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यूहन्ना रचित सुसमाचार – ज्योती अंध्कार में चमकती है।
पवित्र शास्त्र में लिखे हुए यूहन्ना के सुसमाचार पर आधारित पाठ्यक्रम
तीसरा भाग - प्रेरितों के दल में ज्योती चमकती है (यूहन्ना 11:55 - 17:26)
स - ऊपर के कमरे में बिदाई का प्रवचन (यूहन्ना 14:1-31)

3. मसीह की बिदाई की शांति (यूहन्ना 14:26-31)


यूहन्ना 14:26
“26 परन्तु सहायक अर्थात पवित्र आत्मा जिसे पिता मेरे नाम से भेजेगा,, वह तुम्हें सब बातें सिखाएगा, और जो कुछ मैं ने तुम से कहा है, वह सब तुम्हें स्मरण कराएगा |”

ऐसा दावा करने का साहस कौन कर सकता है कि वह मसीह के सभी वचन को समझ गया है? और कौन आप के सारे धार्मादेश को याद कर सकता है या उन का पालन कर सकता है? प्रभु भोज के समय प्रभु के चेले परेशान हो चुके थे और पकड़वाने वाले की शरारत पर विचार कर रहे थे कि अब वो क्या करने जा रहा है | यूहन्ना के सिवा बाकी सभी चेलों को यीशु के अपनी बिदाई के समय कही गई बातें याद नहीं आ रही थीं |

चेलों के इस भुलक्कड़पन पर यीशु को सांत्वना मिली क्योंकि आप जानते थे कि सत्य का आत्मा उन पर उतरेगा और उन के दिमाग को रोशन करेगा और उन का नवीकरण भी करेगा जैसे आप ने उन्हें प्रोत्साहित किया था | पवित्र आत्मा यीशु के काम इसी समझ और उद्देश के साथ जारी रखता है | वह कमजोरों की रक्षा करता है | यीशु ने प्रतिमाशाली व्यक्ति या दर्शनशास्त्र के विद्वान या प्रचारकों को नहीं चुना था बल्कि मछेरों, महसूल जमा करने वालों और कुछ पापियों को चुना ताकि वो तज्ञों के महान ज्ञान को लज्जित करते | पिता ने दया करके अपनी आत्मा असमर्थों के पास भेजी ताकि उनको अपनी संतान बनाये, और उन्हें नम्रता, संयम और ईमानदारी से जीने की बुद्धि भी प्रदान की |

यीशु ने कविता समान कोई पुस्तक प्रकाशित नहीं की, ना ही आपने अपना सुसमाचार किसी से लिखवाया, जो कुछ पन्ने खो देता या उसके पाठ भूल जाता | आप विश्वास के साथ आशा करते थे कि सत्य का आत्मा आपके चेलों को सिखाएगा, उनके दिमाग को प्रकाशित करेगा, उन की अगवाई करेगा और जो कुछ भी आपने कहा उसकी याद दिलायेगा | सुसमाचार आज भी आत्मा के बड़े कामों में से एक है | यीशु ने उद्धार की योजना को मानव जाति की भाषा में ढाल कर चेलों के दिमाग में डाल दिया लेकिन आत्मा ने उन्हें याद दिलाया और सिखाया, इस तरह पवित्र आत्मा ने यीशु के वचन सिखाए ताकि प्रेरितों की गवाही के द्वारा आत्मा पुत्र को महिमा पहुंचाये | मसीह के प्रेरिर्तों की लिखी हुई पुस्तकों के सिवा हमारे पास और कोई लेख नहीं है, जिन्हों ने उस ज्ञान और विश्वास को जो उन्हों ने पाया था, बड़ी नम्रता के साथ दुनिया को प्रदान किया | उन्हों ने इसके अतिरिक्त कोई और वचन मसीह के मुँह में नहीं डाला | आप के उपदेश ठिठुराने वाले और रूखे समाचार नहीं थे जो समय के साथ अप्रचलित हो जाते हैं परन्तु आत्मा इन वर्णनों की जीवन शक्ति का आज तक लगातार, नवीकरण करता आया है | जब हम सुसमाचार को पढ़ते हैं तो ऐसा लगता है जैसे आज होने वाली घटनाओं के बारे में पढ़ रहे हैं | जब हम मसीह का वचन सुनते हैं तो ऐसा लगता है जैसे आपकी आवाज़ हमारे कानों को छू रही है | जो लोग यह दावा करते हैं कि चेलों ने असली सुसमाचार को स्वय: अपनी तरफ से गढ़ लिया या उसमें परिवर्तन किया है, वो सत्य की आत्मा की उपेक्षा करते हैं, क्योंकि पवित्र आत्मा में धोका नहीं होता | वह सत्य और प्रेम है |

