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यूहन्ना रचित सुसमाचार – ज्योती अंध्कार में चमकती है।
पवित्र शास्त्र में लिखे हुए यूहन्ना के सुसमाचार पर आधारित पाठ्यक्रम
तीसरा भाग - प्रेरितों के दल में ज्योती चमकती है (यूहन्ना 11:55 - 17:26)
द - गैतसमनी के मार्ग पर बिदाई (यूहन्ना 15:1 - 16:33)

5. पुनरुत्थान के पर्व के समय पर मसीह चेलों के आनंद की भविष्यवाणी करते हैं (यूहन्ना 16:16-24)


यूहन्ना 16:16-19
“`16 ‘थोड़ी देर में तुम मुझे न देखोगे, और फिर थोड़ी देर में मुझे देखोगे |’ 17 तब उसके कुछ चेलों ने आपस में कहा, ‘यह क्या है जो वह हम से कहता है, ‘थोड़ी देर में तुम मुझे न देखोगे, और फिर थोड़ी देर में मुझे देखोगे ?’ और यह ‘इसलिये कि मैं पिता के पास जाता हूँ’?’ 18 तब उन्हों ने कहा, ‘यह ‘थोड़ी देर’ जो वह कहता है, क्या बात है ? हम नहीं जानते कि वह क्या कहता है |’ 19 यीशु ने यह जान कर कि वे मुझ से पूछना चाहते हैं, उनसे कहा, ‘क्या तुम आपस में मेरी इस बात के विषय में पूछताछ करते हो, ‘थोड़ी देर में तुम मुझे न देखोगे, और फिर थोड़ी देर में मुझे देखोगे’ ?”

इस शाम के दौरान यीशु ने तीन बार अपने प्रस्थान के विषय में कहा; इस तरह बार बार दोहराने से आप के चेलों को सदमा पहुँचा; वे आप का उद्देश समझ न पाये | परन्तु आपने अपने वापस आने का वादा भी किया, जो प्रथमत: आप के कबर में से जीवित उठने के संदर्भ में था जो फसह के पर्व के तुरन्त बाद हो गया था | तब आप दीवारों में से निकलते हुए कमरे में आये और चेलों को दिखाई दिये | यह संक्षिप्त भेंट आप के पिता की ओर प्रयाण करने से पहले बिदाई लेने का मौका था |

जैतून के पहाड़ पर चढ़ते समय यीशु ने जब यह भविष्यवाणियां की थीं तब चेले आप की बातें समझ न पाये थे | इस से पहले आप ने उन से अपने प्रयाण के प्रस्ताव के विषय में कहा था | अब आप उन्हें उस अलग होने के बारे में बता रहे थे जो घटना वास्तव में होने वाली थी | वे मान गये कि यीशु का यह उद्देश और इरादे उन के लिये एक पहेली बन गये थे | वे परेशान हुए और उलझन में पड़ गये; और आप के आस्मान पर लौट जाने के इरादे से शोक में पड़ गये |

यूहन्ना 16:20-23
“20 मैं तुम से सच सच कहता हूँ कि तुम रोओगे और विलाप करोगे, परन्तु संसार आनंद करेगा; तुम्हें शोक होगा, परन्तु तुम्हारा शोक आनंद में बदल जाएगा | 21 प्रसव के समय स्त्री को शोक होता है, क्योंकि उसकी दु:ख की घड़ी आ पहुंची है, परन्तु जब वह बालक को जन्म दे चुकती है, तो इस आनंद से की संसार में एक मनुष्य उत्पन्न हुआ , उस संकट को फिर स्मरण नहीं करती | 22 उसी प्रकार तुम्हें भी अब तो शोक है, परन्तु मैं तुम से फिर मिलुंगा और तुम्हारे मन आनंद से भर जाएँगे; और तुम्हारा आनंद कोई तुम से छीन न लेगा | 23 उस दिन तुम मुझ से कुछ न पूछोगे | मैं तुम से सच सच कहता हूँ, यदि पिता से कुछ मांगोगे, तो वह मेरे नाम से तुम्हें देगा |”

यीशु ने चेलों के विचारों को जाना और समझ गये कि वे क्या कह रहे हैं, जब की आप ने उन्हें बात करते हुये नहीं सुना था | उन के संदेह का उत्तर देते हुए, आप ने उन के डर को दूर नहीं किया, न ही उनके दु:ख को हल्का किया परन्तु इस बात पर ज़ोर दिया कि अत्यंत पीड़ा, आँसू बहाना और विलाप उनके जीवन को हिला देगा | यह वैसे ही था जब कोई अच्छा राजा मर जाता है, और प्रजा शोक मानती है और निराश हो जाती है | यधपि चेले दु:खी होंगे, उन के शत्रु प्रसन्न होंगे | शत्रुओं से यीशु का अर्थ सारी दुनिया से था न कि केवल यहूदी शासकों से | मसीह की कलीसिया के बाहर से सब लोग उस खोई हुई दुनिया से सम्बंध रखते थे जो परमेश्वर से दूर थी और पवित्र आत्मा के विरुद्ध विद्रोह कर बैठी थी |

