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Previous Lesson -- Next Lesson रोमियो – प्रभु हमारी धार्मिकता है|
पवित्र शास्त्र में लिखित रोमियों के नाम पौलुस प्रेरित की पत्री पर आधारित पाठ्यक्रम
भाग 2 - परमेश्वर की धार्मिकता याकूब की संतानों उनके अपने लोगों की कठोरता के बावजूद निश्चल है। (रोमियो 9:1 - 11:36)
5. परमेश्वर की धार्मिकता केवल विश्वास के द्वारा प्राप्त होती है, ना कि नियमों का पालन करने के द्वारा (रोमियो 11:1-36)
ई) उपदेशक की आराधना (रोमियो 11:33-36)रोमियो 11:33-36 पौलुस यहूदियों की आध्यात्मिक परिस्थिति को देखकर डरते थे, परंतु साथ ही यरूशलेम में भूतपूर्व यहुदी विश्वासियों के लिए उनके मन में प्रशंसा और शुक्रगुजारी का भाव था| आप अन्य लोगों में विश्वासियों की संख्या बढाने के लिये पवित्र परमेश्वर की अतिप्रशंसा करते थे, और यहूदियों के लिए उनकी दुष्चिन्ता, परमेश्वर के असीमित प्रेम के कारण शांत हो गई थी| आपने उनकी दया को स्वीकार किया था परंतु उनके दण्ड से इनकार नहीं किया| पौलुस ने परमेश्वर के प्रेम को पहचान लिया, उनके न समझ में आनेवाले रास्तों पर विश्वास किया और अन्तिम रूप से यह कहकर साक्षी दी थी; “परमेश्वर हमारी समझदारी से परे है| हम उन पर विश्वास करते है, और हमारे विचारों को उनकी इच्छा और उनके पुनरुत्थान के तले रखते है” (यशायाह 40:13; 45:15; 55:8-9, रोमियो 11:33)| वह व्यक्ति जो परमेश्वर की आराधना विश्वास पूर्वक करता है, प्रशंसा करता है, और उनको धन्यवाद करता है वह आशीषित है, क्योंकि वह पवित्र एक मात्र परमेश्वर को उनके प्रेम में पहचानता है| सत्य की आत्मा, उसे ईश्वरत्व की गहराईयों की ओर ले जाती है, भौतिक रूप से जो उपहार उसे परमेश्वर द्वारा प्राप्त हुए है जिनके कारण उस व्यक्ति विशेष की आत्मा कितनी धनी है, इस बात का आभास उसे कराती है| उनकी पत्री के दूसरे भाग में, पौलुस अपने विषय की रुपरेखा और अंत को हमारे सामने लाते है| आप याकूब के लोगों की कठोरता को स्वीकारते है, और यह भी पहचानते है कि इसका कारण उनका अविश्वास और परमेश्वर की इच्छा का विरोध करना था; और पौलुस इस सत्य को नकारते नहीं है| ठीक उसी समय आप मूल यहूदियों के विश्वासियों और रोम के कुछ सज्जन व्यक्तियों को प्रोत्साहन देते है, कि परमेश्वर अपने असीमित अनुग्रह के कारण उनको एक बार फिर से स्वीकार करंगे| यद्यपि परमेश्वर ने नए विश्वासियों का प्रेम, विनम्रता पवित्रता, और एन्टोलिआ में उनकी सेवकाई यहूदियों को दर्शा कर और साथ ही यथार्थ रूप से आपसी सहयोंग एवं विश्वसनीयता के साथ सेवकाई करने के लिए उनका मार्गदर्शन करने के द्वारा यहूदियों को उकसाया था| परंतु जैसे कि पौलुस को आशा थी विरोधी पक्ष में ऐतिहासिक कार्य विकसित हो चुका था| स्वयं पौलुस यहूदियों के द्वेष के प्रथम पीड़ित व्यक्ति थे| उन लोगों के झूठे दावों के कारण रोम में आपका सिर काट दिया गया था| पौलुस ने इस कठोरता को स्वयं अपने लिए और अपने सुसमाचार के लिए अनुभव किया था और इस आध्यत्मिक सत्य को दोहराया था जैसा कि यशायाह