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Previous Lesson -- Next Lesson

यूहन्ना रचित सुसमाचार – ज्योती अंध्कार में चमकती है।
पवित्र शास्त्र में लिखे हुए यूहन्ना के सुसमाचार पर आधारित पाठ्यक्रम
दूसरा भाग – दिव्य ज्योती चमकती है (यूहन्ना 5:1–11:54)
अ – यरूशलेम की दूसरी यात्रा (यूहन्ना 5:1–47) –यीशु और यहूदियों के बीच शत्रुता का उभरना

3 – मसीह मृत्कों को जीवित करते हैं और संसार का न्याय करते हैं (यूहन्ना 5:20-30)


यूहन्ना 5:20–23
“20 क्योंकि पिता पुत्र से प्रीति रखता है और जो जो काम वो आप करता है, वह सब उसे दिखाता है ; और वह इनसे भी बड़े काम उसे दिखाएगा, ताकि तुम अचम्भा करो | 21 जैसा पिता मरे हुओं को उठाता और जिलाता है , वैसा ही पुत्र भी जिन्हें चाहता है उन्हें जिलाता है | 22 पिता किसी का न्याय नहीं करता, परन्तु न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है, 23 कि सब लोग जैसे पिता का आदर करते हैं वैसे ही पुत्र का भी आदर करें | जो पुत्र का आदर नहीं करता, वोह पिता का जिस ने उसे भेजा है, आदर नहीं करता |”

यह काम कितने शक्तिशाली हैं जिन्हें करना मनुष्य के लिये संभव नहीं है परन्तु यीशु इन्हें कर सकते हैं | पिता उन्हें पुत्र के द्वारा करता है | यहां हम मसीह के विषय में दो गुण पाते हैं जिन की भविष्यवाणी पवित्र शास्त्रों में की गई है | यहूदी ऐसे व्यक्ती की प्रतीक्षा में थे जो इन गुणों का प्रारूप हो; जो मृत्कों को जीवित करे और सच्चाई से न्याय करे | और यह दोनों आतंरिक गुण यीशु ने अपने लिये आरोपित कर लिये | यहूदियों ने आपको पागल और धर्मद्रोही माना था तो भी यीशु ने समय से पहले ही अपने शत्रुओं के सामने यह भविष्यवाणी की कि आप जीवन के प्रभु हैं जो न्याय करेंगे | उन्हों ने आपको जान से मार डालने की ठान ली थी | इस स्विकृति से यीशु उनमें परिवर्तन लाकर उन से ठीक तरीके से विचार कराके निष्ठापूर्वक पश्चताप करवाना चाहते थे |

हमारा परमेश्वर नाश करने वाला परमेश्वर नहीं है परन्तु जीवन देने वाला है | वो पापियों की मृत्यु नहीं चाहता | वो चाहता है कि वे अपनी हट्धर्मी छोड़ कर जीवन पायें | जो कोई परमेश्वर से संबंध तोड़ लेता है उसकी आत्मा, जान और शरीर धीरे धीरे नाश हो जाते हैं | परन्तु जो मसीह के पास आ जाता है उसका परिवर्तन हो जाता है और उसे अनन्त जीवन का अनुभव हो जाता है | मुक्तिदाता चाहता है कि तुम्हारा परिवर्तन हो और तुम जाग उठो | क्या तुम मसीह की आवाज़ सुनोगे ? या फिर तुम हमेशा पाप और अपराध में जीते रहना पसन्द करोगे ?

सृष्टी अनन्त काल से सच्चाई पर बनाई गई है | यधपि लोग अपने प्रभु से असावधान हों जायें और एक दूसरे की हत्या करें या विश्वासघात करें तो भी सच्चाई बदलती नहीं | विनाश का दिन हिसाब किताब का महान दिन होगा | उस दिन परमेश्वर हर अत्याचार का हिसाब लेगा, विशेषकर विधवाओं और निर्बल के साथ किये हुए दुर्व्यवहार का | परमेश्वर ने सारे न्याय दण्ड मसीह को सौंप दिये हैं | आप, सब लोगों का, प्रत्येक भाषा बोलने वालों और प्रत्येक धर्म को मानने वालों का न्याय करेंगे | यीशु पापरहित मानव थे इस लिये आप हमारी मानवीय परिस्थिति को जानते हैं और हमारी निर्बलताओं से परिचित हैं | आप का न्याय सच्चा होता है | जब आप अपनी महिमा में उपस्थित होंगे तब सारी पृथ्वी पर के गोत्र विलाप करेंगे क्योंकी उन्होंने न्यायधीश की उपेक्षा की, घ्रणा की और उसे अस्वीकार किया | क्या तुम इस बात को जानते हो ?

