Home
Links
Bible Versions
Contact
About us
Impressum
Site Map


WoL AUDIO
WoL CHILDREN


Bible Treasures
Doctrines of Bible
Key Bible Verses


Afrikaans
አማርኛ
عربي
Azərbaycanca
Bahasa Indones.
Basa Jawa
Basa Sunda
Baoulé
বাংলা
Български
Cebuano
Dagbani
Dan
Dioula
Deutsch
Ελληνικά
English
Ewe
Español
فارسی
Français
Gjuha shqipe
հայերեն
한국어
Hausa/هَوُسَا
עברית
हिन्दी
Igbo
ქართული
Kirundi
Kiswahili
Кыргызча
Lingála
മലയാളം
Mëranaw
မြန်မာဘာသာ
नेपाली
日本語
O‘zbek
Peul
Polski
Português
Русский
Srpski/Српски
Soomaaliga
தமிழ்
తెలుగు
ไทย
Tiếng Việt
Türkçe
Twi
Українська
اردو
Uyghur/ئۇيغۇرچه
Wolof
ייִדיש
Yorùbá
中文


ગુજરાતી
Latina
Magyar
Norsk

Home -- Hindi -- John - 100 (Introduction to the intercessory prayer; Prayer for the Father's glory)
This page in: -- Albanian -- Arabic -- Armenian -- Bengali -- Burmese -- Cebuano -- Chinese -- Dioula? -- English -- Farsi? -- French -- Georgian -- Greek -- Hausa -- HINDI -- Igbo -- Indonesian -- Javanese -- Kiswahili -- Kyrgyz -- Malayalam -- Peul -- Portuguese -- Russian -- Serbian -- Somali -- Spanish -- Tamil -- Telugu -- Thai -- Turkish -- Twi -- Urdu -- Uyghur? -- Uzbek -- Vietnamese -- Yiddish -- Yoruba

Previous Lesson -- Next Lesson

यूहन्ना रचित सुसमाचार – ज्योती अंध्कार में चमकती है।
पवित्र शास्त्र में लिखे हुए यूहन्ना के सुसमाचार पर आधारित पाठ्यक्रम
तीसरा भाग - प्रेरितों के दल में ज्योती चमकती है (यूहन्ना 11:55 - 17:26)
इ - यीशु की मध्यस्थयी प्रार्थना (यूहन्ना 17:1-26)

1. मध्यस्थी /सिफारशी प्रार्थना का परिचय


यीशु ने अपने सुसमाचार और आश्चर्यकर्मों के द्वारा मानव जाति की सेवा की; लंगड़ों को चंगा, भूकों को भोजन, अन्धों की आँखें खोलना और मृतकों को जिलाना इत्यादि | आप का प्रेम, घ्रणा और मृत्यु के बीच में परमेश्वर की महिमा का प्रगट होना था |

अपनी सेवा की शुरुआत में बड़ी भीड़ आप के पीछे हो लेती थी | जब यहूदियों की धार्मिक सभा ने (जिस के सदस्य कट्टर धर्मी और पाखंडी थे) देखा कि उन के धर्म और व्यवस्था की नीव स्थिर नहीं थी तब उन्हों ने यीशु और आप के अनुयायियों को मन्दिर में न आने और मृत्यु की धमकी दी | भीड़ का उत्साह कम हो गया और वे आप को छोड़ कर चले गये | उस के बाद मसीह और आप के निष्ठावान अनुयायियों पर अत्याचार किया गया परन्तु आप हर व्यक्ति से प्रेम करते रहे |

अंत में सभा के प्रचार के कारण आप के बारह चेलों में से एक उन के साथ हो लिया और उस ने अपने स्वामी को पकड़वाने की तैयारियां शुरू कीं जब कि ठीक उसी समय यीशु नियम के भोज के समय अपने चेलों को प्रेरित बनाने की तैयारी में लगे हुए थे | अपने बिदाई प्रवचन में आप ने घोषणा की कि आप और पिता एक हैं और यह भी बताया कि आने वाले अत्याचार के समय शान्ति प्रदान करने वाला आत्मा उन्हें दिव्य प्रेम में किस तरह कायम करेगा |

