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रोमियो – प्रभु हमारी धार्मिकता है|
पवित्र शास्त्र में लिखित रोमियों के नाम पौलुस प्रेरित की पत्री पर आधारित पाठ्यक्रम
भाग 3 - परमेश्वर की धार्मिकता मसीह के अनुयायियों के जीवन में दिखाई देती है। (रोमियो 12:1 - 15:13)

4. अपने शत्रुओं और विरोधियों से प्रेम करो (रोमियो 12:17-21)


रोमियो 12:17-21
17 बुराई के बदले किसी से बुराई न करो; जो बातें सब लोगों के निकट भली हैं, उन की चिन्‍ता किया करो। 18 जहां तक हो सके, तुम अपने भरसक सब मनुष्यों के साथ मेल मिलाप रखो। 19 हे प्रियो अपना पलटा न लेना; परन्‍तु क्रोध को अवसर दो, क्‍योंकि लिखा है, पलटा लेना मेरा काम है, प्रभु कहता है मैं ही बदला दूंगा। 20 परन्‍तु यदि तेरा बैरी भूखा हो तो उसे खाना खिला; यदि प्यासा हो, तो उसे पानी पिला; क्‍योंकि ऐसा करने से तू उसके सिर पर आग के अंगारोंका ढेर लगाएगा। 21 बुराई से न हारो परन्‍तु भलाई से बुराई को जीत लो।।

“आँख के बदले आँख, दांत के बदले दांत” यीशु इस आयत के ऊपर विजय हुए| उन्होंने इसका अंत कर दिया (निर्गमन 21:24; लैव्यव्यवस्था 24: 19-20; मत्ती 5: 38-42), और उन्होंने उनकी नई आयत हमें दी कि अपने शत्रुओं से प्रेम करो उनकी मदद करो और उन्हें आशिष दो| ऐसा करने से उन्हें पुराने नियम के सभी आदेशों की धारणाओं के ऊपर विजय मिली, और वे हमें इस भ्रष्ट जगत के बीच में से स्वर्गीय आदेश की ओर ले जाते है|

पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन द्वारा उपदेशक पौलुस ने यीशु के नियमों को अपने जीवन में अमल करने का प्रयास किया और उन्हें किलिसियाओं को सिखाया| ईसीलिये, अगर कोई तुमको धोखा देता है, या बुरा कहता है, तों तुम विद्रोहपूर्वक और क्लेशपूर्वक अपनी प्रतिष्ठा और अधिकार का दावा करने की कोशिश ना करो परन्तु उस समस्या को अपने परमेश्वर को सौंप दो, जो पीड़ित व्यक्ति के लिए न्याय का अनुपालन करते है| सच्चाई के लिए गवाही दो और उग्र एवं कठोर ना बनो| शांति बनाये रखने की भरकस कोशिश करो| अपने समय और अपने अधिकारों का बलिदान करो| परमेश्वर से प्रार्थना करो कि वे तुम्हे और तुम्हारे शत्रु को अपनी शांति प्रदान करे| परमेश्वर का प्रेम प्रत्येक कठोर हृदय को नरम बना सकता है और तुम्हारे लिए आदर का निर्माण कर सकता है|

प्रतिशोध की भावना ईसाईयत में पूरी तरह से निषेध है, क्योंकि परमेश्वर एक अकेले ऐसे हैं, जो अपनी पवित्रता में, सभी परिस्थितियों को समझने में सक्षम हैं, और अपने ज्ञान एवं इंसाफ के साथ न्याय करते हैं (व्यवस्थाविवरण 32:35)|

अन्य लोगों की मनोदशा के बारे में हमारे सीमित ज्ञान के कारण यीशु ने हमें उनका न्याय करने से रोका था| उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था: “दोष मत लगाओ, कि तुम पर भी दोष न लगाया जाए| क्योंकि जिस प्रकार तुम दोष लगते हो, उसी प्रकार तुम पर भी दोष लगाया जाएगा, और जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिए भी नापा जाएगा| तू क्यों अपने भाई की आँख के तिनके को देखता है और अपनी आँख का लट्ठा तुझे नहीं सूझता? और जब तेरी ही आँख में लट्ठा है, तों तू अपने भाई से क्योंकर कह सकता है, कि ला मै तेरी आँख से तिनका निकल दूँ| हे कपटी, पहले अपनी आँख में से लट्ठा निकाल ले, तब तू अपने भाई की आँख का तिनका भली भांति देखकर निकाल सकेगा” (मत्ती 7: 1-5)

