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रोमियो - परमेश्वर के वचन को न केवल सुननेवाले, परन्तु उस अनुसार कार्य करने वाले बनो|
याकूब की पत्री का अध्ययन (डॉक्टर रिचर्ड थॉमस द्वारा)

अध्याय IV

आत्म विश्वास के विरोध में चेतावनी (याकूब 4:13-17)


याकूब 4:13-17
13 तुम जो यह कहते हो, कि आज या कल हम किसी और नगर में जाकर वहां एक वर्ष बिताएँगे, और व्यापार करके लाभ उठाएँगे| 14 और यह नहीं जानते कि कल क्या होगा: सुन तो लो,तुम्हारा जीवन है ही क्या? तुम तो मानो भाप समान हो, जो थोड़ी देर दिखाई देती है, फिर लोप हो जाती है | 15 इसके विपरीत तुम्हें यह कहना चाहिए,कि यदि प्रभु चाहे तो हम जीवित रहेंगे, और यह या वह काम भी करेंगे | 16 पर अब तुम अपनी डींग पर घमंड करते हो; ऐसा सब घमंड बुरा होता है |17 इसलिए जो कोई भलाई करना जानता है और नहीं करता, उसके लिए यह पाप है |

इन वचनों में आधुनिक धनी मानी व्यक्ति जिसके पास अति महत्वाकांक्षी योजनाएं हैं के लिए सही समय पर दी जानेवाली चेतावनी है | ‘प्राप्त करना’ यह इस पदबंध की कुंजी है | उद्योगपतियों का बुनियादी सिध्दांत लाभ कमाना है,और यूनानी व्यापारियों की आखों के सामने यह अत्यधिक व्यापक रूप में मंडरा रहा था (13)| दिआस्पोरा के यूनानी जिन्हें याकूब ने अपनी पुस्तक में शामिल किया है, बिना थकने वाले यात्री थे; व्यापार उन्हें रोम साम्राज्य और उसके भी आगे पार्थिया और अरेबिया तक ले गया था |

व्यापार की नीति ‘व्यापार में एक वर्ष बिताना’ की ओर यहाँ इशारा किया गया है वह उत्तर भाग में अब तक भी है; व्यापारी एक स्थान के सामान को ढोकर किसी बहुत दूर शहर को ले जाते हैं, वहीं रहते हैं जब तक कि बिक्री करके लायी हुई वस्तुएं बिक न जाती और अन्य बिकनेयोग्य वस्तुएं दूर किसी दूसरे बाजार में बेचने के लिए खरीद ना ली जाती हों | वह ऐसे कार्य बार बार करते रहते हैं परिणामस्वरूप जब वे वापस आते हैं एक बहुत बड़े लाभ के साथ आते हैं | व्यापारी बहुत समय व्यतीत करते थे और बहुत मोल भाव करने की सुविधाओं का लाभ उठाते थे | हमें स्मरण आता है उस अमीर बूढ़े किसान के बारे में जो अपने अनाज व अन्य वस्तुओं को आने वाले कई वर्षों तक के लिए जमा करके रखने की योजनाएं बनाता है, उसके ज्ञान के अनुसार अपने आप को ‘ सुरक्षित ‘ कर लेना चाहता था ताकि उसे फिर किसी वस्तु की आवश्यकता न हो ( लूका 12:16-21)|

लेकिन क्या हमें लंबी अवधि वाली योजनाएं नहीं बनाना चाहिए,यदि हमारी योजनाएं गडबडा जाए तो |आख़िरकार परमेश्वर ने निर्माताओं, सेनाध्यक्षों के हाथों, ध्यानपूर्वक योजनाओं को सौंप दिया है जो कार्य की रुपरेखा व नक्शों का उपयोग करते हैं | इस सुसमाचार दृष्टांत में इस बिंदु की ओर संकेत दिया गया है कि जो कार्य शुरू किया गया उसे पूरा किया जाए : यहाँ उसे बढ़ते हुए प्राप्त करने या लम्बा खींचते हुए प्रचालन करने का कोई विचार नहीं है (लूका 14:28-32)| हम कह सकते हैं कि याकूब उन सफल मनुष्यों की अनुकल्पना और अतिविश्वसनीयता के प्रति चिंतित थे, वह व्यक्ति जो यह कल्पना करते थे कि सफलता उनकी दक्षता के अधिकार द्वारा यंही की है | ऐसे सांसारिक बुध्दिमान वर्ग विशेष प्राय: ही एक परमेश्वर में विश्वास करते हैं (2:19) परन्तु क्योकि अपने जीवन का दायित्व परमेश्वर के हाथों में देने में कई उलझाने वाली बाधाएँ सामने खड़ी होती हैं वे अपने हिसाब से परमेश्वर पर विश्वास करते हैं |

