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यूहन्ना रचित सुसमाचार – ज्योती अंध्कार में चमकती है।
पवित्र शास्त्र में लिखे हुए यूहन्ना के सुसमाचार पर आधारित पाठ्यक्रम
दूसरा भाग – दिव्य ज्योती चमकती है (यूहन्ना 5:1–11:54)
ब - यीशु जीवन की रोटी हैं (यूहन्ना 6:1-71)

4. यीशु लोगों को चुनने का मौका देते हैं, “स्वीकार करो या ठुकराओ” (यूहन्ना 6:22-59)


यूहन्ना 6:22–25
“22 दूसरे दिन उस भीड़ ने, जो झील के पार खड़ी थी, यह देखा कि यहाँ एक को छोड़ और कोई नाव न थी; और यीशु अपने चेलों के साथ उस नाव पर नहीं चढा़ था, परन्तु केवल उसके चेले ही गए थे | 23 तब अन्य नावें तिबिरियास से उस जगह के निकट आईं, जहाँ उन्होंने प्रभु के धन्यवाद करने के बाद रोटी खाई थी | 24 इसलिये जब भीड़ ने देखा कि वहाँ न यीशु है और न उसके चेले, तो वे भी नावों पर चढ़ के यीशु को ढूंढ़ते हुए कफरनहूम पहुँचे | 25 झील के पार जब वे उससे मिले तो कहा, “हे रब्बी, तू यहाँ कब आया ?”

जब भीड़ को विश्वास हो गया कि यीशु नाव में सवार हो कर चले नहीं गये थे, तब उन्हें आश्चर्य हुआ कि आप उनकी नजर बचा कर निकल गये | आप रात को अंधेरे में वहाँ से खिसक गये थे |

हजारों लोग कफरनहूम लौट आये और उस रोटी का समाचार देते रहे जो उन्हें बगैर पैसों के उदारता से दी गई थी | लोग विस्मित और ईर्षा से भरकर यह कहने लगे, काश हम भी उपहार में सहभागी हुए होते | भीड़ यीशु को ढूंढते हुए उनके चेलों के घरों तक पहुँची और आप को उनके बीच में पाया | यहाँ उन्हें एक मसीही सिद्धांत की सच्चाई का अनुभव हुआ जिसमें कहा गया है ,”जहाँ दो या तीन मेरे नाम पर इकट्ठा होते हैं वहाँ मैं उनके बीच में होता हूँ |”

जो वहाँ आश्चर्यकर्म देखने के लिये बेचैन थे वे इस नये चमत्कार को जानते थे | उन्होंने यीशु से पूछा, “आप कब और कैसे यहाँ पहुँचे?” यीशु ने उनके प्रश्न का उत्तर नहीं दिया परन्तु आत्मिक चिंता से विश्वास के अर्थ को स्पष्ट किया क्योंकि आप चाहते थे कि उन जोशीले लोगों में से जो विश्वासी हैं उन्हें अपने प्रेम की तरफ खींचें और उन को अपने शत्रुओं की धोकेबाजी दिखा दें | यीशु सत्कारहींन परस्तिथी पसन्द नहीं करते थे और आप विश्वासियों को बनावटी धार्मिक लोगों से जो बड़ी संख्या में थे अलग करना चाहते थे |

यूहन्ना 6:26–27
“26 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “मैं तुम से सच सच कहता हूँ, तुम मुझे इस लिये नहीं ढूंढ़ते हो कि तुम ने आश्चर्यकर्म देखे, परन्तु इस लिये कि तुम रोटियां खाकर तृप्त हुए | 27 नाशवान भोजन के लिये परिश्रम न करो, परन्तु उस भोजन के लिये जो अनन्त जीवन तक ठहरता है, जिसे मनुष्य का पुत्र तुम्हें देगा; क्योंकि पिता अर्थात परमेश्वर ने उसी पर छाप लगाई है |”