इस के अतिरिक्त यह कि यीशु ने अपने चेलों से वादा किया कि वे बहुत प्रसन्न होंगे | आँसू बहाने और शोक मनाने की घड़ियाँ किसी माँ के बच्चे को जन्म देते समय की वेदना की तरह संक्षिप्त होंगी | माँयें बच्चा जनते समय की वेदना को उस आनंद के मुकाबले में जो उन्हें अपने शिशु को अपनी बाँहों में लेने से मिलता है, सहन करने जैसा समझती हैं |

पुनरुत्थान के समय चेलों के सब प्रश्न शांत हो गये | उन के लिये अपराध के सब विवाद निपटाये गये और मृत्यु की समस्या पर विजय पाई गई | शैतान का शासन नष्ट हो गया और परमेश्वर का क्रोध अब उन पर कोई प्रभाव न डाल सका | उन का विरोध, भय और अविश्वास, मसीह के वापस आने और उन की क्षमा को न रोक सका | यहूदी उन्हें फंदे में न फंसा सके क्योंकि प्रभु उन की रक्षा करता था | इस प्रकार सभी प्रश्न और दुविधायें जो उन्हें चिन्तित कर रही थीं, उन का उत्तर और उपचार मृतकों में से जी उठे हुए व्यक्ति में पुनरुत्थान के दिन मिल गया |

यूहन्ना 16:24
“24 अब तक तुम ने मेरे नाम से कुछ नहीं माँगा; माँगो, तो पाओगे ताकि तुम्हारा आनंद पूरा हो जाए |”

अपने बिदाई प्रवचन के शुरू में यीशु ने अपने चेलों को प्रेरित किया कि वे जो चाहें मांग लें और वह उन्हें दिया जायेगा ताकि पिता महामंडित हो (यूहन्ना 14:13) | यह प्रार्थनायें कलीसिया के निर्माण और सुसमाचार के प्रचार के विषय में होनी थीं क्योंकि यीशु चाहते हैं कि अधिक लोग त्रिय के प्रेम की संगती में प्रवेश करें | इस लिये आप ने हमें प्रेरणा दी: “पहले उसके राज्य और धर्म की खोज करो और यह सब वस्तुएं भी तुम्हें दी जाएँगी |” यीशु वादा करते हैं कि परमेश्वर आस्मानी (आत्मिक) और दुनियावी (शारीरिक) दोनों आव्यश्क्ताओं के लिये की हुई प्रार्थनाओं का उत्तर देता है फिर भी आस्मानी आव्यश्क्ताओं को दुनियावी आव्यश्क्ताओं पर प्रथमत: प्राप्त है |

तुम्हारे प्रश्न और दिल की प्रार्थनायें क्या है ? क्या तुम्हें पैसों, स्वास्थ और सफलता की आव्यश्कता है ? क्या तुम दूसरों के साथ संपर्क रखना चाहते हो ? क्या तुम्हें परमेश्वर के अस्तित्व और उसकी दया के विषय में संदेह ने नाक में दम कर रखा है ? क्या तुम अपने जीवन में आत्मा के न होने से खालीपन महसूस करते हो ? क्या तुम अपराधों का बोझ महसूस करते हो और तुम परिक्षाओं, संकटों और यातनाओं के कारण परेशान हो ? क्या तुम दुष्ट आत्माओं के कारण काँप जाते हो ? क्या तुम मसीह के आने और आप के राज्य के शान्ति के प्रसारण की अपेक्षा करते हो ? तुम्हारे प्राण, आत्मा और शरीर को कौन से प्रश्न परेशान कर रहे हैं ? क्या तुम ऊपर ही ऊपर से देखते हो या गहराई तक झाँकते हो ? क्या तुम आशावादी हो या निराशावादी हो ? क्या तुम्हारी भावनाओं को बहुत जल्दी ठेस लगती है ? क्या तुम अपने प्रभु से पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होने के लिये निवेदन करोगे ?