परन्तु चेले अपने प्रभु का इरादा समझ न पाये क्योंकि अब तक पवित्र आत्मा उन के अन्दर उंडेला न गया था | इस लिये महायाजक के रूप में की हुई इस प्रार्थना के द्वारा यीशु सीधे अपने पिता के पास पहुँचे और स्वय: अपने आप को और अपने अनुयायियों को उस के हाथों में सौंप दिया | आप ने उन लोगों का भी वर्णन किया जो उन प्रेरितों की गवाही के कारण आप पर विश्वास लाने वाले थे |

सतरावे अध्याय में लिखित मसीह की प्रार्थना हमें, परमेश्वर के पुत्र की पिता से किस रीति से वार्तालाप हुई उस की अनोखी जानकारी देती है और यह भी बताती है कि पवित्र त्रिय के तीनों व्यक्तियों में किस प्रकार का प्रेम होता है | प्रार्थना करने वाली आत्मा यहाँ विशिष्ट रूप से दिखाई देती है | जो व्यक्ति इस अध्याय को अत्यंत ध्यान दे कर पढ़ता है वह परमेश्वर के मन्दिर में प्रवेश करता है जहाँ आराधना और प्रार्थना हुआ करती है |


2. पिता की महिमा के लिये प्रार्थना (यूहन्ना 17:1-5)


यूहन्ना 17:1
“1 यीशु ने ये बातें कहीं और अपनी आँखें आकाश की ओर उठाकर कहा, ‘हे पिता, वह घड़ी आ पहुंची है; अपने पुत्र की महिमा कर कि पुत्र भी तेरी महिमा करे,”

यीशु ने अपने चेलों को बताया कि आप और पिता एक हैं | और यह भी कि आप पिता में हैं और पिता आप में | जिस व्यक्ति ने आप को देखा उस ने पिता को देखा | परन्तु चेले इस प्रभावशाली घोषणा को समझ न सके | जब उन्होंने एक दिव्य व्यक्ति को मनुष्य के रूप में देहधारी देखा तो उन के मन धुन्दला गये | यीशु ने अपने निर्बल और अनाड़ी चेलों को अपने पिता के अधीन किया ताकि उन का ज्ञानदान हो | और उन्हें दिव्य और पवित्र प्रेम की संगती में रखा जाये |

अपनी आँखें आस्मान की ओर उठा कर यीशु ने अपने चेलों को शायद आश्चर्य में डाला होगा | आप आस्मान में पिता से कैसे प्रार्थना करते थे और साथ ही साथ यह भी कहते थे कि आप पिता में और पिता आप में स्थित है ? इन समझ के बाहर संकेतों ने उन के दिमाग को विफल कर दिया | हम जानते हैं कि दोनों विचार उचित हैं : और पिता और पुत्र में संपूर्ण एकता है और पवित्र त्रिय का प्रत्यक व्यक्ति स्वाधीन है | परमेश्वर हमारे मनों से ज्यादा शक्तिवान है और पवित्र आत्मा हमें सिखाता है कि हम दोनों विचारों को उचित समझें | अगर यह जानकारी तुम्हें किसी कठिनाई में डालती है तो परमेश्वर से विनती करो कि वह तुम्हें प्रबुद्ध करे | क्योंकि कोई भी व्यक्ति पवित्र आत्मा की सहायता के बिना पिता और पुत्र को पूरी तरह से समझ ही नहीं सकता |

