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Home -- Hindi -- Romans - 007 (Paul’s Desire to Visit Rome)
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रोमियो – प्रभु हमारी धार्मिकता है|
पवित्र शास्त्र में लिखित रोमियों के नाम पौलुस प्रेरित की पत्री पर आधारित पाठ्यक्रम
आरम्भ: अभिवादन, प्रभु का आभारप्रदर्शन और “परमेश्वर की धार्मिकता” का महत्व, इस पत्री का आदर्श है। (रोमियों 1:1-17)

ब) पौलुस की रोम जानेकी अत्यंत पुरानी अभिलाषा (रोमियो 1:8-15)


रोमियो 1:13-15
13 और हे भाइयों, मै नहीं चाहता, कि तुम इससे अनजान रहो, कि मैं ने बार बार तुम्हारे पास आना चाहा, कि जैसा मुझे और अन्य जातियों में फल मिला, वैसाही तुम में भी मिले, परन्तु अबतक रुका रहा| 14 मै यूनानियों और अन्य भाषियों का और बुद्धिमानों और निर्बुद्धियों का कर्जदार हूँ| 15 सो मैं तुम्हे भी जो रोम में रहते हो, सुसमाचार सुनानेको भरसक तैयार हूँ|

इस पत्री में, पौलुस रोम की कलीसिया के लिए अपने ह्रदय को खोलते हैं | आप कहते हैं कि कितनी ही बार आपने उनके पास आने की योजनाएँ बनायी परन्तु परमेश्वर ने आपकी योजनाओं में रूकावट डाली| बहुत जल्दी ही इस महान उपदेशक को यह समझ में आ गया कि परमेश्वर की योजना आपकी योजना से अलग है, परमेश्वर के तरीके आप के तरीकों से इतने ऊँचे है जितना कि स्वर्ग, पृथ्वी से ऊँचा है | मसीह की आत्मा ने आपको आपकी योजनाए संपादित करने से रोका था, जबकि आपको वे सारी योजनाए उपयोगी, अच्छी एवं पवित्र दिख रही थी| इससे भी आगे जब आपको यात्रा करने की सुविधाएँ आपके पक्ष में लग रही थी, परमेश्वर ने तब भी आपको रोक दियाथा|

ऐसा है तो भी पौलुस ने अपने ह्रदय में यह निश्चय कर लिया था कि आपको दुनिया में उपदेश देना ही चाहिए| आप चाहते थे कि आप आपके जीवन के द्वारा, रोम और अन्य राज्यों में, परमेश्वर के राज्य को स्थापित करें| आपने लोगों को व्यक्तिगत रूप से समझाने के बारे में नहीं सोचा था बल्कि इसकी जगह राज्यों को समझाना आपका उदेश्य था क्यों कि निश्चित ही आपको मसीह की आशीष प्राप्त थी जो आप में कार्यरत थी| आप ने अपने तेजस्वी परमेश्वर को देखा था और आप को पूर्ण विश्वास था कि पूरा संसार, राजाओं के राजा का निजी है और उनकी जीत निश्चित है|

राज्यों के इस उपदेशक ने स्वयं को सभी लोगों का ऋणी पाया इसलिए नहीं कि आपने उनसे पैसा लिया था, परन्तु क्यों कि परमेश्वर ने आपको अधिकार और शक्ति सौंप दी थी | आप इस एहसान तले थे कि, जो शक्ति और अधिकार आप को दिये गए थे वह आप अन्य मसीह में चुने गए लोगों को दें| सच में, परमेश्वर द्वारा पौलुस को दी गई भेटों से ही हम सब आज जी रहे है, जोकि अपनी पत्री द्वारा हम सब को इस शक्ति का साझीदार बनाते हैं| इस अर्थ के अनुसार, हम तुम सब के ऋणी है, जैसे कि तुम सब अपने आस पास के लोगों के ऋणी हो, क्योंकि जो आत्मा हम में कार्य करती है वह हमारी अपनी नहीं है, बल्कि वह कई ह्रदयों में निवास करने के लिए तैयार है|