अपनी हर समस्या प्रार्थना के द्वारा पेश करो | अपना दिल अपने स्वर्गिय पिता के लिये खोल दो | परन्तु प्रार्थना करते समय बड़बड़ाना नहीं परन्तु पहले से ही सावधानी के साथ सोच लो कि तुम्हें प्रार्थना करते समय क्या कहना है | सब से पहले उन उपहारों और योग्यताओं के विषय में सोचो जो यीशु ने तुम्हें पहले से दे रखी हैं और उन के लिये आप को धन्यवाद दो | धन्यवाद कहना हमारा कर्तव्य है | तब अपने पापों को स्वीकार करो क्योंकि अविश्वास, प्रेम का ठंडा पड़ जाना और कमजोर आशा परमेश्वर के सामने अपराध समझे जाते हैं | जिन पापों को तुम ने स्वीकार किया है उन के लिये क्षमा माँगो और परमेश्वर से पूछो कि वो तुम से क्या चाहता है ताकि तुम क्षतीदायक वस्तुयें न माँगो | उसके अनुग्रह का निवेदन करो और विश्वास करो कि वह तुम्हारी प्रार्थना सुनेगा | यह कभी न भूलो कि परमेश्वर प्रेम है और चाहता है कि वह दूसरों को भी आशीष दे | अपने मित्रों और शत्रुओं के लिये प्रार्थना करो कि परमेश्वर उन्हें उसी अनुग्रह द्वारा आशीष दे जिस के द्वारा तुम्हें आशीष देता है | तुम ही अकेले जरूरतमंद और पीड़ित नहीं हो | सब लोगों का यही हाल है | अपने प्रश्न अत्यंत निर्भय होकर सरल मसीह से पूछो और दूसरों की खातिर स्वय: अपनी समस्याओं और अपनी प्रार्थनाओं में धन्यवाद और पापों के स्वीकार से बुनी हुई माला पहनाओ | तब तुम यीशु के नाम से सच्ची प्रार्थना करने का भेद जान लोगे |

असली प्रार्थना, धन्यवाद और आराधना के साथ परमेश्वर के साथ वार्तालाप करना होता है | ऐसी वार्तालाप ज़्यादा विस्तृत: न हो और उस में खनखनाती हुई अभिव्यंजना भी न हो | जो कुछ तुम सोचते हो उसे अत्यंत सादे शब्दों में पेश करो जैसे तुम अपने माता पिता से बातचीत करते हो | मंदिर में एक महसूल लेनेवाले ने छोटी सी प्रार्थना की : “हे प्रभु, मुझ पापी पर दया कर |” और वह धर्मी ठहराया गया | जब मसीह ने लाज़र के प्राण वापस लेने के लिये प्रार्थना की तो स्वर्गिये पिता ने उसे मृतकों में से जिलाया | केवल विश्वास के द्वारा ही उद्धार, सहायता और सफलता प्राप्त होती है | साहस से काम लो और अनुग्रह, धैर्य और धन्यवाद के द्वारा परमेश्वर से प्रार्थना करो | तुम उस की सन्तान कहलाते हो, इसलिये एक बच्चे की तरह आनन्दित होकर वार्तालाप करो और उस से कुछ न छिपाओ |

मसीह तुम पर खुशी प्रदान करना चाहते हैं, जो तुम्हारी प्रार्थनाओं के उत्तर में नहीं बल्कि इस लिये कि तुम्हें परमेश्वर और उसके पुत्र से औपचारिक साक्षात्कार का अधिकार प्राप्त है | तुम्हारे लिये अधिक महत्वपूर्ण क्या है, उपहार या उस का देनेवाला ? प्रभु तुम्हें परिपूर्णता प्रदान करता है परन्तु याद रखो वह स्वय: परिपूर्ण है | यीशु चाहते हैं कि हमारी खुशी परिपूर्ण हो | जब हम यह जान जाते हैं कि यीशु हमारी प्रार्थना का उत्तर देते हैं तो हमारी खुशी बढ़ जाति है जब कि हम में ऐसी खुशी बहुत कम पाई जाती है | हमारी प्रार्थनाओं के करण यीशु ने दूसरों को आशीष दी और उन का उद्धार किया | जब हम यीशु को आस्मान के बादलों में आते हुए देखेंगे तब हमारी खुशी उल्लसित होगी | तब हमारी खुशी को बयान नहीं किया जा सकेगा | क्या मसीह का अत्यंत प्रभावशाली आना तुम्हारी प्रार्थनाओं का महत्वपूर्ण विषय होगा ?

प्रार्थना: ऐ स्वर्गिय पिता, हम अपने दिल की गहराई से तेरा धन्यवाद करते हैं क्योंकि तूने अपने पुत्र को हमारा उद्धारकर्ता बना कर भेजा है | हमारी दुनियावी चिंताओं को क्षमा कर और क्रूस के महत्व को जानने में हमारी सहायता कर | हमें प्रतिक्रियात्मक तरीके से प्रार्थना करने की स्वतंत्रता दे ताकि हम तुझ से ऐसी बातचीत करें जैसे बच्चे अपने माता पिता से सादगी से बातचीत करते हैं | हमारे शत्रुओं को भी उद्धार अर्पण कर जो पापों के बोझ से थके हुए हैं और मूर्खता और घ्रणा से भरे हुये दिलों से कष्ट उठा रहे हैं | उन्हें उन के बंधन से मुक्त कर ताकि वे हमारे साथ तेरे अस्तित्व की खुशी में सहभागी हों |

प्रश्न:

102. पिता परमेश्वर, यीशु के नाम में हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर कैसे देता है ?

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