इस प्रार्थना में यीशु ने परमेश्वर को पिता कह कर संबोधित किया | क्योंकि परमेश्वर केवल पवित्र प्रभु और कठोर न्यायाधीश ही नहीं है परन्तु उसका दयालु प्रेम उसके दूसरे सभी गुणों को ढांक लेता है | परमेश्वर स्वय: पवित्र प्रेम और दयालु सत्य है | परमेश्वर का दयालु पिता के समान होने का यह नया संकल्प उस समय हुआ जब यीशु ने परमेश्वर के पुत्र के रूप में पवित्र आत्मा द्वारा जन्म लिया | आप अनन्त काल से परमेश्वर के साथ थे परन्तु देहधारी हुए ताकि हमें उद्धार दिला कर परमेश्वर की सन्तान बनाते | परमेश्वर को पिता के नाम से प्रगट कर यीशु ने दुनिया को, इस संदेश के तत्व को प्रस्तुत किया | इस प्रेरणा के द्वारा यीशु ने हमें न्याय के भय से मुक्त कर दिया क्योंकि न्यायाधीश स्वय: हमारा पिता है और इस का विश्वास दिलाने वाला हमारा भाई है जिस ने हमारे कर्ज चुका दिये | यदि तुम यीशु की अनेक घोषणाओं में प्रयोग किया हुआ पिता का नाम अपने अन्दर सोख लो और उस ज्ञान के अनुसार जियो तो समझ लो कि तुम ने सुसमाचार का संदेश ग्रहण कर लिया है |

मसीह ने अपने पिता के सामने स्वीकार कर लिया कि दुनिया की अत्यंत महत्व घड़ी आ चुकी है यानी परमेश्वर और मनुष्य के बीच में मेल मिलाप का समय | मानव जाती, दूत, धर्म और तत्वविज्ञानी न जानते हुए इस समय की प्रतिक्षा कर रहे थे | अब वह समय आ चूका था | मसीह ने परमेश्वर के मेमने के समान दुनिया का पाप उठा लिया था | आप परमेश्वर के क्रोध की आग में अकेले जलने के लिये तैयार थे | इन निर्णायक घड़ियों में आप को पकड़वाने वाला मन्दिर के सिपाहियों के साथ परमेश्वर के पुत्र को गिरिफ्तार करने के लिये आ रहा था परन्तु आप एक विनम्र परन्तु शक्तिशाली मनुष्य थे जो बगैर किसी के आश्रय के मरने को तैयार थे |

यूहन्ना 17:2
“2 क्योंकि तू ने उसको सब प्राणियों पर अधीकार दिया, कि जिन्हें तु ने उसको दिया है उन सब को वह अनन्त जीवन दे |”

कई लोग यह सोचते हैं कि महिमा का अर्थ चमक दमक और प्रकाशित करना होता है | यीशु ने स्वीकार किया कि आप का बलीदान संबंधी प्रेम महिमा का तत्व और आप के दिव्य व्यक्ति का सारांश है | आप ने अपने पिता से विनती की कि जब आप क्रूस पर होंगे और पीड़ा और डर के तूफानों में घिरे होंगे उस समय वह आप से वैसा ही प्रेम रखे ताकि दिव्य प्रेम की किरनें क्रूस पर चढाये हुए व्यक्ति पर परिपूर्णता से चमकें | पुत्र, विद्रोहियों और अपराधियों के लिये स्वेच्छा से अपनी बलि देने के लिये तैयार था ताकि वे उसकी मृत्यु से धार्मिक ठहरें | पुत्र की महिमा का यही मुख्य तत्व है |

आप इतना कह कर ही खामोश न रहे कि आप स्वय: अपने लिये प्राण नहीं दे रहे बल्कि अपने पिता की महिमा के लिये ऐसा कर रहे हैं और यह कि आप ऐसा काम करने जा रहे हैं जो कोई और न कर सका | आप ने क्रूस पर पिता की महिमा की और मानव जाती का परमेश्वर के साथ मेल मिलाप करा दिया | जब पाप की क्षमा हो जाती है तब परमेश्वर का प्रेम प्रदर्शित होता है और सब को गोद लिये हुए पुत्र बनने का नेवता दिया जाता है | मसीह पर विश्वास करने वालों पर पवित्र आत्मा उंडेला जाता है ताकि सन्तान पूर्ण पवित्रता की स्थिति में अपने पिता की महिमा करें | अनेक सन्तान का पिता बनने से बढ़ कर पिता के नाम की महिमा का कोई और चिन्ह नहीं हो सकता | इस लिये यीशु ने अनेक सन्तानों की आत्मा और सच्चाई में जन्म के द्वारा उस उद्धारदायक प्रेम को परिपूर्ण करने की विनती की ताकि पिता के नाम की प्रशंसा हो |