पौलुस सुशिक्षित यूनानी वर्गों में काम करते थे और प्रभु ने पौलुस की कमजोरी के द्वारा अपनी सेवकाई स्थापित की थी| आपने भूमध्य सागर के भागों में कलीसियाओं को पाया, जो कि यूनानी टापुओं को धो चुके थे| आप इस पत्री को लिखते समय, जर्मनी, स्पेन और फ्रांस के गवांर लोगों के साथ काम करने के इच्छुक थे| आप हर एक व्यक्ति को इस सुसमाचार की घोषणा करने के इच्छुक थे कि परमेश्वर के एक पुत्र थे जिन्होंने हमें सूली पर मुक्त किया| राज्यों के यह उपदेशक अपनी तीव्र और उत्सुक भक्ति में इस प्रकार से थे जैसे कि एक अग्निबाण उड़ान भरने के लिए तैयार था| आपने यह पाया कि आप सुचना दे सके| असभ्यों के लिए अपने प्यार के कारण, आप रोमवासियों का ध्यान अपनी ओर खीचंना चाहते थे ताकि वे भी आपका साथ दे सके और राज्यों में धार्मिक उपदेशों में आपके साथ हिस्सा ले सके|इस प्रकार आप रोम के विश्वासियों को उपदेश देना चाहते थे ताकि शायद वे इसके बदले में उपदेशक बने; क्योंकि जो सुरक्षित किये गये है और जिन्हें उध्दार प्राप्त हुआ है, इस एहसान के बदले में यह उध्दार का संदेश दूसरों तक पहुँचा सके| पौलुस रोम को एक केन्द्र के रूप में देखते थे जहाँ से पूरे विश्व को उपदेश देने की शुरूआत करें|

यदापि परमेश्वर ने पौलुस की प्रार्थना का उत्तर अलग प्रकार से दिया था| उन्होंने अपने इस राजदूत को सीधा रोम को नहीं भेजा था, वस्तुतः उन्होंने आपको पहले यरूशलेम को वापस भेजा जहाँ उन्हें बन्दी बनाया गया और कैदखाने में भेजा गया| कई पीड़ादायक वर्षों के बाद पौलुस एक बंधक, कैदी और मसीह के दास राजधानी पहुंचे| तथापि उनमें परमेश्वर की शक्ति का अन्त नहीं हुआ था| ज़जीरों में जकड़ने के बाद भी आपने, रोमियों को लिखी अपनी पत्री द्वारा पुरे विश्व को उपदेश दिया था, जो कि आजतक भी लोगों और राज्यों को उपदेश देती है|

अब हम जोकि उन असभ्य लोगों के पोता पोती, नाती नातिन हैं जिन्हें पौलुस उपदेश देना चाहते थे, आनंदपूर्वक परमेश्वर का सुसमाचार फैलायें जैसे कि यह कार्य उस समय ही पौलुस को सौंपा गया था| शायद पौलुस के मन में यह बात नहीं आई होगी कि आपकी रोमियों के नाम लिखी गई यह पत्री पूर्णतः आपकी राज्यों को उपदेश देने की इच्छा को पूरा कर पायेगी| योहन्ना रचित सुसमाचार के अलावा कोई और ऐसी पुस्तक नहीं है जोकि दुनिया को इस पत्री के समान बदल पाई है, जोकि बहुत सारी प्रार्थनाओं और कराहती हुई आत्मा के साथ लिखी गई है|

प्रार्थना: ओ परमेश्वर, आप राजा हैं, और आप अपनी इच्छानुसार अपने सेवकों का मार्गदर्शन करते हैं| हमें क्षमा करना यदि हमने ऐसा कुछ भी चाहा था, जोकि आपकी इच्छा की अनुमति के साथ नहीं है| हमें पूर्णतः अपने मार्गदर्शन के वश में रखना, ताकि हम आपकी प्रेमभरी योजना से बाहर भटक ना जायें, बल्कि आपकी आत्मा के आदेशों का पालन करें और आपकी इच्छाओं को आनंद पूर्वक पूरा करें, यहाँ तक कि चाहे वे हमारी कल्पनाओं के विपरीत हों| ओ परमेश्वर, आपके रस्ते पवित्र हैं, और हम अपने आप को, आपके पूर्व विचारों के समर्पित करते हैं| आपका धन्यवाद करते हैं कि आपने अपनी दयालुता से, हमें गिरने से बचा लिया|

प्रश्न:

11. परमेश्वर ने कैसे, और कितनी बार पौलुस को अपनी योजनाएं नियोजित करनेसे रोका था?

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