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Home -- Hindi -- John - 112 (Christ's word to his mother; The consummation)
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यूहन्ना रचित सुसमाचार – ज्योती अंध्कार में चमकती है।
पवित्र शास्त्र में लिखे हुए यूहन्ना के सुसमाचार पर आधारित पाठ्यक्रम
चौथा भाग - ज्योति अन्धकार पर विजय पाती है (यूहन्ना 18:1 - 21:25)
अ - गिरिफ्तारी से गाड़े जाने तक की घटनायें (यूहन्ना 18:1 - 19:42)
4. क्रूस और यीशु की मृत्यु (यूहन्ना 19:16-42)

क) मसीह का अपनी माँ को सम्बोधित करना (यूहन्ना 19:25-27)


यूहन्ना 19:24 ब-27
“ 24 ब अत: सैनिकों ने ऐसा ही किया | 25 यीशु के क्रूस के पास उसकी माता, और उस की माता की बहिन, क्लोपास कि पत्नी मरयम, और मरयम मगदलीनी खडी़ थीं | 26 तब यीशु ने अपनी माता, और उस चेले को जिस से वह प्रेम रखता था, पास खड़े देखा तो अपनी माता से कहा, “हे नारी, देख, यह तेरा पुत्र है |” 27 तब उस ने चेले से कहा, “यह तेरी ,माता है |” और उसी समय से वह चेला उसे अपने घर ले गया |”

यूहन्ना ने यीशु का क्रूस पर से कहा हुआ पहला वचन अंकित नहीं किया जिस में आप ने सारी दुनिया को क्षमा किया था | न ही उन्हों ने यहूदियों के यीशु का लगातार ठठ्ठा करने का वर्णन किया और न ही आप की दाहिनी ओर क्रूस पर लटके हुए डाकू को यीशु की दी हुई क्षमा का उल्लेख किया है | जब यूहन्ना ने अपना सुसमाचार लिखा तब कलीसिया को इन घटनाओं की जानकारी थी |

जब याजक यीशु की अपने पिता से की हुई प्रार्थना और उस से क्षमा के लिये की हुई अपील को सुने बगैर उस स्थान से चले गये जहाँ आप को क्रूस पर चढ़ाया गया था, तब भीड़ भी चली गई ताकि जल्दी से यरूशलेम पहुंच कर फसह के मेमने का बलिदान करते | फसह की तैयारी के लिये ज़्यादा समय न रहा था | धार्मिक शासक भी चले गये ताकि राष्ट्र की बड़ी फसह की रसम पूरी कर सकें | शहर की दीवारों पर से बिगुल बजाये गये और मन्दिर में मेमने बलिदान किये गये और इस तरह बहुत खून बहाया गया | मन्दिर में प्रशंसा की आवाज गूंज रही थी | यरूशलेम के बाहर परमेश्वर का पवित्र मेमना अभागे क्रूस पर लटक रहा था जिसे त्याग दिया गया था और घ्रणा की गई थी | परमेश्वर को न मानने वाले रोमी सिपाही, क्रूस पर लटके हुये तीन व्यक्तियों पर पहरा दे रहे थे |

उसी समय कुछ महिलायें चुपके से क्रूस के पास आईं और खामोश खड़ी रहीं | इस से पहले की घटनाओं ने उन के दिमागों को विफल कर दिया | सर्व शक्तिमान प्रभु उन के सिरों से ऊँचे क्रूस पर बहुत ही ज्यादा पीड़ा में लटक रहे थे | उन के मुँह से सांत्वना देने वाले शब्द न निकल सके और उन के दिलों से मुश्किल से कोई प्रार्थना निकल सकी | कदाचित कुछ महिलायें भजन संहिता में से कुछ वचन धीमी आवाज़ में बोल रही थीं |

यीशु ने अपनी माँ की दिल हिला देने वाली चींख पुकार सुनी और अपने प्रिय चेले यूहन्ना के आँसुओं को समझ गये | आप ने स्वय: अपनी परिस्थिति की चिंता न की यधपि आप बेहोश होने को ही थे | अचानक उन्हों ने आप की आवाज सुनी : “हे नारी, देख वह तेरा पुत्र है |”

मसीह का प्रेम चोटी को पहुँचा था जो दुनिया का उद्धार करते हुये आप की पीड़ा के बीच में अपने प्रियों के कल्याण की चिंता में प्रगट हो रहा था | शमौन ने जो कुंवारी के विषय में भविष्यवाणी की थी की, “तेरा प्राण तलवार के वार से छिद जायेगा,” वह पूरी हो गई |