यूहन्ना 14:27
“27 मैं तुम्हें शान्ति दिए जाता हूँ, अपनी शांति तुम्हें देता हूँ; जैसे संसार देता है, मैं तुम्हें नहीं देता : तुम्हारा मन व्याकुल न हो और न डरे |”

यीशु ने अपनी बिदाई का संदेश चेलों को शांति समर्पित करते हुए खतम किया | यह शांति सभी मानविय सलाम व प्रार्थना से बेहतर होती है | आप तो चले जा रहे थे परन्तु अपनी शांति कलीसियाओं के ऊपर मंडलाने के लिये समर्पित किये जा रहे थे | आप ने झूटी शांति के बारे में भी कहा जैसे कुछ समाचार पत्र संक्षिप्त में वर्णन करते हैं | परिक्षायें तो अवश्य आने वाली थीं | क्योंकी लोग परमेश्वर से अलग रहते हैं, उसका क्रोध लोगों के सभी अपराधों पर गिरता है | यीशु एक अलग प्रकार की शांति के बारे में बोल रहे थे जिसे हम अपने अन्तकरण में अनुभव करते हैं और जो हमारे पापों की क्षमा और परमेश्वर में मेल मिलाप हो जाने के बाद प्राप्त होती है और वह कलीसिया में पाई जाति है | मसीह की शांति पवित्र आत्मा है जो अनन्त और निरंतर शक्ति है और वो परमेश्वर की ओर से पवित्र आत्मा के द्वारा आती है और फिर उसकी ओर लौट जाती है |

दुनिया में झूठ, घ्रणा, हत्या, ईर्षा, लालच और अपवित्रता व्यापक रूप में फैली हुई है | परन्तु यीशु हमें आज्ञा देते हैं कि हम इन शैतानी लहरों को हमें डुबाने ना दें | शैतान इस दुनिया का राजकुमार है परन्तु हमारे परमप्रिय यीशु में ऐसी शांति व्याप्त है जो हमें उदासी और निराशा में पड़ने से बचाती है | यह हमें परेशान दिलों और मृत्यु के डर से मुक्त करती है | मसीह पर विश्वास करने वाला व्यक्ति परमेश्वर में वास करता है और परमेश्वर उसमें | क्या तुम्हारे साथ ऐसा हो रहा है ? यीशु उस नांव मे सो रहे थे जो तूफानी लहरों के बीच में झकोले खा रही थी | जैसे ही नांव में पानी भर गया सभी लोग जो नांव में सवार थे निराश हो गये | तब यीशु जाग उठे और तूफान को डांटा और वहाँ शांति हो गई | आप ने अपने चेलों से कहा, “ऐ कम विश्वास वालो तुम क्यों डर गये ?”

यूहन्ना 14:28-31
“28 तुम ने सुना कि मैं ने तुम से कहा, ‘मैं जाता हूँ, और तुम्हारे पास फिर आऊँगा |’ यदि तुम मुझ से प्रेम रखते, तो इस बात से आनन्दित होते कि मैं पिता के पास जाता हूँ, क्योंकि पिता मुझ से बड़ा है | 29 और मैं ने अब इस के होने से पहले तुम से कह दिया है’ कि जब वह हो जाए, तो तुम विश्वास करो | 30 मैं अब तुम्हारे साथ और बहुत बातें न करूँगा, क्योंकि इस संसार का सरदार आता है | मुझ पर उस का कोई अधिकार नहीं; 31 परन्तु यह इसलिये होता है कि संसार जाने कि मैं पिता से प्रेम रखता हूँ, और जैसे पिता ने मुझे आज्ञा दी मैं वैसे ही करता हूँ | उठो, यहाँ से चलें |

जब प्रभु ने यह समाचार दुहराया कि आप उन्हें छोड़ कर चले जायेंगे तब चेले परेशान हो गये | अलग होने का समय नजदीक आ गया | यीशु ने फिर अपनी बिदाई की घोषणा की परन्तु इस बात पर भी ज़ोर दिया कि वे वापस आयेंगे | आप ने कहा, “खुशी मनाओ कि मैं तुम्हें छोड़ कर जा रहा हूँ क्योंकी मैं पिता के पास जा रहा हूँ | खुशी मनाओ कि मैं अपने मूल स्वदेश जा रहा हूँ | मैं क्रूस की पीड़ा जैसी कोई चीज़ तुम पर ना लादुंगा, मैं तुम्हें कबर के डर से स्वतंत्र करूँगा | तुम्हारे लिये मेरा संदेश यही है कि पिता के साथ तुम्हारी एकता हो | अगर तुम मुझ से प्रेम करते हो तो मेरे आस्मान पर लौट जाने की खुशी मनाओगे | मैं अपने पिता को अपने से बड़ा मानता हूँ | मैं उससे बहुत प्रेम करता हूँ परन्तु मेरा प्रेम तुम्हारे लिये भी कभी कम ना होगा | मैं पिता की आत्मा में तुम्हारे पास आऊँगा |”

