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Home -- Hindi -- Romans - 006 (Paul’s Desire to Visit Rome)
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रोमियो – प्रभु हमारी धार्मिकता है|
पवित्र शास्त्र में लिखित रोमियों के नाम पौलुस प्रेरित की पत्री पर आधारित पाठ्यक्रम
आरम्भ: अभिवादन, प्रभु का आभारप्रदर्शन और “परमेश्वर की धार्मिकता” का महत्व, इस पत्री का आदर्श है। (रोमियों 1:1-17)

ब) पौलुस की रोम जानेकी अत्यंत पुरानी अभिलाषा (रोमियो 1:8-15)


रोमियो 1:8-15
8 पहिले मैं तुम सब के लिये यीशु मसीह के द्वारा अपने परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ, कि तुम्हारे विश्वास की चर्चा सारे जगत में हो रही है| 9 परमेश्वर जिस की सेवा मैं अपनी आत्मा से उसके पुत्र के सुसमाचार के विषय में करता हूँ, वही मेरा गवाह है; कि मै तुम्हे किस प्रकार लगातार स्मरण करता रहता हूँ| 10और नित्य अपनी प्रार्थनाओं में बिनती करता हूँ, कि किसी रीति से अब भी तुम्हारे पास आनेको मेरी यात्रा परमेश्वर की इच्छा से सफल हो| 11 क्योंकि मै तुमसे मिलनेकी लालसा करता हूँ, कि मैं तुम्हे कोई आत्मिक वरदान दूँ जिससे तुम स्थिर हो जाओ 12 अर्थात यह कि मैं तुम्हारे बीच में होकर तुम्हारे साथ उस विश्वास के द्वारा जो मुझमें, और तुम में है, शांति पाऊं| 13 और हे भाइयों, मै नहीं चाहता, कि तुम इससे अनजान रहो, कि मैं ने बार बार तुम्हारे पास आना चाहा, कि जैसा मुझे और अन्य जातियों में फल मिला, वैसाही तुम में भी मिले, परन्तु अबतक रुका रहा| 14 मै यूनानियों और अन्य भाषियों का और बुद्धिमानों और निर्बुद्धियों का कर्जदार हूँ| 15 सो मैं तुम्हे भी जो रोम में रहते हो, सुसमाचार सुनानेको भरसक तैयार हूँ|

पौलुस ने रोमियों की कलीसिया के बारेमें बहुत कुछ सुना था अपनी धार्मिक यात्राओं के दौरान आप वहाँ के कुछ सदस्यों से मिले थे और आप ने यह पाया कि उनलोगों का विश्वास सच्चा, जीवित और परिपक्व था | आप ने परमेश्वर को अपने सच्चे दिल से इस चमत्कार के लिए धन्यवाद दिया क्यों कि हर एक इसाईं व्यक्ति मसीह में संधि का चमत्कार है, जिसके तत्व को हमारे धन्यवाद की आवशकता है| जब कभी भी एक कलीसिया परमेश्वर और पुत्र की पवित्र आत्मा में सेवा करती है वहाँ हमें दिन और रात प्रसन्नता के साथ पिता की प्रशंसा और आराधना करनी चाहिये |

पौलुस परमेश्वर को “मेरे परमेश्वर” कहते थे जैसे कि वे आप के अपने थे| आप जानते थे कि एक नये सौदे के अनुसार आप की आत्मा परमेश्वर के साथ बंधी हुई है और आप उनसे दिल से प्रेम करते थे लेकिन एक गर्माहट भरा सम्बन्ध होते हुए भी आप ने परमेश्वर की अत्ति प्रशंसा करते हुए उनके नाम में प्रार्थना नहीं की परन्तु सिर्फ यीशु के नाम में की, यह जानते हुए कि सुरक्षा के लिए की गई हमारे द्वारा प्रार्थनाएं, और यहाँ तक कि हमारे द्वारा दिया गया धन्यवाद इस योग्य नहीं है कि परमेश्वर की महिमा के लिए प्रस्तुत किया जासके| हमारे ह्रदयों को शुद्ध करने के लिए यीशु मसीह के शुद्ध लहू की शुद्धीकरण शक्ति की आवशकता है, केवल इस शुद्धीकरण द्वारा हम परमेश्वर से प्रार्थना कर सकते है जोकि हमें अपनी आत्मा देते हैं कि हम पिता के नाम में पवित्र हो सके और आनंद पूर्वक उनकी आराधना कर सके उन के सभी सेवक उनके लिए पवित्र हैं, और जो उनके द्वारा ही जाने जाते हैं जैसे उनके प्रेम के दास|

आपकी सेवकाई का संतोष आप का सुसमाचार है| हमने देखा कि पौलुस अपनी पत्री के पहले पद में इस सुसमाचार को “परमेश्वर का सुसमाचार” निर्देशित करते है जब कि पद 9 में हमने पढ़ा “उनके पुत्र का सुसमाचार”| इस तरह से उनका मतलब यह है कि उद्धार का दैविक शुभ समाचार परमेश्वर के पुत्र के तत्व पर निर्भर करता है| पौलुस की सभी इच्छाएँ यीशु के पुत्रत्व और परमेश्वर के पितृत्व के आसपास हैं| जोकोई भी इस सुसमाचार का सकर्मक रूप से निषेध करता है और जानबूझ कर इस को अस्वीकृत करता है वह श्रापित है|