इन दो स्मरणीय कथाओं में यीशु हमें इस एक समान असफलता के विरोध में चेतावनी देते हैं : वे हमसे विनती करते हैं कि भविष्य के बारे में चिंता न करो, और समझाते हैं कि सारे जगत को अपने पूर्णत:नाश के बदले प्राप्त करने से क्या लाभ यदि यह व्यक्ति की आत्मा का ही नाश करता है ( मत्ती 6:34; 16:26 )| थोमोस ने मनुष्य की दूरदर्शिता के बारे में कहा है: ‘एक बहुत कम आमदनी में एक लंबी यात्रा की जिम्मेदारी लेना ; अनंत जीवन के लिए,बहुत से ऐसे हैं जो एक पैर भी जमीन से उठाने में डरते हैं |’

पहले ही उनके द्वारा अति विश्वसनीयता के प्रति दी गई चेतावनियों के कारणों की ओर याकूब अब आगे बढ़ते हैं | यहाँ तक कि तत्कालीन भविष्य के बारे में भी कुछ कहा नहीं जा सकता; कोई नहीं जानता कि कल क्या लाने वाला है | दूसरी बात छोटी जिन्दगी बहुत अच्छी है |यह एक सत्य लगता है,परन्तु एक ऐसी बात है जिसे बहुत से लोग अनदेखा करते हैं | यदि यह बात जो यीशु ने आत्मा की अंतहीन मूल्य के बारे में कही वैध है, पुरुषों एवं महिलाओं को लगातार यह स्मरण रखना चाहिए कि जीवन वाष्प, भाप या धुएं के समान है- कुछ समय के लिए दिखता है उसके बाद बहुत अच्छे के लिए या बहुत बुरे के लिए गायब हो जाता है (14) जीने की साँस स्वयं परमेश्वर की जिन्दा रखने की इच्छा पर निर्भर करती है (15)

जब हम इस ढंग में बात करते हैं हमें निराशात्मक कल्पनाओं के विरोध में भी सतर्कता बरतनी चाहिए कि जीवन में कुछ भी सीखने में, मेहनत करने में, उद्योग में मनोरंजन में लाभदायक नहीं है ( यहेजकेल 1:3,13; 2:11; 3:9 )| विचार-मग्न विधर्मियों ने इस आधार पर एक प्रशंसनीय निष्कर्ष निकाला है कि जीवन छोटा है: खाओ, पियो और प्रसन्न रहो क्योकि कल हम मरने वाले हैं (यशायाह 22:13; 1 कुरिन्थियो 15:3)| यह बात उन्हें उदासी के एक ऐसे नक्शे में ले जाती है जैसे मृत्यु अपनी उदासीभरी छाया, प्रत्येक ख़ुशी, उल्लास के अवसर पर डालती है | तब हमें जिन्दगी की छोटी सी रोशनी में क्या करना चाहिए ? हमें अपनी योजनाओं में परमेश्वर को स्थान देना चाहिए, यह स्मरण रखना चाहिए कि हमारा समय पूरी तरह से हमारा नहीं है, परन्तु यह हमको दिया गया उनका उपहार है |

