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रोमियो – प्रभु हमारी धार्मिकता है|
पवित्र शास्त्र में लिखित रोमियों के नाम पौलुस प्रेरित की पत्री पर आधारित पाठ्यक्रम
आरम्भ: अभिवादन, प्रभु का आभारप्रदर्शन और “परमेश्वर की धार्मिकता” का महत्व, इस पत्री का आदर्श है। (रोमियों 1:1-17)

अ) पह्चान और प्रेरित का आशीर्वाद (रोमियों 1:1-7)


रोमियो 1:5-7
5 जिसके द्वारा हमें अनुग्रह और प्रेरिताई मिली; कि उसके नाम के कारण सब जातिओं के लोग विश्वास कर के उस की मानें 6 जिस में से तुम भी यीशु मसीह के होने के लिए बुलाए गए हो| 7 उन सब के नाम जो रोम में परमेश्वर के प्यारे हैं और पवित्र होने के लिए बुलाए गए हैं|

यीशु मसीह परमेश्वर के सभी अनुग्रहों की चाबी हैं| ना तो भविष्यवक्ता, ना ही संत, ना ही कुंवारी मरियम परमेश्वर के अनुग्रह या आशीषों से तुम्हारी मध्यस्थता कर सकते हैं| स्वर्गीय पिता यीशु मसीह के वास्ते ही हमारी प्रार्थनाओं के उत्तर देते है क्योंकि वही एक मात्र परमेश्वर से हमारे लिए हमारी सिफारिश करतें हैं| आपका नाम ही वह साधन है जो हमारी प्रार्थनाएँ परमेश्वर तक पहुँचाता है और उसी के द्वारा सभी आशिषें प्राप्त होती हैं| सिर्फ यीशु ने ही पवित्र परमेश्वर से हमारा मेल मिलाप कराया| इस प्रकार से हम आप से ही भरपूर अनुग्रह प्राप्त करते हैं जिस में आपके द्वारा दी गयी क्षमा, शान्ति, उद्धार और धार्मिकता भी शामिल है| और सब दिव्य आशीर्वाद हम पर आपकी करुणा है जिसे पाने के योग्य हम नहीं हैं|

हम कह सकते है कि पौलुस की पत्री का संक्षिप्त रूप ‘अनुग्रह’ है| यह उन्हों ने स्वयं अनुभव किया था क्योंकी वह एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्हो ने कलीसिया को तहस नहस किया था| उन्हें मुक्ती मिली परन्तु यह उनके उत्साह, प्रार्थनाओं या अच्छे कार्यों के कारण नहीं, बल्की इस लिए कि परमेश्वर ने यीशु मसीह के नाम में उन पर दया की थी| तो तुम इस असीम, विशाल अनुग्रह का सुसमाचार प्रत्येक व्यक्ति तक ले जाओ, जैसे यीशु ने सब से पहले तुम्हे अनुग्रह, क्षमा एवं शांती दी थी|

जैसे ही तुम अनुग्रह के सिद्धांत को समझते और स्वीकार करते हो तुम अनुग्रह प्राप्त करते हो, परमेश्वर के प्रेम के प्रचारक और बिना किसी मूल्य के मिलने वाले उद्धार के दूत बन जाते हो| क्या पवित्र आत्मा ने तुम्हारे हृदय में अपना सन्देश डाला है? या तुम अब भी खामोश, उदास और अपने पापों की रस्सियों में जकडे हुए हो?

जो भी अनुग्रह के सन्देश को पहचानता है वह परमेश्वर और उसके मसीह से प्रेम करता है, और उसकी दयालुता के नियमों पर चलता है| पौलुस के अनुसार, “विश्वास का आज्ञापालन” इस मुहावरे का अर्थ मनुष्य की इस अनुग्रह के विषय में प्रतिक्रिया है| परमेश्वर ने कभी नहीं चाहा कि हम अपनी इच्छा के विरुद्ध या द्वेष और अस्वीकृति के साथ उसकी आज्ञा का पालन करें परन्तु अपने उद्धारकर्ता और मुक्तिदाता के एहसानमंद होते हुए हम से हमारी मुक्ती प्राप्त की हुई आत्माओं का सम्पूर्ण समर्पण चाहता है| पौलुस अपने आप को यीशु मसीह के ‘दास’ कहते हैं| इस खिताब के द्वारा वह ‘विश्वास की आज्ञापालन,’ इस मुहावरे का ठीक वर्णन देते हैं| क्या तुम भी मसीह के दास हो? परमेश्वर, मसीह के कारण सभी लोगों के सब पाप, हर काल में क्षमा करते आये हैं| हम इस संदेश की तरह कोई और सन्देश मनुष्य के लिए इतना उपयोगी एवं मददगार नहीं पाते इस लिये हम उन सभी लोगों को जिनको हम जानते है, निमंत्रण देते हैं कि वे अपने आप को परमेश्वर को समर्पित करें और उसके मसीह से प्रेम करें और उसके अनुग्रह की शक्ति का अनुभव प्राप्त करें| यह क्या महान सन्देश है! क्या तुम ने अपने मित्रों को सभी अनुग्रहों को देने वाले पर विश्वास करके उसकी आज्ञा का पालन करने के लिए बुलाया है?