पुत्र ने अपनी दिव्यता का दावा दोहराया कि पिता ने आप को उन सब लोगों पर अधिकार दिया है जिन्होंने स्त्रियों से जन्म लिया | मसीह सत्य परमेश्वर, निर्माता और उद्धारकर्ता हैं | आप हमारे प्रभु, राजा, और न्यायधीश भी हैं | हम आप की और आप हमारी सच्ची आशा हैं | आप ने यह अधिकार, न्याय और नाश करने के लिये नहीं बल्कि हमारे उद्धार और मार्ग दर्शन के लिये पाया | मसीह के आने का उद्देश यह था कि आप पर विश्वास करने वाले अनन्त जीवन पायें | मृत्यु का अब उन पर कोई अधिकार न रहा | मसीह ने क्रूस पर मानव जाती के पाप क्षमा कर दिये | जब की बहुत कम लोगों ने उद्धार के इस प्रस्ताव को स्वीकार किया है, फिर भी विश्वासी चुना हुआ राष्ट्र हैं जो पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा पर विश्वास करते हैं और मसीह की उद्धारदायक महिमा में बने रहते हैं | उन में दिव्य आत्मा वास करता है | उन का नया अस्तित्व हमारे ज़माने का आश्चर्यकर्म है जिस से पिता के नाम की प्रशंसा होती है |

यूहन्ना 17:3
“3 और अनन्त जीवन यह है कि वे तुझ एक मात्र सच्चे परमेश्वर को और यीशु मसीह को, जिसे तूने भेजा है, जानें |”

यीशु ने परमेश्वर के बारे में जो कुछ कहा उसे पवित्र आत्मा प्रमाणित करता है |वह मसीह का और हमारा पिता है | जो व्यक्ति इस दिव्य रहस्य से परिचित है और आप पर विश्वास करता है वह अनन्त जीवन पाता है | परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त करने की यीशु मसीह की व्यक्ति के सिवाय और कोई कुन्जी नहीं है | जो व्यक्ति पुत्र में परमेश्वर की दिव्यता को देखता है और आप पर विश्वास करता है वह गोद लिये हुए पुत्र के कक्ष में परिवर्तित होता है | मसीह के वचन प्राप्त होने वाला प्रभावशाली ज्ञान केवल विज्ञान नहीं होता बल्कि उसके द्वारा मनुष्य आत्मिक व्यक्ति बन जाता है | परमेश्वर प्रत्येक विश्वासी में अपने स्वरूप का पुन:निर्माण करता है | इस दिव्य प्रतिरूप का क्या महत्त्व है ? वह प्रेम, सत्य और ईमानदारी है जो पवित्र आत्मा परमेश्वर की सन्तान में ले आता है | यह परमेश्वर का महामंडित होना भी है जिस के कारण उस के गुण व्यक्त होते हैं |

मसीह को परमेश्वर ने जगत में भेजा जिन्हों ने पवित्र आत्मा से जन्म लिया, क्रूस पर चढ़ाये गये और फिर मृतकों में से जिलाये गये | आप के आने और इस दुनिया में चलने फिरने का उद्देश यह था कि लोग जानें कि आप के बिना वे परमेश्वर का ज्ञान नहीं पा सकते | पुत्र दिव्य प्रेरित है जिस ने प्रेम और पवित्रता के साथ सब अधिकार अपने व्यक्तित्व में इकठ्ठे कर लिये हैं | अगर तुम सत्य परमेश्वर को जानना चाहते हो तो यीशु के जीवन का अध्ययन करो जो दिव्यता का प्रतिरूप हैं जिसे आत्मा ने अभिषिक्त किया है | मसीह की व्यक्ति में आप राजाओं के राजा और महायाजक, जो परिपूर्ण भविष्यवक्ता और परमेश्वर का वचन हैं , जो देहधारी हुआ |