यीशु ने स्पष्ट शब्दों में भीड़ को चेतावनी दी और कहा, “तुम मुझे इस लिये नहीं ढूंढ रहे हो क्योंकि तुम्हें मुझ से प्रेम है या तुम्हारे विचार परमेश्वर के विषय में सही हैं परन्तु तुम्हें अपने पेट और रोटी की चिंता है | तुम उस आश्चर्यकर्म के चिन्ह को समझ ना पाये क्योंकि मेरा उद्देष उस रोटी से केवल तुम्हारी भूख मिटाना ना था बल्की यह की तुम मुझे मेरे सत्ताधिकार में पहचानो | तुम वरदान चाहते हो परन्तु देने वाले को भुला देते हो | तुम दुनियावी विषयों पर वार्तालाप करते हो परन्तु मेरी दिव्यता पर विश्वास नहीं करते |

केवल खाने पीने के लिये दिन भर परिश्रम ना करो परन्तु परमेश्वर के सत्त्याधिकार पर ध्यान दो | वन पशुओं की तरह ना बनो जो केवल खाने के लिये जीते हैं बल्की परमेश्वर के पास आओ जो आत्मा है, जो तुम को अपना अनन्त जीवन देने को तैयार है |

यीशु ने आगे स्पष्ट किया: “मैं दुनिया में आया ताकी तुम्हें परमेश्वर का बड़ा वरदान दूँ | मैं केवल ऐसा मनुष्य नहीं हूँ जो मांस और खून से बना हुआ हो | परन्तु मुझ में परमेश्वर का वो वरदान है जो तुम्हारे लिये आशीष बन सकता है | परमेश्वर ने मुझ पर अपनी पवित्र आत्मा की मुहर लगा दी है ताकी मैं तुम्हें आत्मिक जीवन दूँ और आस्मानी सत्ताधिकार से तुम्हारा नवीकरण करूं |

इस वक्तव्य से यीशु ने उस गोपनीय रहस्य की घोषणा की कि परमेश्वर सब की चिंता करता है, मानव जाती का पालन पोषण करता है और उनसे प्रेम करता है | वह कोई क्रोध करने वाला देवता नहीं है जो आशीष देने से पहले व्यवस्था के पालन का आग्रह करे | वो धर्मी और दुष्ट दोनों को आशीष देता है और अपना सूरज बगैर किसी भेदभाव के सब पर चमकाता है, यहाँ तक की नास्तिक और धर्मद्रोहियों पर भी चमकाता है | परमेश्वर प्रेम है और मसीह लोगों को उनके सांसारिक विचारों से स्वतंत्र करके वापस पिता परमेश्वर पर विश्वास करने की प्रेरणा देना चाहते थे | इसलिये आप ने स्वीकार किया कि आप का राज्य दुनियावी नहीं जो भोजन, धन और नियंत्रण पर चलता है बल्की आत्मिक था जो दिव्य जीवन से लबालब भरा हुआ है और मसीह के मानव शरीर में उन तक पहुँचता था जो हर उस व्यक्ती को पवित्र आत्मा देता है जो आप से मांगते हैं |

यूहन्ना 6:28–29
“28 उन्होंने उससे कहा, “परमेश्वर के कार्य करने के लिये हम क्या करें ?” 29 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “परमेश्वर का कार्य यह है कि तुम उस पर, जिसे उसने भेजा है, विश्वास करो |“