हमारे प्रभु का यह कथन हमें हमारे अंह और आत्मवंचना की ऊंची ऊंचाइयों से नीचे लाता और हमें दर्शाता है किसी के पास परिपूर्ण अधिकार नहीं है| हम सभी अपरिपूर्ण है, गलतियां करने वाले, अपराधी का बड़ी शीघ्रता से न्याय करने वाले जबकि हम स्वयं अपने आप को बिना किसी प्रायश्चित के पहचानते है| अपने शत्रुओं से प्रेम करो यीशु के इस वचन की व्याख्या पौलुस ने यह कहकर दी: जब तुम्हारे शत्रु में इतनी क्षमता ना हो कि वह स्वयं अपने लिए रोटी और भोजन खरीद सकता हो, उसकी मदद करो और उसे भुखा मत रहने दो| यदि उसके घर में पीने के लिए जल ना हो, और तुम्हारे घर में पीने के पानी की बोतले हो तों तुम उसे कुछ बोतले मुफ्त में भेज दो ताकि वह प्यासा ना रहे| तुम तुम्हारे शत्रु की आवश्यकताओं को पूरी करने में भागीदार हो, जैसा कि बुद्धिमान राजा सुलेमान ने कहा था: “यदि तेरा बैरी भूखा हो तों उसको रोटी खिलाना और यदि वह प्यासा हो तों उसे पानी पिलाना; क्योंकि इस रीति से तू उसके सिर पर अंगारे डालेगा और परमेश्वर तुझे इसका फल देगा|” (नीतिवचन 25: 21-22)| यह कोई नया दार्शनिक शास्त्र नहीं है| यह तीन हजार वर्षों पहले प्रकाश में आया था| समस्या ज्ञान होने या ज्ञान ना होने की नहीं है, परंतु घमंड, हृदयों को कठोर कर देता है, जोकि झुकना नहीं जानते, ना क्षमा करते है, या परमेश्वर से क्षमा मांगने के लिए विनती करते हैं|

पौलुस ने आश्चर्यजनक कथन के साथ अपने भाषण को संक्षिप्त रूप में कहा है: “बुराई से न हारो परंतु भलाई से बुराई को जीत लो” (रोमियो 12:21)| इस वचन के साथ उपदेशक तुम से कहना चाहता है: “बुराई को तुममे भीतर तक मत घुस जाने दो| तुम स्वयं में बुरे मत बनो, परन्तु यीशु की अच्छाई और प्रेम, जो ज्ञान को मात देता है, के द्वारा उस बुराई पर जो दिखाई देती है विजय प्राप्त करो|” यह सिद्धान्त सुसमाचार का रहस्य है| यीशु इस जगत के अपराधों को दूर ले गये, और अपने पवित्र प्रेम और हमारे लिए अपनी क्षतिपूर्ति मृत्यु के साथ विजय प्राप्त की| यीशु सफल विजेता है| वे चाहते है कि तुम तुम्हारी बुराई पर, और तुम्हारे हृदय की कठोरता पर विजय पाओ ताकि तुम आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त करो जिससे दूसरों की बुराई को सहन कर पाओ और तुम्हारी प्रार्थनाओं और धीर गंभीर प्रेम द्वारा उस पर विजय पाओ|

प्रार्थना: ओ प्रभु यीशु, हम आपकी आराधना करते है क्योंकि आप परमेश्वर के प्रेम के अवतार है| आपने अपने प्रेम का दबाव नहीं डाला, या क्लेश और प्रतिशोध के साथ अपने अधिकार का हक जतलाया परंतु आपने अपने शत्रुओं को क्षमा कर दिया, यह कहकर: “पिता, उनको क्षमा करे, क्योंकि वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं” ताकि हम आपकी आत्मा के साथ भर जाये, और अपने शत्रुओं को क्षमा करे, उनकी मदद करे, उनको आशीष दें, और उन्हें सहन करें जैसे आपने किया|

प्रश्न:

85. हम कैसे अपने शत्रुओं को बिना घृणा और प्रतिशोध के क्षमा करें?

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