अपनी माँ को धन दौलत या घर से सुसज्जित कर न सकने के बावजूद आप ने उन्हें वह प्रेम प्रदान किया जो आप ने अपने चेलों में उंडेला था | यूहन्ना मसीह की माँ के साथ आये थे (मत्ती 27:56), यधपि उन्हों ने अपने सुसमाचार में न स्वय: अपना और न ही कुंवारी के नाम का उल्लेख किया ताकि आप की महिमा की घड़ी में जो सम्मान आप को मिलना है उस पर से ध्यान हट न जाये | जब आप ने यूहन्ना को संभोदित किया और अपनी माँ की ज़िम्मेदारी उन को सौंप दी, उसी समय इस चेले ने क्रूस के चमकीले घेरे में प्रवेश किया | उन्हों ने मरयम को गले से लगाया और उन्हें अपने घर ले गये |

दूसरी महिलाओं ने इस चिंता का प्रत्यक्ष दर्शन किया | प्रभु ने उन में से एक को सात दुष्ट आत्माओं से मुक्त किया था | वह मगदेला की मरयम थीं | उन्हें अपने प्राण में यीशु की विजयी शक्ति का अनुभव हुआ था | उन्हें अपने उद्धारकर्ता से प्रेम था और वह आप की अनुयायी थीं |


डी) पूरा होना (यूहन्ना 19:28-30)


यूहन्ना 19:28-29
“28 इस के बाद यीशु ने यह जान कर कि अब सब कुछ पूरा हो चुका, इस लिये कि पवित्र शास्त्र में जो कहा गया वह पूरा हो, कहा, ‘मैं प्यासा हूँ |’ 29 वहाँ सिरके से भरा हुआ बरतन रखा था, अत: उन्हों ने सिरके में भिगाए हुए स्पंज को जुफे पर रख कर उस के मुँह से लगाया |”

सुसमाचारक यूहन्ना को बहुत सारी बातें केवल कुछ ही शब्दों में प्रगट करने का यश प्राप्त हुआ था | वह हमें यह नहीं बताते कि धर्ती पर अन्धकार छा गया था न ही हम हमारे पापों पर परमेश्वर के क्रोध के विषय में मसीह के अस्विकार किये जाने की चींख सुन पाते हैं | परन्तु हमें इतना निश्चित बताया गया है कि अपने जीवन के अन्तिम तीन घंटों के संघर्ष में आप ने मृत्यु के आने को महसूस किया | यूहन्ना यह नहीं मानते कि मृत्यु ने यीशु को निगल लिया बल्कि यह कि आप ने अपनी इच्छा से अपने प्राण दे दिये | दुनिया के उद्धार का काम पूरा करने में आप के प्राण थक गये थे | यीशु ने देखा कि अब सब को परिपूर्ण उद्धार मिल सकता है और आप की मृत्यु लाखों पापियों को उन के अपराधों से मुक्त करेगी और उन्हें परमेश्वर की ओर आने का अधिकार प्रदान करेगी | आप ने अपनी मृत्यु की उपज और फल पहले से ही देख लिये |

इस अवसर पर आप के ओंठों से एक आह निकली, “मैं प्यासा हूँ |” वह व्यक्ति जिस ने सृष्टि का निर्माण किया और पानी पर चला जिसे ऑक्सीजन और हायड्रोजन से बनाया गया, अब प्यासा था | देहधारी प्रेम अब पिता के प्रेम के लिये तरस रहा था जिस ने अपना चेहरा अपने पुत्र से छिपा लिया था | यह नरक का दृश्य है; जहाँ मनुष्य का शरीर और प्राण प्यासे होते हैं परन्तु सन्तुष्ट नहीं हो पाते | इस से पहले मसीह ने एक अमीर व्यक्ति का वर्णन किया था जो नरक में धधकते हुए आग की ज्वाला में प्यास से तड़प रहा था, जिस ने अब्रहाम से विनती की कि वह लाज़र को भेजें ताकि वह अपनी उंगली ठंडे पानी में डुबो कर उस के सूजे हुए गले को ठंडक पहुंचाये | यीशु सत्य पुरुष थे जो सामान्य प्यास सहन कर रहे थे परन्तु आप ने अपनी प्यास को उस समय तक नहीं बताया जब तक कि उद्धार का काम पूरा न हुआ | तब पवित्र आत्मा ने आप को बताया कि आप की सेवा का एलान भजन संहिता 22:13-18 में एक हजार साल पहले किया गया था | सिरका पीने का वर्णन भी भजन संहिता 69:21 में किया गया था | हम यह नहीं जानते कि सिपाहियों ने आप को घ्रणा या विलाप के तौर पर शुद्ध सिरका पेश किया था या उस में पानी मिलाया था | हम जानते हैं कि वह शुद्ध पानी न था | मनुष्य यीशु का जो परमेश्वर के पुत्र हैं, इस समय कोई सहायक न था |