ने इसे घोषित किया था “सुनते हुए तुम सुनोगे, और समझ नहीं सकोगे; और देखते हुए देखोगे, और उसका आभास नहीं कर पाओगे; और इन लोगो के हृदय सुस्त हो चुके है| उनके कान सुनने से कठोर है, और उन्होंने अपनी आँखे बंद कर ली है, कंही ऐसा न हो कि वे अपनी आँखों से देख सके और कानों से सुन पाये, कहीं ऐसा न हो कि अपने हृदयों से समझ पाये और मुड जाये, तों मुझे उनको चंगा करना पड़े| इसलिए तुम यह जान लो कि परमेश्वर का उद्धार अन्यजातियों को भेज दिया गया है, जो इसे सुन सकेंगे| और जब उन्होंने यह शब्द कहे थे, यहूदी दूर चले गये और उनमे आपस में एक महान विवाद था|” (प्रेरित के कामों का वर्णन 28:26-29) पौलुस रोम की जेल में यहूदी परिषद के विरोधी न्याय के कारण कई वर्षों तक रहे थे (प्रेरित के कामों का वर्णन 23:1-28:16)| उनकी हठ और द्वेष के कारण, आपको रोम की यात्रा करनी पड़ी जहाँ कैसर ने व्यक्तिगत रूप से आपका न्याय-निर्णय किया था (प्रेरित के कामों का वर्णन 27:1-28:16) आपकी कैद फिर भी बहुत कठिन नहीं थी, क्योंकि जो आपको सुनना चाहते थे उनके लिए रोम में प्रचार करने की अनुमति आपको दी गई थी| रोम में कुछ लोगों ने विश्वास किया था जबकि अधिकांश बड़े बुजुर्गों और शिक्षकों ने उनकी शिक्षा को स्वीकार नहीं किया था, लेकिन ईसाईयत को एक यहूदी अशं मानते थे (प्रेरित के कामों का वर्णन 28:22)| आपका सिर काटे जाने के बाद भी, न्यायाधीशों पर आपका गहरा प्रभाव था| यहूदियों का दोष अन्यजातियों के उपदेशक के विरोध में इसकी समाप्ति पर था परंतु पौलुस की पत्री बिना किसी रूकावट के फैल रही थी| यहाँ तक आज भी, वे अनगिनत यहूदियों और अन्य जातियों को मसीह की ओर खींचती है| यह स्पष्ट है कि पौलुस, जो मसीह में जीते है, इस संसार के अंत तक मसीह की विजय में उनके साथ चलते है| प्रार्थना: ओ स्वर्गीय पिता, हम उपदेशक पौलुस के साथ आपकी आराधना करते है| हम आपके प्रेम और क्रोध के लिए आपकी अतिरंजना करते है; आपकी दया और न्याय के लिए प्रशंसा करते है; और आपके उचित रास्तों और विश्वसनीय अनुग्रह में हम आनन्दित है| हम विशेषरूप से आपका धन्यवाद करते है क्योंकि आप हमें मसीह में लाए ताकि हम आपके प्रिय बच्चे बन पायें| प्रश्न 79:परमेश्वर की समझदारी और अनुग्रह की परिपूर्णता का क्या अर्थ है? प्रश्न 80:यदि परमेश्वर अपने चुने हुए लोगों को कठोर करते है, और अंत में पवित्र शेषांश को स्वीकार करते है और उन सब को याकूब की संतानों में शामिल करते है तों परमेश्वर धार्मिकता में निरंतर कैसे बने रहते है? पहेली – 3प्रिय पाठको, 53:पौलुस के गहरे दुःख का कारण क्या था?
54:उनके लोगों के उद्धार के लिए पौलुस क्या बलिदान करने के लिए तैयार थे?
55: पुराने समझौते के लोगों के लिए पौलुस ने कितने विशेषाधिकार बताए थे? उनमे से कौनसा एक तुमको अति महत्वपूर्ण लगता है?
56: क्यों परमेश्वर का अनुग्रह अधिकांश चुने हुए लोगों को बचा सकने में असमर्थ था, कौन एक न्याय से दूसरे में गिरा?
57: इसहाक का चुनाव उसके मूल से और याकूब का चुनाव उसके पुत्रों से, का अर्थ क्या है?