इस धर्म संकट को ऐसे सुलझाया जा सकता है जब हम उपदेशकों द्वारा प्रस्तुत की गई सलाह को माने, साधारणतया हम कहें कि यदि परमेश्वर की इच्छा होगी तो हम यह करेंगे (15)| यह केवल कहने के लिए नहीं परन्तु हमें हमारे कार्यक्रम उस अनुसार नियोजित करने होंगे और उस धारणा अनुसार कार्य करने होंगे | हम शालीनतापूर्वक अपनी योजनाओं जैसे जीविका कमाने के लिए हमारा पेशा, विवाह, सीमा से हटकर कार्यों (16) के बारे में अन्य लोगों से बात कर सकते हैं, परन्तु उन बातों के लिए घमंड को इसमें शामिल नहीं किया गया है | ‘इंशाल्लाह’ कहना पूर्वी देशों में D.V.की बराबरी का शब्द है, और जन साधारण अधिकतर इसका उपयोग योहीं करता है जैसे यह ऐसे शब्द हैं जो सफलता प्राप्ति की निश्चिंतता के लिए चमत्कारिक है जिसकी पूजा भी की जा सकती है हमें इस प्रकार की धारणाओं का बार बार अंतहीनता तक उपयोग नहीं करना चाहिए परन्तु हमेशा यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि हमेशा हमारी अच्छी योजनाएं बनाने में परमेश्वर हमारे पीछे हैं |

“तुम अपनी डींग पर घमंड करते हो” याकूब कहते हैं (16);इस प्रकार की डींगे और इस प्रकार के तरीके हमेशा अनुचित और प्राय: बुरी होती हैं | अतिविश्वसनीयता अपने आप में बुरी है, परन्तु इसके बारे में शेखी बघारना , मूर्खतापूर्ण कार्य करना और अधिक दुगुने रूप से बुरा है | एक प्रकार की शेखी, महिमा करने की शेखी है, ( यही क्रिया यूनानी भाषा में भी है ) जोकि पूरी तरह से प्रशंसनीय है, और जोकि बड़े दुख की बात है कि ईसाई व्यक्ति इसे बड़े पैमाने पर नहीं करते हैं छोड़ देते हैं : प्रभु के नाम में , अशक्तता में, सूली पर मसीह में प्रशंसा,स्तुति करो (1 कुरिन्थियो 10:17; 11:30; गलतियों 6:14)|

क्या वचन 17 और उसके बाद के लेखांश में कोई संबध है ? कुछ टीकाकार स्वीकार करते हैं कि वे इसे खोज नहीं पाए | यद्यपि इस लेखांश में बहुत सी क्रियाएँ विशेष रूप से ( खरीदना, बेचना, प्राप्त करना ) करने के बारे में और अनिर्दिष्ट क्रियाओं (यह या वह करो ) क्रियाओं के बारे में दिया गया है | तो,याकूब अपने विवाद का समापन हमें यह कहते हुए करते हैं अनुमानित रूप से क्या सही है, हमें अपनी पूरी शक्ति के साथ करना चाहिए ( यहेजकेल 9:10)| वचन 17 पौलुस के कथन “ जो कुछ भी विश्वास से नहीं, वह पाप है “(रोमियो 14:23) पौलुस का परीक्षण एक रोकथाम करने वाले कार्य के समान है जो हमें हमारे उद्देश्यों और इरादों को फिर से जाँच लेने की ओर घुमाता है | जो कार्य हमें करना ही चाहिए उसे करने के लिए याकूब हमें एक स्फूर्ति देनेवाला विचार प्रदान करते हैं | यदि कार्य का कोई भी पथ संदिग्ध लगे उसे ना करें| दूसरे प्रकार से कहें तो यदि हम जानते हैं कि यह कार्य अच्छा,नैतिक ,सही है और विश्वास द्वारा प्रेम से इसे करने से कोई भी हमें नहीं रोकेगा तो वह करें |

ईसाई होने के नाते हमें अपनी जिम्मेदारियां मुक्त रूप से, आदर पाने के लिए नहीं,परन्तु परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने के लिए ग्रहण करनी चाहिए | वो लोग जिन्हें जो जिम्मेदारियां दी गई हैं उन्हें लगता है कि आध्यात्मिक विकास के साथ उनकी जिम्मेदारियों का घेरा निरंतर बढ़ता जा रहा है : पानी पर रोटी बनाना, दूसरी मील तक जाना, दूसरों के बोझ को सहन करना और सामान्यतया जो नियम या समाज की आवश्यकताओं से अधिक है, वह करना;परन्तु जो परमेश्वर आशा करते हैं उसकी अपेक्षा अधिक नहीं है (लूका 17:10)|

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