पौलुस पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा की सहभागिता में रहते थे| आप पवित्र त्रये को एक साथ बुलाते थे कि वह गवाही दें कि आप हमेशा रोमियों की कलीसिया के बारेमें सोचते थे और उसके लिए प्रार्थना करते थे हालांकी अपने बहुत सारे कार्यों में व्यस्त रहनेके बावजूद यह उपदेशक इस राज्य की कलीसियाओं को भूले नहीं थे, और व्यक्तिगत रूप से विश्वास के साथ प्रार्थना भी करते थे| कोई भी निष्ठावान चरवाहे या याजक लगनसे कीगई प्रार्थना के बिना पवित्र आत्मा की शक्ति नहीं पा सकता| जब किसी व्यक्ति में से शक्ति निकलती हुई नज़र आती है तो उसका यही कारण हो सकता है के वो परमेश्वर और मनुष्य दोनों से प्रेम करता है और उन के लिये प्रार्थना करता है और उनका इच्छुक हो ता है|

पौलुस कई वर्षों से रोमियों की भेंट की इच्छा को अपने मनमें पाल रहे थे विशेष रूप से उस काल में जिसे वे कहते हैं “अब” यानि कि जब आप अन्तोलिया, मकिदुनिया और यूनान की सेवा में थे| आप ने देखा कि अब समय आगया है की इटली की ओर रुख करने का|

आप ने अपनी स्वंय की इच्छा और योजना के अनुसार यह यात्रा करने का निर्णय नहीं लिया था| वह हर समय ध्यान रख ते थे कि वे स्वयं परमेश्वर की इच्छा अनुसार उनके आदेश का पालन करे| आप का यह मानना था कि यह एक ठोस सत्य है कि परमेश्वर के आदेश के बिना किसी की अपनी योजनाए उन्हें असफलता, दुर्गति और तकलीफों की ओर लेजाती है| पौलुस अपनी चाहतों और इच्छाओं के गुलाम नहीं थे, परन्तु आप ने हर एक बात को स्वर्गीय पिता के मार्ग दर्शन के अनुसार रखाथा|

फिर भी यह समर्पण आप को रोम की कलीसिया से भेंट करने की आपकी उत्सुक इच्छा को नहीं रोक पाया, जहां आप कभी नहीं थे| आप को इस बात का ज्ञान था कि आप पवित्र आत्मा से भरे हुए थे| आप एक ज्वालामुखी के समान थे जो परमेश्वर की शक्ति को हर दिशा में उछालना चाहते थे; इस लिए आप रोम की कलीसिया को यीशु द्वारा दिये गए अधिकार में अपने साथ भागीदार बनाना चाहते थे, ताकि कलीसिया फिर से जीवित हो सके, सेवकाई के लिए तैयार हो सके, और प्रेम, विश्वास एवं सच्ची आशा में स्थापित हो सके| यह प्रभु की सेवा करने का एक ढांचा है और प्रेरितों के कार्यों का मुख्य उद्देश्य है ताकि विश्वासी मनुष्य स्थापित और शक्ति शाली हो सके|

पौलुस रोम में एक बड़े दाता के रूप में प्रवेश करना नहीं चाह ते थे लेकिन आप ने अपने आप को अत्यधिक नम्र बनाया था और लिखा था कि आप सिर्फ देने के लिए ही नहीं आये परन्तु देखकर और सुनकर कुछ लेने भी आये हैं| दैविय सुख देने वाले को रोम के संतों द्वारा दी गई गवाहियों से आप यह अनुभव लेना चाहते थे कि परमेश्वर ने आपके अलावा राजधानी के विश्वासियों के लिए क्या किया था ताकि आपको अन्य उपदेशकों के साथ यह सुख हासिल हो सके|

पौलुस ने, वहाँ जाने से पहले ही यह गवाही दी थी कि आप किसी नये विश्वास के साथ नहीं आये हैं, बल्कि वही विश्वास, ज्ञान और शक्ति जो कि सच्चे ईसाई भाइयों में कार्यरत है और जो यीशु के आत्मिक शरीर के सदस्य है| प्रत्येक व्यक्ति जोकोई भीइस बात का अधिकार जताता है कि वहाँ एक कलीसिया से अधिक कलीसियएँ हैं, वह झूठा है, क्यों कि पवित्र आत्मा एक है, यीशु एक हैं, और पिता परमेश्वर एक हैं| जहां कहीं भी सच्चे विश्वासीमिलते हैं, वे एक पिता के बच्चों के समान एकत्रित होते हैं, यहाँ तक कि चाहे वे एक दुसरेको ना जानते हों, वे महान प्रसनता से एक जुट हो कर जैसे एक ही आत्मा से जन्मे हो, एक ही परिवार के सदस्य हों, और समान सिद्धांतों एवं अभिरुचियों के साथ एक साथ जुड गए हों|

प्रार्थना: हम आप की आराधना करते हैं, ओ महान पिता क्यों कि आप ने इस संसार की सभी कलीसियाओं को एक साथ जमा किया, स्थापित किया, और अपनी विशेषताओं से भर दिया| हमें हर स्थान के अपने भाईओं के लिए प्रार्थना करना सिखाना| हम आप का धन्य वाद करते है, आप के सभी विश्वासी बच्चों के लिए, क्यों कि हर एक आप की पवित्र आत्मा से जन्मा एक चमत्कार है| हमारी आँखे खोलिए ताकि हम एक दूसरे से प्रेम करें, एक दूसरे को समझ सके, और आप की उपस्थिति का आनंद ले सके| हमें ज्ञान देना एवं क्षमा करना ताकि हमारी सहभागिता भरी पूरी रहे और आप की सच्चाई में बनी रहे और ताकि हम हमारी आप के साथ, आप के पुत्र और पवित्र आत्मा की सहभागिता से दूर ना जा सके|

प्रश्न:

10. पौलुस परमेश्वर को हर समय धन्य वाद क्यों देते थे?

www.Waters-of-Life.net

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