसिया के लिए इस प्रसिद्ध पत्री के लिए आपका धन्यवाद करते हैं क्योंकि यह विश्व की सभी कलीसियाओं को उनके विश्वास के सिद्धांतों का स्मरण कराती है|

प्रश्न:

93. पौलुस ने अपनी पत्री में क्या लिखा था जिसे वे केवल एक भाग मानते थे?

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