रोम की कलीसिया के सदस्यों को पौलुस या किसी और व्यक्ति ने नहीं, बल्की स्वयं मसीह ने बुलाया था, यह पूर्ण विश्वास का रहस्य है कि कोई मनुष्य किसी दुसरे मनुष्य को उद्धार के लिए नहीं बुलाता, सिवाय उस समय जब बुलाने वाला अपनी सब से अच्छी स्थिती में होता है क्योंकि हम सभी अपने प्रभु के हाथों के यंत्र हैं| यीशु अपने शिष्यों को स्वयं स्पष्ट रूप से चुनकर बुलाते हैं| आपकी आवाज हमारे हृदयों की गहराइयों तक चीर कर जाती है, क्योंकी यह उस व्यक्ती की आवाज है जो मृतकों को जीवित करती है| ‘कलीसिया’ शब्द का अर्थ है, उन लोगों की सहभागिता जिन्हें बुलाया गया है, और जिन्हों ने निराशावादीयों को छोड़ दिया है और परमेश्वर की सेवा में प्रेम की जिम्मेदारी स्वीकारली है| क्या तुम भी यीशु मसीह द्वारा बुलाए गये हो? या तुम अब तक निरुपयोगी और फलहीन हो? हमारे धर्म में लोगों को बुलाया जाता है|

जो कोई इस बुलावे को स्वीकार कर के उसको प्रतिसाद देता है उस से परमेश्वर प्रेम करता है| वह विवरण कितना सुन्दर एवं महिमामय होता है जो यह स्पष्ट करता है कि मसीही कौन हैं| यह लोग सर्व शक्तिमान परमेश्वर के रिश्तेदार होते हैं जिन्हें वह जानता है और उनका सम्मान करता है| इस के अतिरिक्त परमेश्वर उन के स्थान तक उतर आया और अपने प्रायश्चित के द्वारा उन्हें अपनी सहभागिता के योग्य बनाया| परमेश्वर का प्रेम, माता-पिता का अपनी सन्तान से या दुल्हा और दुल्हन के आपस के प्रेम से कहीं अधिक महान एवं पवित्र होता है| परमेश्वर का प्रेम पवित्र होता है और कभी असफल नहीं होता| क्या तुम परमेश्वर के चहेतों में से एक हो, जो उसके प्रेम से परिपूर्ण होता है और उस की पवित्रता में चलता है?

मसीह ने हमें, माफ़ी देने के लिए, आज्ञा पालन करने के लिए और आपका अनुसरण करने के लिए बुलाया| इन विशेषताओं का शिखर, पवित्रता है| कोई व्यक्ति स्वयं से पवित्र नहीं होता परन्तु धन देकर छुडानेवाले मुक्तीदाता के साथ हमारे बन्धन के द्वारा हम इस योग्य बन सके कि पवित्र आत्मा को प्राप्त कर सके| सिर्फ अनुग्रह के द्वारा ही हम प्रेम में परमेश्वर के सामने पवित्र और निर्दोष बन पाते हैं| सभी संतों को इस संसार से अलग कर के परमेश्वर की सेवा के लिए नियुक्त किया गया है| अब वे स्वयं के या उनके रिश्तेदारों के नहीं रहे, क्योंकी पवित्रता के कार्य करने के लिए वे परमेश्वर के अपने हो गये हैं| क्या तुम भी उन में से एक हो? क्या तुम भी वास्तव में अनुग्रह के द्वारा पवित्र किए गए हो?

प्रार्थना: हमारे पवित्र परमेश्वर, तूने हमें यीशु मसीह में पवित्र होने के लिए बुलाया, ठीक उसी तरह जैसे स्वयं तू पवित्र है| हम अपने अनुचित स्वभाव को स्वीकार करते हैं और अपने जाने व अनजाने पापों के लिए क्षमा मांगते हैं| हम तेरा धन्यवाद करते हैं क्योंकि तू ने हमसे प्रेम किया और मसीह के लहू से हमें पवित्र किया| अपनी पवित्र आत्मा से हमें हमारे पापों से मुक्त कर| हमारे पूरे जीवन को बदल दे ताकि हम अपनी पूरी शक्ति के साथ, हर समय तेरे ही हो कर रहें, और जैसे तू हम से प्रेम करता है वैसे हम तुझ से प्रेम करते रहै|

प्रश्न:

8. अनुग्रह क्या है और इस विषय में मनुष्य की क्या प्रतिक्रिया है?

www.Waters-of-Life.net

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