तब सब लोग परमेश्वर के पुत्र के सामने घुटने टेकेंगे | जिन्हों ने पृथ्वी पर मसीह की आराधना करने की अवहेलना की, वो डरते और कांपते हुए आप का सम्मान करेंगे | मसीह सारी प्रकृती, धन, बुद्धी, सम्मान और महिमा के योग्य हैं (प्रकाशितवाक्य 5: 12) | आप ने दुनिया का परमेश्वर से मेल मिलाप करा दिया है क्योंकी आप ही वो विनम्र मेमना थे जो हमारे लिये बलीदान किये गये |परमेश्वर और पुत्र दोनों प्रेम और प्रकृति का एक सा निचोड़ हैं, केवल काम ही में नहीं बल्की उन्हें किये जाने वाले सम्मान, भक्ति और योग्यता में भी | इस लिये यीशु ने पृथ्वी पर होते हुए आप की, की गई आराधना को नहीं ठुकराया | यह ज़रुरी है कि हम पुत्र का भी वैसा ही सम्मान करें जैसा पिता का करते हैं | हम प्रार्थना करते समय पुत्र से भी वैसे ही अभिवादन कर सकते हैं जैसे अपने आसमानी पिता से करते हैं |

जो लोग मसीह को अस्विकार करते हैं या अपमानित करते हैं वो पिता ही को अस्विकार करते हैं | अनन्त पिता को पुत्र चुनने की स्वतंत्रता है | लोग जो मसीह को परमेश्वर का पुत्र मानने और आपकी आराधना करने से इंकार करते हैं उस का मुख्य कारण उनकी भ्रष्ट बुद्धी है | वो आपको जानना नहीं चाहते और इस तरह वो परमेश्वर की वास्तविकता को भी जान नहीं सकते |

यूहन्ना 5:24
“ 24 मैं तुम से सच सच कहता हूँ, जो मेरा वचन सुनकर मेरे भेजने वाले पर विश्वास करता है, अनन्त जीवन उसका है और उस पर दण्ड की आज्ञा नहीं होती परन्तु वह मृत्यु से पार होकर जीवन में प्रवेश कर चुका है :”

जो व्यक्ती मसीह के सुसमाचार को प्रसन्नता से सुनता है और आप के परमेश्वर का पुत्र होने पर विश्वास करता है वह अनन्त जीवन पाता है | यह जीवन जो मृत्यु के समय शुरू नहीं होता बल्की यहीं इस पृथ्वी पर पवित्र आत्मा के द्वारा शुरू होता है | यह आत्मा तुम पर इस लिये उतरती है क्योंकी तुम आसमानी पिता और पुत्र पर विश्वास करते हो | सभी लोग मसीह के वचन का अर्थ नहीं समझ पाते, यधपि वो उसे हज़ार बार सुन चके हों , और उसे पढ़ कर उसका विश्लेषण भी कर चुके हों | वो ना तो पुत्र के अनुग्रह की बात करेंगे ना पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन अनुसार चलेंगे | मसीह में आत्मविश्वास और निष्ठावान का होना ही सही विश्वास है | मसीह के साथ इस प्रकार का सम्बंध रखने से तुम्हारा विवेकीकरण होता है और तुम सज़ा से मुक्त किये जाते हो क्योंकी विश्वास ही तुम को बचा सकता है ना की अच्छे काम | मसीह का प्रेम उन लोगों कि रक्षा करता है जो आप के क्रूस में शरण लेते हैं और उनके पाप मिटा कर उनके अन्तकरण को पवित्र कर देता है | इस से हमें परमेश्वर के पास पहुंचने में प्रोत्साहन मिलता है | क्योंकी पुनरजन्म के कारण अनन्त परमेश्वर हमारा पिता बन गया है | हमारा पुनरजन्म हमारे विवेकीकरण का परिणाम है | क्या तुम मसीह का महान वचन जानते हो ? तुम मृत्यु और उसके आतंक से मुक्त किये गये हो और मसीह के अनुग्रह द्वारा अनन्त काल तक जीवित रहोगे | अब तुम पर परमेश्वर का क्रोध कभी नहीं होगा |

मसीह पर विश्वास करने के कारण तुम्हारा पूर्ण परिवर्तन हो चुका है और पवित्र अनन्त जीवन अब तुम्हारा हो चुका है | यीशु के साथ हमारा संबन्ध केवल दिमागी नहीं है बल्की उपयोगी, अस्तित्वशाली और खरा है | हमारे मसीह में रहने से बढ़ कर कोई उद्धार नहीं हो सकता | इस पाठ का चौबीसवां पद याद कर लो और अपना जीवन मसीह में निश्चित कर लो | तब हम अनन्त काल में एक दूसरे को आमने सामने देखेंगे |

प्रार्थना: ऐ हमारे पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा, हम आपकी आराधना करते हैं क्योंकी आप ने हमारे पापों की क्षमा कर हमारा विवेकिकरण किया है | आप का क्रोध हम पर से टल गया है इसलिये हमारा न्याय ना होगा | हम आपका आदर करते हैं क्योंकी आप का जीवन हम में उंडेल दिया गया है और मृत्यु को हमारे लिये रद्द किया गया है | हम आप के लिये अनन्त काल तक जीवित रहेंगे | हमें अपने आप में दृढ़ करें ताकी हम आपके नाम की प्रशंसा करते रहें |

प्रश्न:

40. वो कौन से दो मुख्य काम हैं जो पिता ने मसीह को पूरा करने के लिये दिये हैं ?

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