58: परमेश्वर के चुनाव का रहस्य क्या है?
59: क्यों कोई भी व्यक्ति परमेश्वर द्वारा चुने जाने के लिए उपयुक्त नहीं है? हमारे स्वीकारात्मक चयन का कारण क्या है?
60: परमेश्वर ने फिरौन को क्यों कठोर कियाथा? व्यक्तियों, वंशों और लोगों की कठोरता कैसी दिखती है?
61: परमेश्वर के क्रोध के बर्तन कौन है, और उनकी अवज्ञाकारीपन का कारण क्या है?
62: परमेश्वर की दया के पात्रों का उद्देश्य क्या है, और उनका प्रारंभिक बिंदु क्या है?
63: क्यों अलग अलग प्रकार के लाखों विश्वसियों को परमेश्वर की धार्मिकता प्राप्त हुई और वह इसमें स्थापित हो गये थे?
64: क्यों अन्य धर्मों के धार्मिक लोगों ने, परमेश्वर की धार्मिकता प्राप्त करने के लिए अपने नियमों का पालन करने का प्रयास किया?
65: पौलुस के आदर्श वाक्यांश “मसीह नियमों का अन्त है” का अर्थ क्या है?
66: क्यों यहूदी उनके मसीहा के आने के इंतजार में है?
67: विश्वास और साक्षी के बीच क्या सम्बंध है?
68:उपदेशक पौलुस के अनुसार क्यों विश्वास और साक्षी के अभ्यास का विकास अनुक्रमिक होता है?
69: कैसे आज प्रत्येक व्यक्ति यदि वह चाहता है तो सुसमाचार को सुन, समझ और स्वीकार कर सकता है?
70:कैसे परमेश्वर ने पूरे राज्यों में से नवीकरण किये हुए व्यक्तियों को अपने चुने हुए लोग बनाया था?
71: एलियाह को कहे गये परमेश्वर के शब्दों का अर्थ क्या है कि उन्होंने सात हजार ऐसे लोगों को बचा कर रखा है जिन्होंने बाअल के सामने अपने घुटने नहीं टेके?
72:पौलुस के इन शब्दों का अर्थ क्या है कि वे और मसीह के अन्य अनुयायी, यहूदियों के पवित्र शेषांश से है जो परमेश्वर के चुने हुए लोग थे?
73:अस्वच्छ अन्य जातियों के लिये यहूदियों की कठोरता का अर्थ क्या है?
74:ईसाई लोग किसतरह अविश्वासियों को सही विश्वास की ओर जाने के लिये बिनती करतें हैं?
75:यीशु के आध्यात्मिक शारीर में कलम द्वारा लगाये जाने का अर्थ क्या है?
76:यदि कलम नष्ट हो जाये तों खतरे में कौन होगा?
77:परमेश्वर के वादे क्यों असफल नहीं होते, परन्तु चिरस्थायी रहते है?
78:कौन पूर्णतः अन्ध्यात्मिक इस्राएल है?
79:परमेश्वर की समझदारी और अनुग्रह की परिपूर्णता का क्या अर्थ है?
80:यदि परमेश्वर अपने चुने हुए लोगों को कठोर करते है, और अंत में पवित्र शेषांश को स्वीकार करते है और उन सब को याकूब की संतानों में शामिल करते है तों परमेश्वर धार्मिकता में निरंतर कैसे बने रहते है?
रोमियों की इस श्रंखला की सारी पुस्तिकाओं के पाठ्यक्रम को समाप्त कर के यदि आप हमें हर पुस्तिका के अंत में दिये गये प्रश्न के उत्तर भेजे, तब हम आप को एक उच्च शिक्षा का प्रमाणपत्र भविष्य में मसीह के लिए तुम्हारी सेवकाई के प्रोत्साहन के रूपमे| रोमियों को लिखीगई पौलुस की पत्री की परिक्षा हमारे साथ पूरी करने के लिए हम तुम्हे प्रोत्साहित करते है| ताकि तुम एक अनंत खजाने को प्राप्त कर सके| हम आप के उत्तर की प्रतिक्षा कर रहे हैं और आप के लिए प्रार्थना कर रहे हैं| हमारा पत्ता है: Waters of Life Internet: www.waters-of-life.net |