यीशु ने चेलों के सामने पिता का विशाल चित्र खींचा ताकि वो उसकी महानता को जानें और उससे लिपटे रहें, साथ ही साथ अपने स्वामी से जुदा होने के लिये तैयार रहें जो कुछ ही समय में मरने वाले थे | यीशु चाहते थे कि उनके चेले इस बात को याद रखें कि आपकी मृत्यु भी यह स्पष्ट नहीं करती कि परमेश्वर आप का शत्रु था | पिता और पुत्र के बीच की शांति अमर थी | पिता आप को इस मृत्यु के पश्चात् अपने पास उठाने वाला था |

अब और अधिक वार्तालाप की आव्यशकता नहीं थी; यीशु अपने पिता की चनौती को पूरा करने के लिये उठे, जो क्रूस पर दुनिया का उद्धार करने की थी | उस के बाद आत्मा चेलों पर उतरती | यह उद्धार सारी मानवजाति के लिये था | आप की इच्छा थी कि हर एक व्यक्ति परमेश्वर के असीम प्रेम को जाने |

तब यीशु और आपके अनुयायी ऊपर का कमरा छोड़ कर चले गये जहाँ आप ने नये नियम की स्थापना की थी और रात की उदासी में चले गये, और किद्रोन की घाटी पार करके जैतून के पहाड़ पर गेतसमनी के बाग की ओर चल दिये जहाँ आप का पकड़वाने वाला घात लगाये हुए बैठा था |

प्रार्थना: हे प्रभु, आप ने हमें शांति दी उसके लिये हम आप का धन्यवाद करते हैं | आप ने हमारे दिलों को पवित्र किया और हमें विश्राम दिया | घ्रणा, संघर्ष और भ्रष्टाचार की प्रचंड धारा में हमारी परेशानी, डर और निराशा को क्षमा कीजिये | आप की आत्मा के लिये धन्यवाद करते हैं जो शांति से हमारी रक्षा करती है | परिक्षा के समय आप का आत्मा हमें, आप के शक्तिशाली वचनों की याद दिलाता रहे ताकि हम पाप और अविश्वास या निराशा के श्राप में ना पड़ें बल्कि आशा, धीरज और प्रसन्नता से प्रार्थना करते रहें | हम आप का धन्यवाद करते हैं कि आप ने बताया हुआ मार्ग हमें वापस पिता के पास ले जाता है | ऐ परमेश्वर के मेमने,हमारे लिये स्वर्ग में घर तैयार करने के लिये हम आप के सामने अपने सिर झुकाते हैं |

प्रश्न:

93. परमेश्वर की शान्ति क्या है ?

प्रश्नावली - भाग 4

प्रिय पढ़ने वाले भाई,
अगर तुम हमें इन 14 में से 12 प्रश्नों के सही उत्तर लिख कर भेजोगे तो हम तुम्हें इस अध्ययन माला का अगला भाग भेज देंगे |

80: यीशु ने मरियम का आप को अभीषेक करना स्वीकार क्यों किया?
81: यीशु का यरूशलेम में प्रवेश क्या जाहीर करता है?
82: मसीह की मृत्यु को सत्य की प्रशंसा क्यों समझा जाता है?
83: हमारे ज्योति की सन्तान बनने का क्या अर्थ है ?
84: मसीह में सब के लिये परमेश्वर का आदेश क्या है ?
85: यीशु का अपने चेलों के पाँव धोने का क्या अर्थ है ?
86: मसीह के उधारण से हम क्या सीखते हैं ?
87: यहूदा के यीशु को छोड कर चले जाने के बाद यीशु ने जो महिमा प्रगट की उस का क्या अर्थ होता है ?
88: प्रेम ही मसीहियों की एक मात्र पहचान क्यों है ?
89: मसीह और पिता परमेश्वर में क्या संबंध है ?
90: प्रार्थना का उत्तर मिलने के लिये पहली शर्त कौन सी है ?
91: यीशु ने पवित्र आत्मा को कौन से गुणों से सम्मानित किया है?
92: हमारा प्रेम मसीह के लिये कैसे बढ़ता है और पवित्र त्रिय हम पर कैसे उतरता है ?
93: परमेश्वर की शान्ति क्या है ?

अपना नाम और पता साफ़ अक्षरों में केवल लिफाफे पर ही नहीं बल्कि उत्तरों की पर्ची पर भी लिख कर इस पते पर भेजिये |

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