भीड़ यीशु की शिक्षा को ठीक तौर से समझ ना सकी परन्तु उसे यह अनुभव हुआ कि आप परमेश्वर की तरफ से बहुत बड़ा वरदान देना चाहते हैं और सब लोग इस अनन्त जीवन को पाना चाहते थे | वो इस वरदान को अपने कामों के द्वारा प्राप्त करना चाहते थे जैसे वो व्यवस्था का पालन करने, बलिदान देने, उपवास करने, प्रार्थना और अराधना करने और तीर्थयात्रा करने को तैयार थे | यहाँ हमें उनका अंधापन दिखाई देता है | ये सब व्यवस्था का पालन करनेवाले हैं जो स्वंय अपने प्रयास से उद्धार पाने के लिये व्याकुल हैं | वे नहीं जानते थे कि यह असंभव है क्योंकि वे अपराधी और खोये हुए हैं | वे बड़े घमंड से यह सोचते थे कि परमेश्वर का काम करने के लिये उनमें पवित्रता और क्षमता है | मनुष्य इतना अंधा हो जाता है की अपने दिल की सही परिस्तिथी का अन्दाज़ नहीं लगा सकता और अपने आप को छोटा परमेश्वर मान बैठता है और अपेक्षा करता है कि परमेश्वर उससे प्रसन्न होगा |

यीशु ने उन्हें बताया कि उन्हें कोई सेवा या काम करने की आवयश्कता नहीं है | वे स्वंय उन्हें केवल आप पर विश्वास करने के लिये बुलाते हैं | परमेश्वर कोई प्रयास या शक्ती नहीं चाहता बल्की यह चाहता है कि हम यीशु को आत्मसमर्पण करें और उस पर विश्वास करें | ये शब्द लोगों के रस्ते में बाधा बन गये और इस तरह यीशु और लोगों के बीच विभाजन शुरू हो गया | आपने लोगों को समझाया कि उनका काम यह है कि वे आप पर विश्वास करें | “अगर तुम अपनी आत्मा को पवित्र आत्मा के लिये खोल दो तो तुम मेरे अधिकार, उद्देश और प्रेम को जान लोगे | तब तुम जान लोगे कि मैं केवल भविष्यवक्ता नहीं हूँ परन्तु सिरजन हार और परमेश्वर का पुत्र जिसे पिता ने तुम्हारे पास भेजा है | तुम दुनियावी चिंता को छोड़ कर परमेश्वर की सन्तान बन जाओगे |

यीशु पर विश्वास करने का मतलब आपको पकडे रहना है और आप को अपने जीवन में काम करने देना है | आपकी अगुवाई और शक्ती को स्वीकार करके अनन्त जीवन प्राप्त करना है | विश्वास का अर्थ इस काल में और अनन्त जीवन तक यीशु के अधीन रहना है | यह परमेश्वर का काम है जो विश्वासियों को अपने पुत्र के बंधन में रखता है ताकी पाप उनके जीवन से नष्ट हो जाये और वे हमेशा उसके साथ रहें |

यूहन्ना 6:30–33
“30 तब उन्होंने उससे कहा, “फिर तू कौन सा चिन्ह दिखाता है कि हम उसे देख कर तेरा विश्वास करें ? तू कौन सा काम दिखता है ? 31 हमारे बापदादों ने जंगल में मन्ना खाया; जैसा लिखा है , उसने उन्हें खाने के लिये स्वर्ग से रोटी दी’ |” 32 यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम से सच सच कहता हूँ कि मूसा ने तुम्हें वह रोटी स्वर्ग से न दी, परन्तु मेरा पिता तुम्हें सच्ची रोटी स्वर्ग से देता है | 33 क्योंकि परमेश्वर की रोटी वही है जो स्वर्ग से उतरकर जगत को जीवन देती है |”

भीड़ यीशु के आत्मसमर्पण की मांग से भयभीत हुई | उन्हें ऐसा लगा जैसे यीशु ने किसी ऐसी चीज़ की मांग की है जो केवल परमेश्वर को दी जा सकती है | इस लिये उन्होंने आपसे अपने दावे के सबूत में कोई पवित्र वचन माँगा | मानो वो कह रहे हों: अपनी दिव्यता का सबूत दो | मूसा ने जंगल में प्रति दिन लोगों को रोटी (मन्ना) दी परन्तु आप ने हमें केवल एक ही बार रोटी खिलाई | मूसा ने लाखों लोगों को रोटी खिलाई परन्तु आप ने केवल पांच हज़ार लोगों को खिलाया | हमें कोई और आश्चर्यकर्म दिखाइए ताकी हम विश्वास करें | यह मानवीय बीमारी है ! मनुष्य यीशु के प्रेम को बिना शर्त मानने से इन्कार करता है और पहले सबूत मांगते हैं | परन्तु यीशु कहते हैं : “धन्य वे हैं जिन्होंने बिना देखे विश्वास किया, यही वो लोग हैं जो अपने विश्वास के द्वारा मेरा सम्मान करते हैं |”