यूहन्ना 17:4-5
“4 जो कार्य तू ने मुझे करने को दिया था, उसे पूरा करके मैं ने पृथ्वी पर तेरी महिमा की है | 5 अब हे पिता, तू अपने साथ मेरी महिमा उस महिमा से कर जो जगत की सृष्टि से पहले, मेरी तेरे साथ थी |”

जब आप दुनिया में ठहरे हुए थे तब यीशु सतत पिता से मनन करते रहते थे, उस की गवाही देते थे और उस के काम पूरे करते थे | आप ने संयम से काम लिया ताकि पिता की महिमा हो | आप ने पिता से जो कुछ सुना वह हम तक पहुँचाया | आप का पूर्ण जीवन इस विश्वास के साथ कि आप की प्रार्थनाओं का उत्तर मिलेगा, पिता की महिमा करने में बीता | आप ने क्रूस पर उद्धार का काम पूरा किया. यदपि, यह कोई स्वाभिमानी बात न थी क्योंकि आप के पिता ने आप को वह सेवा करने की जिम्मेदारी सौंपी थी | आप ने स्वीकार किया कि पिता ने सब काम पूरे किये | क्योंकि यीशु ने अपने आप को खाली कर दिया और स्वय: अपने लिये श्रेय न लिया, यथापि आप इस के योग्य अधिकारी थे कि अनन्त महिमा आप को लौट आती | इस तरह आप ने गवाही दी कि आप अनन्त काल से ही महिमामंडित हैं, और परमेश्वर सेपरमेश्वर, ज्योति से ज्योति, निर्मित नहीं बल्कि परमेश्वर की व्यक्ति में से उसी तत्व के साथ निकल आए हुये पुत्र हैं | अपना उद्देश प्राप्त करने के पश्चात् आप अपने पिता के पास लौट जाने के इच्छुक थे | जैसे ही आप आस्मान पर पहुँचे, दूतों और दूसरी व्यक्तियों ने आप को यह कहते हुए प्रशंसा की: “बघ किया हुआ मेमना ही समर्थ और धन और ज्ञान और शक्ति और आदर और महिमा और धन्यवाद के योग्य है | (प्रकाशित वाक्य 5:12).

प्रार्थना: ऐ स्वर्गिय पिता, तेरा नाम पवित्र माना जाय | तेरे पुत्र ने अपने आचरण, प्रार्थनाओं और बलीदान से तुझे महामंडित किया | हम अपनी आँखें तेरी तरफ उठाने के योग्य नहीं हैं | हमारे अपराधों को क्षमा करने के कारण हम तुझे धन्यवाद देते हैं क्योंकि मसीह ने हमारे कारण अपने प्राण दे दिये और तू ने हमें अपनी सन्तान बना लिया | मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ कि तू ने पवित्र आत्मा को मेरे दिल में उंडेल कर मुझे अनन्त जीवन में पहुँचा दिया | हमेशा तेरी प्रशंसा करने के लिये हमारी सहायता कर ताकि हम सारी महिमा अपने ही लिये खींच न लें बल्कि तेरे पुत्र के आदेशों के आज्ञाकारी बनें और एक दूसरे से प्रेम करें ताकि दूसरे लोग हमारे अच्छे कामों में तेरे पितृत्व को देखें और तेरे अधीन हो कर तेरी महिमा करें |

प्रश्न:

104. यीशु की प्रार्थना के पहले भाग में कौन सा बुनियादी विचार प्रगट किया गया है ?

www.Waters-of-Life.net

Page last modified on March 04, 2015, at 05:29 PM | powered by PmWiki (pmwiki-2.3.3)