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रोमियो - परमेश्वर के वचन को न केवल सुननेवाले, परन्तु उस अनुसार कार्य करने वाले बनो|
याकूब की पत्री का अध्ययन (डॉक्टर रिचर्ड थॉमस द्वारा)

अध्याय IV

न्याय में अनुकल्पना (याकूब 4:11-12)


याकूब 4:11-12
11 हे भाइयों, एक दूसरे की बदनामी न करो, जो अपने भाई की बदनामी करता है, या भाई पर दोष लगाता है, वह व्यवस्था की बदनामी करता है, और व्यवस्था पर दोष लगाता है, तो तू व्यवस्था पर चलनेवाला नहीं, पर उस पर हाकिम ठहरा | 12 व्यवस्था देनेवाला और हाकिम तो एक ही है, जिसे बचाने और नाश करने की सामर्थ है; तू कौन है, जो अपने पड़ोसी पर दोष लगाता है?

इस छोटे से लेखांश में याकूब ने यह विषयवस्तु जुबान पर नियन्त्रण जिसके बारे में उन्होंने पहले भी कहा है,के कई प्रकार प्रस्तुत किये हैं (1:26; 2:12; 3:8,9)| अब वे आलोचना के लिए मानवीय भावावेश को फिर से सिध्द करते हैं |यहाँ किसी व्यक्ति के आलोचनात्मक रूख को ‘न्यायिक’इसके फलस्वरूप यह न्यायसंगत है के समान बताया जा रहा है | जबकि निंदा को इस वचन (11) में से निकाल दिया गया है, याकूब अन्य व्यक्तियों के न्याय करने पर भी आपत्ति दर्शाते हैं | हमें अन्य लोगों के लिए आसान न्याय, अपने आप को श्रेष्ठ समझते हुए लेने के बारे में सतर्क रहना चाहिए | बहुत पहले जॉन वेसले ने घोषणा की थी कि “मेथोडिस्ट किसी अनुपस्थित व्यक्ति की गलती को शामिल नहीं करते |” तो जो लोग उपस्थित है उनकी गलतियों का क्या ? देखते हैं वेसले ने कैसे इस समस्या का सामना किया |

एक प्रचार करनेवाले मित्र जो कि एक अत्यधिक धर्मप्रचारक थे, ने वेसले को रात के भोजन के लिए आमंत्रित किया था | मेजबान की सुपुत्री,एक मानी हुई सुंदर लडकी थी, वेसले के प्रचार के साथ गहरे रूप में बह गई | बातचीत के दौरान वेसले ने उस नवयुवती का हाथ अपने हाथ में लिया और जो चमकने वाला रत्न उसने पहना था, की ओर ध्यान केन्द्रित किया,: “एक मेथोडिस्ट के हाथ में इस रत्न के बारे में तुम क्या सोचती हो?” वह लडकी शर्म से लाल हो गई ; वेसले शर्मिंदा हो गए, गहनों के लिए उनकी नफरत जगजाहिर थी | मस्ती से मुस्कुराते हुए कहा, “हाथ बहुत सुंदर है |” उस शाम वह लडकी , मसीह को स्वीकार करके एक धार्मिक ईसाई बन गई और बिना गहनों के सेवकाई के कार्य करने के लिए मसीह की ओर आ गई थी |

याकूब भाइयों को संबोधित कर रहे हैं; एक मनुष्य अनुमानित रूप से भी एक भाई की निंदा कर सकता है या अपराधी सिध्द कर सकता है | आपसी रिश्तेदारी भाई को तनाव देती है | जिनके बारे में हम जानते हैं कि वे परमेश्वर के लोग हैं, के बारे में हमें निर्दयतापूर्वक न्याय और बहुत अधिक आलोचना नहीं करना चाहिए | आलोचनात्मक न्याय से पीड़ित लोग भी हमारे भाइयों या बहनों में अंतर्निहित हैं | हमें पूरे विश्व में अधिकतर लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए (1 कुरिन्थियो 5:12)|

अनुमान द्वारा निंदा करनेवाला राजसी नियम (2:8)को तोड़ रहा है या मित्रता को बिगाड़ रहा है | बिना प्राधिकार के न्याय देने में वह अपने आप को अभियोक्ता, गवाह कानून देनेवाला और न्यायाधीश के समान समझता है | सत्य है कि संत लोग दुनिया का न्याय करेंगे, परन्तु अभी एकदम नहीं | तो जल्दबाजी में न रहो (1 कुरिन्थियो 6:2)|

तब हम निंदा करनेवाले व फटकारने वाले के साथ कैसा व्यवहार करें ? बाइबिल में यह स्पष्टरूप से लिखा हुआ है जो ईसाइयों को अनुमति देता है जहाँ उन पर यह जिम्मेदारी है कि वे उन लोगों को जो फटकार के हकदार है, की निंदा करने के अपने कर्तव्य का अभ्यास करें (1 तिमुथियुस 4:20; 2 तिमुथियुस 4:2, तीतुस 1:13; 2:15,तीतुस 3:1, 1 तिमुथियुस 5:1)| 1 थिस्स्लुनिकियो 5:14 में हम एक संकेत पाते हैं कि निंदा करने में क्या क्या शामिल है – कि यदि कोई मनुष्य सही रास्ते पर नहीं चलता हो, उसे सही रास्ता दिखाओ और अपने आप पर भी चौकसी रखो (गलतियों 6:1)| निंदा करना व न्याय करने के बीच एक सूक्ष्म अंतर है; जिन्हें इस अंतर के बारे में जानकारी नहीं है,दोनों बातों से दूर रहें | किसी भी बात (घटना ) में लोग केवल उन लोगों द्वारा की गई निंदा को स्वीकारते हैं जिन्हें वे प्रेम करते हैं और जिनका वे आदर करते हैं | किसी व्यक्ति विशेष जिसे तुम नापसंद करते हो की निंदा कभी न करें | फटकारने वालों या निंदा करनेवालों के लिए पुरोहिती कार्य करने का अभ्यास न करना जब तक तुम प्रोत्साहित करने के पूरक पुरुस्कार को प्राप्त ना कर लो |यह दोनों साथ साथ चलते हैं |

आदर्शरूप में न्यायाधीश नियम देनेवाला होना चाहिए | मनुष्यों ने न्यायविभाग को विधानसभा से अलग कर दिया है इस आधार पर किइनमें से कोई भी इतना सक्षम नहीं है कि दोनों कार्यो को चला पाए |परमेश्वर जिन्होंने मूसा को नियम दिए थे वह सिर्फ नियम देने वाले थे; उन्होंने न्याय यीशु मसीह के हाथों में दिए थे (5:9 यूहन्ना 5:22)| दैवीय मनुष्य न्यायाधीश (यीशु मसीह ) को न्यायोचित या नाश करने की शक्ति है | इस सम्बन्ध में सेमुअल जौनसन के शब्द उचित हैं : “यहाँ तक कि परमेश्वर भी किसी मनुष्य का नाश नहीं करते जब तक वह मर ना जाये | तुम कौन हो जो ऐसा करते हो ?”

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