यीशु सर्वोच्य मार्ग दर्शक हैं जो अपने श्रोतावों को पद प्रति पद न्यायशाली विचारों से हट कर स्वंय अपने ऊपर स्पष्ट विश्वास करने को उदबोधित करते हैं | आप ने लोगों को खाने के लोभ से हटा कर ज्ञान से प्रकाशित किया | आप स्वंय परमेश्वर का बड़ा उपहार हैं |

इस तरह धीरे धीरे स्पष्टिकरण करते हुए यीशु ने पवित्र शास्त्र के बारे में उन के झूठे विचारों से उन्हें मुक्त किया | जैसे की वो समझते थे कि मूसा ने उन्हें मन्ना दिया था | सच तो यह है कि वह परमेश्वर था जिसने यह किया था क्योंकि वही इन सब वरदानों का देने वाला है | आप ने उन्हें समझा कर साबित कर दिया कि परमेश्वर उन्हें सबसे अच्छी रोटी देता है और ऐसा आस्मानी भोजन जो कभी नष्ट नहीं होता | इन बातों पर ध्यान देने से वो जान जाते कि यीशु घोषणा कर रहे हैं कि आप परमेश्वर के बेटे हैं क्योंकि आप ने परमेश्वर को अपना पिता कहा है | फिर भी भीड़ अब तक दुनियावी रोटी के बारे में ही सोचती रही जो मूसा के हाथों आस्मान से आई थी |

यीशु ने उनके ज्ञान को इतना ऊपर उठाया कि वो समझ सकें कि परमेश्वर की रोटी ऐसी नहीं है जिसे पेट में निगल लिया जाये बल्की वो स्वंय मसीह की व्यक्ती है जो मनुष्य की सच्चाई की और भरपूर जीवन की भूक को मिटाती है | जो यह चीजें देता है वो परमेश्वर की आशीषों और बहुत ज्यादा शक्ती से भरा हुआ आस्मान से आ चुका है | परमेश्वर की रोटी कोई ऐसा पदार्थ या नाश होने वाली वस्तु नहीं बल्की परमेश्वर की ओर से आई जो मानव जाती को पर्याप्त और सर्वकाल तक मिलती रहेगी | वो अब्राहम की नसल तक ही सीमित नहीं है क्योंकि पिता परमेश्वर सारी दुनिया की चिंता रखता है |

प्रार्थ्ना: ऐ प्रभु यिशु हमें स्वार्थी गतिविधियों से बचाये | हम में नम्र विश्वास उत्पन्न कीजिये ताकी आप जो चाहते हैं कि हम करें, उसे सुनें | और अपनी शक्ती द्वारा हम में काम कीजिये | हमें उत्प्रेरित कीजिये कि हम पूर्ण रूपसे आप की संगती में बने रहें | हमारे दिलों की भूक को अपनी उपस्तिथी से सन्तुष्ट कीजिये | अनन्त जीवन के लिये हमें सुरक्षित रखिये | ऐ आस्मानी पिता, हमारे पास आकर हमें शक्ती और आशीष देने के लिये हम आपका धन्यवाद करते हैं |

प्रश्न:

46. यीशु ने लोगों को रोटी प्राप्त करने की इच्छा के बदले स्वंय अपने उपर करने के लिये कैसे निर्देशन किया?

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