यूहन्ना 19:30
“30 जब यीशु ने वह सिरका लिया, तो कहा, ‘पूरा हुआ’; और सिर झुका कर प्राण त्याग दिए |”

जब यीशु ने क्रोध का सिरका पी लिया तब आप के मुँह से विजय का शब्द निकला, “पूरा हुआ !” इस विजयी नारे से एक दिन पहले, पुत्र ने अपने पिता से अपने आप को क्रूस पर हमारा उद्धार करने के कारण महामंडित करने की विनती की ताकि स्वय: पिता भी महामंडित हो | पुत्र ने विश्वास के साथ मान लिया कि इस प्रार्थना का उत्तर मिलेगा कि पुत्र ने वह काम पूरा किया जो पिता ने उसे सौंपा था (यूहन्ना 17:1, 4) |

क्रूस पर यीशु कितने पवित्र रहे ! घ्रणा का एक भी शब्द आप के ओंठों से न निकला, न ही दया के लिये आह या निराशा की पुकार बल्कि पिता के प्रेम को थामे हुए आप ने अपने शत्रुओं को क्षमा किया; ऐसे लगता था कि आप हमारे कारण शत्रु बने | यीशु जानते थे कि आप ने उद्धार का काम पूरा किया क्योंकि परमेश्वर ने हमारे उद्धार के मार्ग दर्शक को पीड़ा के द्वारे परिपूर्ण बना दिया | कोई व्यक्ति त्रिय प्रेम की गहराई और ऊंचाई को नाप नहीं सकता क्योंकि पुत्र ने अपने आप को अनन्त आत्मा के द्वारे बेदाग़ जीवित बलि के समान परमेश्वर को अर्पण किया |

मसीह की क्रूस पर की अन्तिम पुकार, “उद्धार का काम पूरा हुआ,” के बाद से अब उसे और परिपूर्ण करने की आव्यशक्ता न रही | हमारे योगदान, हमारे अच्छे काम, हमारी प्रार्थनायें, हमारा पवित्रिकरण, हमें धार्मिक नहीं ठहराते हैं या हमारे जीवन में अधिक पवित्रता नहीं लाते | परमेश्वर के पुत्र ने यह सब एक ही बार में हमेशा के लिये सब के लिये कर दिया | आप की मृत्यु से एक नये दौर की शुरुआत हुई और शान्ति निर्माण हुई क्योंकि बलि चढ़ाये हुए परमेश्वर के मेमने ने हमारा स्वर्गिय पिता से मेल मिलाप करा दिया | जो व्यक्ति इस पर विश्वास करता है वह धार्मिक ठहरता है | प्रेरितों के पत्र यीशु के इस वचन, “पूरा हुआ,” का व्याख्यात्मक निबंध है जो अन्तिम और दिव्य है |

अंतत: यीशु ने सम्मान और भव्यता के साथ अपना सिर झुकाया | आप ने अपनी आत्मा अपने पिता के हाथों मे सौंप दी जो आप से निरंतर प्रेम करता था | इस प्रेम ने आप को अनुग्रह के सिंहासन तक पहुँचा दिया जहाँ आप आज पिता के साथ एक हो कर उस की दाहिनी बाजू को बैठे हुए हैं |

प्रार्थना: ऐ पवित्र मेमने, जिस ने दुनिया का पाप उठाया, आप ही शक्ति, धन, बुद्धि, अधिकार, सम्मान, महिमा, आशीष और मेरा जीवन भी पाने के योग्य हैं | ऐ क्रूस पर चढ़ाये हुए प्रभु, मेरा सिर उठाइये ताकि मैं आप की ओर देख सकूँ और आप से अपने सभी अपराधों के लिये क्षमा माँग सकूँ और विश्वास कर सकूँ कि आप मुझे अपने अनुग्रह और खून के द्वारा पवित्र करेंगे |

प्रश्न:

116. यीशु के तीन शब्द कौन से थे ?

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